अर्थशास्त्र

प्रत्यक्ष कर से आशय | विशेषताएं | प्रत्यक्ष करों के गुण | प्रत्यक्ष करों के दोष

प्रत्यक्ष कर से आशय | विशेषताएं | प्रत्यक्ष करों के गुण | प्रत्यक्ष करों के दोष

प्रत्यक्ष कर से आशय-

प्रत्यक्ष कर में कराघात (Impact of Tax) तथा करापात (Incidence of Tax) दोनों एक ही व्यक्ति पर पड़ते हैं। अर्थात् कर देने वाली ही अन्तिम रूप में द्रव्य के भार को वहन करता है। इसमें कर-भार दूसरे व्यक्ति पर नहीं टाला जा सकता। आय- कर, निगम-करमृत्यु कर आदि प्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं। इस प्रकार के कर अधिकांशतः धनी वर्ग पर ही लगाये जाते हैं।

(1) डाल्टन के अनुसार “एक प्रत्यक्ष कर उसी व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जिस पर लगाया जाता है।”

(2) जे.एस. मिल के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर वह है जो केवल उसी व्यक्ति से माँगा जाता है जिससे सरकार यह चाहती है कि वह भुगतान करें।”

(3) जे.के. मेहता के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर वह है जो केवल उसी व्यक्ति द्वारा अदा किया जाता है जिस पर वह लगाया जाता है, अर्थात् इसका तत्काल भार पूर्णतया उस व्यक्ति पर पड़ना चाहिये, जो कि कर अधिकारी को सर्वप्रथम भुगतान करता है।’

(4) प्रो. डी. मार्को के अनुसार, “यदि किसी व्यक्ति की आय का प्रत्यक्ष अनुमान लगाकर उस पर कर लगाया जाता है तो वह प्रत्यक्ष कर कहलाता है।”

(5) बैस्टेबिल के मतानुसार, “प्रत्यक्ष कर वह है जो स्थायी तथा बार-बार उत्पन्न होने वाले अवसरों पर लगाया जाता है।”

(6) फिण्डले शिराज के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर वे हैं जो शीघ्र ही व्यक्तियों की सम्पत्तियों पर लगाये जाते हैं और जिनका भुगतान उपभोक्ताओं द्वारा सरकार को प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।”

प्रत्यक्ष करों के गुण (विशेषताएं)

(1) न्यायपूर्ण (Just)- प्रत्यक्ष कर करदाता की आय अथवा सम्पत्ति के अनुपात में लगाये जाते हैं। ये कर प्रायः प्रगतिशील दर (Progressive Rate) के अनुसार लगाये जाते हैं जिस कारण ये न्यायपूर्ण होते हैं। इन करों का भार निर्धन लोगों पर कम तथा धनी लोगों पर अधिक पड़ता है। कुछ लोगों को इन करों से छूट भी प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष कर, कर देने की क्षमता सिद्धान्त का पालन करता है।

(2) निश्चितता (Certainty)- प्रत्यक्ष कर निश्चित होते हैं। करदाता को यह पता रहता है कि उसे किस दर कितना, किस समय और किस स्थान पर कर देना है। इसी प्रकार सरकार को भी यह पता रहता है कि उसे किस समय कितनी आय प्राप्त होगी।

(3) लोचकता (Flexibility)- ये कर बहुत लोचदार होते हैं। किसी देश की जनसंख्या बढ़ने तथा उन्नति होने से इन करों द्वारा आय स्वतः बढ़ जाती है। करों को वसूल करने के लिये नये कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करनी पडती। आपत्ति या संकट के समय जब सरकार को अधिक आय की आवश्यकता होती है तो करों की दरें बढ़ाकर सरकार अपनी आय में वृद्धि कर सकती है।

(4) मितव्ययिता (Economy)- प्रत्यक्ष कर करदाताओं द्वारा सीधे सरकारी कोष में जमा कर दिये जाते हैं। इन करों को आय के स्रोत पर ही वसूल कर लिया जाता है। अतः इन करों को वसूल करने में सरकार को कोई कठिनाई नहीं होती तथा व्यय भी बहुत कम होता है।

(5) उत्पादकता (Productivity)- ये कर उत्पादक भी होते हैं क्योंकि देश में राष्ट्रीय आय और सम्पत्ति में वृद्धि के साथ-साथ प्रत्यक्ष कर के रूप में सरकार की आय भी बढ़ती रहती है। दूसरे, इन करों के आधार पर राज्यों को कुछ करों के निर्धारण से बहुत आय प्राप्त हो जाती है।

(6) नागरिक चेतना का जागृत होना (Civic Consiousness)- इन करों को देते समय लोग यह अनुभव करते हैं कि वे देश में सुरक्षा व न्याय को स्थापित करने के लिये कुछ दे रहे हैं। अतः वे इस बात में रुचि लेते हैं कि सरकार करों द्वारा प्राप्त धन को किस प्रकार व्यय करती है। यदि सरकार उस धन का अपव्यय करती है तो लोग इसके विरोध में अपनी आवाज उठाते हैं। जिससे राज्य की कुशलता में वृद्धि होती है। स प्रकार करदाता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाता है।

प्रत्यक्ष करों के दोष

(1) असुविधाजनक (Inconvenient)- ये कर असुविधाजनक होते हैं। इन करों के कारण करदाताओं को हिसाब-किताब रखना, एक बड़ा लेखा भरकर आयकर के के कार्यालय में भेजना तथा बार-बार आय कर अधिकारी के सम्मुख उपस्थित होना पड़ता है। कभी-कभी कर के भुगतान करने का समय भी प्रतिकूल होता है। इस प्रकार कर-अधिकारियों को भी कर लगाने तथा खातों की जाँच- पड़ताल करने में बड़ी असुविधा होती है।

(2) कर से बचना सरल होना (Tax Evasion)- प्रत्यक्ष कर ईमानदारी पर कर होता है। करदाताओं को ये कर बुरे तथा भार स्वरूप लगते हैं। वे इनसे बचने के लिये झूठ और छल- कपट का सहारा लेते हैं। अनिश्चित आय वाले व्यक्ति अपने झूठे हिसाब आयकर अधिकारी के सम्मुख रखकर इन करों से बच जाते हैं।

(3) करदाता को मानसिक कष्ट (Mental Tension)- ये कर मानसिक दृष्टि से कष्टप्रद होते हैं। करदाता को कर देते समय यह महसूस होता है कि “मुझे बहुत कुछ देना पड़ रहा है जबकि अन्य लोगों को कुछ भी नहीं देना पड़ता।” दूसरे, जितना धन वह कर के रूप में देता है, इसका वह स्वयं उपभोग करके लाभ उठा सकता था। परन्तु कर देने में इस ला का त्याग करना पड़ता है जो वास्तव में मस्तिष्क को वेदना पहुँचाता है।

(4) सीमित क्षेत्र (Limited Scope)- प्रत्यक्ष कर केवल धनी व्यक्तियों से ही वसूल किये जाते हैं, ये निर्धन व्यक्तियों से वसूल नहीं किये जाते। अकेले प्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय सीमित रहती है। अन्य शब्दों में, प्रत्यक्ष करों से इतनी आय प्राप्त नहीं होती जितनी सरकारी व्यय के लिए आवश्यक होती है।

(5) करों की दर मनचाही होना (Arbitrary Rates)- प्रत्यक्ष करों की दर कर अधिकारी की इच्छानुसार निश्चित होती है जिसका परिणाम यह होता है कि सब व्यक्तियों पर करों का भार समान करना कठिन होता है। साथ ही साथ इसमें करदाता की करदान क्षमता का ध्यान भी नहीं रखा जाता।

(6) उत्पादन पर कुप्रभाव (Adverse effect on Production)- यदि कर की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि कर दी जाये तो जनता में बचत की भावना निरुत्साहित होती है। फलस्वरूप पूँजी का अभाव हो जाता है और उत्पादन घट जाता है।

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Pankaja Singh

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