अर्थशास्त्र

मुद्रा प्रसार | मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण क्यों है | मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त क्यों है

मुद्रा प्रसार | मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण क्यों है | मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त क्यों है

मुद्रा प्रसार

मुद्रा प्रसार उस स्थिति को कहते हैं, जबकि देश में कीमतें बढ़ रही हों अथवा मुद्रा का मूल्य कम हो रहा हो।

मुद्रा संकुचन उस स्थिति को कहते हैं, जब देश में कीमत कम हो रही हो अथवा मुद्रा मेंका मूल्य बढ़ रहा है।

मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था में समय-समय पर तेजी अथवा मन्दी काल आता रहता है। जब तेजी एवं मन्दी की अवस्था बहुत आगे बढ़ जाती है, तो इसे मुद्रा प्रसार तथा मुद्रा संकुचन कहा जाता है। ये दोनों अवस्थायें बुरी हैं। प्रो0 सैलिंगमैन ने कहा है कि “बढ़ती हुई और गिरती हुई कीमतों के कारण देश के आर्थिक ढाँचे में एक ऐसी अस्थिरता आ जाती है जिससे कृषि व्यापार तथा उद्योग की स्थिति डाँवा डोल हो जाती है और समाज के विभिन्न वर्गों को अलग-अलग अनुपात में लाभ और हानि होती है। ऊँची और नीची कीमतों के कारण इतना नुकसान नहीं होता, जितना कि कीमतों के बराबर बढ़ने उतरने से होता है।” इसी प्रकार कीन्स ने भी कहा है कि “मुद्रा प्रसार अनुचित है और मुद्रा संकुचलन अव्यावहारिक है।”

मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण क्यों है?

मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(1) अदृश्य करारोपण- मुद्रा प्रसार एक प्रकार से करारोपण के समान ही है, क्योंकि सरकार घाटे के बजट की पूर्ति के लिए अधिक मुद्रा का निर्गमन करती है और जनता की क्रय शक्ति में कमी आ जाती है। प्रो0 सी0एन0 वकील ने मुद्रा प्रसार को अदृश्य डकैती कहा है और लिखा है। डाकू एक समय मे है कि “मुद्रा स्फीति की स्थिति एक डाकू दृष्टिगत होता है, जबकि मुद्रा प्रसार अदृश्य होता कुछ व्यक्तियों को लूटता है, किन्तु मुद्रा प्रसार समस्त राष्ट्र को लूटता है तथा डाकू पर मुकदमा चलाया जा सकता है, परन्तु मुद्रा प्रसार वैधानिक है।”

(2) ऋणदाता को हानि- स्फीति काल में ऋण देने वाले व्यक्तियों को हानि होती है, क्योंकि ऋण के भुगतान के रूप में उसे कम क्रय शक्ति मिलती है अर्थात् जितनी मुद्रा उसने उधार दी थी, उसकी क्रय शक्ति भुगतान के समय मिलने वाली मुद्रा की क्रय शक्ति से अधिक होती है।

(3) धन का असमान वितरण- मुद्रा स्फीति काल में धनी व्यक्ति और धनी तथा निर्धन और निर्धन हो जाता है। प्रो0 कीन्स ने कहा है कि “मुद्रा स्फीति एक शक्तिशाली इंजन के समान है। यह इंजन बिल्कुल अन्धा होकर धन का वितरण करता है।” क्योंकि यह किसी व्यक्ति के गुणों और अवगुणों की ओर ध्यान नहीं देता है।

(4) गरीबों पर अधिक भार- स्फीति काल में निर्धन एवं कमजोर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होता है, क्योंकि उसकी आय के साधन सीमित होते हैं।

(5) बचत हतोत्साहित होती है- मुद्रा स्फीति काल में चूँकि मुद्रा की क्रय शक्ति घट जाती है, इसलिए लोग बचत करना बन्द कर देते हैं।

(6) बनावटी सम्पन्नता- मुद्रा प्रसार काल में थोड़े समय के लिए कृत्रिम सम्पन्नता दिखाई पड़ती है, परन्तु यह सम्पन्नता अपनी चरम पर पहुँच कर टूट जाती है और देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है।

उपरोक्त कारणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण है।

मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त क्यों है?

कीन्स के अनुसार मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(1) आर्थिक विकास अवरुद्ध होना- मुद्रा संकुचन काल में आर्थिक क्रियायें बिल्कुल शिथिल हो जाती हैं तथा अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है, जिससे राष्ट्रीय आय कम हो जाती है।

(2) बड़े पैमाने पर बेरोजगारी- मुद्रा संकुचन काल में चूँकि आर्थिक क्रियायें शिथिल पड़ जाती हैं, इसलिए बड़े पैमाने पर बेरोजगारी फैल जाती है।

(3) व्यापार एवं उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव- मुद्रा संकुचन काल में चूँकि वस्तुओं की माँग कम हो जाती है, इसलिए उद्योग धन्धों की प्रगति मन्द अथवा बन्द हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक क्रियायें अपने आप समाप्त हो जाती हैं।

मुद्रा संकुचन अधिक बुरा है-

मुद्रा प्रसार एवं मुद्रा संकुचन दोनों ही बुरे हैं, लेकिन इन दोनों में मुद्रा संकुचन अधिक बुरा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(1) मुद्रा प्रसार उद्यमियों को प्रोत्साहन देता है- मुद्रा प्रसार काल में उत्पादकों के लाभ की मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे उन्हें नये-नये उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। इसके विपरीत मुद्रा संकुलन काल में माँग कम हो जाने से उद्योग धंधे चौपट हो जाते हैं।

(2) कुछ परिस्थितियों में मुद्रा प्रसार लाभदायक- मुद्रा प्रसार की प्रारम्भिक अवस्था में चूँकि कीमत बढ़ती है, जिससे उत्पादकों के लाभ में वृद्धि होती है, जिससे उद्योगों के विकास के साथ-साथ सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था का विकास होता है, परन्तु मुद्रा संकुचन अपने प्रारम्भिक काल से ही बेरोजगारी को जन्म देने लगता है जिससे अर्थव्यवस्था में शिथिलता आ जाती है।

(3) श्रमिक के लिए हानिकारक- मुद्रा प्रसार काल में श्रमिक की क्रयशक्ति कम हो जाती है जिससे उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन संकुचन काल में उद्योगो के बन्द हो जाने से वे बेरोजगार हो जाते हैं अर्थात् आय का स्रोत ही समाप्त हो जाता है, जिससे मुद्रा प्रसार की स्थिति की तुलना में मुद्रा संकुचन की स्थिति में अधिक कष्ट उठाना पड़ता है।

(4) मुद्रा प्रसार नियन्त्रित किया जा सकता है- अनेक प्रकार के उपायों द्वारा मुद्रा प्रसार पर कुछ सीमा तक काबू पाया जा सकता है।

संक्षेप में मुद्रा संकुचन मुद्रा प्रसार से अधिक बुरा है। प्रो0 कुरिहारा ने कहा है कि “यदि विकल्प मुद्रा प्रसार और मुद्रा संकुचन के मध्य हो तो सम्भवतः अधिकांश व्यक्ति मुद्रा प्रसार को प्राथमिकता देंगे। जहाँ तक उत्पादन और रोजगार का सम्बन्ध है, मुद्रा संकुचन की तुलना में मुद्रा प्रसार श्रेष्ठ है।” इसी तरह कीन्स ने भी कहा है कि “मुद्रा प्रसार अन्यायपूर्ण है और मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त है परन्तु इन दोनों में मुद्रा संकुचन अधिक बुरा है।”

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!