शिक्षाशास्त्र

वैदिककाल एवं मध्यकाल की शिक्षा की तुलना | Comparison of Vedic and Medieval education in Hindi

वैदिककाल एवं मध्यकाल की शिक्षा की तुलना | Comparison of Vedic and Medieval education in Hindi

वैदिककाल एवं मध्यकाल की शिक्षा का तुलनात्मक विवेचन (Comparative Expression of Education During Ancient & Medieval Period)

समय-समय पर अलाउद्दीन, फिरोज तथा औरंगजेब जैसे शासकों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति को नष्ट करके उसके स्थान पर इस्लामी शिक्षा का भरपूर प्रचार किया। इसके परिणामस्वरूप तत्कालीन हिन्दू शिक्षा भी इस नवीन इस्लामी शिक्षा के प्रचार से प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकी । यहाँ तक की बहुत से हिन्दू भी अरवी व फारसी के प्रकांड पंडित होकर मुसलमान शासकों से अच्छे सम्बन्ध बनाकर उनके दरबारों में उच्च पदों पर आसीन होने लगे थे। इसके साथ-साथ मुसलमानी शिक्षा भी दर्शन, चिकित्सा, औद्योगिक नीति के क्षेत्र में हिन्दू शिक्षा से प्रभावित हुयी । यही कारण है कि दोनों ही प्रकार की शिक्षा में कुछ समानतायें हैं और कुछ असमानतायें हैं। इन समानताओं एवं असमानताओं के पूर्व स्पष्टीकरण के लिये अग्रांकित बिन्दु दिये गये हैं-

वैदिककालीन एवं मध्यकालीन शिक्षा में समानतायें (Similarity)

वैदिककालीन एवं मध्यकालीन शिक्षा में प्रमुख समानतायें निम्न प्रकार हैं-

(1) शिक्षा निःशुल्क थी-

प्राय: दोनों युगों की शिक्षा व्यवस्था में छात्रों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं, लिया जाता था, सभी प्रकार की शिक्षा सम्बन्धी आर्थिक व्यवस्था समाज के अन्य स्रोतों से की जाती थी। शिक्षा देना एक विशिष्ट पूर्ण का (पुण्य) कार्य माना जाता था।

(2) गुरु तथा शिष्य के सम्बन्ध अत्यधिक मधुर थे-

वैदिककालीन शिक्षा में गुरु को पिता तुल्य स्थान दिया गया है। इसी तरह मध्यकाल में भी इस्लामी शिक्षा के अन्तर्गत मौलवी का समाज में एक विशेष स्थान होता था। गुरु सेवा करना छात्र का प्रमुख एवं पुनीत कर्त्तव्य माना जाता था।

(3) शिक्षा का महत्व समान था

वैदिक युग में शिक्षा का सर्वाधिक महत्व था। इस काल में शिक्षा न दे पाने वाले माता-पिता के प्रति “माता शत्रु पिता बैरी येन बालो न पाठितः।” का भाव माना जाता था। मध्यकाल में भी शिक्षा का ऐसा ही रूप रहा है जो बालकों को भविष्य के लिये तैयार करता था।

(4) संस्कारों का महत्व था-

दोनों ही प्रकार की शिक्षा व्यवस्था में संस्कारों को महत्व प्रदान किया गया है। वैदिक शिक्षा उपनयन संस्कार से आरम्भ होती थी और इस्लामी शिक्षा का शुभारम्भ ‘बिस्मिल्लाह’ की

रस्म से होता था। जब बालक चार वर्ष, चार माह और चार दिन का हो जाता था तो मकतब में प्रवेश के लिये ‘बिस्मिल्लाह’ रस्म मनाई जाती थी।

(5) रक्षा शिक्षा का स्थान-

प्राचीन काल में गुरुकुल में गुरु शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र चलाने में निपुण करने योग्य बनाते थे। यही कारण है कि देखा-देखी मध्ययुग में ‘युद्ध कला’ का खूब विकास हुआ। सैनिक शिक्षण में प्राय: अश्वारोहण, भाला चलाना, तीर व तलवार में निपुणता हासिल कराना तथा किले आदि की रक्षा-सुरक्षा के लिये घेरा डालना सम्बन्धी अनेक प्रकार की सैनिक शिक्षा दी जाती थी।

(6) धर्म की प्रधानता थी-

वैदिक एवं मध्यकालीन दोनों ही प्रकार की शिक्षा में धर्म की प्रधानता थी। वैदिक काल में शिक्षा का परम लक्ष्य ‘मोक्ष’ था। मध्यकाल में सामाजिक कानून (नियम) कुरान शरीफ जैसे पवित्र धर्म ग्रन्थ पर आधारित थे।

(7) शिक्षा विधि में समानता थी-

प्राय: दोनों ही प्रकार की शिक्षा व्यवस्थाओं में शिक्षा विधि समान थी। वैदिक काल में अधिकतर मौखिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता था। ‘रटने’ पर जोर दिया जाता था। इसी तरह मध्यकाल में भी मकतब में मौखिक शिक्षण विधि की प्रधानता थी।

(8) समाज पर शिक्षा का दायित्व-

प्राचीन समय में गुरुकुलों की व्यवस्था का भार समाज के विवेकशील पुरुषों के ऊपर रहता था। मध्यकाल में भी मकतबों एवं मदरसों का प्रबन्ध वैयक्तिक प्रबन्ध समितियों तथा सम्मानित एवं दानशील नागरिकों द्वारा किया जाता था।

वैदिककालीन एवं मध्यकालीन शिक्षा में असमानतायें अथवा विषमतायें (Dissimilarity)

वैदिककालीन एवं मध्यकालीन शिक्षा में असमानताओं अथवा विषमताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

वैदिककालीन शिक्षा

मध्यकालीन शिक्षा

1. शिक्षा का रूप व्यक्तिगत था।

2. ‘नारी’ को शिक्षा में स्थान दिया गया था।

3. प्राचीन शिक्षा सहिष्णु थी।

4. प्राय: छात्रों का जीवन कठोर होता था।

5. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना था।

6. गुरु गृह एवं आश्रम ही शिक्षा के केन्द्र थे।

7. छात्रों की दिनचर्या का स्वरूप सात्विक था।

8. यही कारण था कि शिक्षा की प्रकृति ‘सात्विक’ था।

9. शिक्षा में शारीरिक दण्ड को स्थान नहीं दिया गया था।

10. सामान्यत: शिक्षा का माध्यम हिन्दी, पाली तथा संस्कृत थी परन्तु संस्कृत भाषा की प्रधानता थी।

11. छात्रों को किसी प्रकार के उपहार या उपाधिपत्र नहीं दिये जाते थे।

12. शिक्षा केवल आत्म विकास का साधन मानी जाती थी।

13. शिक्षा धर्ममय थी।

1. शिक्षा का स्वरूप सामूहिक था।

2. ‘नारी’ शिक्षा की उपेक्षा थी।

3. मुस्लिम शिक्षा कट्टर थी।

4. छात्रों का जीवन सुविधापूर्वक होता था।

5. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य राजसुख को प्राप्त करना था।

6. प्राय: शिक्षा मदरसों तथा मकतबों में दी जाती थी।

7. छात्रों की दिनचर्या का स्वरूप राजसी था।

8. यही कारण है कि शिक्षा की प्रकृति ‘राजसी थी।

9. शिक्षा में शारीरिक दण्ड को स्थान दिया गया था।

10. शिक्षा का माध्यम अरबी तथा फारसी भाषा थी। आगे चलकर इनका स्थान उर्दू ने ले लिया था। अत: उर्दू विषय का महत्व बढ़ गया था।

11. योग्य,कुशल एवं चरित्रवान छात्रों को पारितोषिक देकर प्रोत्साहित किया जाता था।

12. शिक्षा की अवधि पूर्ण होने पर छात्रों को आलिम, फाजिल तथा काबिल की उपाधि दी जाती थी।

13. शिक्षा यश-गौरवमयी थी।

इस प्रकार तुलनात्मक रूप से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि प्राचीन या वैदिक कालीन शिक्षा अधिक सात्विक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास करती थी, जबकि मध्यकाल की शिक्षा राजसी प्रकार की थी और मानव की आन्तरिक भावनाओं को विकसित करने में अक्षम थी। यही कारण है कि मध्य काल में शिक्षा का स्तर वैदिक काल की शिक्षा के स्तर की अपेक्षा काफी गिरा हुआ था अर्थात् मध्यकाल में शिक्षा का नैतिक ह्रास हो गया था।

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