विक्रय प्रबंधन

आपत्ति निवारण विधियाँ | आपत्तियों के निवारण में ध्यान रखने योग्य बातें

आपत्ति निवारण विधियाँ | आपत्तियों के निवारण में ध्यान रखने योग्य बातें | Objection Redressal Methods in Hindi | Points to be kept in mind in redressal of objections in Hindi

आपत्ति निवारण विधियाँ

ग्राहक अनेक प्रकार से अपनी आपत्तियाँ प्रकट करते हैं। इन आपत्तियों का निवारण भी अनेक विधियों से किया जा सकता है जो निम्नलिखित हैं-

  1. अप्रत्यक्ष ‘ना’ या ‘हाँ’, किन्तु विधि-‌ यह ग्राहकों की आपत्तियों का उत्तर देने या उनका निवारण करने की एक प्रचलित विधि है। जिसमें विक्रयकर्त्ता ग्राहक की आपत्ति को सही मानता है किन्तु उसे अपनी बात बताकर प्रभावित भी करना चाहता है। इस प्रकार विक्रयकर्त्ता ग्राहक की बात को ‘किन्तु’ ‘परन्तु’ शब्दों के साथ स्वीकार करता है।
  2. क्षतिपूर्ति या उत्कृष्ट लक्षण विधि- इस विधि के द्वारा जब ग्राहक की आपत्ति का निवारण किया जाता है तो विक्रयकर्ता सर्वप्रथम ग्राहक की आपत्ति को उचित मानता है। तत्पश्चात् वह अपनी वस्तु के विशिष्ट लाभों या गुणों को बताकर ग्राहक को यह आश्वस्त करता है कि उसकी इस आपत्ति की क्षतिपूर्ति उसके अतिरिक्त लामों या गुणों से हो जायेगी।
  3. अन्य दृष्टिकोण विधि- कभी-कभी विक्रयकर्ता ग्राहकों की आपत्तियों को दूर करने के लिए अन्य दृष्टिकोण विधि को अपनाता है। इस विधि के अन्तर्गत वह ग्राहकों को वस्तु के सम्बन्ध में अन्य दृष्टिकोण से विचार करने का आग्रह करता है। अतः वह ग्राहकों को उस अच्छे दृष्टिकोण से वस्तु का परीक्षण करने की सलाह दे सकता है। ऐसा करके वह ग्राहक की आपत्ति को दूर कर सकता है।
  4. प्रश्न या ‘क्यों’ विधि- कभी-कभी कुछ विक्रयकर्ता आपत्तियों का उत्तर देने के लिए ग्राहक से एक के बाद एक प्रश्न क्रमशः पूछते चले जाते हैं और उन्हीं से आपत्ति का उत्तर प्राप्त करना चाहते हैं। इस प्रकार विक्रयकर्त्ता ग्राहक की स्थिति में आ जाता है और ग्राहक विक्रयकर्त्ता की स्थिति में आ जाता है।
  5. वर्णात्मक या कहानी विधि- कुछ विक्रयकर्ता इस विधि का उपयोग करके ग्राहकों की आपत्तियों को दूर करते हैं। इस विधि में विक्रयकर्त्ता सर्वप्रथम ग्राहक की आपत्तियों को सुनता है। तत्पश्चात् उन आपत्तियों का उत्तर देने के लिए किसी सच्ची, मनगढ़न्त उदाहरण, घटना या कहानी को सुनाता है। ग्राहक उस कहानी या घटना को सुनकर स्वयं अपनी आपत्ति का उत्तर प्राप्त कर लेता है।
  6. प्रत्यक्ष ‘ना’ या प्रत्यक्ष अस्वीकार विधि- सर्वाधिक खतरनाक प्रत्यक्ष ‘ना’. विधि है। इस विधि का उपयोग करने पर विक्रयकर्त्ता ग्राहक की आपत्ति को सीधे ही बिना किसी लाग-लपेट के अस्वीकार कर देता है। साथ ही वह ग्राहक को ऐसी आपत्ति प्रकट करने के लिए हतोत्साहित भी करता है। दूसरे शब्दों में, इस विधि के द्वारा जब विक्रयकर्त्ता ग्राहक की आपत्ति को सुनता है तो वह उसका तत्काल खण्डन कर देता है तथा ग्राहकों को प्रत्यक्ष रूप से कह देता है कि “आप गलत हैं”।
  7. उपेक्षा विधि- कुछ विक्रयकर्त्ता ग्राहकों की आपत्तियों को एक कान से सुनते हैं, उस पर मुस्कुराते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। कुछ विक्रयकर्त्ता मुस्कुराते भी नहीं हैं, बल्कि आपत्ति को सुनी अनसुनी कर देते हैं। इस प्रकार इस विधि में विक्रयकर्त्ता ग्राहक की आपत्ति पर न तो ध्यान देता है और न ही अपनी प्रतिक्रिया ही व्यक्त करता है।

आपत्तियों के निवारण में ध्यान रखने योग्य बातें

ग्राहकों की आपत्तियों का सफलतापूर्वक निवारण करने के लिए विक्रयकर्त्ता को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) आपत्ति के प्रति सही दृष्टिकोण रखना चाहिए।

(2) आपत्तियों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए।

(3) वास्तविक समस्या को जानने की कोशिश करनी चाहिए।

(4) उत्तर देने का समय निर्धारित करना चाहिए।

(5) बात हमेशा संक्षेप में करनी चाहिए।

(6) उत्तर आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिए।

(7) जब विक्रयकर्त्ता ग्राहकों की आपत्तियों का उत्तर देता है तो उसे ग्राहक को  वचनबद्ध भी करते जाना चाहिए।

(8) विक्रयकर्ता को तर्कों से हमेशा दूर रहना चाहिए।

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Pankaja Singh

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