उपयोगिता हास्य नियम | उपयोगिता हास्य नियम के अपवाद/सीमाएं | Utility comic rule in Hindi | Exceptions/limitations of utility humor rule in Hindi
उपयोगिता हास्य नियम–
किसी वस्तु को उपयोग क्रम में प्रत्येक वृद्धि के साथ उस वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है।इस नियम की सीमाएं तथा व्यवहारिक उपयोगिता के संबंध में व्यापक विवेचना की गई है। अर्थशास्त्र के अन्य नियमों की तरह ही इस नियम में भी अन्य बातों के यथावत बने रहने पर ही यह नियम क्रियाशील होता है। यह वाक्य इस नियम की मान्यताओं की ओर संकेत करता है। इस नियम की मान्यताएं निम्नानुसार है।
- उपभोग की जाने वाली समस्त इकाइयां मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से एक समान होनी चाहिए।
- वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का उपभोग निरंतर होना चाहिए।
- उपभोग काल में उपभोक्ता की मानसिक दशा सामान रहनी चाहिए।
- उपभोग की जाने वाली वस्तु अथवा स्थानापन्न वस्तुओं का मूल उपभोग काल में एक समान रहना चाहिए।
उपयोगिता हास्य नियम के अपवाद/सीमाएं–
किंतु उपर्युक्त मान्यताओं के साथ-साथ इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं जब यह नियम लागू नहीं हो पाता। इस नियम के अपवादों को निम्न दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-
- नाममात्र की अपवाद,
- वास्तविक अपवाद।
(अ) नाममात्र के अपवाद– यह निम्नलिखित हैं-
(1) चैपमैन के अनुसार, यदि उपभोग की जा रही वस्तु की इकाई बहुत छोटी है तो हास्यमान
तुष्टि गुण नियम लागू नहीं होगा। उदाहरणार्थ-एक व्यक्ति को यदि गर्म चाय के प्याले के स्थान पर चाय की एक चम्मच दी जाए तो जाए कि प्रत्येक अगली चम्मच से उसे प्राप्त होने वाली उपयोगिता, घटने के बजाय बढ़ती चली जाएगी और यह नियम लागू नहीं होगा।
(2) कुछ व्यक्तियों का कहना है कि शराब पर यह नियम लागू नहीं होता, क्योंकि शराब के प्रत्येक दूसरे प्याले से पहले की अपेक्षा अधिक उपयोगिता प्राप्त होती है। सच तो यह है कि शराब की एक पैग के बाद शराबी शराब की मांग नहीं करता बल्कि उसको होने वाला नशा शराब के दूसरे पेग की मांग करता है।
(3)यह कहा जाता है कि दुर्लभ शान- शौकत तथा प्राप्त वस्तुएं जैसे कोई पुराने डाक टिकट व सिक्के, आदि के संबंध में या नियम कार्य नहीं करता,क्योंकि यह वस्तुओं का संग्रह है एक व्यक्ति के पास जितना अधिक होता है उसको उत्तरोत्तर इकाइयों से प्राप्त होने वालीउपयोगिता उतनी ही बढ़ती जाती है। हम इस अपवाद को ठीक नहीं मानते हैं क्योंकि दुर्लभ वह शान- शौकत की वस्तुओं के संग्रह से लोगों को तभी अधिक उपयोगिता प्राप्त हो सकती है, जब प्रत्येक ऐसी वस्तु दूसरे से भिन्न हो लेकिन इस नियम की मान्यताओं के अनुसार, वस्तु के स्वरूप तथा आकार में अंतर नहीं होना चाहिए।
(4) अधिकांशतःयह माना जाता है कि व्यक्ति के पास जितना अधिक धन आता है तो व्यक्ति की धन प्राप्त करने की इच्छा है उतनी ही बढ़ती जाती है परिणाम स्वरूप द्रव्य के संचय पर यह नियम लागू नहीं होता है। हमारी दृष्टि में यह अपवाद भी गलत है,क्योंकि धन की प्रत्येक वृद्धि से कुल उपयोगिता तो बढ़ जाती है लेकिन बढ़ते हुए धन की अगली मात्रा से सीमांत उपयोगिता निश्चित रूप से घटती हुई प्राप्त होती है।
(ब) वास्तविक अपवाद– इस नियम के वास्तविक अपवाद निम्नांकित हैं-
(1) यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है किसी वस्तु का उपभोग करने पर जब हमारे पास उस वस्तु की उपयोगी होगी न्यूनतम मात्रा नहीं हो जाती, तब तक उस वस्तु की अगली काई से बढ़ती हुई उपयोगिता ही प्राप्त होती रहेगी।
(2) प्रो. टान्जिग का विचार है कि किसी सुंदर एवं अच्छी कविताएं अच्छी पुस्तक यह मधुर गीत को बार-बार सुनने की इच्छा होती है और प्रत्येक बार पहली बार की अपेक्षा उसके उपभोग से अधिक आनंद सुख (उपयोगिता)मिलता है। यह बात इस नियम का वास्तविक अपवाद है। किंतु इसके विरोध में कहा जाता है कि एक सीमा के बाद मधुर संगीत भी कानों को अच्छा नहीं लगता और फिर उस सीमा के बाद यह नियम लागू होने लगता है।
अतः यह सत्य है कि इस नियम का कोई अपवाद नहीं है क्योंकि सीमांत उपयोगिता हास्य नियम एक सार्वभौमिक प्रकृति का नियम है जो लगभग सभी परिस्थितियों में लागू होता है।
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