
वितरण के आधुनिक सिद्धान्त | सिद्धान्त की मान्यताएँ | साधन की माँग | साधन की माँग को प्रभावित करने वाले घटक | साधन की पूर्ति को प्रभावित करने वाले घटक
वितरण का आधुनिक सिद्धान्त-
वितरण का आधुनिक सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि जिस प्रकार किसी वस्तु का मूल्य उसकी माँग तथा पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है, ठीक उसी प्रकार उत्पत्ति के प्रत्येक साधन का प्रतिफल या पुरस्कार भी उसकी माँग तथा पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है। इस प्रकार, आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, किसी साधन के मूल्य का निर्धारण एक वस्तु की भाँति उसकी माँग एवं पूर्ति के द्वारा होता है और चूँकि विभिन्न साधनों की माँग व पूर्ति सम्बन्धी दशाएँ विभिन्न होती हैं इसलिए उनके पुरस्कार (लगान, लाभ, ब्याज व मजदूरी) के सिद्धान्त के सम्बन्ध में भिन्नता होती है परन्तु प्रत्येक दशा में मूल्य निर्धारित होता है माँग व पूर्ति के द्वारा ही।
यद्यपि साधनों का मूल्य वस्तु के मूल्य की भाँति निर्धारित होता है फिर भी निम्न अन्तरों के कारण साधन मूल्य निर्धारण का अध्ययन वस्तु मूल्य निर्धारण से पृथक करना आवश्यक है-
(i) जबकि वस्तु की माँग पृथक होती है, साधन की माँग व्युत्क्रम।
(ii) वस्तु की पूर्ति निर्भर करती है उसकी द्राव्यिक लागत पर किन्तु साधन की पूर्ति निर्भर करती है उसकी अवसर लागत पर।
(iii) विशेषतया श्रम सम्बन्ध में सामाजिक एवं मानवीय घटकों को भी ध्यान रखना होता है।
सिद्धान्त की मान्यताएँ-
इस सिद्धान्त की निम्न मान्यताएँ हैं-
(1) साधन बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।
(2) उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होता है।
(3) उत्पत्ति के सभी साधनों में पूर्ण गतिशील पायी जाती है।
(4) साधन की सभी इकाइयाँ एक रूप हैं एवं वे एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न हैं।
साधन की माँग-
उत्पादन के साधनों की माँग प्रत्यक्ष माँग न होकर व्युत्पन्न माँग होती है। वस्तु की भाँति साधन की माँग प्रत्यक्ष उपभोग के कारण नहीं होती। किसी साधन विशेष की माँग कितनी होगी यह बात उसके द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग पर निर्भर हुआ करता है। एक फर्म साधन विशेष का प्रयोग उस सीमा तक करेगी जहाँ कि साधन की सीमान्त उत्पादकता का मूल्य (VMP) सीमान्त साधन लागत (MFC) के बराबर हो जाता है। यदि VMP > MFC तो फर्म को साधन की अतिरिक्त इकाई को प्रयोग करने में लाभ होगा, क्योंकि अतिरिक्त इकाई की उत्पादकता का मूल्य उसकी लागत से अधिक है। अतः फर्म साधन की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग बढ़ायेगी और तब तक बढ़ाती रहेगी जब तक कि VMP और MFC बराबर न हो जायें। इसके विपरीत यदि VMP> MFC तो फर्म को साधन विशेष की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग करने में हानि होगी। अत: वह अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग घटायेगी और तब तक घटाती रहेगी जब तक कि VMP और MFC बराबर न हो जायें। इस प्रकार कोई फर्म किसी साधन को सीमान्त उत्पादकता के मूल्य से अधिक पुरस्कार नहीं देगी जैसा कि चित्र से स्पष्ट है।
साधन की माँग को प्रभावित करने वाले घटक-
(1) साधनों की सीमान्त उत्पादकता में वृद्धि होने से उसकी माँग कीमत बढ़ेगी।
(2) यदि वस्तु की माँग अधिक है तो साधन की माँग भी अधिक होगी।
(3) अन्य साधनों की कीमत भी साधन विशेष की माँग को प्रभावित करती है, जैसे मशीनों का मूल्य बढ़ने से श्रमिकों की मांग भी बढ़ जायेगी।
साधन की पूर्ति-
साधन की पूर्ति से आशय यह है कि किसी साधन का स्वामी किसी कीमत विशेष पर साधन की कितनी इकाइयाँ बेचने के लिए तैयार है। जिस प्रकार वस्तु की पूर्ति उसकी उत्पादन लागत पर निर्भर करती है ठीक उसी प्रकार साधन की पूर्ति भी लागत पर निर्भर करती है। यहाँ लागत का आशय अवसर लागत या हस्तान्तरण आय से है। एक साधन को अपने वर्तमान व्यवसाय में उतना पुरस्कार अवश्य मिल जाना चाहिए जो कि उसे अन्य सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक व्यवसाय में मिल सकता है अन्यथा वह वर्तमान व्यवसाय को छोड़ देगा। इस प्रकार अवसर लागत साधन की कीमत की न्यूनतम सीमा है।
साधन की पूर्ति को प्रभावित करने वाले घटक-
(1) शिक्षा और प्रशिक्षण की लागत, (2) एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने की लागत, (3) साधन का पुरस्कार, (4) साधन की गतिशीलता, (5) कार्य व आराम के बीच अनुराग की मात्रा आदि।
साधन का मूल्य निर्धारण-साधन बाजार में किसी साधन की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहाँ साधन की माँग उसकी पूर्ति के बराबर हो जाती है। इसे ही वास्तव में साधन की सन्तुलित कीमत कहा जाता है।
चित्र में स्पष्ट है कि DD साधन की माँग रेखा तथा SS साधन की पूर्ति रेखा है। यह रेखाएँ एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटती हैं। इसलिए साधन का मूल्य OP निर्धारित होगा। यदि साधन की कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो साधन की पूर्ति बढ़कर P1K हो जायेगी तथा माँग घटाकर P1J रह जायेगी। स्पष्ट है कि पूर्ति माँग से JK अधिक है इसलिए कीमत घटेगी और यह OP हो जायेगी। इसके विपरीत यदि साधन की कीमत घटकर OP2 हो जाती है तो साधन की माँग बढ़कर P2M हो जायेगी तथा पूर्ति घटकर P2L रह जायेगी। स्पष्ट है कि माँग पूर्ति से LM अधिक है इसलिए कीमत बढ़ेगी और यह OP हो जायेगी। इसलिए साधन का मूल्य OP पर निर्धारित होगा क्योंकि यहाँ माँग और पूर्ति दोनों बराबर हैं।
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