शिक्षाशास्त्र

मैकाले का विवरण-पत्र | विवरण-पत्र की मुख्य बातें | मैकॉले के विवरण पत्र का प्रभाव | भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन

मैकाले का विवरण-पत्र | विवरण-पत्र की मुख्य बातें | मैकॉले के विवरण पत्र का प्रभाव | भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन

मैकाले का विवरण-पत्र, 1835 (Macaulay’s Minute, 1835)

10 जून 1835 को लॉर्ड मैकाले ने गवर्नर-जनरल की कौंसिल के कानून सदस्य के रूप में भारत आगम किया। उस समय तक ‘प्राच्य-पाश्चात्य-विवाद’ उग्रतम रूप धारण कर चुका था। बैंटिंक का विश्वास था कि मैकाले जैसा प्रकाण्ड विद्वान ही इस विवाद को समाप्त कर सकता था। इस विचार से उसने मैकाले को बंगाल की ‘लोक-शिक्षा-समिति’ का सभापति नियुक्त किया। फिर, उसने मैकाले से 1813 के “आज्ञा-पत्र” की 43वीं धारा में अंकित एक लाख रुपये की धनराशि को व्यय करने की विधि व अन्य विवादग्रस्त विषयों के सम्बन्ध में कानूनी सलाह देने का अनुरोध किया। साथ ही, उसने “समिति” के मन्त्री को प्राच्यवादी व पाश्चात्यवादी दलों के वक्तव्यों को मैकाले के पास पेश करने का आदेश दिया।

मैकाले के विवरण-पत्र की मुख्य बातें (Main Features of Mecaulay’s Minute)

मैकाले के विवरण-पत्र की मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं-

(1) साहित्य शब्द की व्याख्यामैकाले ने ‘साहित्य’शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है कि 1813 के चार्टर में उल्लिखित ‘साहित्य’शब्द का अर्थ अंग्रेजी साहित्य में है न की संस्कृत, अरबी और फारसी के साहित्य से। उसने अंग्रेजी साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है- “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी भारत भारत के संपूर्ण साहित्य के बराबर होगी।”

(2) भारतीय विद्वान की व्याख्या- “भारतीय विद्वान” शब्द की व्याख्या करते हुये मैकाले ने बताया कि भारतीय विद्वान वह है जो लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविता से परिचित हो अर्थात् भारतीय विद्वान को अंग्रेजी साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन होना चाहिये।

(3) शिक्षा का माध्यम-मैकाले ने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव दिया, उसके अनुसार देशी भाषाओं में साहित्य और वैज्ञानिक ज्ञान का अभाव है। देशी भाषाओं को बाह्य भण्डार से युक्त करना चाहिये। उसके अनुसार-“भारत के निवासियों में प्रचलित देशी भाषाओं में साहित्य एवं वैज्ञानिक ज्ञान कोष का अभाव है तथा वे इतने अविकसित और गँवारू हैं कि जब तक उन्हें बाह्य भण्डार से सम्पन्न नहीं किया जायेगा, उनमें सुगमता से किसी भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद नहीं हो सकेगा।”

(4) अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा-मैकाले ने अंग्रेजी भाषा की बहुत प्रशंसा की है। उसने अंग्रेजी की प्रशंसा करते हुये लिखा है-“अंग्रेजी भाषा पाश्चात्य भाषाओं में से एक है और सर्वश्रेष्ठ है, जो इस भाषा को जानता है, वह सुगमतापूर्वक उस विशाल ज्ञान भण्डार को प्राप्त कर सकता है जिसको विश्व की सबसे बुद्धिमान जातियों ने रचा है।”

(5) अंग्रेजी भाषा और साहित्य के पक्ष में तर्क-मैकाले ने अंग्रेजी भाषा और साहित्य की बहुत प्रशंसा की थी। उसके अनुसार अंग्रेजी के अतिरिक्त कोई अन्य भाषा शिक्षा का माध्यम बनने के उपयुक्त नहीं है। उसने अंग्रेजी के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किये थे-

(अ) अंग्रेजी शासन वर्ग और उच्च वर्ग की भाषा है।

(ब) भारत का उच्च वर्ग इसी भाषा का प्रयोग करता है

(स) इंग्लैण्ड में यूनानी, लैटिन भाषाओं का पुनरुत्थान हुआ था और भारत में अंग्रेजी के प्रयोग से होगा।

(द) भारतीयों में अंग्रेजी पढ़ने की लालसा अधिक है।

(य) प्राच्य शिक्षा संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों को आर्थिक सहायता देनी पड़ती है, जबकि पढ़ने वाले छात्र स्वयं फीस देने को तैयार रहते हैं।

(6) अंग्रेजी संहिता बनाने का प्रयास- मैकाले के अनुसार, संस्कृत, अरबी और फारसी में लिखे हुये कानूनों की अंग्रेजी में संहिता बननी चाहिये । केवल कानून की जानकारी करने के लिये संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान प्राप्त करना उचित नहीं है। इसके लिये धन व्यय करना व्यर्थ है।

(7) निष्कर्ष- मैकाले के विवरण-पत्र में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने पर बल दिया है। वह चाहता था कि अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया जाये और अंग्रेजी के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का अध्ययन कराया जाये। उसके विचार से भारत में एक ऐसा वर्ग बनाया जाना चाहिये जो अंग्रेजी साम्राज्य का उपासक हो । उसने लिखा था- हमें भारत में एक ऐसा वर्ग बनाना चाहिये, जो रक्त और वर्ण में भारतीय हो, परन्तु पसन्द, विचार, आचरण और विद्वता में अंग्रेज हो।’

गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक की स्वीकृति

2 फरवरी, 1835 को गवर्नर जनरल बैंटिक को मैकॉले का विवरण पत्र प्राप्त हुआ। इस पर उसने गम्भीरता से विचार किया और 7 मार्च, 1835 को उसकी मुख्य सिफारिशों को स्वीकार करते हुए ब्रिटिश सरकार की नई शिक्षा नीति की घोषणा की। इस नीति की मुख्य घोषणाएँ इस प्रकार थीं-

(1) शिक्षा के लिए निर्धारित धनराशि का सर्वोत्कृष्ट प्रयोग केवल अंग्रेजी शिक्षा के लिए ही किया जा सकेगा

(All government fund appropriated for the purpose of education would be best

employed on English Education alonc.-government Procumation of 1835)

(2) संस्कृत, अरबी और फारसी की शिक्षण संस्थाओं को बन्द नहीं किया जाएगा। उनके शिक्षकों के वेतन और छात्रों की छात्रवृत्तियों के लिए आर्थिक अनुदान यथावत् जारी रहेगा।

(3) भविष्य में प्राच्य साहित्य के मुद्रण और प्रकाशन पर कोई व्यय नहीं किया जाएगा।

(4) मद 3 से बचने वाली धनराशि को अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी साहित्य और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा पर व्यय किया जाएगा।

लॉर्ड मैकॉले के विवरण पत्र और विलियम बैंटिक की शिक्षा नीति के परिणाम

लॉर्ड मैकॉले के विवरण पत्र के आधार पर घोषित विलियम बैंटिक की शिक्षा नीति के परिणामों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-

(1) भारत में अंग्रेजी माध्यम की अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत ।

(2) विद्यालयी पाठ्यचर्या में प्राच्य भाषा और साहित्यों तथा ज्ञान-विज्ञान के स्थान पर पाश्चात्य भाषा अंग्रेजी और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को स्थान।

मैकॉले के विवरण पत्र का प्रभाव (Effects of Macaulay’s Minute)

मैकॉले के विवरण पत्र के भारतीय शिक्षा और भारतीयों पर पड़ने वाले प्रभाव को दो रूपों में देखें-समझें तो अधिक उपयुक्त होगा- तत्कालीन प्रभाव और दीर्घकालीन प्रभाव।

मैकॉले और उसके विवरण पत्र के तत्कालीन प्रभाव (Contemporary Elfects of Macaulay and their Minute)

मैकॉले और उसके विवरण पत्र के निम्नलिखित तत्कालीन प्रभाव हुए-

(1) शिक्षा नीति की घोषणा-मैकॉले ने बड़ी चतुरता से 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 की व्याख्या की और इतने तर्कपूर्ण ढंग से की कि तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक उससे सहमत हुआ और उसने अंग्रेजी माध्यम की यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान प्रधान शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। इसके बाद जितनी भी शिक्षा नीतियाँ बनीं वे सब इसी आधार पर बनीं।

(2) अंग्रेजी राजकाज की भाषा घोषित- 1837 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैण्ड ने फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को राजकाज की भाषा घोषित किया। यह मैकॉले के अंग्रेजी के पक्ष में दिए गए  तर्कों का ही परिणाम था।

(3) अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत- नीति घोषित होते ही अंग्रेजी माध्यम के उच्च शिक्षा के स्कूल और कॉलिज खोले गए और यह नींव इतनी सुदृढ़ रूप से रखी गई कि हमारे देश में इस शिक्षा प्रणाली का विकास तेजी से हुआ और हमारी आज की शिक्षा भी मूल रूप से उसी पर आधारित है।

(4) सरकारी नौकरियों के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता-1844 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड हाटिंग ने एक आदेश जारी कर यह निर्देश दिया कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समय अंग्रेजी जानने वाले अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाए। यह वरीयता व्यावहारिक रूप में अनिवार्यता बन गई।

मैकॉले और उसके विवरण पत्र के दीर्घकालीन प्रभाव (Long term Effects of Macaulay and their Minute)

मैकॉले और उसके विवरण पत्र के दीर्घकालीन प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) भारत में भौतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त-मैकॉले के समय भारतीय शिक्षा में सामाजिक व्यवहार और आध्यात्मिक विकास पर अधिक बल दिया जाता था, मैकॉले के सुझावों के आधार पर जिस शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया उसमें समग्र रूप से देश की उन्नति का ध्यान रखा गया। उससे भारत की भौतिक क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई।

(2) भारत में राजनैतिक जागरूकता का उदय- अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली ने हमें मानव अधिकारों का ज्ञान कराया, स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृत्व का महत्त्व बताया और हममें राजनैतिक चेतना जागृत की। नुरुल्ला और नायक ने ठीक ही लिखा है कि यदि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रादुर्भाव न हुआ होता तो कदाचित भारत में स्वतन्त्रता संग्राम ही नहीं शुरू हुआ होता ।

(3) भारत में पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का प्रवेश- वैसे तो किसी सभ्यता और संस्कृति के अच्छ तत्त्वों को स्वीकार कर अपनी सभ्यता एवं संस्कृति में विकास करना अच्छी बात है परन्तु अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को हेय समझकर दूसरी सभ्यता एवं संस्कृति को स्वीकार करना अपनी पहचान को समाप्त करना है, अपनी अस्मिता को समाप्त करना है। मैकॉले द्वारा प्रस्तावित अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का हमारे ऊपर कुछ ऐसा ही दुष्प्रभाव पड़ा है।

(4) भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी- मैकॉले के सुझावों पर भारत में जिस अंग्रेजी माध्यम की यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान प्रधान शिक्षा की व्यवस्था की गई उसके द्वारा भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी हुई जिससे हमें अनेक लाभ हुए।

(5) भारत में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व- उपर्युक्त अच्छाइयों के साथ इसके कुछ कुप्रभाव भी पड़े। उन कुप्रभावों में सबसे मुख्य प्रभाव विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ना है। हम देख रहे हैं कि इस देश में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि उसे जितना कम करने का प्रयास किया जाता है वह उतना और अधिक बढ़ जाता है। अब इस देश से अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त करना दुर्लभ प्रतीत होता है।

(6) भारत में सामाजिक जागरूकता का उदय- उस समय हम अनेक सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त थे। मैकॉले ने जिस शिक्षा प्रणाली की नींव रखी, उससे हम उनके प्रति सचेत हुए, उन्हें दूर करने के लिए प्रयत्नशील हुए और उनमें अनेक सुधार किए ।

भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन (Macaulay’s Contribution to Indian Education)

मैकाले के विवरण-पत्र के प्रस्तुत करने से पहले ब्रिटिश सरकार की शिक्षा नीति स्पष्ट नहीं थी। इस अनिश्चित नीति के कारण अनेक विवाद चलते थे। मैकाले के विवरण-पत्र प्रस्तुत करने के पश्चात् उन पर अनेक आरोप लगाये गये थे। परन्तु उसने भारतीय शिक्षा में एक नया मोड़ ला दिया था। भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन के सम्बन्ध में लोगों के विचार निम्न थे-

(1) भारतीय शिक्षा का पथ-प्रदर्शक- मैकाले ने भारतीय शिक्षा में चले आ रहे विवाद को समाप्त किया। उसने शिक्षा नीति स्पष्ट करते हुये भारतीय शिक्षा को नया मार्ग दिखाया। नुरूल्ला और नायक अनुसार मैकाले को भारतीय शिक्षा का संस्थापक कहा जा सकता है, परन्तु पथ-प्रदर्शक कहना अनुचित होगा। उन्हीं के शब्दों में, मैकाले को उन्नति के मार्ग का पथ-प्रदर्शक कहना नितान्त अतिश्योक्तिपूर्ण है।”

(2) पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का द्वार खोला- मैकाले ने भारतीयों के लिये पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का द्वार खोला था। उसने अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाकर भारतीयों के लिये पाश्चात्य विज्ञान का अध्ययन करना सरल बना दिया था।

(3) देशी भाषाओं को प्रोत्साहन- मैकाले पर भारतीयों के लिये अवरुद्ध करने का आरोप लगाया जाता है, परन्तु यह सच नहीं है। मैकाले ने 1836 में लोक शिक्षा समिति’ के प्रधान के रूप में कहा था-“हमें देशी भाषाओं के प्रोत्साहन एवं विकास में अत्यधिक रुचि है। हम समझते हैं कि देशी भाषाओं के साहित्य का निर्माण हमारा अन्तिम उद्देश्य है और हमारे सब प्रयास इस दिशा में लग जाने चाहियें।’

(4) नये वर्ग का निर्माण-मैकाले भारत में एक वर्ग का निर्माण करना चाहता था। वह इस वर्ग से चाहता था कि वह पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का उपासक बने । इस प्रकार वह ब्रिटिश साम्राज्य को स्थाय बनाना चाहता था। ‘मैकाले विवरण-पत्र’ में उसने लिखा है, “हमें भारत में एक ऐसा वर्ग बनाना चाहिये, जो रक्त और वर्ण में भारतीय हो, पर पसन्द, विचार, आचरण और विद्वता में अंग्रेज हो।”

(5) राजनैतिक अशान्ति-मैकाले के कुछ आलोचकों के अनुसार उसने राजनैतिक अशान्ति उत्पन्न करने में सहायता की थी। उस समय की परिस्थितियों पर विचार करने से ज्ञात होगा कि उस समय राजनैतिक अशान्ति उत्पन्न करने में मैकाले के विचारों के अतिरिक्त अन्य ऐसे कारण थे जिनसे राजनैतिक अशान्ति उत्पन्न हुयी थी।

नुरूल्ला और नायक के अनुसार, “यदि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रादुर्भाव न हुआ होता तो कदाचित भारत में स्वतन्त्रता संग्राम ही न छिड़ता।”

मैकाले को उसके शैक्षिक प्रयासों के लिये दोष देना ही उचित नहीं होगा। उसने भारतीय शिक्षा को ए नया मोड़ दिया था। दादा भाई नौरोजी ने मैकाले के सम्बन्ध में लिखा था-“मैकाले द्वारा भारतीय संस्कृति पर लगाये गये आक्षेपों को हमें उदारतापूर्वक भुला देना चाहिये और उसे अपनी अज्ञानता के लिये क्षमा कर देना चाहिये, क्योंकि उसके इरादे बुरे नहीं थे। वह भारत की उन्नति करना चाहता था।

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Pankaja Singh

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