माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण हेतु मुदालियर आयोग के सुझाव
माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण हेतु मुदालियर आयोग के सुझाव
[Recommendations of Secondary Education Commission (Mudaliar Commission)]
युवाओं को भारत में चलाए जा रहे विभिन्न धन्धों तथा कृषि क्षेत्र में काम करने के योग्य बनाने के लिए आयोग ने शिक्षा के व्यावसायीकरण को आवश्यक माना है। इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-
(1) बहु-उद्देशीय विद्यालयों की स्थापना (Establishment of Multipurpose Schools)-
विभिन्न कोर्सों की व्यवस्था के लिए आयोग ने बहु-उद्देशीय स्कूल स्थापित करने का सुझाव दिया है। ऐसे स्कूल कई प्रकार से उपयोगी हैं, जैसे-
(i) एक ही स्कूल में कई प्रकार के कोर्सों की व्यवस्था होने से विभिन्न व्यवसायों को समदृष्टि से देखने की प्रवृत्ति विकसित होगी, विभिन्न व्यवसायों में विद्यमान परस्पर सम्बन्ध उजागर होगा और कई व्यवसायों के साथ जुड़ी तथा कथित हीन भावना समाप्त होगी।
(ii) कई बार विद्यार्थी गलत कोर्सों का चुनाव कर लेते हैं। कुछ समय के पश्चात् उन्हें अपनी गलती का अनुभव होता है। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी को योग्यता के अनुकूल कोर्स परिवर्तित करने के लिए दूसरे स्कूल में भेजना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होता है। परन्तु एक ही स्कूल में विभिन्न कोर्सों की व्यवस्था होने से इस प्रकार का कोर्स परिवर्तन आसान होता है।
(iii) किस विद्यार्थी को कौन-सा व्यवसाय चुनना चाहिए इसके लिए मार्गदर्शन एवं समुपदेशन (Guidance and Counselling) अत्यन्त आवश्यक है। बहु-उद्देशीय स्कूलों की स्थापना करके मार्गदर्शन की सुविधा आसानी से प्रदान की जा सकती है।
(2) पाठ्यक्रमों का विभिन्नीकरण (Diversification of Courses)-
विद्यार्थियों की विभिन्न रुचियों तथा योग्यताओं के अनुसार माध्यमिक शिक्षा में विभिन्न कोर्सी की व्यवस्था की जानी चाहिए। सामान्य शिक्षा के लिए कोर विषय (Core Subjects) के साथ-साथ विशेष विषयों के प्रयोगात्मक शिक्षण की भी व्यवस्था होनी चाहिए। इस प्रकार एक ओर तो विद्यार्थियों के सर्वतोन्मुखी विकास में सहायता मिलेगी और दूसरी ओर उन्हें अपनी रुचियों एवं योग्यताओं के अनुसार विषय चुनने का अवसर मिलेगा। माध्यमिक शिक्षा में अपनी रूचि अनुसार व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् विद्यार्थी अपनी रोजी-रोटी कमाने में भी समर्थ हो सकेंगे और उच्च प्रशिक्षण के लिए उच्च तकनीकी संस्थानों (Technical Institutes) में प्रवेश भी प्राप्त कर सकेंगे।
(3) तकनीकी शिक्षा (Technical Education)-
माध्यमिक स्तर पर तकनीकी शिक्षा प्रदान करने क लिए आयोग ने मुख्यतः निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-
(i) पर्याप्त संख्या में तकनीकी स्कूल स्थापित किए जाने चाहिएं। ये स्कूल बहु-उद्देशीय स्कूलों के एक भाग के रूप में स्थापित किए जा सकते हैं और अलग भी स्थापित किए जा सकते हैं।
(ii) बड़े-बड़े नगरों में केन्द्रीय तकनीकी संस्थाएं स्थापित की जानी चाहिएं जो कई स्थानीय स्कूलों की आवश्यकताओं को पूरा करें।
(iii) क्योंकि (Apprenticeship) काल तकनीकी प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग है, इसलिए कानून बनाकर उद्योगों में प्रायोगिक प्रशिक्षण के प्रबन्ध को सुनिश्चित बनाना चाहिए।
(iv) जहाँ तक सम्भव हो सके तकनीकी स्कूल सम्बन्धित उद्योग के निकट स्थापित किए जाएं। उन्हें सम्बन्धित उद्योग का सक्रिय सहयोग प्राप्त हो।
(५) तकनीकी कोर्सी की उचित प्रणाली निर्धारित करने के लिए अखिल भारतीय शिक्षा परिषद् (all India Council for Technical Education) की स्थापना करनी चाहिए। परिषद् के अन्तर्गत कार्य करने वाली विभिन्न संस्थाओं द्वारा आवश्यक पाठ्यक्रम निर्धारित किए जाने चाहिएं।
(vi) तकनीकी शिक्षा की कुशल योजना के लिए शिक्षा शास्त्रियों को उद्योग एवं वाणिज्य के प्रतिनिधियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए। इससे तकनीकी शिक्षा का ठीक स्तर बनाए रखने में सहायता मिलेगी।
(vii) तकनीकी शिक्षा के विकास में आने वाले खर्चे को पूरा करने के लिए औद्योगिक शिक्षा कर (Industrial Education Cess) लगाना चाहिए।
(4) माध्यमिक स्कूलों में कृषि शिक्षा (Education of Agriculture in Secondary Schools)-
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व समझाते हुए आयोग ने सुझाव दिया है कि सभी ग्रामीण विद्यालयों में कृषि की शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए। कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम में हार्टीकल्चर की शिक्षा भी सम्मिलित हो। यह शिक्षा केवल पुस्तकीय नहीं होनी चाहिए बल्कि विद्यार्थियों को अवसर प्रदान किए जाने चाहिए कि वास्तविक स्थितियों में कृषि का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करें। कृषि में आजकल जो वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग हो रहा है, विद्यार्थियों को उनका भी समुचित ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए। कृषि से सम्बन्धित धन्धे जैसे–पशु पालन तथा अन्य कुटीर उद्योग भी कृषि शिक्षा के साथ जोड़ने चाहिएं। कृषि स्कूलों को ग्रामीण बहु-उद्देशीय विद्यालयों का अंग बनाना चाहिए।
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- अध्यापक शिक्षा का अर्थ | सेवापूर्व व सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा में अन्तर
- अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता | अध्यापक शिक्षा का महत्व
- अध्यापक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य | main objectives of teacher education in Hindi
- अध्यापक शिक्षा के दोष | अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के उपाय
- अध्यापक-प्रशिक्षण संस्थाओं के प्रकार | Types of teacher training institutions in Hindi
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् | राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के उद्देश्य अथवा कार्य
- सेवाकालीन अध्यापक-शिक्षा कार्यक्रमों में सुधार के लिये सुझाव
- अध्यापक शिक्षा में अलगाव की समस्या | Isolation in Teacher Education in Hindi
- सर्वशिक्षा अभियान | सर्वशिक्षा अभियान के मुख्य उद्देश्य | सर्वशिक्षा अभियान की उपलब्धियाँ
- प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिकता | सार्वभौमिकता की समस्या | सार्वभौमिकता की समस्या के कारण | सार्वभौमिकता की समस्या का समाधान
- अपव्यय तथा अवरोधन में अन्तर | प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय के कारण | प्राथमिक शिक्षा में अवरोधन के कारण
- अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा | भारत में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की समस्यायें तथा समाधान
- माध्यमिक शिक्षा की समस्याएँ | माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का समाधान
- माध्यमिक शिक्षा का संचालन | माध्यमिक शिक्षा का प्रशासन
- माध्यमिक शिक्षा का अर्थ | भारत में माध्यमिक शिक्षा का विकास
- माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता से सम्बन्धित मुद्दे | Issues relating to Quality Concerns in Secondary Education in Hindi
- माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण | माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण का महत्व एवं आवश्यकता
- निम्न माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण | उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण
Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- [email protected]