अर्थशास्त्र

उपभोक्ता का संतुलन | उपभोक्ता के संतुलन को तटस्थता वक्र

उपभोक्ता का संतुलन | उपभोक्ता के संतुलन को तटस्थता वक्र | Consumer’s Equilibrium in Hindi | consumer’s equilibrium indifference curve in Hindi

उपभोक्ता का संतुलन

उपभोक्ता अपनी दी हुई आय और दी हुई वस्तु कीमतों के संदर्भ में अधिकतम संतोष पाने का प्रयास करता है। हिक्स के तटस्थता विश्लेषण के अनुसार संतोष की प्राप्ति निम्न शर्तों के पूरा होने पर होती है-

  • कीमत रेखा का तटस्थता वक्र पर स्पर्श रेखा के रूप में होना,
  • प्रतिस्थापन की सीमांत दर की कीमत अनुपात के बराबर होना,
  • सीमांत प्रतिस्थापन संतुलन बिंदु पर भर्ती हुई होना।
  1. कीमत रेखा का तटस्थता वक्र पर स्पर्श रेखा के रूप में होना

मान लीजिए कि एक उपभोक्ता अपने 5 रुपए के नोट को आमों और सेबों पर व्यय करना चाहता है। इनकी कीमतें 50 पैसे प्रति सेब और 25 पैसे प्रति आम हैं। ऐसी स्थिति में वह अपने धन को सेब व आम पर कई प्रकार से बयां कर सकता है। वह चाहे तो समस्त धन सेबों पर वह कर सकता है और चाहे तो सब धन आम ऊपर व्यय कर सकता है। पहली स्थिति में वह केवल 8 सेब=(OL) खरीदेगा (आम शून्य) किसी दूसरी स्थिति में केवल 16 आम=(OM)(सेब नहीं)। इन दोनों स्थितियों के बीच अन्य स्थितियां भी हो सकती हैं, जैसे-7 सेब +2 आम या 6 सेब + 4 आम, 5 सेब + 6 आम, 4 सेब + 8 आम,3 सेब + 10 आम आदि।

चित्र में सिरे की स्थितियां LM रेखा द्वारा दिखाई गई है। इसे ‘कीमत या बजट रेखा’भी कहते हैं। यह रेखा उपभोक्ता द्वारा अपनी दी हुई कोई दो वस्तुओं पर व्यक्त करने की सभी संभावनाओं को व्यक्त करती है। इसे ‘उपभोक्ता संभावना  वक्र’ भी कह सकते हैं।

उपयुक्त चित्र में कीमत रेखा (LM) वक्र I1 को S और T पर काटती है। यह बिंदु क्रमशः 7 सेब व 2 आम और 3 सेब व 10 आम किस आयोग को सूचित करते हैं। एक ही तटस्थता वक्र पर स्थित होने के कारण इन संयोगों सी समान मात्रा में उपयोगिता प्राप्त होती है। अतः उपभोक्ता इनमें से किसी भी सहयोग का चयन कर सकता है।

कीमत रेखा I1 को बिंदु R परी स्पर्श करती है। यह स्पर्श बिंदु R 5 सेब और 6 आमों के संयोग को दर्शाता है, जो S और T बिंदुओं द्वारा दर्शाए गए संयोगों की अपेक्षा अधिक मात्रा में संतुष्टि देता है। इसका कारण यह है कि वह एक ऊंचे तटस्थता वक्र पर स्थित है। अतः S और T की तुलना में उपभोक्ता R द्वारा दर्शाए गए संयोग का चयन करेगा।

कीमत रेखाएं I3, I4 और I5 वक्रों को न तो काटती है और न ही स्पर्श करती है। इसका मूल कारण यह है कि इन पर किसी भी संयोग का चयन करने में वह असमर्थ है क्योंकि वे संयोग उसकी आयु सीमा के परे है।

स्पष्टत: उपभोक्ता R बिंदु पर संतुलन की स्थिति में होगा और अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करेगा। R बिंदु वह है जहां पर कीमत रेखा तटस्थता वक्र पर स्पर्श रेखा के रूप में स्थित है।

  1. प्रतिस्थापन की सीमांत दर कीमतअनुपात के बराबर होना

चित्र में R बिंदु पर सेबों के लिए आम की सीमांत प्रतिस्थापन दर इन वस्तुओं की कीमत अनुपात (25:50 or 1: 2) के बराबर है। C बिंदु पर 6 सेब और 4 आमों का संयोग है।R बिंदु पर पहुंचने के लिए जब एक सेब कम किया गया तो इसके स्थान पर 2 आम बढ़ाने पड़े, ताकि संतुष्टि की मात्रा यथावत बनी रहे। अर्थात सीमांत प्रतिस्थापन दर R बिंदु पर। सेब = 2 आम के हैं। यही कीमत अनुपात भी है। नोट कीजिए-दो वस्तुओं (X और Y)की सीमांत प्रतिस्थापन दर उससे संबंधित तटस्थता वक्र द्वारा पता चलती है। चित्र से स्पष्ट है कि R (उपभोक्ता के संतुलन बिंदु) पर तटस्थता वक्र का ढाल कीमत रेखा LM के ढाल के बराबर है। अर्थात सीमांत प्रतिस्थापन दर

MRSY = LM ढाल

          = Tangent of LLMX

          =Tan of (180-LLMO)

          = Ian of LLMO

          = LO/LM = (Income / Prince of Y) / (Income / Prince of X)

          = (Income / Price of Y) / (Prince of X / Income)

          = (Income / Price of Y) x (Prince of X / Income)

           = Prince of X / Price of Y = Price Ration of X and Y

  1. संतुलन बिंदु पर सीमांत दर घटती हुई होना-

संतुलन बिंदु R पर सीमांत प्रतिस्थापन दर घटती हुई नहीं है, तो वह या तो स्थिर होगी या बढ़ती हुई होगी। वह स्थिर नहीं हो सकती है, क्योंकि स्थिर रहने का अर्थ है कि प्रत्येक अगली इकाई के समान उपयोगिता प्राप्त होना, जो किसी भी दशा में संभव नहीं है। व बढ़ती हुई भी नहीं हो सकती (और इसलिए तटस्थता का वक्र मूल बिंदु के प्रति उन्नतोर नहीं हो सकता) क्योंकि ऐसा होने का अर्थ है कि जब एक वस्तु (आम) की इकाइयों में वृद्धि करते जाते हैं, तब उसकी अतिरिक्त इकाई की (अर्थात सीमांत) उपयोगिता दूसरी वस्तु (सेब) में बढ़ती जाती है, जो संभव नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि संतुलन बिंदु पर सीमांत दर घटती हुई होती है।

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Pankaja Singh

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