शिक्षाशास्त्र

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् | राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के उद्देश्य अथवा कार्य

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् | राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के उद्देश्य अथवा कार्य

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (National Council for Teacher Education: N.C.T.E.)

वर्तमान में इस संस्था में एक्ट के अनुसार 3 पूर्णकालीन अधिकारी हैं—अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिव । इनका कार्यकाल 4 वर्ष होता है। इनके अतिरिक्त 52 सदस्य हैं जिनमें से कुछ पदेन हैं और शेष मनोनीत । पदेन सदस्यों में मुख्य सदस्य हैं केन्द्रीय सरकार का शिक्षा सचिव, यूजी० सी० का अध्यक्ष, एन. सी. ई० आर० टी० का निदेशक, नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ प्लानिका एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन (NIPA) का निदेशक, हैसी० बी० एस. ई. का अध्यक्ष, प्लानिंग कमीशन का परामर्शदाता, केन्द्रीय सरकार का वित्त सलाहकार, ऑल इण्डिया काउन्सिल फॉर टेक्नीकल एजूकेशन (AICTE) का सैक्रेटरी और क्षेत्रीय कार्यालयी अध्यक्ष । और मनोनीत सदस्यों में मुख्य सदस्य हैं-3 सदस्य संसद से, 3 सदस्य प्राथमिक, माध्यमिक और प्रसिद्ध शिक्षा संस्थाओं से, 9 सदस्य प्रान्तीय सरकारों में प्रतिनिधित्व करने वालों में से और 13 सदस्य विभिन्न स्तर की शिक्षा के विशेषज्ञों में से । इन मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल 2-2 वर्ष होता है। इस प्रकार कुल मिलाकर 55 सदस्यों की एक बड़ी जमात है जिसमें शिक्षक शिक्षा विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।

इस परिषद का मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। इसकी चार क्षेत्रीय समितियाँ (Regional Committees) हैं जिनके कार्यालय क्रमशः, उत्तर का जयपुर में, दक्षिण का बैंगलौर में, पूरब का भुवनेश्वर में और पश्चिम का भोपाल में है। यह परिषद अपने कार्यों का सम्पादन इन क्षेत्रीय समितियों के माध्यम एवं सहयोग से करती है।

वर्तमान में इस परिषद के जो उद्देश्य (Aims) अथवा कार्य (Functions) हैं वे निम्नलिखित हैं-

(1) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए योजनाएँ बनाना और मानदण्ड निर्धारित करना।

(2) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करना और समय-समय पर नए-नए पाठ्यक्रम शुरू करना।

(3) शिक्षक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में केन्द्र एवं प्रान्तीय सरकारों और यू. जी. सी. एवं विश्वविद्यालयों को सलाह देना।

(4) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए शिक्षण शुल्क, अन्य शुल्क एवं छात्रवृत्तियों का निर्धारण करना।

(5) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के शिक्षकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करना और साथ ही उनके वेतनमान निर्धारित करना।

(6) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं का समय-समय पर निरीक्षण कराना, उन्हें सुधार के लिए सुझाव देना और घटिया किस्म की संस्थाओं की मान्यता समाप्त करने की संस्तुति करना।

(7) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं में अभ्यर्थियों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित करना और उनकी चयन प्रक्रिया के सम्बन्ध में सलाह देना।

(8) शिक्षक शिक्षा से सम्बन्धित सभी पक्षों का सर्वेक्षण कराना और सर्वेक्षण परिणामों को प्रकाशित एवं प्रसारित करना।

(9) किसी भी प्रकार की नई शिक्षक शिक्षा संस्था को मान्यता देने से पहले उसका निरीक्षण कराना और मानदण्ड पूरा करने पर मान्यता प्रदान करना।

(10) देश की सभी शिक्षक शिक्षा संस्थाओं में समन्वय स्थापित करना और किसी भी स्तर की शिक्षक शिक्षा के प्रसार में सन्तुलन बनाए रखना।

(11) केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करना।

(12) मान्यता प्राप्त शिक्षक शिक्षा संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नई-नई तकनीकों का सृजन करना।

(13) शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्य एवं नवाचारों के प्रयोगों को बढ़ावा देना और साथ ही शोध के स्तर को उन्नत करना।

इस परिषद ने प्रारम्भ में अपना कार्य बड़ी तीव्र गति के साथ शुरू किया था और अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से पूरे देश की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं का देखते-देखते निरीक्षण करवा डाला था, उन्हें मानदण्ड पूरे करने के नोटिस दे दिए थे और बोगस संस्थाओं एवं विभागों को बन्द करा दिया था। परिणामतः सभी स्तर की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं (सरकारी और गैरसरकारी) की अधिसंरचना (Infrastructure) में सुधार होने लगा था, उनमें प्रयोगशाला और कार्यशालाओं की व्यवस्था होने लगी थी, पुस्तकालयों में स्तरीय पुस्तकेंक्ष और सन्दर्भ ग्रंथ मंगाए जाने लगे थे और शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों की पूर्ति की जाने लगी थी। परन्तु कुछ समय बाद ही यह परिषद भ्रष्टाचार के चंगुल में फंस गई, नियम बनाने वाली संस्था ही नियमों का उल्लंघन करने लगी और देखते-देखते देश में स्ववित्तपोषित शिक्षक शिक्षा संस्थाओं का जाल-सा बिछ गया। परिणाम यह है कि-

(1) सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के लिए मानदण्ड तो बहुत कठोर एवं आकर्षक हैं परन्तु अब उन पर अमल न के बराबर हो रहा है। निरीक्षकों की आँखों पर पहले से ही चाँदी की पट्टी बाँध दी जाती है, फिर ऊपर से नेताओं का दबाव।

(2) परिषद केन्द्र एवं प्रान्तीय सरकारों को शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में सलाह देने के स्थान पर उल्टे उनके द्वारा लिए गए निर्णयों का पालन कर रही है।

(3) परिषद का एक मुख्य कार्य विभिन्न स्तरों की शिक्षक शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट करना और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आदर्श पाठ्यक्रम का निर्माण करना है। उसने 1996 में यह कार्य किया भी जिसे एन. सी. ई. आर. टी० ने 1998 में ‘करीक्यूलम प्रेम वर्क फार क्वालिटी टीचर एजूकेशन’ के नाम से प्रकाशि किया। परन्तु इसमें शब्दों के जाल के अतिरिक्त कुछ भी नया नहीं है, कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है, सैद्धान्तिक रूप पर अपेक्षाकृत अधिक और प्रायोगिक पक्ष पर अपेक्षाकृत कम बल है और बी. एड. के लिए तो दो वर्षीय पाठयक्रम प्रस्तावित है और उसका 50% भाग निरर्थक है। समस्या वहीं की वहीं है।

(4) शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता एवं वेतनमान सब कुछ निर्धारित है, परन्तु इनका पालन बहुत कम संस्थाओं में किया जा रहा है।

(5) सर्वेक्षण कार्य तो हम जानते हैं कि भारत में कैसे किया जाता है, तब इस परिषद से सही सर्वेक्षण की आशा कैसे की जा सकती है।

(6) इस परिषद से यह भी अपेक्षा की गई थी कि यह शिक्षक शिक्षा संस्थाओं में शोध कार्य के स्तर को ऊँचा उठाएगी एवं नवाचारों के प्रयोग को बढ़ावा देगी परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।

(7) इस बीच परिषद ने अभ्यर्थियों के प्रवेश के नियम तक नहीं बनाये और आलम यह है कि अधिकतर संस्थाओं में केवल प्रवेश परीक्षा के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन किया जा रहा है और इसमें बड़ी हेरा-फेरी हो रही है।

(8) शिक्षक शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने पर भी बहुत बल था। परन्तु एक रास्ता बन्द हुआ तो दूसरा रास्ता खोल दिया गया, स्ववित्तपोषित शिक्षक शिक्षा संस्थाओं का जाल-सा बिछ गया है।

(9) प्रवेशार्थियों से लिए जाने वाले शुल्क को निर्धारित करने का अधिकार एक साथ कई संस्थाओं को है। ऊपर से आए दिन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्टों के निर्णय आते रहते हैं, सब कुछ उल्टा-सीध चल रहा है

(10) परिषद का एक मुख्य कार्य देश की सभी शिक्षक शिक्षा संस्थाओं में समन्वय स्थापित करना और उनके अनावश्यक विस्तार को रोकना है। परिषद इस क्षेत्र में भी असफल रही है, आवश्यकता से अधिक शिक्षक शिक्षा संस्थाएँ खुलती जा रही हैं किन्तु इनके मार्ग में अनेक अवरोधक लगे हैं फिर भी भेंट-पूजा से सभी अवरोधक हठ जाते हैं।

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Pankaja Singh

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