शिक्षाशास्त्र

मैकॉले के विवरण पत्र के गुण | मैकॉले के विवरण पत्र के दोष

मैकॉले के विवरण पत्र के गुण | मैकॉले के विवरण पत्र के दोष

Table of Contents

मैकॉले के विवरण पत्र की अच्छाइयाँ अथवा गुण (मैकॉले के विवरण पत्र के गुण) (Merits of Macaulay’s Minute)

(1) प्रगतिशील शिक्षा की वकालत-

मैकॉले के समय भारत में जो शिक्षा चल रही थी वह रूढ़िवादी थी, प्राचीन साहित्य प्रधान थी। मैकॉले ने उसे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान प्रधान बनाने पर बल दिया, उसे प्रगतिशील बनाने पर बल दिया। यह उसके विवरण पत्र की सबसे बड़ी अच्छाई थी।

(2) प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के विषय में तर्कपूर्ण निर्णय-

पाश्चात्यवादियों का ही समर्थन किया था और बहुत पक्षपातपूर्ण ढंग से किया था परन्तु जिस चतुराई के साथ किया था, वह उसकी विशेषता ही कही जाएगी। बहरहाल विवाद का हल तो प्रस्तुत हुआ ही।

(3) शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तटस्थता की नीति-

मैकॉले के समय हिन्दू पाठशालाओं में हिन्दू धर्म, मुस्लिम मकतब और मदरसों में इस्लाम धर्म और ईसाई मिशनरियों के स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जा रही थी। मैकॉले ने सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त स्कूलों में किसी भी धर्म की शिक्षा न दिए जाने को सिफारिश की। भारतीय सन्दर्भ में यह उसका अति उत्तम सुझाव था।

(4) पाश्चात्य भाषा, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की वकालत-

ज्ञान अपने में प्रकाश है, अमृत है,वह कहीं से भी प्राप्त हो उसे लेना चाहिए। मैकॉले ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की श्रेष्ठता स्पष्ट की, उससे भारतीयों को परिचित कराने पर बल दिया, यह उसके विवरण पत्र में एक बड़ी अच्छाई की बात थी।

मैकॉले के विवरण पत्र की कमियाँ अथवा दोष (Demerits of Macaulay’s Minute)

मैकॉले के विवरण पत्र की प्रमुख कमियाँ अथवा दोष निम्न प्रकार हैं-

(1) प्राच्य साहित्य की आलोचना द्वेषपूर्ण-

मैकॉले ने प्राच्य साहित्य को अति निम्नकोटि का बताया और उसका मखौल उड़ाया। यह उसकी द्वेषपूर्ण अभिव्यक्ति थी, नादानी थी, काश उसने ऋग्वेद और उपनिषदों के आध्यात्मिक ज्ञान, यथर्ववेद के भौतिक ज्ञान और चरक संहिता के आयुर्वेद विज्ञान आदि का अध्ययन किया होता तो वह ऐसा कहने का दुस्साहस कभी न कर पाता ।

(2) केवल उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था का सुझाव अनुचित-

शिक्षा सबका जन्मसिद्ध अधिकार है, उसे किसी वर्ग तक सीमित रखना मानवीय अधिकारों का हनन है। इस दृष्टि से मैकॉले का यह सुझाव अति दोषपूर्ण था।

(3) 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 की व्याख्या पक्षपातपूर्ण-

मैकॉले का शिक्षा के लिए स्वीकृत धनराशि को व्यय किए जाने के सम्बन्ध में यह कहना कि उसे किसी भी रूप में व्यय किया जा सकता है, साहित्य से तात्पर्य प्राच्य और पाश्चात्य साहित्य से है और भारतीय विद्वान से आशय भारतीय साहित्य के विद्वानों के साथ-साथ लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविता को जानने वाले भारतीय विद्वानों से भी है, पक्षपातपूर्ण था। यह बात दूसरी है कि वह उसे अपने तर्कों से उचित सिद्ध कर सका।

(4) निस्यन्दन सिद्धान्त की पुष्टि अनुचित-

वैसे तो मैकॉले से पहले भी कई अंग्रेज विद्वान यह बात कह चुके थे कि कम्पनी को केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए, निम्न वर्ग के लोग उनके सम्पर्क में आकर स्वयं ज्ञान प्राप्त कर लेंगे परन्तु मैकॉले ने इसकी पुष्टि तर्कपूर्ण ढंग से की जो आगे चलकर एक बार सरकार की शिक्षा नीति का अंग बनी। यह उसका एक चालाको भरा सुझाव था।

(5) अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव अनुचित-

किसी भी देश की शिक्षा का माध्यम उस देश के नागरिकों की मातृभाषा अथवा मातृभाषाएँ होती हैं। मैकॉले ने भारत में शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा अंग्रेजी को बनाने का सुझाव देकर न जाने कितने भारतीयों को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित कर दिया। इससे जन शिक्षा को धक्का लगा।

इस प्रकार भारतीय दृष्टिकोण से उसके विवरण पत्र में अच्छाइयाँ कम और कमियाँ अधिक थीं। तब उसकी या उसके विवरण पत्र की प्रशंसा कैसे की जा सकती है। हमारी दृष्टि से तो वह और उसका विवरण पत्र दोनों ही आलोचना के पात्र हैं।

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Pankaja Singh

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