वैदिककालीन और उत्तर वैदिककालीन शिक्षा की तुलना
वैदिककालीन और उत्तर वैदिककालीन शिक्षा की तुलना
समानताएँ (Similarities)
वैदिककालीन व उत्तर वैदिककालीन शिक्षा वस्तुतः दोनों एक ही काल में अवतरित हुईं। दोनों शिक्षाओं की विशेषताओं में पर्याप्त समानता विद्यमान है। पारस्परिक समानताओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
(1) वैदिक व उत्तर वैदिक दोनों कालों की शिक्षा के उद्देश्य चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक विकास, धार्मिकता पर बल, आध्यात्मिकता का विकास करना समान रूप से विद्यमान थे।
(2) गुरु-शिष्य सम्बन्ध को दोनों कालों की शिक्षा में समान रूप से अपनाया गया था।
(3) वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण, अरण्यक ग्रन्थों को कण्ठस्थ करना व उनके प्रति आस्था रखना दोनों शिक्षाओं में जरूरी था।
(4) वैदिक व ब्राह्मणकालीन शिक्षा वैयक्तिक रूप में दी जाती थी। शिष्य ज्ञान प्राप्ति के लिए स्वयं गुरुओं के पास जाते थे।
(5) गुरुओं के आश्रमों की व्यवस्था नगरीय कोलाहल से दूर हुआ करती थी। दोनों कालों में प्रकृति के मनोरम दृश्य के लिए आकर्षण रहा।
(6) वैदिक व उत्तर वैदिक दोनों कालों की शिक्षा बाह्य नियन्त्रण से मुक्त रही।
(7) वैदिक काल के समान ही शिक्षा में दण्ड विधान था अर्थात् त्रुटि करने पर गुरुजन अपने शिष्यों को प्रताड़ित कर सकते थे।
(8) उपनयन संस्कार को दोनों कालों की शिक्षा में जरूरी माना जाता था।
(9) शिक्षा काल की समाप्ति पर समावर्तन संस्कार या दीक्षान्त समारोह दोनों कालों में समान रूप से किया जाता था।
(10) छात्रों में ब्रह्मचर्य व्रत,सादा जीवन, नम्रता, शिष्टता, गुरु के प्रति श्रद्धा, सेवा भावना आदि विशेषताओ को दोनों कालों की शिक्षा परमावश्यक मानती थी।
(11) आध्यात्मिक व बौद्धिक विकास के साथ-साथ व्यावसायिक और व्यावहारिक शिक्षा भी दोनों शिक्षा-कालों में समान रूप से अपनायी जाती थी। दोनों कालों की शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा ही थी।
(12) दोनों शिक्षा-कालों की शिक्षा प्रणाली भी प्रायः समान थी। शिक्षा मौखिक रूप में प्रश्नोत्तर, वाद-विवाद आदि के द्वारा दी जाती थी।
असमानताएँ (Dissimilarities)
वैदिककालीन व ब्राह्मणकालीन शिक्षा में पर्याप्त समानताएँ होते हुए भी कुछ असमानताएँ भी हैं । वास्तव कंकंमें समय व्यतीत होने के साथ भारतीय इतिहास में भी परिवर्तन होता गया। वेदों का काल भारतवर्ष के इतिहास में सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। वैदिककालीन शिक्षा भी इसी काल की देन है। वैदिककालीन शिक्षा के बाद उत्तर वैदिक कालीन अर्थात् ब्राह्मणकालीन शिक्षा भारतीय समाज में व्याप्त रही। इस कालावधि में भारतीय समाज में जो अन्तर आया उसका प्रभाव तत्कालीन शिक्षा पर भी पड़ा। दोनों कालों की शिक्षा की पारस्परिक असमानताओं का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार है-
(1) वैदिक काल में शिक्षा सभी वर्गों के लिए सुलभ थी लेकिन ब्राह्मणकालीन शिक्षा में शूद्रों को शिक्षा-प्राप्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया।
(2) ब्राह्मणकालीन शिक्षा में मौखिक शिक्षा प्रणाली का ही प्रचलन था, परन्तु इस काल में लेखन-अभ्यास पर भी ध्यान दिया जाने लगा। भोज पत्रों पर लेखन कार्य का आरम्भ किया गया।
(3) वैदिककालीन शिक्षा में नारी-शिक्षा पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था। नारियाँ शास्त्रार्थ में भाग लेती थीं वे सामाजिक उत्सवों में भी पुरुषों के समान भाग लेती थीं लेकिन ब्राह्मण काल में नारी शिक्षा की उपेक्षा की गयी, उन्हें गृहलक्ष्मी बनाकर रखा गया तथा सामाजिक उत्सवों में उनका भाग लेना अच्छा नहीं समझा जाता था।
(4) वैदिक काल में रूढ़िवादिता के दर्शन नहीं होते लेकिन ब्राह्मणकालीन शिक्षा में धर्मशास्त्र, ब्राह्मण, अरण्यक आदि ग्रन्थों के प्रति कट्टर आस्था रखना तथा ब्राह्मणों द्वारा दिये गये उपदेशों को पूर्ण रूप से मानना जरूरी था।
(5) उत्तर वैदिककालीन शिक्षा का पाठ्यक्रम वैदिककालीन शिक्षा की अपेक्षा ज्यादा विस्तृत हो गया, उसमें धार्मिक ग्रन्थों के अलावा गणित, ज्योतिष, इतिहास, कृषि, काव्य-शास्त्र आदि को भी सम्मिलित किया गया। दर्शन ग्रन्थों की रचना तथा उनका अध्ययन करना भी ब्राह्मणकालीन शिक्षा की देन है।
(6) वैदिक काल की शिक्षा पर सभी का समान अधिकार था तथा आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता था, परन्तु ब्राह्मणकाल में जाति तथा वर्ण के संकीर्ण भेद हो गये व शिक्षा में जानबूझ कर शैक्षिक अवसरों की समानता को समाप्त किया गया।
(7) उत्तर वैदिक काल में हस्तकला तथा श्रमसाध्य शिक्षा प्राप्त करने वालों का सामाजिक स्तर कुछ निम्न समझा जाता था, परन्तु वैदिक काल में इस प्रकार का कोई विचार नहीं किया गया।
वैदिक व उत्तर वैदिककालीन शिक्षा की उपर्युक्त असमानताएँ भारतीय इतिहास में परिवर्तन होने के साथ-साथ स्वयमेव पैदा हो गयीं। साधारणतया दोनों प्रकार की शिक्षाएँ प्राचीन काल की शिक्षा के अन्तर्गत ही आती हैं।
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