शिक्षाशास्त्र

माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण | माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का महत्व एवं आवश्यकता

माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण | माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का महत्व एवं आवश्यकता

माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण

माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का अर्थ विभिन्न लोगों ने विभिन्न प्रकार से किया है। कुछ लोगों का दृष्टिकोण है कि इसका अर्थ किसी व्यवसाय विशेष में प्रशिक्षण से है, इससे आगे कुछ नहीं । इस दृष्टिकोण का उद्देश्य किसी विशेष पाठ्यक्रम की सफल समाप्ति पर काम की दुनिया में दाखिल होने के लिये किसी व्यापार कला कौशल, अथवा किसी व्यवसाय आदि का सीखना है। जहाँ तक इस पाठ्यक्रम के अन्तिम स्वरूप का सम्बन्ध है, यह दृष्टिकोण गलत नहीं है। परन्तु दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ प्रायः व्यावसायिक प्रशिक्षण समझा जाता है, जिसका यह संकुचित अर्थ ठीक नहीं है। ऐसे शिक्षण पाठ्यक्रमों में साधारण शिक्षा के पाठ्यक्रम भी शामिल होने चाहिएँ जो किसी व्यवसाय विशेष में विद्यार्थी को भावी जीवन में किसी निश्चित व्यवसाय की तैयारी के लिए अभिरुचियों (Aptitudes) का प्रशिक्षण देते रहें  माध्यमिक शिक्षा आयोग ने यह देखा कि ऐसे स्कूलों में शिक्षण कार्यक्रम संकीर्ण रूप से केवल व्यावसायिक ही नहीं होगे, बल्कि उनका एक निश्चित व्यावसायिक झुकाव होगा, क्योंकि माध्यमिक स्कूल केवल मात्र व्यावसायिक स्कूल ही नहीं है। भारतीय शिक्षा आयोग ने यह देखा कि ‘हम देख पा रहे हैं कि स्कूल-स्तर की शिक्षा में भविष्य में साधारण शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा का सुखद सम्मिश्रण होगा-साधारण शिक्षा में पूर्व व्यावसायिक तथा तकनीकी तत्व (Pre-Vocational and Technical Elerments) शामिल होंगे, और व्यावसायिक शिक्षा अपने आप में साधारण शिक्षा का तत्व बनाये रखेगी। जिस समाज में हम आने वाले वर्षों में रह रहे होंगे। इन दोनों प्रकार की शिक्षा में पूर्ण अलगाव न केवल अवांछनीय बल्कि असम्भव भी होगा।

माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का महत्व एवं आवश्यकता

(Importance and Need of Vocationalisation of Secondary Education)

शिक्षा के व्यावसायीकरण पर आज जो इतना बल दिया जा रहा है, वह अकारण नहीं। व्यक्ति, समाज और देश को इसकी आवश्यकता है। निम्नलिखित तथ्यों से इसके महत्त्व एवं आवश्यकता को आंका जा सकता है-

(1) सामाजिक समायोजन में विकास-

शिक्षा का व्यावसायीकरण सामाजिक समायोजन में सहायक सिद्ध हो सकता है। बेरोजगारी सामाजिक समायोजन में बाधक होती है। शिक्षा का व्यावसायीकरण बेरोजगारी की समस्या का समाधान करके व्यक्ति को इस योग्य बनाएगा कि वह समाज में उचित स्थान प्राप्त कर सके। इस प्रकार वह समाज का उपयोगी सदस्य बन सकता है।

(2) देश का आर्थिक विकास-

देश की उत्पादेयता के विकास में ही उसका आर्थिक विकास निहित है। देश में प्राकृतिक साधनों की कमी नहीं परन्तु उनका उचित प्रयोग न होने के कारण या तो व्यर्थ जा रहे हैं. या फिर विदेशी उनका लाभ उठा रहे हैं। कारण है कि हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर है। हमारा देश उद्योगीकरण की ओर अग्रसर अवश्य है, परन्तु कुशल कारीगरों के अभाव में उद्योग-धन्धों की वांछित प्रगति नहीं हो रही। इसका एक मुख्य कारणं हमारी शिक्षा-पद्धति का पुस्तकीय, अव्यावहारिक व्यावसायीकरण इन दोषों को दूर करेगा और देश के आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।

(3) नैतिक मूल्यों का विकास-

देखने में ऐसा लगता है कि शिक्षा को व्यवसाय के साथ जोड़ने का उद्देश्य विद्यार्थियों में पैसा कमाने की क्षमता विकसित करना है और देश को आर्थिक दृष्टिकोण से संवृद्ध बनाना है, परन्तु इसमें नैतिक उद्देश्य भी निहित हैं। प्रायः देखा गया है कि गरीबी और बेरोजगारी अपराधवृत्ति को बढ़ावा देती है तथा व्यक्ति को नैतिक पतन की ओर अग्रसर करती है। यदि नौजवान शिक्षा के माध्यम से व्यावसायिक कुशलता प्राप्त करके निकलें और समाज में सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने का अवसर मिले तो वे स्वत: नैतिक विकास की ओर अग्रसर होंगे। अत: नैतिक एवं चारित्रिक विकास में भी यह सहायक सिद्ध हो सकता है।

(4) बेरोजगारी की समस्या का समाधान-

आज देश की शिक्षितों की वेरोजगारी की समस्या का समाधान करना है। जितना शिक्षा का विकास हो रहा है, उतना बेरोजगारों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। इसका एक मुख्य कारण है कि स्कूली-शिक्षा विद्यार्थियों को रोजगार के लिए तैयार नहीं करती। आज तक जो स्कूली शिक्षा चली आ रही है वह केवल क्लर्क ही तैयार करती है। आखिर देश को कितने क्लर्कों की आवश्यकता हो सकती है? क्लकों के उम्मीदवारों की संख्या तो बढ़ती जा रही है परन्तु क्लर्कों की आवश्यकता कम हैं। इसका परिणाम बेरोजगारी नहीं होगा तो क्या होगा? शिक्षा के व्यवसायों के मार्ग प्रशस्त होंगे और इससे बेरोजगारी की समस्या के समाधान में सहायता मिलेगी। महात्मा गाँधी ने ठीक कहा है, बच्चों के लिए सच्ची शिक्षा वह है जो बेरोजगारों के विरुद्ध बीमा हो।”

(5) विद्यार्थियों की विभिन्न योग्यताओं एवं अभिरुचियों का विकास-

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् स्कूली शिक्षा का बहुत विस्तार हुआ। विभिन्न योग्यताओं तथा अभिरुचियों के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल में प्रवेश पाने लगे। सभी विद्यार्थियों का एक ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना उसके प्रति अन्याय है। आवश्यकता इस बात की है कि विभिन्न कोरों की व्यवस्था करके उनकी योग्यताओं तथा रुचियों को उचित दिशा की ओर प्रस्फुटित एवं विकसित होने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाएं। शिक्षा का व्यावसायीकरण ऐसे अवसर प्रदान करने की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

(6) शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण बनाना-

शिक्षा की वर्तमान प्रणाली अधिकतर पुस्तकीय होने के कारण जीवन की वास्तविकताओं से कटी हुई है। कक्षाओं में विद्यार्थियों को निष्क्रिय रूप से अध्यापकों की ओर ताकते या पुस्तकों को रट-रट कर परीक्षा की तैयारी होते देखकर ऐसे लगता है कि शिक्षा उबाऊ और उद्देश्यहीन है। शिक्षा का व्यावसायीकरण विद्यार्थियों को सक्रिय बनाकर शिक्षा को सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण बनाता है।

(7) देश की उत्पादेयता का विकास-

कोठारी आयोग उत्पादेयता के विकास को शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य माना है। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि किसी भी देश की प्रगति उसकी उत्पादन योग्यता पर निर्भर होती है। लोग जितना ज्यादा उत्पादन कार्यों में लगेंगे,देश उतना ज्यादा समृद्ध होगा। शिक्षा का व्यावसायीकरण विद्यार्थियों को उत्पादन कार्यों की ओर अग्रसर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उत्पादेयता के विकास की दृष्टि से शिक्षा के व्यावसायीकरण के महत्त्व को दर्शाते हुए कोठारी आयोग ने कहा है, “देश में उत्पादेयता बढ़ाने के लिए माध्यमिक शिक्षा को प्रबल व्यावसायिक मोड़ देना अत्यन्त आवश्यक हैं।”

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Pankaja Singh

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