अर्थशास्त्र

लगान के आधुनिक सिद्धान्त | आधुनिक सिद्धान्त का आधार | लगान के उदय होने के कारण | रिकार्डियन व आधुनिक लगान सिद्धान्त में तुलना

लगान के आधुनिक सिद्धान्त | आधुनिक सिद्धान्त का आधार | लगान के उदय होने के कारण | रिकार्डियन व आधुनिक लगान सिद्धान्त में तुलना

लगान के आधुनिक सिद्धान्त-

रिकार्डो व दूसरे प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भूमि को लगान प्राप्त होता है अन्य साधनों व दूसरे को नहीं, क्योंकि सीमितता (स्थिर पूर्ति) का गुण भूमि में नहीं वरन अन्य साधनों में भी देखा जा सकता है। अन्य साधन (श्रम पूँजी आदि) परिस्थितिवश स्थिरता था सीमितता का गुण अर्जित कर लेते हैं और जब ऐसा होता है तब वे भी लगान प्राप्त कर सकते हैं।

आधुनिक सिद्धान्त का आधार : उत्पत्ति साधनों का वर्गीकरण-

आधुनिक लगान सिद्धान्त को समझने के लिए इसके आधार को जानना परम आवश्यक है और यह आधार है वीजर का उत्पत्ति साधनों सम्बन्धी वर्गीकरण। वीजर ने उत्पत्ति साधनों को दो श्रेणियों विभक्त किया है-(1) पूर्णतया विशिष्ट साधन, जो केवल एक प्रयोग में इस्तेमाल किये जा सकते हैं अथवा पूर्णतया गतिशील होते हैं, तथा (ii) पूर्णतया अविशिष्ट साधन, जो कि अन्य प्रयोगों में इस्तेमाल हो सकते हैं अथवा पूर्णतया गतिशील होते हैं।

यथार्थ में कोई साधन न तो पूर्णतया विशिष्ट होता है और न पूर्णतया अविशिष्ट, वह अंशतया विशिष्ट एवं अंशतया अविशिष्ट होता है। इसके अतिरिक्त, विशिष्टता स्थायी भी नहीं है क्योंकि जो साधन आज विशिष्ट प्रतीत होता है वह कल अविशिष्ट बन सकता है। आधुनिक अर्थशास्त्री ‘विशिष्टता’ के लिए भूमि-तत्व’ शब्द का प्रयोग करते हैं कि लगान साधन की विशिष्टता (या भूमि तत्व) के लिए भुगतान है अथवा उसका कारण है। चूंकि एक कारण 100% विशिष्ट नहीं होता, इसलिए उसके पुरस्कार में केवल उस सीमा तक लगान का अंश रहता है जिस सीमा तक वह विशिष्ट है।

लगान के उदय होने के कारण-

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि लगान केवल विशिष्ट या अंशतया विशिष्ट साधनों को मिलता है अर्थात लगान विशिष्टता का परिणाम है। पूर्णतया अविशिष्ट साधन को कोई लगान नहीं मिलता। इस प्रकार, लगान तब उदय होता है, जबकि कोई साधन सीमित या दुर्लभ हो, अर्थात जब उसकी पूर्ति ‘पूर्णतया लोचदार से कम हो। यदि किसी साधन में विशिष्टता का अंश’ है या विशिष्टता’ का अंश’ है या विशिष्टता है या उसकी पूर्ति बेलोच’ है तो उसे लगान उदय होगा। किन्तु पूर्णतया लोचदार पूर्ति वाले साधन (अर्थात एक विशेष कीमत पर कितनी भी इकाइयों की उपलब्धता वाला साधन) को कोई लगान प्राप्त नहीं होगा। एक विशेष कीमत से नीची कीमत पर उस साधन की एक भी इकाई उपलब्ध न होगी अर्थात पूर्ति शून्य होगी। अत: पूर्णतया लोचदार पूर्ति वाले (या पूर्णतया अविशिष्ट) साधन की पूर्ति रेखा एक पड़ी हुई रेखा होती है, अर्थात यह x- अक्ष के समानान्तर जाती हुई रेखा होगी।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण-नीचे के चित्र (अ) में पूर्णतया लोचदार पूर्ति वाले साधन (अर्थात पूर्णतया अविशिष्ट साधनों) की पूर्ति रेखा VS है, जो X – अक्ष के समानान्तर है। यहाँ साधन को कोई लगान प्राप्त नहीं होता, क्योंकि उसकी समस्त आय अवसर लागत के रूप में है, अर्थात साधन को जो भी कीमत दी जाती है वह उसको दूसरे प्रयोग में जाने से रोकने के लिए है। साधन की कुल आय (= कीमत x मात्रा = PQx OQ = )OQPV है। यह कुल आय अवसर लागत है।

चित्र (ब) में पूर्णतया बेलोचदार अर्थात पूर्णतया विशिष्ट साधन की पूर्ति रेखा QS दिखायी गयी है जो Y- अक्ष के समानान्तर रेखा है। स्पष्ट है कि साधन की पूर्ति स्थिर है और वह एक ही प्रयोग में आ सकता है। माँग रेखा DN उसको P पर काटती है। अत: साधन की प्रति इकाई कीमत PQ यदि इससे नीचे कीमत दी जाये, तो साधन दूसरे व्यवसाय में नहीं जायेगा। अत: अवसर लागत शून्य होगी। उसकी कुल आय (PQ x OQ = )PQOV लगान के रूप में है।

चित्र (स) में मध्यम श्रेणी के साधन की पूर्ति रेखा दिखायी गयी है। यदि साधन अंशतया बेलोचदार है और अंशतया लोचदार (अर्थात अंशतया विशिष्ट है एवं अंशतया अविशिष्ट ) तो पूर्ति रेखा बाएँ से दाएँ को चलेगी। पूर्ति रेखा TS और माँग रेखा DD है। अतः साधन कीमत PQ है, जो कि सामान्य कीमत है। इस कीमत पर प्रयोग की जाने वाली साधन मात्रा 0Q है। साधन की कुल आय (OQx PQ =) QPVO है। इस आय का केवल एक भाग ही लगान के रूप में होगा। पूर्ति रेखा के विभिन्न बिन्दु (E,F,G) विभिन्न साधन मात्राओं (OQ1 ,002, OQ3) के लिए उस न्यूनतम कीमतों (Q1E, Q2F, Q3G) को सूचित करते हैं जिन पर कि सम्बन्धित साधन-मात्राएँ उद्योग में बने रहने को तैयार हैं। इनसे नीची कीमत पर सम्बन्धित साधन मात्रा कार्य नहीं करेंगी। अत: पूर्ति रेखा के विभिन्न बिन्दु सम्बन्धित साधन मात्राओं की अवसर लागत के सूचक हैं, जैसे-0Q मात्रा की कुल अवसर लागत बराबर है OQPT के। कुल आय बराबर है OQPV के। अतः लगान बराबर है TPV के।

रिकार्डों के लगान सिद्धान्त से तुलना-

रिकार्डियन व आधुनिक लगान सिद्धान्त निम्नांकित तालिका में दिखायी गयी है-

रिकार्डियन सिद्धान्त

आधुनिक सिद्धान्त

लगान भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के लिए भुगतान है।

लगान किसी साधन इकाई को न्यूनतम पूर्ति कीमत के ऊपर प्राप्त अतिरेक है।

यह केवल भूमि को प्राप्त होता हैl

यह प्रत्येक साधन को प्राप्त हो सकता है।

यह सिद्धान्त एक विशेष सिद्धान्त है।

यह सिद्धान्त एक सामान्य सिद्धान्त है।

लगान एक बचत है द्राव्यिक लागत पर।

लगान एक बचत है अवसर लागत पर।

लगान भूमियों की उर्वरता या स्थिति सम्बन्धी अन्तर के कारण उत्पन्न होता है।

लगान साधन की विशिष्टता का परिणाम है।

लगान सीमान्त भूमि की लगात की तुलना में मापा जाता है। श्रेष्ठ भूमियों की लागत और सीमान्त भूमि की लागत  (कीमत) में अन्तर ही लगान का माप है।

साधन की वास्तविक कीमत में से साधन की अवसर लागत को घटाने से लागत की  मात्रा ज्ञात हो जाती है।

लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता वरन स्वयं ही मूल्य से प्रभावित होता है।

लगान मूल्य को प्रभावित करता है।

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Pankaja Singh

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