अर्थशास्त्र

लगान की परिभाषा | लगान के रूप | कुल लगान के अंग | आर्थिक लगान एवं ठेका लगान में अन्तर

लगान की परिभाषा | लगान के रूप | कुल लगान के अंग | आर्थिक लगान एवं ठेका लगान में अन्तर

लगान की परिभाषा-

लगान शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में होता है- (अ) कुल लगान या कुल किराया, (ब) ठेका लगान एवं (स) आर्थिक लगान

(अ) कुल लगान-

दैनिक बोलचाल में, जिसे किराया या लगान कहा जाता है उसे अर्थशास्त्र में ‘कुल लगान’ या ‘कुल किराया’ कहते हैं। कुल लगान या कुल किराया वह धनराशि है, जो कि एक कृषक भूमि के स्वामी को भूमि के प्रयोग के बदले में समय-समय पर देता रहता है।

कुल लगान के अंग- कुल लगान में, जोकि एक कृषक अपने भूमिपति को अदा करता है, निम्नांकित के लिए भुगतान शामिल होते हैं-

(i) भूमि की उन्नति पर अर्थात पर मकान, झोंपड़ी, कुआँ, नालियाँ, बाड़ आदि बनवाने में व्यय की गयी धनराशि पर ब्याज;

(ii) भूमि के सुधार और उसकी उन्नति के सम्बन्ध में भूमिपति जो जोखिम उठाता है उसके लिए पुरस्कार में की गयी मेहनत का पारिश्रमिक;

(iii) भूमि की देखभाल व प्रबन्ध के लिए पुरस्कार;

(iv) केवल भूमि का प्रयोग करने के लिए भुगतान अर्थात आर्थिक लगान; एवं

(v) भूमि पर पूँजी लगाने में भूमिपति ने जो जोखिम उठायी है उसके बदले में लाभ।

(ब) ठेका लगान से आशय-

ठेका लगान से अभिप्राय उस राशि का है जो एक कृषक किसी भूमि पर खेती करने के बदले, अथवा अन्य व्यक्ति किसी भूमि के प्रयोग के बदलेमैं भूमि के स्वामी को समय-समय पर देने का करार या ठेका करता है।

निर्धारण- यदि किसी देश में भूमि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है जबकि भूमि के लिए लोगों की माँग उतनी नहीं है, तो भूमिपतियों में भूमि को लगान पर उठाने और कृषकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा पायी जायेगी। फलस्वरूप संविदा लगान  (या ठेका लगान) आर्थिक लगान से कम हो सकता है। यदि देश में उपलब्ध भूमि की मात्रा कम है और उसके लिए लोगों की आवश्यकता या माँग अधिक, तो भूमिपतियों में प्रतियोगिता उतनी नहीं होगी, जितनी कि भूमि को लगान पर लेने वालों में। ये लोग भूमि को पाने के लिए एक-दूसरे से बढ़कर लगान देने को तैयार हो जायेंगे और इस प्रकार ठेका लगान आर्थिक लगान से ऊँचा तय होगा। ऐसी दशा में अत्यधिक लगान की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

(स) आर्थिक लगान या लगान-

आर्थिक लगान कुल लगान का एक अंग है। य केवल भूमि के प्रयोग हेतु दिया गया भुगतान है। इसमें अन्य तत्व शामिल नहीं होते। रिकार्डो के अनुसार, “लगान भूमि की मौलिक और अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए भुगतान है।”

मार्शल ने लगान की परिभाषा सामाजिक दृष्टिकोण से दी है और बताया है कि “प्रकृति के निःशुल्क उपहारों से प्राप्त आय को लगान कहते हैं।” इस प्रकार, प्रारम्भिक अर्थशास्त्रियों ने लगान का सम्बन्ध भूमि से जोड़ा है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री लगान सम्बन्धी विचार की उत्पत्ति के सभी साधनों पर लागू करते हैं। उनका कहना है कि भूमि तत्व या भूमि का विशिष्ट गुण (सीमितता या स्थिरता) भूमि में नहीं, वरन श्रम, पूँजी, संगठन एवं साहस में भी पाया जाता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान एक साधन को वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिए न्यूनतम पूर्ति मूल्य अर्थात अवसर लागत के ऊपर एक आधिक्य है।

आर्थिक लगान एवं ठेका लगान में अन्तर-

आर्थिक एवं ठेका लगान के अन्तर को निम्नलिखित तालिका के द्वारा अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।

आर्थिक लगान

ठेका लगान

1. आर्थिक लगान एवं पूर्व सीमान्त और सीमान्त भूमियों की उपजों के अन्तर के बराबर होता है।

 

1. ठेका लगान उतने के बराबर होता है जो कि भूमिपति और किसानों के बीच समझौते में तय हो जाये।

2. यह सीमान्त भूमि की उपज से निर्धारित होता है।

2. यह भूमि की माँग और पूर्ति की शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है।

3. यह सीमान्त भूमि की उपज के बढ़ने-घटने के साथ-साथ घटता-बढ़ता है।

3. यह समझौते के अनुसार, घटता-बढ़ता है।

4. इसका पहले से अनुमान लगान सम्भव नहीं है।

4. यह पूर्व निश्चित होता है।

5. इसमें किसान का शोषण नहीं हो सकता है।

5. इसमें हो सकता है।

6. यह एक प्राकृतिक दर है।

6. यह आर्थिक लगान के बराबर, कम या अधिक हो सकती है।

7. यह एक सैद्धान्तिक विचार है।

7. यह एक व्यावहारिक विचार है।

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Pankaja Singh

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