अर्थशास्त्र

मुद्रा परिमाण सिद्धान्त का कैम्ब्रिज समीकरण | कैम्ब्रिज समीकरण | कैम्ब्रिज समीकरण की आलोचना

मुद्रा परिमाण सिद्धान्त का कैम्ब्रिज समीकरण | कैम्ब्रिज समीकरण | कैम्ब्रिज समीकरण की आलोचना | प्रो० पीगू का समीकरण | प्रो0 मार्शल द्वारा प्रस्तुत समीकरण | कीन्स का समीकरण | प्रो० राबर्टसन का समीकरण

मुद्रा परिमाण सिद्धान्त का कैम्ब्रिज समीकरण

मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त में मार्शल, पीगू, राबर्टसन तथा कीन्स ने अनेक सुधार प्रस्तुत किये हैं। इन अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत की गयी व्याख्या को कैम्ब्रिज समीकरण कहा जाता है। चूंकि ये सभी अर्थशास्त्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सम्बन्धित थे, इसलिए इसे ‘कैम्ब्रिज समीकरण’ भी कहा जाने लगा। कैम्ब्रिज समीकरण में मुद्रा की माँग का अर्थ नकद शेष की माँग से लगाया जाता है। नकल कोष की यह माँग कुल वास्तविक राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित होती है, किन्तु समपूर्ण आय का उपभोग एक साथ नहीं किया जाता है। इसलिए नकद शेष की माँग सम्पूर्ण वास्तविक आय के एक अंश के बराबर होती है। अतः मुद्रा की माँग से अभिप्राय वास्तविक आय के उस अनुपात से है, जिसे मुद्रा के रूप में नकद रखा जाता है। कैम्ब्रिज समीकरण में इसे k के द्वारा व्यक्त किया जाता है।

कैम्ब्रिज समीकरण

(Cambridge Equation)-

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा नगद शेष के आधार पर भिन्न-भिन्न समीकरण दिये गये हैं।

प्रो० पीगू का समीकरण-

प्रो० पीगू ने इस सिद्धान्त को निम्न समीकरणों द्वारा व्यक्त किया है-

P = KR/M

समीकरण में-

P= मुद्रा की एक इकाई का मूल्य

K = वास्तविक आय का वह अनुपात, जो मुद्रा के रूप में रखा जाता है।

R= देश की कुल वास्तविक आय

M= नकद. मुद्रा का परिमाण

उपर्युक्त समीकरण में बैंक मुद्रा के महत्व को ध्यान में नहीं रखा गया है। इसलिए स्वयं पीगू ने उक्त समीकरण को संशोधित करके निम्न समीकरण को प्रस्तुत किया है-

P = KR/M (C+ h (1-C)

 C = नकद कोषों का वह भाग है, जो जनता अपने पास रखती है।

h= नकद कोषों का वह भाग, जो बैंक में निक्षेप के रूप में रखा जाता है।

प्रो0 मार्शल द्वारा प्रस्तुत समीकरण

M=KY +K1A

प्रो० मार्शल द्वारा दिये गये उपरोक्त समीकरण के दो भाग हैं- आय भाग (KY) व सम्पत्ति भाग (K1A)। बाद में मार्शल के समर्थकों ने सम्पत्ति भाग (K1A) को अनावश्यक समझकर हटा दिया और समीकरण के निम्नलिखित रूप से स्वीकार किया गया-

M=KY

किसी भी वर्ष मौद्रिक आय उस वर्ष में कुल वास्तविक उत्पादन (O) तथा कीमत स्तर (P) का गुणनफल होती है। अतः

Y-PO

चूँकि M=KPO तथा M=KY का एक ही अर्थ है, अतः

P=M/K

यहाँ, P= सामान्य मूल्य स्तर

तथा P= K/M

यहाँ, P= मुद्रा की एक इकाई का मूल्य

कीन्स का समीकरण

प्रो० कीन्स ने पीगू के समीकरण में कुछ संशोधन किये। उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया समीकरण निम्नलिखित है-

n=p (K=rk1)

समीकरण में,

n = चलन में नकद की कुल मात्रा

P= सामान्य कीमत स्तर

K= उपभोग की वे इकाइयों, जिन्हें नकद क्रय किया जाता है

R= बैंकों द्वारा अपनी जमा राशि के लिए रखी गयी नकद राशि का अनुपात

K= उपभोग की इकाइयाँ की वह मात्रा जो साख मुद्रा से क्रय की जाती है। कीन्स के इस समीकरण को परिवर्तित रूप में इस तरह से रखा जा सकता है।

P n/K+rk1

प्रो० राबर्टसन का समीकरण-

कैम्ब्रिज सम्प्रदाय के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० रॉबर्टसन ने निम्नलिखित समीकरण दिया है-

M=PKT

इसी समीकरण में-

M= मुद्रा की पूर्ति

P= मूल्य स्तर

T= एक वर्ष के समय के अन्तर्गत क्रय की जाने वाली वस्तुयें एवं सेवायें

K=T के उस भाग को प्रतिशत के रूप में इंगित करता है, जिसे लोग नकदी के रूप में संचित करना चाहते हैं।

उपरोक्त के आधार पर हम निम्नलिखित समीकरण प्राप्त करते हैं-

P = M/MR

प्रो० राबर्ससन का समीकरण ही अधिक मान्य समझा जाता है और कैम्ब्रिज समीकरण के रूप में इसी को उद्धृत किया जाता है।

कैम्ब्रिज समीकरण की आलोचना

इस समीकरण की निम्नलिखित आलोचनायें की गयी हैं-

(1) यह सिद्धान्त अर्थव्यवसी में प्रावैगिक प्रवृत्ति की जटिल समस्याओं की व्याख्या करने में असमर्थ है।

(2) यह समीकरण केवल उपभोग वस्तुओं से सम्बन्धित मुद्रा की माँग पर ध्यान देता है, जबकि वास्तविक जीवन में मुद्रा की माँग अन्य कारणों से भी प्रभावित होती है।

(3) बैंकों की जमा राशियों (चालू जमा बचत जमा तथा स्थायी जमा) के अनुपात में परिवर्तन होता रहता है, लेकिन कैम्ब्रिज समीकरण में इस परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।

(4) इस समीकरण में K तथा T को स्थिर मान लिया गया है, जो कि अनुचित है।

(5) वस्तुओं व सेवाओं के रूप में उत्पादित कुल आय का पता लगाना कठिन होता है।

(6) इसमें मुद्रा की उस माँग को कोई महत्व नहीं दिया गया है, जो सट्टेबाजी के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

(7) इसमें मुद्रा की माँग को लोच की इकाई के बराबर माना गया है, जो कि केवल स्थैतिक स्थिति में सम्भव हो सकता है।

(8) कैम्ब्रिज समीकरण में आय स्तर को सम्मिलित किया गया है, किन्तु उत्पादकता मितव्ययिता तथा तरलता पसन्दगी जैसे तत्वों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।

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Pankaja Singh

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