मांग की कीमत लोच क्या है? | मांग की लोच की श्रेणियां | मांग की लोच को मापने के ढंग | What is price elasticity of demand in Hindi | Categories of Elasticity of Demand in Hindi | Methods of Measuring Elasticity of Demand in Hindi
मांग की लोच से आशय–
‘मांग की लोच’ किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा में उस परिवर्तन का माप है जो कि उसकी कीमत के थोड़े से परिवर्तन के प्रत्युत्तर में होता है।
श्रीमती जॉन रॉबिंसन के अनुसार, “मांग की लोच (किसी कीमत या किसी उत्पत्ति पर) कीमत में एक थोड़ी परिवर्तन के प्रत्युत्तर में खरीदी गई मात्रा में होने वाले अनुपातिक परिवर्तन की कीमत में हुए अनुपातिक परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त होती है।”
अर्थात ep =मांग में अनुपातिक परिवर्तन / कीमत में अनुपातिक परिवर्तन
स्पष्ट है कि मांग की लोच का संबंध मूल्य व मांग के सापेक्षिक अर्थात (आनुपातिक या प्रतिशत)परिवर्तनों से होता है। इसके अंतर्गत मांग के उस परिवर्तन पर विचार किया जाता है जो कि अल्पकाल के लिए हो एवं मूल्य के थोड़े से परिवर्तन के परिणाम स्वरूप हो। सटोरियों के प्रभाव व रूप मांग में जो परिवर्तन मूल्यों के अधिक उतार-चढ़ाव के फल स्वरुप होता है वह मांग की लोच के अंतर्गत नहीं आएगा। चुकी मांग में परिवर्तन मूल्य में परिवर्तन की प्रतिक्रिया स्वरूप होता है, इसलिए मांग की लोच को ‘मांग की कीमत लोच’ कह सकते हैं।
मांग की लोच की श्रेणियां–
मूल्य में होने वाले परिवर्तन के परिणाम स्वरुप विभिन्न वस्तुओं की मांग पर एक समान प्रभाव नहीं पड़ता, अतः उसकी मांग की लोच की एक समान नहीं होती है-कुछ वस्तुओं के लिए यह अधिक होती है तो कुछ के लिए कम होती है। कम या अधिक होने की दृष्टि से रोज की निम्नांकित पांच श्रेणियां बनाई गई हैं-
- पूर्णतया लोचदार मांग,
- अत्यधिक लोचदार मांग,
- लोचदार मांग,
- बेलोचदार मांग, एवं
- पूर्णतया लोचदार मांग।
मांग की लोच की विभिन्न श्रेणियां-
- पूर्णतया लोचदार मांग– वस्तु की मांग पूर्णतया लोचदार तब कहीं जाती है जबकि मूल्य में परिवर्तन न होने या बहुत ही सूचना परिवर्तन होने की मांग में बहुत अधिक कमी अथवा वृद्धि हो जाए। (चित्र) (अ) में जब मूल्य PQ है तब मांग (QO) और जब मूल्य P 1 1 है। जोकि लगभग PQ के बराबर है) तब मांग OQ.1 हो जाती है। यहां पूर्णतया लोचदार मांग की रेखा X-अक्ष के समांतर है। यहां मूल्य में सुननी परिवर्तन होने पर मांग में उत्पन्न परिवर्तन होता है अतः e=
- अत्यधिक लोचदार मांग– वस्तु के मूल्य में जो आनुपातिक परिवर्तन हुआ है उसके फल स्वरुप यदि उसकी मांग में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन अधिक हो, तो मांग को अत्यधिक लोचदार कहेंगे, जैसे-मूल्य में 30% परिवर्तन होने पर मांग में 50% परिवर्तन होना । यहां मांग की लोच इकाई से अधिक होती है अर्थात e > 1 ध्यान दीजिए कि चित्र (ब) मैं मांग रेखा ढालू दिखाई गई है।
- लोचदार मांग– जब किसी वस्तु की मांग में परिवर्तन ठीक उसी अनुपात में हो जिसमें कि उसके मूल्य में परिवर्तन हुआ है, तब ऐसी मांग को ‘लोचदार मांग’कहते हैं। इसे e=1 द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरणार्थ मूल्य में 25% के प्रत्युत्तर में 25% परिवर्तन होना लोचदार मांग है। यहां DD मांग रेखा X-अक्ष के साथ 45% का कोण बनाती है। चित्र 11.2(स)
- बेलोच मांग- जब वस्तु के मूल्य की आनुपातिक परिवर्तन के फल स्वरुप उसकी मांग में उससे कम अनुपातिक परिवर्तन होता है, तो मान बेलोज कही जाती है। इसे चिन्ह e>1 (इकाई से कम) द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरणार्थ, बोले थे 50% परिवर्तन की तुलना में मांग में 40% परिवर्तन होगा। ऐसी दशा में जैसा की चित्र के (द) भाग में दिखाया गया है, मांग रेखा तेज ढाल वाली होती है।
- पूर्णतया बेलोचदार मांग- जब किसी वस्तु के मूल्य में बहुत परिवर्तन होने पर भी उसकी मांग में बिल्कुल भी परिवर्तन ना हो या नगण्य परिवर्तन हो, तो ऐसी मांग को पूर्णतया बेरोजगार मांग कहा जाएगा। यहां e=0 (शून्य के बराबर)। इस दशा में चित्र का (य) भाग मांग रेखा X-अक्ष पर लंब के रूप में होती है। मूल्य 50%परिवर्तन होने पर भी मांग वही रहना पूर्णतया बेलोचदार मांग का द्योतक है।
मांग की लोच की विभिन्न श्रेणियों को शांत के कहीं चित्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है। पूर्णतया लोचदार एवं पूर्णतया बेरोजगार मांग व्यवहारिक मांग व्यवहारिक जीवन में नहीं देखी जाती। विलासिता की वस्तुओं (कार) की मानता है अत्यधिक लोचदार, आरामदायक वस्तुओं (बिजली का पंखा) की मांग लोचदार एवं अनिवार्य वस्तुओं (अनाज) की मांग बेरोजगार देखी जाती है।
मांग की लोच को मापने के ढंग–
मांग की लोच को मापने के निम्नांकित तीन ढंग है-
- कुल व्यय या आगम रीति- मार्शल के अनुसार, मोहल्ले में परिवर्तन से पहले और बाद में कुल आगम (या कुल व्यय) की तुलना करके यह पता लगाया जा सकता है कि e=1 या > 1 या < 1उदाहरणार्थ कल्पना कीजिए कि किसी वस्तु का मूल्य 5रुपये और उसकी मान 100 इकाई के बराबर है। ऐसी दशा में कुल आगम (या कुल व्यय) 500 रुपए के बराबर होगा। अब कल्पना कीजिए कि मूल्य घटकर 2 रुपया हो जाता है और मांग बढ़कर 200 इकाई हो जाती है।
इसलिए कुल आगम 200 रुपए के बराबर है, जो मूल्य परिवर्तन से पूर्व कुल आगम की तुलना में कम है। अतः e < 1 हुई। यदि मांग बढ़ाकर 250 इकाई हो जाती है,तो खुला गम में कोई परिवर्तन नहीं होता। ऐसी दशा में e=1 और यदि मांग बढ़ाकर 300 इकाई हो जाती है,तुकुला गम मूल्य परिवर्तन से पहले के 500 रुपए से बढ़कर 600 रुपए हो जाता है इसलिए ऐसी दशा में e>1 है।
चित्र में वस्तु के मूल्य Y- अक्ष पर और कुल आगम (या कुल व्यय) को X- अक्ष पर दिखाया गया है। OP1 मूल्य पर कुल आगम OR है। जब मूल्य OP1 से घटकर OP रह जाता है तो कुल आगम बढ़कर OR हो जाता है। अतः इस क्षेत्र (P1P) में लोच इकाई से अधिक है। जब मूल्य OP से गिरकर OP2 हो जाता है, तब कुल आगम यथास्थिर रहता है। अतः PP. 2 क्षेत्र में लोच इकाई के बराबर होती है। P2O क्षेत्र में मूल्य में प्रत्येक कमी के साथ कुल आगम घटता जाता है। अतज लोच इकाई कम होती है।
- आनुपातिक (या प्रतिशत) रीति- इस रीति से लोच ज्ञात करने हेतु मांग के आनुपातिक (या प्रतिशत) परिवर्तन से भाग दिया जाता है,
अर्थात ep=मांग में अनुपातिक परिवर्तन/मोहल्ले में अनुपातिक परिवर्तन
=मांग में परिवर्तन/मांग की मूल मात्रा+मूल्य में परिवर्तन/मूल मूल्य
= ∆q/q + ∆p/p = – ∆q/q x p/∆p
= ∆q/∆p x p/q
यहां∆से तात्पर्य सूक्ष्म परिवर्तन से है। चुकी मांग और मूल्य में विपरीत संबंध होता है इसलिए सूत्र में ऋण (-) का चिन्ह लगाना होता है। इस सूत्र में मांग की मात्रा में अनुपातिक परिवर्तन मांग की मूल मात्रा पर और मूल्य में आनुपातिक मूल्य मूल्य पर निकाले गए हैं किंतु ये नई मांग की मात्रा और मूल्य पर भी निकाले जा सकते हैं।एक विधि यह भी हो सकती है कि अनुपातिक परिवर्तन मूल मांग (या मूल्य) के अवसर पर निकाला जाए। ऐसी दशा में सूत्र निम्न प्रकार होगा-
ep =मांग में अनुपातिक परिवर्तन/मूल्य में अनुपातिक परिवर्तन
= मांग में परिवर्तन/(मूल मात्रा + नई मात्रा) १/२ ÷ मूल्य में परिवर्तन/(मूल मात्रा+ नई मात्रा) १/२
= – q-q1/(q+q1)1/2 + p-p1/(p+p1)1/2
= q-q/(q+q1)1/2 x p-p1/(p-p1)1/2/ p-p2 = q-q1/q+q1 x p+p1/ p-p1
यहां q व p मूल मांग व मूल मूल्य है, जबकि q1 और P1 नयी मांग व नया मूल्य है।
- हिंदू रीति अथवा गतिणतीय रीति- इस विधि द्वारा मांग के किसी भी बिंदु पर लोच ज्ञात की जा सकती है। जिस बिंदु पर (मान लीजिए कि P पर) लोच मालूम करनी हो, तो उसे बिंदु (P) एक स्पर्श रेखा AB खींची जाती है और उसे दोनों दिशाओं में दोनों अक्षों तक बढ़ाया जाता है ताकि X- अक्ष को वह B और Y अक्ष को A पर काटे। तत्पश्चात निम्न सूत्र का प्रयोग करके लोच ज्ञात की जाती है–
Ep = नीचे का भाग/ऊपर का भाग (lower sector/upper sector)
यदि PB>PA, तो ep>1, यदि PB=PA तो ep =1 और PB<PA तो eq<1.
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