सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण | भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण-
आधुनिक युग में सरकारों के दायित्व अनवरत बढ़ रहे हैं, उनमें वैगनर की सोच के अनुसार ‘गहन वृद्धि’ व विस्तृत वृद्धि के दर्शन होते हैं, जबकि अन्य अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि के पीछे अनेक कारण विश्लेषित किये हैं, यदि भारत के सार्वजनिक व्यय की प्रवृत्ति का आंकलन करें तो विदित होता है कि देश में सार्वजनिक व्यय 10 गुने से अधिक हो चुका है, कमोवेश यही स्थिति अन्य देशों की है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय में तीव्र वृद्धि के प्रमुख कारण निम्न हैं-
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कल्याणकारी कार्यों में वृद्धि–
राजनैतिक चेतना एवं प्रजातान्त्रिक मूल्यों की रक्षा के कारण सरकार की कार्यप्रणाली परिवर्तित हो चुके हैं। प्राचीन युग में जहाँ राज्य की सुरक्षा प्रमुख उत्तरदायित्व था वहीं अब राज्य की कल्पना कल्याणकारी राज्य के रूप में विकसित हुई है। परिणामस्वरूप सरकार की कल्याणकारी राज्य का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनेक कार्य जैसे- स्वास्थ्य रक्षा, यातायात सुविधा, आवास सुविधा, पेयजल, विद्युतीकरण आदि पर सार्वजनिक व्यय बढ़ता जा रहा रहा है। यद्यपि कल्याणकारी कार्यों पर व्यय सामान्यतः अनुत्पादक होते हैं, लेकिन जनहित में सरकार ऐसे कार्यों को मना नहीं कर सकती है।
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जनसंख्या में तीव्र वृद्धि-
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का प्रमुख कारण तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या है। यह निर्विवाद सत्य है कि विश्व की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ कर 6 अरब से ऊपर हो चुकी है, फलतः जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ विश्व के सभी देशों का दायित्व भी बढ़ रहा है। इसलिए प्रत्येक सुविधा एवं आर्थिक क्षेत्र में मापदण्ड बदल जाने के कारण निरन्तर सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि स्वाभाविक है। भारतवर्ष में विश्व की जनसंख्या का 15 प्रतिशत है, जो वर्ष 1996- 97 तक 96 करोड़ हो चुकी है, इस जनसंख्या को पोषित करने के लिए भारत के सार्वजनिक व्यय में 10 गुनी तक वृद्धि हुई है। इसके विपरीत देश में ‘जनसंख्या विस्फोट’ की परिस्थिति उत्पन्न न हो, इस दृष्टि से करोड़ों रुपये का व्यय भार परिवार नियोजन या कल्याण पर करना अपरिहार्य हो गया है।
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सुरक्षा एवं शान्ति की स्थापना-
आधुनिक युग में विदेशी व्यापार में विनिमय नियंत्रण एवं संरक्षण नीति के पालन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कटुता बढ़ी है, विदेशी आक्रमण के बादल प्रत्येक देश पर मंडरा रहे हैं, अन्यथा पड़ोसी देशों से वैमनस्य के कारण सुरक्षा व्यवस्था का प्रश्न खड़ा हो गया है। विश्व शान्ति एवं निशस्त्रीकरण का नारा मिथ्या सिद्ध हो रहा है। अतः सभी देश निरन्तर सैन्य शक्ति, न्यायालय, पुलिस व जेल पर ऊँचा व्यय कर रहे हैं।
यद्यप विश्व में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के उदारीकरण की सोच प्रखर हुई है, जिससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं विश्व बाजार के मार्ग प्रशस्त किये जा रहे हैं, किन्तु इस सोच से विकासशील व अल्प विकसित देश भयभीत हैं, वे सामाजिक व्ययों को युद्धक-सामग्री में अब भी यथावत जुटा रहे हैं।
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कीमत वृद्धि-
सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि का मुख्य कारण वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि भी है, क्योंकि विगत तीन दशकों से मूल्य सूचकांक ऊपर उठ रहा है, परिणामस्वरूप निर्माण एवं सेवाओं पर व्यय-प्रारूप से कई गुनी ऊँची लागतें हो गई हैं। इसी अनुपात में कर्मचारी भी वेतन वृद्धि की माँग करने लगते हैं। अतः सार्वजनिक व्यय कई गुनी ऊपर हो जाना स्वाभाविक है। मान लीजिए सरकार ने एक पुल निर्माण का अनुमानित 5 करोड़ रुपये स्वीकृत किये, किन्तु कीमत वृद्धि से लोहा, सीमेन्ट, मजदूरी बढ़कर दो गुनी हो गई तो निश्चय ही वह पुल 10 करोड़ की लागत पर पूरा हो सकेगा।
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प्रशासनिक व्यय में वृद्धि-
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का कारण प्रशासनिक क्षमताओं में बढ़ोत्तरी के लक्ष्य को प्राप्त करना भी है। वर्तमान युग में सामाजिक अशान्ति, विद्वेष, अस्थिरता का पर्यावरण चरम सीमा पर है, सरकार का इस परिप्रेक्ष्य में नई जेलों का निर्माण, पुलिस बल का आधुनिकीकरण, न्यायालयों पर व्यय बढ़ रहा है। इसके अलावा सरकारी कार्यों में मशीनरी को चुस्त बनाये रखने हेतु सार्वजनिक व्यय में बढ़ोत्तरी हो रही है।
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आर्थिक स्थिरता एवं रोजगार अवसरों में वृद्धि-
अर्थव्यवस्था को गतिशीलता प्रदान करने के लिए आर्थिक स्थायित्व एक आवश्यक पहलू है। सन् 1930 की महामन्दी काल में अर्थव्यवस्थायें अस्थिर हो गई थी। उनमें बेरोजगारी न्यून उत्पादन के दर्शन हो रहे थे फलस्वरूप जे0 एम0 कीन्स का आर्थिक मॉडल अपनाया गया जिसमें नवीन उत्पादन क्षेत्रों की स्थापना, रोजगार अवसरों में वृद्धि, गरीबी निराकरण आदि आर्थिक क्षेत्रों पर सार्वजनिक व्यय को प्रोत्साहन दिया गया।
वर्तमान युग में सार्वजनिक व्यय में तीव्र वृद्धि का मूल कारण आर्थिक स्थायित्व हेतु उत्पादन, वितरण एवं रोजगार के स्तर में मानक प्राप्त करना हो चुका है। फलतः औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, खनिज एवं कृषि क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय बढ़ता जा रहा है।
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नियोजित विकास-
सार्वजनिक व्यय में अप्रत्याशित वृद्धि का मुख्य कारण नियोजित विकास की अवधारणा है। समाजवादी समाज के स्वप्न का आकार करने जिसमें गरीबी लेशमात्र न हो, इसके लिए सरकार योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम चला रही है। आर्थिक नियोजन के माध्यम से सरकार ने पंचवर्षीय योजनाएं संचालित की हैं जिन पर अरबों रुपये व्यय हो रहे हैं। भारत के नियोजित विकास में एकीकृत ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम जवाहर रोजगार योजना आदि योजनाओं पर करोड़ों रूपये व्यय करने के कारण सार्वजनिक व्यय में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
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सार्वजनिक क्षेत्र का विकास-
सरकारी क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार एक अहम् भूमिका का निर्वाह कर रहा है। क्योंकि मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकारी क्षेत्र उद्योग, खनन सेवाओं के क्षेत्र में निरन्तर नवीन इकाइयों की स्थापना के लिए उद्धृत रहता है, फलतः मूलभूत उद्योगों की स्थापना से लेकर रक्षा उपकरण एवं सामान्य उपभोक्ता, सम्बन्धी वस्तुओं के उत्पादन हेतु सरकार अरबों रुपये व्यय कर रही है।
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सामाजिक सुरक्षा के कारण-
आधुनिक विश्व सामाजिक सुरक्षा के प्रश्न पर मौन नहीं अपितु उद्धृत है कि कैसे देशवासियों को सामाजिक सुरक्षा देकर उनकी क्षमताओं का राष्ट्र हित में उपयोग किया जा सके। यही कारण है कि उद्योग रेलवे, वायु सेवा, जलयान सेवा, रक्षा उत्पादन, शिक्षा खनन आदि सार्वजनिक क्षेत्रों में सेवारत कर्मचारियों को पेन्शन, फण्ड, ग्रेच्युटी बीमा, क्षतिपूर्ति आदि आर्थिक सहायताएँ प्रदान करके सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है, वैसे तो सरकार का लक्ष्य है कि सरकारी या गैर सरकारी सभी क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा अनिवार्य रूप से प्रदान की जानी चाहिए। इसीलिए कृषि क्षेत्र में बीमा वृद्धावस्था पेन्शन आदि का विस्तार किया जा रहा है। अतः सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
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प्राकृतिक आपदाओं के कारण-
प्रत्येक देश प्राकृतिक संकट जैसे- युद्ध, भूकम्प सूखा, अति वृष्टि, अकाल, बाढ़, महामारी, दुर्घटनाओं आदि से आकस्मिक रूप में निश्चिय ही पीड़ित होता है। अतः प्राकृतिक विपदाओं के उत्पन्न होने की दशा में सरकार द्वारा आर्थिक सहायता का अतिरिक्त भार बढ़ जाता है। जैसे- भारत में उत्तर काशी का भूकम्प तबाही दे गया, उसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार को करोड़ों रुपये व्यय करने पड़े। फलतः प्राकृतिक संकट अनायास सार्वजनिक व्यय में भारी वृद्धि करने का महत्त्वपूर्ण कारण समझना चाहिए।
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आर्थिक छूटें एवं अनुदान-
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि का कारण एवं परिणाम छूटें (सब्सिडी) व अनुदान भी होते हैं, क्योंकि कल्याणकारी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार गरीबारें को छूटे, स्वरोजगार हेतु ऋणों पर सब्सिडी एवं संस्थाओं को अनुदान वितरित करती हैं। यही कारण है कि वर्तमान युग में विभिन्न प्रकार की छूट एवं आर्थिक अनुदान प्रदान किये जा रहे हैं। अतः सार्वजनिक व्यय कई गुना बढ़ गया है, इन आर्थिक अनुदानों में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख स्थान है।
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अन्य कारण-
सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि के पीछे राष्ट्रीयकरण भी महत्त्वपूर्ण कारण है क्योंकि सरकार ने राष्ट्र हित में कुछ अनिवार्य प्रतिष्ठानों एवं सेवाओं का राष्ट्रीयकरण किया है फलतः सरकार के मुजावजों में वृद्धि हुई है।
इस प्राकर जीवन स्तर में सुधार, निःशुल्क स्वास्थ्य आवास, पेयजल सुविधा आदि से भी सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है।
सार्वजनिक व्यय ‘नगरीकरण’ की प्रवृत्ति के कारण भी बढ़ रहा है, क्योंकि नगरों में जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा आवास, विद्युत, पेयजल, सड़क सुविधा आदि पर ऊँचा व्यय करना अपरिहार्य हो गया है।
भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण-
भारतवर्ष में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण उपरोक्त पूर्णतया लागू होते हैं। किन्तु नवीन दृष्टिकोण के आधार पर सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि की प्रवृत्ति निम्न तथ्यों की द्योतक है- (अ) सुरक्षा व्ययों में वृद्धि (ब) आर्थिक सहायता (स) ब्याज भुगतान (द) विदेशी कर्ज का भुगतान (य) राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को अनुदान (र) नागरिक प्रशासन पर व्यय (ल) कर-वसूली पर व्यय (व) नोट एवं सिक्के ढलाई पर व्यय, (क) जनसंख्या में वृद्धि, (ख) आर्थिक सेवाएँ (ग) सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ (घ) राज्य सरकारों के व्ययों में वृद्धि (ङ) उद्योगों का राष्ट्रीयकरण (च) कीमतों में वृद्धि आदि प्रमुख है।
निष्कर्ष-
सार्वजनिक व्यय की प्रकृति, वर्गीकरण वैगनर की सोच एवं सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारणों का विस्तृत अध्ययन इंगित करता है कि राज्य अपनी सत्ता को कल्याणकारी प्रवृत्ति के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में उद्धृत है। इसलिए सार्वजनिक व्यय किसी भी प्रकार से किये जाये, वे एकांगी न होकर चतुर्मुखी एवं बहुआयामी सिद्ध होने ही चाहिए। इतना ही नहीं, सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण एवं अनवरत उनमें वृद्धि की प्रवृत्ति यह दर्शाती है कि कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो चुकी है। अब विकासशील देशों के समक्ष एक चुनौती है कि वे सार्वजनिक व्ययों को इस प्रकार व्यवस्थित करे कि शीघ्र राष्ट्र विकसित देशों की श्रेणी में पहुंच सके, प्रो० मसग्रव ने विकसित राष्ट्रों के सार्वजनिक व्यय के संदर्भ में बताया है कि वे अपने व्ययों को साधनों के पुनः आवंअन, पुनः वितरणात्मक क्रिया, स्थिरीकरण क्रियायें एवं व्यापारिक क्रियाओं में विभाजित करते हैं।
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