अर्थशास्त्र

श्रम-प्रधान तकनीक | श्रम-प्रधान तकनीक बनाम पूँजी-प्रधान तकनीक | श्रम-प्रधान तकनीक के समर्थक | श्रम-प्रधान तकनीक के पक्ष में तर्क | श्रम-प्रधान तकनीक के दोष (सीमायें)

श्रम-प्रधान तकनीक | श्रम-प्रधान तकनीक बनाम पूँजी-प्रधान तकनीक | श्रम-प्रधान तकनीक के समर्थक | श्रम-प्रधान तकनीक के पक्ष में तर्क | श्रम-प्रधान तकनीक के दोष (सीमायें) | labor-intensive technology in Hindi | Labor-intensive Technology Vs. Capital-intensive Technique in Hindi | Supporters of labor-intensive technology in Hindi | Arguments in favor of labor-intensive technology in Hindi | Defects (Limitations) of Labor-intensive Techniques in Hindi

श्रम-प्रधान तकनीक

तकनीक का अन्तिम रूप से चयन ‘श्रम-प्रधान’ तकनीकों के बीच निहित है। श्रम-प्रधान तकनीक को ‘पूँजी बचत विधि’ तथा पूँजी-प्रधान तकनीक को ‘श्रम-बचत विधि’ कहा जाता है। जहाँ श्रम-गहन तकनीक में श्रम के प्रयोग की प्रधानता रहती है, वहीं पूँजी-गहन तकनीक में पूंजी के प्रयोग की।

तकनीक के चुनाव की समस्या से आशय किसी विशिष्ट परियोजना अथवा उद्यम के लिये। संयोग के प्रकार का चुनाव करने से होता है। किसी विशेष दशा मे जो संयोग चुना जाता है, वह तकनीक के रूप को बताता है। डॉ. ए. के. सैन के शब्दों में, “आर्थिक नियोजन सफलता विनियोग व्यवस्था और नियोजन के स्वरूप पर इतनी निर्भर नहीं करती जितनी कि यह तकनीक पर निर्भर करती है, जिसको नियोजन हेतु स्वीकार किया गया है। यदि किसी कारणवश एक गलत तकीनीक का चयन कर लिया जाये तो इससे न केवल नियोजन की असफलता का डर रहता है, बल्कि नियोजन के प्रति अविश्वास की भावना भी बनी रहती है।” डॉ० ए०के० सैन के शब्दों में, “विभिन्न तकनीको से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के निष्पादन के विभिन्न प्रयासों के साथ आर्थिक विकास की बिल्कुल विभिन्न कूटनीतियों से हैं।” विकासशीन देशों में तकनीकी पिछड़ापन एक मुख्य विशेषता एवं विकास की मुख्य रुकावट समझी जाती है। इस देशों में पूँजीगत साधन तो कम होते हैं परन्तु श्रम-शक्ति प्रचुर मात्रा में विद्यमान होती है। उत्पत्ति के ये दोनों मुख्य साधन तकनीकों के चुनाव की समस्या उत्पन्न कर देते हैं। विकासशील देशों के लिये यह निर्णय लेना अत्यन्त कठिन हो जाता है कि उत्पादन की परम्परागत या आधुनिक तकनीक में से कौन सी तकनीक का चयन किया जाये, जिससे कि तीव्र विकास के लिये उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।

श्रम-प्रधान तकनीक बनाम पूँजी-प्रधान तकनीक

(Labour-Inter Dashanique Vs. Capital Intensive Technique)

श्रम-प्रधान तकनीक का अर्थ (Meaning of Labour-Intensive Technique) :

श्रम-प्रधान तकनीक का अभिप्राय उत्पादन में एक ऐसी तकनीक से होता है, जिसमें श्रम की अधिक मात्रा को पूँजी की कम मात्रा के साथ मिलाया जाता है। प्रो० रेड्डवे के अनुसार, “यह उत्पादन की वह तकनीक है, जिसमें रमत की अधिक मात्रा को पूँजी की कम मात्रा के साथ  मिलाया जाता है। प्रो. मिन्ट के अनुसार, “उत्पादन के श्रम-प्रधान तरीके वे होते हैं, जिनमें पूँजी की एक प्रदत्त मात्रा में श्रम की आवश्यकता होती है।”

तुलनात्मक दृष्टि से श्रम की अधिक मात्रा तथा पूँजी की कम मात्रा का प्रयोग करने के कारण ही यह तकनीक ‘श्रम-प्रधान तकनीक’ अथवा ‘पूँजी बचाव उपाय’ के रूप में जानी जाती है, क्योंकि विकासशील देशों में श्रम की प्रचुरता पूँजी का अभाव पाया जाता है।

श्रम-प्रधान तकनीक के समर्थक –

प्रो. नर्से, मायर एवं बाल्डविन, डब्ल्यू. आर्थर लुईस, किंडले बर्जर एवं साइमन कुजनेट्स जैसे अर्थशास्त्री इन देशों के लिये श्रम- प्रधान तकनीक का ही समर्थन करते हैं। प्रो. हेनरी ओबरे के अनुसार, “यह एक अधिक सुदृढ़ पद्धति मानी जायेगी कि देश में प्रविधि का विकास धीरे-धीरे किया जाये, वजाये इसके कि पूँजी की सीमित पूर्ति के बहुत बड़े भाग को किन्हीं गिने-चुने विशाल साहसिक कार्यों में झोंक दिया जाये।”

प्रो० नक्सें के शब्दों में, “आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों जैसी पूँजी गहनता न तो पसन्द ही की जानी चाहिये और न उसे अपनाने देना चाहिये।”

रेड्डावे (Reddaway) के अनुसार, “श्रम-गहन तकनीक उत्पादन का रूढ़िवादी तरीका है, जिसमें श्रम की बड़ी मात्रा को पूंजी की छोटी मात्रा के साथ मिलाया जाता है। श्रम-गहन तकनीक में प्रति इकाई निर्गत (Output) के लिये कम पूँजी की आवश्यकता होती है तथा पूँजी के साथ मिलाने जाने वाले श्रम की मात्रा असंगत (Irrevlevent) होती है। दूसरी ओर, ‘पूँजी – गहन तकनीक’ उत्पादन का आधुनिक तरीका हैं, जिसमें प्रति इकाई निर्गत के लिये अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है तथा पूंजी के साथ मिलाने जाने वाले श्रम की मात्रा संगत (Relevant) होती है। उत्पादन पर श्रम तकनीक के प्रभाव को चित्र की सहायता से व्यक्त किया गया है।

चित्र में O1 श्रम उत्पाद वक्र प्रारम्भिक उत्पादन स्तर को व्यक्त करता है, जिसे श्रम की OL मात्रा तथा पूँजी की OK मात्रा प्रयुक्त करके प्राप्त किया गया है। O2 सम उत्पाद वक्र अर्थव्यवस्था में उत्पादन के उच्च-स्तर को व्यक्त करता है, जिसे नई तकनीक के प्रयोग द्वारा पूँजी की OK अर्थात् उतनी ही मात्रा जितनी कि पहले प्रयोग में लाई गई थी तथा श्रम की पहले से अधिक मात्रा अर्थात् OL1 के साथ प्राप्त किया गया है। यहाँ जिस तकनीक को प्रयोग में लाया गया है, वह श्रम प्रधान तकनीक है और इस तकनीक को अपनानेके लिये अनेक विकास अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय व्यक्त की है। इनमें प्रमुख रूप से प्रोफेसर नक्सें, मायर एवं बाल्डविन आदि है। इनका मानना है कि अल्पविकसित देशों के पास उन्नत पूँजी-गहन तकनीक अपनाने के लिये न तो धन ही है और न ही कौशल है। हाँ, ये देश श्रम की लोचदार पूर्ति वाले देश अवश्य होते हैं अर्थात् इन देशों में श्रम की असीमित पूर्ति पाई जाती है। अतः इन्हें श्रम-गहन तकनीक अपनानी चाहिये।

श्रम-प्रधान तकनीक के पक्ष में तर्क

(Arguments in favour of Labour-Intensive Technique)

श्रम-प्रधान तकनीक प्रयोग किये जाने के समर्थन में दिये जाने वाले मुख्य तर्क इस प्रकार हैं-

(1) रोजगार का तर्क- अल्पविकसित देशों में विद्यमान व्यापक बेरोजगारी तथा अल्प-रोजगार की समस्या का निर्धारण श्रम-गहन तकनीक द्वारा ही सम्भव है। नर्क्स (Nurkse) के शब्दों में, “अतिजनसंख्या वाले देशों को मशीनों की अपेक्षा जनशक्ति से अधिक काम लेना चाहिये। इसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी की मात्रा में स्वाभाविक रूप से कमी आयेगी।”

(2) पूँजी की स्वल्पता- अल्पविकसित देशों में पूँजीगत-साधनों तथा उद्यमी योग्यता की स्वल्पता होती है। श्रम-गहन तकनीक अपनाने पर सीमित पूँजी का अत्यावश्यक कार्यों में उपयोग सम्भव है। मायर (Meicr) और बाल्डविन (Boldwin) के शब्दों में, “चूँकि अल्पविकसित देशों में पूँजी की अपेक्षा श्रम की सामाजिक कीमत कम और शून्य तक होती है, इसलिये पूँजी की अपेक्षा श्रम के अधिक अनुपात का प्रयोग किया जाना चाहिये।”

(3) विदेशी विनिमय की बचत- श्रम-गहन तकनीक में प्रयुक्त औजार तथा मशीनें साधारण प्रकार की होती हैं, जिनका स्थानीय उत्पादन सम्भव होता है। अतः श्रम-प्रधान तकनीक द्वारा मशीनों एवं पूँजीगत साज- सामान के आयात पर खर्च होने वाले विदेशी विनिमय की बचत सम्भव है।

(4) स्फीतिक दबाव की रोकथाम श्रम-गहन तकनीक द्वारा उपभोक्ता-पदार्थों की बड़ी मात्रा में और शीघ्र पूर्ति सम्भव होती है। अतः श्रम-गहन तकनीक स्फीतिक दबावों की रोकथाम में सहायक होती है।

(5) मितव्ययिता- श्रम-गहन तकनीक मितव्ययी है। इसे अपनाने से अर्थव्यवस्था की सामाजिक-आर्थिक लागत कम हो जाती है।

(6) विकेन्द्रित समाज की स्थापना- श्रम-गहन तकनीक का सम्बन्ध छोटे-छोटे और विकेन्द्रित उद्योगों से होता है। अतः श्रम-गहन तकनीक द्वारा आर्थिक दृष्टि से विकेन्द्रित समाज की स्थापना सम्भव है।

(7) कारखाना प्रणाली के दोषों से मुक्ति- लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास पर आधारित होने के कारण श्रम-गहन तकनीक समाज को कारखाना-प्रणाली के दोषों से मुक्ति दिलाती है।

(8) आय का विस्तृत वितरण- श्रम-गहन तकनीक का प्रयोग विकास नियोजन के लाभों का अधिक विस्तृत वितरण सम्भव बनाता है।

श्रम-प्रधान तकनीक के दोष (सीमायें)

(Demerits (Limits) of Labour-Intensive Technique)

अल्पविकसित देशों के सन्दर्भ में श्रम-प्रधान तकनीक की प्रमुख सीमायें निम्नलिखित हैं-

(1) दीर्घकालीन रोजगार वृद्धि में सहायक नहीं- श्रम-गहन तकनीक द्वारा अल्पकाल में तो उत्पादन एवं रोजगार का स्तर ऊपर उठाया जा सकता है, किन्तु यह आय एवं रोजगार की दीर्घकालीन वृद्धि में सहायक नहीं हो सकती।

(2) विकास की धीमी गति- श्रम-गहन तकनीक अपनाने पर विकास की गति अत्यन्त धीमी रहती है। विकास में अनिश्चितता भी बनी रहती है।

(3) औद्योगिक विकास असम्भव- श्रम-गहन तकनीक अपनाने से पूँजी-निर्माण (जिसे आर्थिक विकास की कुँजी माना जाता है) तथा औद्योगिक विकास सम्भव नहीं होता।

(4) निराशा को जन्म- श्रम-गहन तकनीक द्वारा द्रुत आर्थिक विकास न हो पाने के कारण समाज में निराशा की भावना उत्पन्न हो जाती है।

(5) ऊँची उत्पादन लागत-श्रम-गहन तकनीक के अन्तर्गत बड़े पैमाने के उत्पादन की भीतरी और बाहरी बचतें उपलब्ध नहीं होती। परिणामतः उत्पादन लागत ऊँची रहती है।

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Pankaja Singh

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