
प्रो0 ए0 डब्ल्यू फिलिप्स वक्र | प्रो० फिलिप्स वक्र विश्लेषण | फिलिप्स वक्र का समर्थन | फिलिप्स वक्र की आलोचना | फिलिप्स वक्र क्या है? | फिलिप्स वक्र की क्या आलोचनायें हैं?
प्रो0 ए0 डब्ल्यू फिलिप्स वक्र-
इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० ए० डब्ल्यू० फिलिप्स ने वर्ष 1858 में “मौद्रिक मजदूरी दरें एवं बेरोजगारी के मध्य सम्बन्धों” का विवेचन- प्रस्तुत किया जो इंग्लैण्ड में 1861 ई० से 1913 ई० की काल अवधि में विश्लेषित किया गया। इस प्रकार प्रो० फिलिप्स वक्र में ‘लागत’ प्रेरित मुद्रा प्रसार’ का विशेष स्थान है।
प्रो० फिलिप्स का कथन है कि “बेरोजगारी (U) दर एवं मजदूरी (W) दर में बढ़ोतरी के मध्य विपरीत सम्बन्ध होता है। इसलिए जब अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी ऊँची होगी तो मौद्रिक मजदूरी की दर सदैव नीची रहेगी, क्योंकि नियोक्ता वर्ग को चयन (Appointment) के लिए श्रमिकों की बड़ी मात्रा में पूर्ति सम्भव होती है। इसीलिए मौद्रिक मजदूरी दर घटती है। इसके विपरीत प्रो० फिलिप्स ने यह भी निष्कर्ष में बताया कि जब अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की कमी हो जाती है, तो मौद्रिक मजदूरी की दरों में तीव्र वृद्धि भी होती है। इसलिए मौद्रिक मजदूरी दरें अपरिवर्तनशील रहें, इसके लिए बेरोजगारी दर 51/2 प्रतिशत होनी चाहिए।
प्रारम्भ में, प्रो० फिलिप्स वक्र का प्रयोग बेरोजगारी तथा मौद्रिक मजदूरी के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाला माना गया। लेकिन बाद में इसी वक्र को बेरोजगारी एवं कीमत वृद्धि (मुद्रा प्रसार) के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा। प्रो० फिलिप्स के अलावा प्रो० सोलो (Prof. Solow) एवं पो० सेम्युलसन (Prof. Samuelson) ने यू०एस०ए० के आँकड़ों के आधार पर बेरोजगारी, मजदूरी तथा कीमतों के मध्य सम्बन्धों का विश्लेषण किया है।
प्रो० फिलिप्स वक्र विश्लेषण
(Analysis of Prof. Phillips Curve)-
प्रो० फिलिप्स ने वक्र में बताया कि मुद्रा प्रसार एवं बेरोजगारी के मध्य सदैव विपरीत सम्बन्ध रहता है।
व्याख्या (Explanation)- वक्र संख्या 9.1 के YOX अक्षांश में YO पर वार्षिक कीमत वृद्धि (मुद्रा प्रसार दर) प्रतिशत में, OX अक्ष पर बेरोजगारी प्रतिशत तथा OW पर वार्षिक मजदूरी दर प्रतिशत में दर्शाया गया है। इसी वक्र को फिलिप्स (Phillips Diagram) कहते हैं। य वक्र बेरोजगारी, कीमत एवं मजदूरी दर में वृद्धि के परस्पर सम्बन्धों को स्पष्ट करता है। वक्र के अनुसार कीमत वृद्धि का प्रतिशत एवं मजदूरी दर की वृद्धि का प्रतिशत इस बात पर निर्भर करता है जब श्रम की उत्पादकता (Productivity of Labours) वृद्धि के मध्य एक अनुपात (Ratio) बना रहे। ध्यान रहे, फिलिप्स की नीचे की ओर गिरती वक्र रेखा दर्शाती है कि कीमत वृद्धि दर को घटाने के लिए बेरोजगारी का स्तर बढ़ाना होगा।
इसलिए सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए आर्थिक स्थिति की विविधता के चलते फिलिप्स वक्र का स्वरूप भिन्न प्रकार का निर्मित होगा। अतः अर्थव्यवस्था के लिए यह हितकर होगा कि बगैर कीमत वृद्धि के रोजगार का स्तर ऊँचा रखा जाय।
फिलिप्स वक्र का समर्थन-
प्रो० फिलिप्स का वक्र स्थिर फिलिप्स वक्र’ (Stable Phillips Curve) की मान्यता को स्वीकार करता है। इस संदर्भ में प्रो0 जॉनसन (Johnson) ने फिलिप्स वक्र का समर्थन करते हुए कहा कि फिलिप्स ने बेरोजगारी का प्रतिशत एवं मुद्रा प्रसार की दर के बीच तथ्यपरक एवं अनुभवयुक्त विश्लेषण प्रस्तुत किया है। चूंकि बेरोजगारी % एवं मुद्रा प्रसार दर विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में अलग-अलग देश-काल, वातावरण के अनुसार बदलते हैं, फिर भी 1960 के दशक तक फिलिप्स की मान्यताएँ सत्य सिद्ध हुईं। प्रो0 केन्सियन जैसे अर्थशास्त्रियों के Adverse Supply Shoks प्रतिकूल पूर्ति झटकों को विश्लेषित करते हुए 1970 के दशक में ओपेक देशों के तेल (Petrolium) की कीमत वृद्धि के कारण उत्पादन लागत वृद्धि व परिवहन लागत बढ़ने को मुख्य बिन्दु मानते हुए ‘प्रतिकूल पूर्ति झटकों’ का विवेचन करते कीमत वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी वृद्धि को उत्तरदायी बताया।
वहीं प्रो० मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा प्रसार एवं बेरोजगारी के मध्य प्रतिकूल सम्बन्धों को अल्पकालीन कहा है।
फिलिप्स वक्र की आलोचना-
प्रो0 फिलिप्स वक्र के आलोचक/त्रुटि बताने वाले अर्थशास्त्रियों में मुख्यतः प्रो० एडमण्ड फेल्प्स एवं प्रो० पेचमेन हैं। प्रो० फेल्प्स (Phelps) का कथन है कि बेरोजगारी ऐच्छिक भी होती है, इसलिए मुद्रा प्रसार एवं बेरोजगारी के मध्य विपरीत सम्बन्ध हों, यह आवश्यक नहीं है। जबकि प्रो० फिलिप्स दोनों के मध्य ऋणात्मक सम्बन्ध मानते हैं। सामान्यतः मुद्रा प्रसार में ऐसे प्रावैगिक (Dynamic) तत्त्व विद्यमान रहते हैं, जिनका बेरोजगारी से विपरीत सम्बन्ध का प्रश्न ही कहाँ उठता है। इसी प्रकार प्रो० पेचमेन (Pechman) ने मजदूरी दर एव बेरोजगारी के मध्य सम्बन्धों के लिए प्रो० फिलिप्स की आलोचना करते हुए कहा है कि उन्होंने दोनों की व्याख्या अतिशयोक्तिपूर्ण की है, जो काल्पनिक है, क्योंकि इनकी इंग्लैण्ड के संख्यात्मक तथ्यों से पुष्टि करना कठिन है। इस प्रकार प्रो0 फिलिप्स वक्र में मुद्रा प्रसार एवं रोजगार की व्यवस्था अल्पकालीन है, दीर्घकाल में तो दोनों के मध्य सम्बन्ध ही स्थापित नहीं हो पाता है।
इस श्रृंखला में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सोलो (Solow), प्रो0 फ्रीडमैन (Friedman) एवं प्रो टोबिन (Tobin) ने अलग-अलग ढंग से प्रो० फिलिप्स वक्र का विश्लेषण किया है। प्रो० सोलो का मत है कि मुद्रा प्रसार जब धनात्मक (Positive) रूप में होती है तो ऊँची बेकारी (या) मन्दी के समय तो मजदूरी दर घटती है, लेकिन बेकारी के निश्चित बिन्दु के बाद जब अर्थव्यवस्था में श्रमिकों की माँग में वृद्धि होती है, तो मजदूरी दर में वृद्धि होती है। फलतः बेकारी एवं मुद्रा प्रसार का एक दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता है। इसी प्रकार से प्रो० फिलिप्स वक्र की आलोचनात्मक व्याखा प्रो0 फ्रीडमैन एवं टोबिन ने प्रस्तुत की है।
अन्त में, प्रो फिलिप्स वक्र की आलोचना में यहाँ तक कहा है कि फिलिप्स वक्र सांख्यिकी विवरण पर आश्रित है, जिसके लिए मौद्रिक नीति को आधार नहीं बनाया गया है। इसके अलावा आर्थिक उच्चावचन में मुद्रा प्रसार से श्रम बाजार प्रभावित होता है, श्रम फिलिप्स वक्र व्यावहारिकता से दूर एवं शंका उत्पन्न करने वाला है।
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