करभार का अर्थ | कराघात एवं करापात से आशय | कर भार या कर विवर्तन का विश्लेषण | कर भार अथवा कर विवर्तन के सिद्धान्त
करभार का अर्थ-
करभार की उपरोक्त भूमिका से स्पष्ट है कि करभार का आशय क्या है? यह एक विकृति समस्या है। अर्थशास्त्रियों ने ‘करभार की समस्या’ का अर्थ तीन मूलभूत शब्दों में प्रयोग करके बताया है- (i) कर का दबाव, (ii) कर विवर्तन, (iii) करापात।
(i) कर का दबाव- करभार की पहली अवस्था कर के दबाव सम्बन्धी होती है, जिसे कराघात कहते है। सरकार जब कर-भार डालती है तो कर का दबाव या कराघात उस व्यक्ति पर पड़ता है जिसे करदान हेतु सरकार लक्ष्य बनाती है। अन्य शब्दों में, जो व्यक्ति वास्तव में सरकार को कर का भुगतान करता है, अर्थात् उसी व्यक्ति का नाम करदाता के रूप में रजिस्टर में दर्ज होता है, ऐसे करदाता को कराघात या कर का दबाव सहन करना पड़ता है।
अतः ‘कर के भुगतान का प्रारम्भिक मौद्रिक भार जो व्यक्ति सहन करता है, उसे कराघा कहते हैं।’ जैसे- अप्रत्यक्ष करों में एक तेल उत्पादक पर 2,000 रु0 का कर भार डाला गया वही व्यक्ति/उत्पादक उक्त कर को वहन करता है इसे प्रारम्भिक मौद्रिक भार कहते हैं। लेकिन जब तेल उत्पादक इस कर भार को विवर्तित नहीं कर पाता है, तो इसे कराघात समझना चाहिए। ऐसी दशा में कराघात वह है जिस कर में विवर्तन की गुंजाइश न हो एवं वही व्यक्ति कर-भार वहन करे जिस पर वह डाला गया है।
प्रो० सेलिंगमैन के अनुसार, “कर का त्वरित प्रभाव जो व्यक्ति वहन करता है उसे कराधात या कर का दबाव कहते हैं”
प्रो० ए०सी० पीगू के मतानुसार, “कर भार एक व्यक्ति पर पड़ने वाला वह भार है जिसे दूसरे व्यक्ति पर विवर्तित नहीं किया जा सकता हो एवं जिसकी जेब से निकलकर राजकीय कोष में पहुँचता हो।”
कराघात में आयकर, सम्पत्ति कर, मृत्यु कर आदि सम्मिलित हैं।
(ii) कर विवर्तन- कर विवर्तन से तात्पर्य है कि कर-भार जिस व्यक्ति पर डाला गया है वह व्यक्ति उस कर को अन्य लोगों को हस्तान्तरित करने में सफल हो तो उसे कर विवर्तन कहते हैं। अन्य शब्दों में, करभार जब अन्य पर टाल दिया जाए तो उसे कर विर्वतन समझना चाहिए।
(iii) करापात- कर के भार में करापात उस दशा को कहते हैं, जब कर भार को अन्तिम रूप से जो व्यक्ति वहन करता है और ऐसे कर को विवर्तन करना सम्भव ही नहीं है तो उसे कराघात समझना चाहिए। जैसे- तेल उत्पादक पर जो कर वसूल हुआ, उसने उक्त कर राशि को थोक विक्रेता पर टाल दिया, थोक विक्रेता ने फुटकर विक्रेता से वसूल किया, तो फुटकर विक्रेता कीमत वृद्धि से उक्त भार को उपभोक्ता पर विवर्तित करके वसूल लेता है, ऐसी दशा में अन्तिम कर बोझ उपभोक्त ने सहन किया है जो आगे विवर्तित नहीं कर सकता है। अतः करापात तेल के ‘उपभोक्ता’ पर साझा जायेगा। यदि तेल उत्पादक कर भार को आगे की ओर अधवा पीछे की ओर विवर्तन करने में असमर्थ हैं तो करापात तेल उत्पादक को ही वहन करना पड़ेगा।
प्रो० सेलिंगमैन के अनुसार, “अन्तिम रूप से कर बोझ को जो सहन करता है वह करापात कहलाता है।” व्यापक अर्थ में कर भार एवं कर विवर्तन समानार्थक लगते हैं, क्येंकि कर भार का अर्थ समझने हेतु कर विवर्तन का अध्ययन आवश्यक है।
कर भार या कर विवर्तन का विश्लेषण-
करभार अथवा कर विवर्तन को विस्तृत रूप में समझने के बाद यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों के मौद्रिक भार वास्तविक भार में भी अन्तर है, क्योंकि प्रत्यक्ष कर का भार जिस व्यक्ति पर पड़ता है, वह मौद्रिक एवं वास्तविक भार स्वयं वहन करता है। लेकिन उत्पादक पर पड़ने वाला बिक्री कर (व्यापार कर) उत्पादन कर आदि अप्रत्यक्ष कर के मौद्रिक भार एवं वास्तविक भार में स्पष्ट अन्तर दिखाई देता है। जब उत्पादक वस्तु की कीमत वृद्धि करने में सफल हो जाता है तो उपभोक्ताओं पर प्रत्यक्ष मौद्रिक भार पड़ता है, इसके विपरीत उत्पादक कर भार को वहन करता है तो उसे भुगतान किये गये धन पर ब्याज की हानि होती है, ऐसे कर को अप्रत्यक्ष मौद्रिक भार समझा जाता है।
कर भार अथवा कर विवर्तन के सिद्धान्त
1. केन्द्रीयकरण का सिद्धान्त- पूँजीवादी फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों ने कर भार के लिए केन्द्रीकरण अथवा संकेन्द्रण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों का मत था कि कर भार या कर विवर्तन के संजाल में पड़ने की आवश्यकता नहीं है बल्कि करों की प्रकृति से ज्ञात है कि कर विवर्तन होकर अन्तिम रूप से किस पर पहुँचता है, उसी स्रोत पर करों को केन्द्रित किया जाना चाहिए। प्रकृतिवादियों के अनुसार समस्त कर अनततः भूमि पर पड़ते हैं तो क्यों नहीं सभी कर केवल भूमि पर केन्द्रित कर लिये जायें। यदि सरकार किसी अन्य वस्तु पर कर लगाती है तो कर विवर्तित होकर अन्तिम रूप में भूमि पर ही गिरेगा। इसलिए केवल भूस्वामियों से ही वसूल किया जाना श्रेयस्कर होगा। प्रकृतिवादी अर्थविदों के अनुसार केवल कृषि ही एक उत्पादक व्यवसाय है, उद्योग आदि अनुत्पादक हैं, क्योंकि उद्योग किसी वस्तु को उत्पन्न नहीं करतें, बल्कि वस्तु के रूप में परिवर्तन करते हैं, इसलिए कृषि खनिज, मत्स्य आदि क्षेत्रों पर ही कर भार केन्द्रित होना चाहिए। क्योंकि यहीं क्षेत्र उत्पादन लागत की तुलना में अतिरेक उपज प्रदान करते हैं, इसलिए भूमि पर ही कर भार वसूल करना चाहिए।
2. प्रसरण का सिद्धान्त- फ्रांसीसी अर्थशास्त्री प्रो0 केनार्ड प्रसरण के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है। प्रसरण सिद्धान्त को प्रचार सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त में प्रो० केनार्ड ने विवेकशीलता का विश्लेषण किया है। उनका मत है कि केवल भूमि ही आधिक्य उपज को उत्पन्न नहीं करती है, बल्कि श्रम व व्यापरी भी आधिक्य प्राप्त करते हैं। जब कोई भी वस्तु क्रय या विक्रय की जाती है तो एक पक्ष नेता होता है और दूसरा पक्ष विक्रेता। ऐसी दशा में कर सम्पूर्ण समाज में फैलता है। अतः प्रसरण या प्रचार का सिद्धान्त बतलाता है कि कर विवर्तित होकर सम्पूर्ण समाज में उसी प्रकार फैल जाता है, जैसे- किसी तालाब में पत्थर फेंकने पर उस तालाब की लहरें सम्पूर्ण तालाब में फैलती हैं। इसी प्रकार शरीर के किसी भी अंग से रक्त निकाला जाए, रक्त संचार प्रक्रिया सम्पूर्ण शरीर को प्रभावित करती है। अतः कर का भार समाज के किसी भी वर्ग पर डाला जाए, लेकिन कर कुछ ही व्यक्तियों तक सीमित न होकर समग्र समाज में फैलता है।
प्रो० हैमिल्टन का मत है, “प्रसरण सिद्धान्त में आशावाद से अधिक सत्यता यह है कि करों की प्रकृति फैलने एवं समान हो जाने की होती है। यदि करों को निश्चितता एवं एकरूपता के आधार पर लगाया जाये, तो वे प्रसरण के माध्यम से प्रत्येक सम्पत्ति पर कर ‘भार समान रूप से डालते हैं।”
आलोचना- प्रसरण सिद्धान्त असत्य मान्यता पर आधारित है, क्योंकि कर विवर्तन में यह मान लेना गलत है। जैसे प्रत्यक्ष करों में आय कर, सम्पत्ति कर, सम्पत्ति कर, मृत्यु कर आदि में कर विवर्तन असम्भव है। इसलिए करों के समान रूप से फैलने की बात तथ्यपरक नहीं है क्योंकि कर विवर्तन की अनेक सीमाएँ हैं, अतः यह सिद्धानत पूर्ण प्रतियोगिता की असत्य मान्यता पर निर्भर है।
3. आधुनिक सिद्धान्त- कर भार एवं कर विवर्तन का आधुनिक सिद्धान्त माँग एवं पूर्ति सिद्धान्त नाम से विख्यात है। जब केन्द्रीय रूप एवं प्रसारण सिद्धान्तों को अन्यायपूर्ण एवं दोषपूर्ण सिद्ध हुए तो कर भार के लिए आधुनिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया। ध्यान रहे, कर भार का आधुनिक सिद्धान्त मूल्य एवं कीमत के विवेचन पर आधारित है। इसलिए प्रत्येक कर का भुगतान उत्पादन आधिक्तय से किया जाता है। इस प्रकार कर उत्पादन लागत का एक भाग है। यदि किसी उत्पादक को आधिक्य प्राप्त नहीं होता है तो वह कर विवर्तन के लिए उद्धृत होता है। इतना ही नहीं, कर विवर्तन की क्रिया तब तक होती है जब तक कि उसको आधिक्य प्राप्त न होने लगे। इस प्रकार वस्तु का मूल्य (कीमत) इतना कर लिया जाता है जब तक कि उसे कर भुगतान हेतु धनराशि प्राप्त न होने लगे।
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