मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली का आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में योगदान
मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली का आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में योगदान
वर्तमान की नींव अतीत में होती है। हमारे देश में सर्वप्रथम वैदिक शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ। यह हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली की न्यू है। इसके बाद बौद्धिक शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ। इसका मूल स्वरूप तो वैदिक शिक्षा प्रणाली जैसा ही था परन्तु समय की माँग के अनुसार उसमें कुछ मूल परिस्वरू भी हो गए थे। मध्य काल में इस देश में विदेशी मुसलमानों का शासन रहा, इनके शासन काल में एक नई शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ जिसे मुस्लिम शिक्षा प्रणाली कहते हैं । मुस्लिम शिक्षा प्रणाली इसलिए कि यह मुस्लिम धर्म और संस्कृति पर आधारित थी। यह प्रणाली भारत में एक विदेशी पौधा था। 1700 ई० के बाद भारत में अंग्रेजों का शासन शुरु हुआ। अंग्रेजों के शासनकाल में इस देश में एक नई शिक्षण प्रणाली का विकास हुआ जिसे अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली कहते हैं। यह शिक्षा प्रणाली भी भारत में एक विदेशी पौधा था. परन्तु यह उतनी संकीर्ण ही थी जितनी मुस्लिम शिक्षा प्रणाली थी। फिर यह आधुनिक युग की माँग के अनुसार थी। यही कारण है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमने जिस आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया वह मुख्य रूप से अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के आधार पर किया है। परन्तु इसके बहुत-से तत्त्वों की नींव तो वैदिक और बौद्ध शिक्षा प्रणालियों में ही रख दी गई थी और इसके कुछ तत्त्वों की शुरुआत मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में हुई थी। हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विकास में मुस्लिम शिक्षा प्रणाली का भी अपना कुछ योगदान है। आज देश भर में जो मकतब और मदरसे दिखाई दे रहे हैं, वे इसी शिक्षा प्रणाली के अवशेष हैं। आज जो देश में इस्लाम धर्म की शिक्षा के केन्द्र दिखाई दे रहे हैं, ये भी इसी शिक्षा प्रणाली की देन हैं । देवबन्द का दारूलेउलम तो इस्लाम धर्म की शिक्षा का विश्वविख्यात केन्द्र है, देश-विदेश के इस्लाम धर्मावलम्बी इसमें शिक्षा प्राप्त करते हैं। अरबी, फारसी और उर्दू की शिक्षा की व्यवस्था की निरन्तरता इसी प्रणाली का फलता-फूलता फल है। परोक्ष रूप से भी इस शिक्षा प्रणाली का अपना कुछ योगदान है। उस योगदान को हम निम्नलिखित रूप में देख-समझ सकते हैं-
(1) निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था एवं छात्रवृत्तियों की शुरुआत-
मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक एवं उच्च दोनों स्तरों की शिक्षा निःशुल्क थी। इतना ही नहीं अपितु मदरसों के छात्रावासों में रहने वाले छात्रों को आवास और भोजन की सुविधा भी निःशुल्क थी। योग्य बच्चों को आर्थिक सहायता (छात्रवृत्तियों) की शुरुआत भी इस युग में हो गई थी। वैसे आज की परिस्थितियों में शिक्षा को पूर्ण रूप से निःशुल्क करना तो सम्भव नहीं परन्तु एक निश्चित स्तर तक की शिक्षा को तो निःशुल्क कर ही दिया है। पिछड़े और मेधावी तथा निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती हैं । इस आधुनिक शिक्षा प्रणाली को मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा की ही देन मानना चाहिए।
(2) मनुष्य के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों पक्षों का विकास-
वैसे तो अधिकतर विद्वान वैदिक, बौद्ध और मुस्लिम तीनों शिक्षा प्रणालियों को धर्मप्रधान मानते हैं और किसी हद तक यह बात सही भी है क्योंकि तीनों प्रणालियों में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया गया था। परन्तु दूसरी तरफ यह बात भी सही है कि मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में गुरु और शिष्य दोनों सादे जीवन के स्थान पर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते थे, ऐश्वर्य भोग इस शिक्षा प्रणाली का एक मुख्य उद्देश्य था। आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में प्रत्यक्ष रूप से तो मनुष्य के भौतिक विकास पर ही बल है, पर परोक्ष रूप से आध्यात्मिक विकास की माँग बलवती है।
(3) भिन्न-भिन्न प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए भिन्न-भिन्न मदरसों का निर्माण-
मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में भिन्न-भिन्न प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मदरसों का निर्माण कराया गया था। बस तभी से हमारे देश में उच्च शिक्षा स्तर पर विशिष्ट महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का निर्माण होने लगा। यह मुस्लिम शिक्षा प्रणाली की आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली को एक बड़ी देन है।
(4) नियमित आर्थिक सहायता की शुरूआत-
हमारे देश में शिक्षण संस्थाओं को नियमित रूप से आर्थिक सहायता देने की शुरुआत मध्यकाल में मुसलमान बादशाहों ने की। यह बात दूसरी है कि वे यह सहायता केवल मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं को ही देते थे। वैसे तो सामान्यतः यह माना जाता है कि हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में अनुदान प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजी काल में वुड के घोषणा पत्र (1854) के बाद हुई थी, परन्तु वास्तविकता यह है कि इसकी शुरुआत मुस्लिम काल के बादशाहों ने ही कर दी थी।
(5) उच्च शिक्षा में विशिष्टीकरण और उपाधि प्रदान करने की शुरुआत-
वैसे तो वैदिक और बौद्ध शिक्षा प्रणालियों में भी उच्च शिक्षा में विशिष्टीकरण की व्यवस्था थी, परन्तु किसी एक ही विषय, कला, कौशल अथवा व्यवसाय में विशिष्टीकरण की शुरुआत मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में ही की गई। इसी के साथ भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योग्यता प्राप्त करने वाले छात्रों को भिन्न-भिन्न उपाधियाँ देने की शुरुआत भी की गई। इस्लाम धर्म में विशेष योग्यता प्राप्त करने वालों को आमिल, अरबी अथवा फारसी साहित्य में विशेष योग्यता प्राप्त करने वालों को काबिल और तर्क तथा दर्शन में विशेष योग्यता प्राप्त करने वालों को फाजिल की उपाधियाँ दी जाती थीं। आज आधुनिक शिक्षा प्रणाली में उसी क्रम में अनेक प्रकार की उपाधियाँ दी जाती हैं।
(6) शिक्षा का विभिन्न स्तरों और वर्गों में विभाजन-
वैसे तो मध्यकाल में भी शिक्षा को केवल दो ही स्तरों में विभाजित किया गया था-प्राथमिक और उच्च । लेकिन इस काल में इन दोनों स्तरों की शिक्षा को भिन्न-भिन्न वर्गों में विभाजित कर शिक्षा के किसी स्तर पर विभिन्न वर्गों के निर्माण की शुरुआत कर दी गई थी।
(7) कला-कौशल एवं व्यवसायों की शिक्षा की विशेष व्यवस्था-
मुसलमान बादशाह कला प्रेमी और वैभव भोगी थे। यही कारण है कि उन्होंने अपने शासनकाल में कला-कौशलों और व्यवसायों की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की थी। आज तो शिक्षा को रोजगारपरक बनाने पर बल है। क्या इसे आप आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली को मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली की देन नहीं मानेंगे।
(6) शिक्षा का विभिन्न स्तरों और वर्गों में विभाजन-
वैदिक काल में शिक्षा गुरुओं के व्यक्तिगत नियन्त्रण में थी और बौद्ध काल में बौद्ध संघों के केन्द्रीय नियन्त्रण में । परन्तु मध्यकाल में मुसलमान शासकों ने मकतब और मदरसों को आर्थिक सहायता देने के साथ उनकी व्यवस्था में हस्तक्षेप करना शुरू किया, उनके पाठ्यक्रम निर्माण, उनमें बच्चों के प्रवेश और उनमें शिक्षकों की नियुक्ति करने में हस्तक्षेप शुरू किया। इसे हम शिक्षा पर राज्य के नियन्त्रण की शुरुआत कह सकते हैं। यह मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली का आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विकास में योगदान ही माना जाएगा।
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