शिक्षाशास्त्र

अध्यापक शिक्षा के दोष | अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के उपाय

अध्यापक शिक्षा के दोष | अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के उपाय

Table of Contents

अध्यापक शिक्षा के दोष अथवा समस्यायें

(Demerits and Problems of Teacher Education)

हमारे राज्य में प्रचलित अध्यापक शिक्षा में अनेक त्रुटियाँ हैं। यही कारण है कि शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। इन त्रुटियों पर हमें विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है और जल्द-से-जल्द इन त्रुटियों को दूर करना बहुत आवश्यक है। यदि हम इन दोषों को दूर नहीं करते तो शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार संभव नहीं है।

अध्यापक शिक्षा के कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) दोषपूर्ण चयन

अध्यापक प्रशिक्षण में अच्छे विद्यार्थियों का चयन नहीं हो पाता। प्रवेश के समय इस बात पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है कि कौन-सा छात्र अध्यापक बनने की योग्यता एवं रुचि रखता है। दुर्भाग्य से इन प्रशिक्षण संस्थाओं में ऐसे छात्र प्रवेश ले लेते हैं जिनमें न तो योग्यता होती है और न ही शिक्षण कार्य में रुचि । जिन्हें और कोई ठौर नहीं मिलता वे प्रशिक्षण कॉलेजों में प्रवेश ले लेते हैं। क्या ऐसे छात्रों से कुशल अध्यापक बनने की आशा की जा सकती है ? कदापि नहीं। यह प्रवृत्ति अत्यन्त दोषपूर्ण है।

(2) संख्यात्मक बल पर अधिक जोर देना

स्वतन्त्रता के पश्चात् अप्रशिक्षित अध्यापकों की कमी को दूर करने के लिए अध्यापकों के प्रशिक्षण पर विशे बल दिया गया। परिणामस्वरूप प्रशिक्षित अध्यापकों की इतनी संख्या बढ़ गई कि बहुत से शिक्षक बेकार हो गए और उन्हें नौकरियाँ ही उपलब्ध नहीं हुईं। आवश्यकता से अधिक प्रशिक्षित अध्यापकों की संख्या बढ़ाना दोषपूर्ण व्यवस्था है। इसका गुणात्मकता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

(3) अध्यापक शिक्षा की पृथकता

यह प्रचलित अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मुख्य कमी है। ‘पृथकता का अर्थ है अलग होना।’ अध्यापक शिक्षा की पृथकता एक ओर तो विश्वविद्यालयों से है दूसरी ओर स्कूलों से।

प्राइमरी तथा सैकेण्डरी अध्यापकों की प्रशिक्षण संख्या एक ओर तो विश्वविद्यालय की मुख्य शैक्षणिक धारा से पृथक् है, दूसरी ओर स्कूलों की दैनिक समस्याओं से पृथक् है ।

विभिन्न स्तर की अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाएँ आपस में ही पृथकता की जंजीरों में जकड़ी हुई हैं। इनका एक-दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है। अध्यापक शिक्षा प्रणाली का यह मुख्य दोष है।

(4) उच्च शिक्षा प्राप्त एवं क्षमता सम्पन्न अध्यापकों का अभाव

प्रशिक्षण संस्थानों में क्षमता सम्पन्न एवं उच्च शिक्षा प्राप्त किए अध्यापकों की कमी हो रहती है । निम्न स्तर की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए विशेष रूप से कुशल उच्च शिक्षा प्राप्त किए हुए प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है परन्तु हमारे देश में प्राथमिक और मिडिल स्कूलों के अध्यापकों की शैक्षणिक योग्यता बहुत ही निम्न स्तर की है। सुयोग्य एवं क्षमता सम्पन्न अध्यापकों का अभाव ही रहता है। अध्यापक शिक्षा प्रणाली में यह बहुत बड़ा दोष है। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण संस्थाओं की संख्या पर्याप्त नहीं होती।

(5) संयुक्त अध्यापक प्रशिक्षण की कमी

प्रचलित अध्यापक शिक्षा प्रणाली में संयुक्त अध्यापक प्रशिक्षण का अभाव है। विभिन्न स्तर के अध्यापकों के लिए भिन्न-भिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था है। इन संस्थाओं का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होता जो कि बहुत आवश्यक है । अध्यापक शिक्षा को एक संयुक्त इकाई के रूप में लेना चाहिए । विभिन्न स्तर के अध्यापकों के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था करना ठीक नहीं।

(6) सुविधाओं की कमी

अध्यापक शिक्षा के विकास कार्य के लिए पर्याप्त सुविधाओं की आवश्यकता होती है परन्तु आर्थिक कमी के कारण प्रशिक्षण संस्थाओं में पूरी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होती। कई संस्थाओं में न तो पर्याप्त शिक्षक हैं, न पुस्तकालय, न ही प्रयोगशालाएँ और न पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था होती है। आर्थिक अभाव के कारण अध्यापक शिक्षा के विकास कार्य में बहुत हानि हुई। अध्यापक शिक्षा व्यवस्था के संचालन में सुविधाओं की कमी का होना एक बहुत बड़ा दोष है।

(7) दोषपूर्ण अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम

प्रशिक्षण कॉलेजों में अपनाई जाने वाली शिक्षण विधियाँ पुरानी और घिसी-पिटी हैं। उनका जीवन की आवश्यकताओं तथा शिक्षा की परिवर्तित होती हुई आवश्यकताओं से कोई सम्बन्ध नहीं होता जो कि दोषपूर्ण है। पुरानी विधियों के प्रयोग से शिक्षण कार्य अरुचिकर हो जाता है और नीरस बन जाता है

(8) अनुसन्धान कार्य एवं प्रकाशन की कमी

अध्यापक शिक्षण संस्थाओं में अनुसन्धान कार्य और प्रकाशन की कमी है। अनुसन्धान एवं प्रकाशन के बिना अध्यापक शिक्षा अपूर्ण रहती है। विभिन्न प्रयोगों के परिणामों के प्रकाशन के बिना अध्यापक शिक्षा का स्तर ऊँचा नहीं हो सकता।

(9) शिक्षण अभ्यास एवं व्यावहारिक कार्य पर अधिक बल न देना

अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रम में सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक जोर दिया जाता है। शिक्षण अभ्यास एवं व्यावहारिक कार्य पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। शिक्षण अभ्यास का कार्य केवल खानापूर्ति के रूप में ही किया जाता है। छात्राध्यापक पाठ योजना बनाते हैं जो कि पर्यवेक्षकों के द्वारा उनका निरीक्षण नहीं किया जाता । कक्षा में पढ़ाते समय उनकी कमियों को दूर नहीं किया जा सकता। छात्राध्यापकों को किसी पृथक रूप से शिक्षण कौशलों का अभ्यास नहीं कराया जाता। इस प्रकार व्यावहारिक ज्ञान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के उपाय

(Suggestions to Remove the Defects of Teacher Education)

अध्यापक शिक्षा के दोषों को निम्नलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है-

(1) चयन व्यवस्था में सुधार

अध्यापक शिक्षा की छात्रों की चयन व्यवस्था बहुत ही दोषपूर्ण है। शिक्षण जैसे महत्वपूर्ण व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण के समय ही योग्य एवं इच्छुक व्यक्तियों का चुनाव किया जाना चाहिए। अध्यापक शिक्षा में उन्हीं छात्रों को प्रवेश मिलना चाहिए जिन्होंने द्वितीय श्रेणी में बी. ए./बी० एससी० की डिग्री प्राप्त की हो। इसके अतिरिक्त उन छात्रों को प्रवेश मिलना चाहिए जिन्होंने शिक्षा को एक विषय के रूप में पढ़ा हो। अध्यापन व्यवसाय में छात्रों की रुचि का पता लगाने के लिए बुद्धि एवं रुचि परीक्षण किया जा सकता है। प्रवेश के लिए छात्रों का साक्षात्कार होना चाहिए। अध्यापक शिक्षा में प्रवेश के लिए आजकल भी साक्षात्कार लिया जाता है परन्तु इनमें सिर्फ डिग्रियों इत्यादि का ही निरीक्षण किया जाता है। शिक्षण व्यवसाय के प्रति छात्रों की रुचि एवं रुझान का मूल्यांकन नहीं किया जाता। छात्रों के चयन में सुधार करना अध्यापक शिक्षा का गुणात्मक दृष्टि से विकास करना है।

(2) आवश्यकतानुसार प्रवेश

अध्यापक प्रशिक्षण के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आवश्यकता के अनुसार ही छात्रों को प्रविष्ट किया जाये। ऐसा करने से सभी प्रशिक्षित अध्यापकों को नौकरियाँ मिलेंगी। देश में बेरोजगारी की समस्या समाप्त होगी। सभी को नौकरी मिलने से इस व्यवसाय के प्रति लोगों का अधिक रुझान होगा और इस व्यवसाय का अधिक महत्व होगा। सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि शिक्षण व्यवसाय में प्रतिभाशाली छात्र भी आना पसन्द करेंगे जिनके कारण शिक्षा के स्तर में सुधार होगा।

(3) अध्यापक शिक्षा की पृथकता को दूर करना

अध्यापक शिक्षा के विकास के लिए इसकी पृथकता को दूर करना आवश्यक है।

(क) एक-दूसरे से पृथकता समाप्त करना (Removing the isolation from one Another)- अध्यापक शिक्षा के संयुक्त कॉलेज खोले जाये जिसमें सभी स्तर के अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाये। समस्त अध्यापक शिक्षा को विश्वविद्यालय के अधीन कर लिया जाए। अध्यापक शिक्षा के सभी कार्य का भार संभालने के लिए प्रत्येक राज्य में एक राजकीय अध्यापक शिक्षा बोर्ड की स्थापना की जाये। अभ्यास स्कूल (जिसमें शिक्षण कार्य करवाया जाता है) तथा शिक्षण संस्थाओं के अध्यापकों में अदला-बदली करते रहना चाहिए। प्रशिक्षण संस्थाओं की आपस की पृथकता को दूर करना बहुत आवश्यक है।

(ख) विश्वविद्यालय जीवन से पृथकता को दूर किया जाये (Removing the Isolation from University Life)-कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले विषयों की भाँति शिक्षा को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाये। इसके अतिरिक्त कुछ चुने हुए विश्वविद्यालयों में शिक्षा स्कूल खोले जायें। ऐसा करने से अध्यापक शिक्षा की यूनिवर्सिटी के जीवन से पृथकता को दूर किया जा सकता है।

(ग) स्कूलों के अध्यापक शिक्षा की पृथकता को दूर करना (Removing the Isolation of Teacher Education from Schools)- अध्यापक शिक्षा के सुधार के लिए जब भी कोई कार्यक्रम का आयोज किया जाये तो उनमें पुराने विद्यार्थियों को भी सम्मिलित किया जाये। उनके द्वारा दिये सुझावों का स्वागत किया जाये।

इसके अतिरिक्त प्री-प्राइमरी एवं सैकण्डरी स्कूलों में विस्तार सेवा विभाग खोलने चाहिए। इन विस्तार कार्यों को अध्यापक शिक्षा की ओर से विशेष बल देना चाहिए।

(4) कुशल एवं क्षमता सम्पन्न अध्यापकों की नियुक्ति

अध्यापक शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिए कुशल एवं योग्य शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए। निम्न स्तर से लेकर उच्च स्तर पर पढ़ाने वाले सभी अध्यापकों का महत्वपूर्ण आधार उनकी शिक्षात्मक प्रशिक्षणात्मक पृष्ठभूमि है। अध्यापक को अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहना चाहिए। एक प्रतिभा सम्पन्न विद्वान एवं परिश्रमी अध्यापक ही अपने छात्रों का पथ प्रदर्शक बन सकता है। अध्यापक संस्थाओं के अध्यापकों को तो भावी अध्यापकों को शिक्षण व्यवसाय के लिए तैयार करना होता है। इसलिए इन प्रशिक्षण संस्थाओं में परिश्रमी अध्यापकों को नियुक्त करना चाहिए

(5) अध्यापक शिक्षा के संयुक्त कॉलेजों की स्थापना

हमारे देश में विभिन्न प्रकार की अध्यापक शिक्षण संस्थाएँ हैं जहाँ विभिन्न स्तर के अध्यापकों को शिक्षा दी जाती है। यह प्रणाली दोषपूर्ण है।

अध्यापक शिक्षा के शैक्षणिक वातावरण को प्रेरणादायक बनाने के लिए सभी स्तर के अध्यापकों की व्यवस्था एक ही संस्था में होनी चाहिए। इससे सभी स्तर के अध्यापकों के एक-दूसरे से सम्बन्ध बनेंगे। आप में एक-दूसरे से प्रेरणा मिलेगी। एक ही संस्था में भिन्न-भिन्न प्रशिक्षणों की व्यवस्था के लिए प्रशासनिक प्रबन्ध भी अधिक प्रभावशाली होगा। इसलिए संयुक्त अध्यापक शिक्षा कॉलेजों (Comprehensine Colleges of Education) की व्यवस्था होनी चाहिए।

(6) सुविधाओं की व्यवस्था करना

अध्यापक शिक्षा के स्तर को भारत में शैक्षिक व्यवस्था का विकास प्रभावशाली बनाने के लिए पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था होनी चाहिए । व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक ज्ञान के लिए प्रयोगशालाएं,पुस्तकालय,सहगामी गतिविधियों का प्रबन्ध,दृश्य एवं श्रव्य सामग्री इत्यादि की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षक के यह यन्त्र उसकी शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में सहायक बनते हैं । इसलिए प्रशिक्षण संस्थाओं में पर्याप्त सुविधाओं का प्रबन्ध होना चाहिए ।

(7) पाठ्यक्रम, शिक्षण एवं मूल्यांकन की विधियों में सुधार

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक बनाने के लिए शिक्षण की नयी-नयी विधियों को प्रयोग में लाया जाना चाहिए। बच्चों की उपलब्धि के सही मूल्यांकन के लिए नये-नये तरीके अपनाने चाहिएं। अध्यापक संस्थाओं में मूल्यांकन के लिए आन्तरिक मूल्यांकन की व्यवस्था की जानी चाहिए। समय की माँग के अनुसार पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाया जाना चाहिए जिनसे समाज की आवश्यकता पूरी हो सके।

(8) अनुसंधान कार्य एवं प्रकाशन को प्रोत्साहन मिलना

अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं में अनुसन्धान एवं प्रकाशन कार्य को प्रोत्साहन मिलता चाहिए। शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। समाज में परिवर्तन होते रहते हैं। समाज के परिवर्तनों के कारण शिक्षा में परिवर्तन आना स्वाभाविक है। इसलिए अनुसंधान के द्वारा शिक्षण तथा मूल्यांकन में नये-नये ढंगों का प्रयोग करना चाहिए। समाज की माँग के अनुसार पाठ्यक्रम के पुननिर्माण के लिए भी बहुत सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है। यह सब कार्य शिक्षा में शोधकार्य के द्वारा ही सम्भव हो सकता है। इस नये ज्ञान को सभी अध्यापकों तक पहुँचाने के लिए प्रकाशन की भी पूरी व्यवस्था की जानी चाहिए। संस्था की ओर से  विश्वविद्यालय आयोग की ओर से अनुसंधान कर्ताओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। शोधकर्ता को हर सम्भव सुविधा मिलनी चाहिए। अध्यापक शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए शोधकार्य को अधिक महत्व देना चाहिए।

(9) व्यावहारिक ज्ञान पर अधिक जोर

प्रशिक्षण संस्थाओं में व्यावहारिक ज्ञान पर अधिक जोर देना चाहिए। छात्राध्यापकों एवं छात्राध्यापिकाओं को शिक्षण के विभिन्न कौशलों का अभ्यास अच्छी प्रकार कराया जाये। अभ्यास के अतिरिक्त छात्र-छात्राओं को और भी व्यावहारिक ज्ञान देना चाहिए। इसके लिए विद्यार्थी सभाओं का गठन, पुस्तकालय सम्बन्धी ज्ञान, समय सारिणी का निर्माण, पाठ्यक्रम का विभाजन एवं रजिस्टर कार्य आदि का अभ्यास कराना लाभकारी है! अध्यापक शिक्षा के स्तर में सुधार करने के लिए छात्राध्यापकों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना बहुत आवश्यक है।

इन सभी उपायों के अतिरिक्त कुछ सामान्य उपायों को प्रयोग में लाना चाहिए, जैसे अच्छे प्रभावशाली छात्राध्यापकों और छात्राध्यापिकाओं को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करनी चाहिए जिससे भावी छात्राध्यापक और छात्राध्यापिकाओं को भी प्रेरणा मिल सके। प्रशिक्षण संस्थाओं में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। छात्राध्यापक और छात्राध्यापिकाओं को छात्रावास सुविधाओं का उपलब्ध कराना आवश्यक है। इससे सभी छात्र निश्चिन्त होकर अपना ध्यान स्वाध्याय में लगा सकेंगे। छात्रावास में मनोरंजनात्मक गतिविधियों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

उपर्युक्त बताए गए उपायों के द्वारा अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर किया जा सकता है और उसमें सुधार लाया जा सकता है।

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Pankaja Singh

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