निम्न माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण | उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण
शिक्षा के व्यवसायीकरण
भारतीय शिक्षा आयोग ने देश की उत्पादेयता के विकास में शिक्षा के व्यावसायीकरण को अत्यन्त आवश्यक माना है। आयोग का दृढ़ विश्वास है कि भारत को यदि विकास करना है तो उसकी शिक्षा को विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी पर आधारित करना है। आयोग के कथनानुसार, “भारत का भाग्य उसकी कक्षाओं में निर्मित हो रहा है। विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी पर आधारित इस विश्व में यह शिक्षा ही है जो लोगों की सम्पन्नता, खुशहाली तथा सुरक्षा के स्तर को निश्चित करती है।”
कोठारी आयोग ने शिक्षा के व्यावसायीकरण के लिए एक व्यापक योजना निर्धारित की है जो इस प्रकार है-
(।) अवर निम्न माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा
(Vocational Education at Lower Secondary Stage)
(1) कोठारी आयोग का विचार है कि कई विद्यार्थी कक्षा 7वीं या 8वीं के पश्चात् स्कूल छोड़ देते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में उपयोगी व्यावसायिक कोर्सी की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि इन कोर्सी में दाखिल होने की आयु 14 वर्ष कर दी जाए तो प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई समाप्त करके बहुत-से छात्र इनका लाभ उठा सकेंगे।
(2) तकनीकी हाई स्कूलों तथा जूनियर टैक्नीकल स्कूलों द्वारा छात्रों को उद्योगों में नौकरी करने के लिए तैयार करना चाहिए। इनमें प्राप्त कोर्स अपने आप में पूर्ण होने चाहिएँ ।
(3)7वीं और 8वीं कक्षा के पश्चात् पढ़ाई छोड़ने वाले विद्यार्थियों में कई तो अपने घर के कारोबार में लग जाते हैं और कई अपना उद्योग या व्यापार शुरू करने की सोचते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। आयोग ने सुझाव दिया है कि ऐसे विद्यार्थियों को सम्बन्धित उद्योगों में सुयोग्य एवं प्रवीण बनाने के लिए अंशकालिक आधार (Part time Basis) पर विविध पाठ्यक्रमों की व्यवस्था होनी चाहिए। इन विद्यार्थियों की सहायता के लिए शिक्षा विभागों में विभिन्न अनुभावर्ग स्थापित किए जाने चाहिएं। ये अनुभाग (Sections) विद्यार्थियों को पूर्णकालिक (full time) या अंशकालिक (Part Time) आधार पर उपयुक्त प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त करने में सहायता देंगे और इसके साथ उन्हें कुछ सामान्य शिक्षा देने की भी व्यवस्था करेंगे।
(4) ग्रामीण विद्यार्थियों की बहुत बड़ी संख्या अपने परिवारों के खेतों में काम करने लगी है। उनकी कार्य-कुशलता बढ़ाने के लिए उपयोगी प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। उसके साथ-साथ उसकी सामान्य शिक्षा के लिए भी प्रबन्ध होना चाहिए ।
(5) आयोग ने लड़कियों की कार्य-कुशलता की ओर भी ध्यान दिया है। काफी लड़कियाँ स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ देती हैं और उनका विवाह कर दिया जाता है। ऐसी लड़कियों के लिए गृह विज्ञान तथा सामान्य शिक्षा के मिश्रित कोर्स की व्यवस्था होनी चाहिए।
(II) उच्चतर माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा
(Vocational Education at Higher Secondary Level)
आयोग ने उच्चतर माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के लिए निम्नलिखित व्यवस्थाओं का सुझाव दिया है-
(1) बहु-तकनीकी स्कूलों (Polytechnics) तथा कृषि स्कूलों में पूर्णकालिक अध्ययन की सुविधाओं में विस्तार होना चाहिए।
(2) इन स्कूलों में एक दिन की छुट्टी, सैंडविच या पत्राचार (Correspondence) के आधार पर अंशकालिक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था होनी चाहिए।
(3) कृषि तथा इंजीनियरिंग बहु-तकनीकी संस्थाओं में काम कर रहे लोगों की प्रवीणता को उन्नत करने के लिए संक्षिप्त पाठ्यक्रमों (Short condensed Courses) की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(4) औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (Industrial Training Institutes) में पढ़ाए जाने वाले बहुत-से कोर्सों के लिए कम-से-कम शैक्षिक योग्यता 10वीं पास रखी जाती है। इन सुविधाओं में तेजी से विस्तार करने की आवश्यकता है।
(5) पहले से विद्यमान कोर्सी के अतिरिक्त स्वास्थ्य, वाणिज्य (Commercc) प्रशासन (Administration) तथा लघु उद्योगों के लिए विभिन्न कोर्स विकसित किए जाने चाहिएं।
इन कोर्सों की अवधि छ: महीने से तीन साल तक निर्धारित की जा सकती है। इन कोों की समाप्ति के पश्चात् प्रमाण-पत्र या डिप्लोमा मिलना चाहिए।
(6) व्यावसायिक शिक्षा को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए आयोग ने सुझाव दिया है कि सभी राज्यों के शिक्षा विभागों में विशिष्ट अनुभाग (Special Sections) स्थापित किए जाएं जिन्हें विविध प्रकार के पूर्वकालिक एवं अंशकालिक कोर्स आयोजित करने का पूरा-पूरा दायित्व सौंपा जाए।
(7) विशिष्ट अनुभागों को विविध व्यावसायिक कोसौं का आयोजन करते समय उचित व्यावसायिक मार्गदर्शन (Vocational Guidance) की भी व्यवस्था करनी चाहिए और विभिन्न उद्योगों के साथ निकट का सहयोग प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
(8) आर्थिक व्यवस्था के बिना व्यावसायिक शिक्षा का नियोजन एवं कार्यान्वयन असम्भव है। इसलिए आयोग ने सुझाव दिया है कि केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को केन्द्र आयोजित क्षेत्रों (Centrally Sponsored Centres) के लिए विशिष्ट अनुदान देना चाहिए।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि माध्यमिक शिक्षा आयोग तथा भारतीय शिक्षा आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की दिशा में विस्तारपूर्वक सुझाव दिए हैं । यदि इन सुझावों को गम्भीरता से कार्यान्वित किया जाए तो व्यावसायिक शिक्षा का उपयोगी विस्तार हो सकता है। स्कूल स्तर पर अंशकालिक कोर्सी की धारणा अत्यन्त उपयोगी है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि बहुत-से लड़के-लड़कियाँ प्राथमिक शिक्षा के पश्चात् अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। कई विवशताओं के कारण उनको ऐसा करना पड़ता है। ऐसे लाखों लोगों को व्यावसायिक एवं शैक्षणिक रूप से कुशल न बनाना जनशक्ति का अपव्यय है। ऐसे व्यक्ति पढ़े-लिखे होकर भी अनपढ़ बने रहेंगे। वे न अपना जीवन स्तर उन्नत कर सकेंगे और न ही देश के आर्थिक विकास में सक्रिय सहयोग दे सकेंगे और न ही देश के लोकतन्त्रात्मक ढांचे को सुदृढ़ बना सकेंगे। इन व्यक्तियों के समुचित विकास के लिए अंशकालिक कोसों तथा पत्राचार कोसों (Correspondence Courses) की विस्तृत व्यवस्था होनी चाहिए। लड़कियों के लिए तो यह और भी आवश्यक है। स्कूली शिक्षा को बीच में छोड़ने वाली लड़कियों के लिए गृह विज्ञान, कला एवं शिल्प तथा अन्य घरेलू उद्योगों के अंशकालिक कोसों की व्यवस्था करके उनमें आत्मविकास उत्पन्न करना चाहिए ताकि वे अपने भावी जीवन को कुशलतापूर्वक व्यतीत कर सकें।
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