अर्थशास्त्र

बैंक का उद्गम एवं विकास | बैंक की परिभाषा | बैंकों के प्रकार

बैंक का उद्गम एवं विकास | बैंक की परिभाषा | बैंकों के प्रकार

बैंक का उद्गम एवं विकास-

आधुनिक बैंकिग का शुभारम्भ सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ माना जाता है जबकि सन् 1609 में Bank of Amsterdam (हॉलैण्ड), सन् 1619 में Bank of Bamberg (जर्मनी) और सन् 1694 में Bank of England (इंग्लैण्ड) स्थापित हुए। धीरे-धीरे बैंकों का आर्थिक महत्व बढ़ता गया और संयुक्त पूँजी वाले बैंक स्थापित किए जाने लगे। इससे विकास की गति तेज हो गई।

स्पष्टतः, जैसा कि क्राउथर ने भी कहा है, “आधुनिक बैंकों के तीन पूर्वज हैं- व्यापारी, महाजन और सुनार।

बैंक की परिभाषा-

कीनले के अनुसार, “बैंक एक ऐसी संस्था है जो लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए, आवश्यकता के अनुसार ऋण देती है तथा लोग अपना पैसा उसमें जमा करते हैं जब उन्हें उसकी आवश्यकता नहीं होती।”

सैयर्स के अनुसार, “बैंक वह संस्था है जिसके ऋणों को अन्य व्यक्तियों के पारस्परिक ऋणों के भुगतान के लिए विस्तृत रूप से स्वीकार किया जाता है।”

क्राउथर के अनुसार, “बैंक अपने तथा अन्य लोगों के ऋणों का व्यवसायी होता है अर्थात् बैंकर का व्यवसाय अन्य लोगों से ऋण लेना और बदले में अपने ऋण देना और इस प्रकार मुद्रा का सृजन करना है।”

वेब्स्टर शब्दकोष के अनुसार- “बैंक वह संस्था है जो द्रव्य में व्यवसाय करती है, एक ऐसी प्रतिष्ठान है जहाँ धन का जमा, संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा ऋण एवं कटौती की सुविधायें प्रदान की जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था की जाती है।”

बैंकों के प्रकार

(1) व्यापारिक बैंक- जो बैंक सामान्य बैंकिंग कार्य करते हैं वे व्यापारिक बैंक कहलाते हैं। व्यापारिक बैंक प्रायः संयुक्त स्कन्ध बैंक होते हैं, अर्थात् उनकी पूँजी अनेक अंशों में बटी हुई होती है और वे अंश अनेक व्यक्तियों अथवा संस्थाओं द्वारा खरीदे हुए होते हैं। व्यापारिक बैंक धन जमा करने, ऋण देने, चेकों का संग्रहण एवं भुगतान करने तथा एजेन्सी सम्बन्धी अनेक काम करते हैं। इनके कार्यों का विसतृत ब्यौरा आगे दिया जायेगा।

(2) औद्योगिक बैंक- व्यापारिक बैंक प्रायः अल्पकालीन ऋण देते हैं जबकि उद्योगो के लिए दीर्घकालीन अथवा मध्यकालीन ऋणों की आवश्यकता होती है। व्यापारिक बैंक के पास जो रकमें जमा होती हैं। वह प्रायः अल्पकाल के लिए होती है। अतः उन्हें दीर्घकाल के लिए उधार नहीं दिया जा सकता। इस कमी की पूर्ति के लिए विशेष प्रकार के औद्योगिक बैंकों की स्थापना की गई है।

इन बैंकों की पूँजी प्रायः व्यापारिक बैंकों से अधिक होती है तथा इनके अंश प्रायः संस्थाओं को बेचे जाते हैं। अपने साधनों की वृद्धि के लिए औद्योगिक बैंकों द्वारा दीर्घकाल ऋण बेचे जाते हैं। इन बैंकों को केन्द्रीय बैंक, सरकार तथा विदेशी बैंकों से भी ऋण प्राप्त हो जाते हैं ताकि उद्योगों को देशी-विदेशी मुद्राओं में ऋण दिए जा सकें।

भारत में भारतीय औद्योगिक निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक तथा भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम आदि औद्योगिक बैंकों के उदाहरण हैं।

(3) कृषि बैंक- जापान, जर्मनी आदि देशों में कृषि के विकास के लिए वित्त व्यवस्था वाले पृथक बैंक स्थापित किए गये हैं। यह बैंक खेती सम्बन्धी कार्यों, जैसे- बीज, हल, बैल, सिंचाई आदि के लिए ऋण की व्यवस्था करते हैं और इन ऋणों पर रियायती ब्याज लेते हैं।

भारत में कृषि सम्बन्धी कार्यों के लिए वित्तीय व्यवस्था करने की दृष्टि से सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैंक स्थापित किए गए हैं। इन बैंकों को केन्द्रीय बैंक तथा सरकार द्वारा आर्थिक सहयोग दिया जाता है। इनका विस्तृत विवेचन अगले पृष्ठों में दिया गया है।

(4) विनिमय बैंक- विदेशी मुद्रा के लेने-देन करने वाले बैंकों को विनिमय बैंक कहा जा सकता है। वास्तव में सभी देशों में व्यापारिक बैंक ही विदेशी विनिमय में लेन-देन करते हैं, इसका कोई अलग वर्ग नहीं है, परन्तु भारत में विदेशी बैंकों को, जो मुख्यतः विदेशी विनिमय का लेन-देन करते हैं और विदेशी व्यार के लिए वित्त व्यवस्था करते हैं ‘विनिमय बैंक’ कहा जाता है।

(5) केन्द्रीय बैंक- वर्तमान युग में प्रायः प्रत्येक देश में एक केन्द्रीय बैंक होता है जो देश की आवश्यकतानुसार पत्र-मुद्रा निकालता है, साख तथा बैंकिंग व्यवस्था का नियंत्रण महत्वपूर्ण देशों के केन्द्रीय बैंक सरकारी स्वामित्व में ले लिए गये हैं।

(6) देशी बैंकर- इनको महाजन, साहूकार, सर्राफ आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। भारतीय बैंकिंग जांच समिति के अनुसार, “देशी बैंकर (या बैंक) व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमायें स्वीकार करने, हुण्डियों में व्यवसाय करने और ऋण देने का कार्य करती है। देशी बैंकर भारत के कोने-कोने में पाए जाते हैं और कृषि व व्यापार के लिए वित्त की व्यवस्था करते हैं। भारतीय बैंकिंग कम्पनी अधिनियम ने इनको ‘बैंक’ या ‘बैंकर’ का दर्जा नहीं दिया है, किन्तु यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इनका अत्यधिक महत्व है।

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Pankaja Singh

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