विक्रय प्रबंधन

विक्रय संवर्द्धन की विधियाँ | विक्रय संवर्द्धन के उपकरण | उपभोक्ता संवर्द्धन की विधियाँ | व्यापार संवर्द्धन की विधियों का अर्थ | व्यापार संवर्द्धन की विधियाँ | उपभोक्ता-व्यापारी संयुक्त संवर्द्धन विधियाँ

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विक्रय संवर्द्धन की विधियाँ अथवा विक्रय संवर्द्धन के उपकरण

विक्रय संवर्द्धन की विधियों को मुख्य रूप से निम्न तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है:

  1. उपभोक्ता अथवा ग्राहक संवर्द्धन विधियाँ

उपभोक्ता संवर्द्धन विधियों का अर्थ- उपभोक्ता संवर्द्धन विधियों से आशय विक्रय संवर्द्धन की उन समस्त विधियों से है जो प्रत्यक्ष रूप में उपभोक्ताओं से सम्बन्धित रहती हैं। ये विधियाँ प्रत्यक्ष रूप में उपभोक्ताओं को माल क्रय करने के लिए प्रेरित करती हैं। उपभोक्ता संवर्द्धन सम्बन्धी समस्त विधियों को उपभोक्ताओं के निवास स्थान पर उनके कार्यालय पर अथवा मध्यस्थों (फुटकर व्यापारी अथवा थोक व्यापारी) को दुकानों पर क्रियान्वित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए नमूने के पैकेट, कूपन आदि उनके घर पर भेजे जा सकते हैं।

उपभोक्ता संवर्द्धन की विधियाँ

उपरोक्ता संवर्द्धन की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं जिनका उपयोग परिस्थितियों एवं  सुविधाओं के अनुसार किया जा सकता है–

(1) विक्रयशाला की साज-सज्जा- कवियशाला में सर्वप्रथम एक दर्शन के रूप में प्रवेश करता है और इसके अन्दर जब वह किसी वस्तु की ओर आकर्षित होता है तो कम करता है। अतः विक्रयशाला की साज-सज्जा उसका ध्यानाकर्षण करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

(2) कूपन- यह उपभोक्ता संवर्द्धन की एक महत्वपूर्ण विधि है जिसके अन्तर्गत वस्तु के पैकिंग में एक कूपन डाल दिया जाता है और उपभोक्ता जब उक्त वस्तु का पैकिंग खोलता है तो उसमें से कूपन निकलता है। इस कूपन के बदलने में ग्राहक को या तो कुछ नकद राशि प्राप्त हो जाती है अथवा उसमें लिखित वस्तु प्राप्त हो जाती है।

(3) मेले तथा प्रदर्शनियाँ- मेले और प्रदर्शिनियों में वस्तुओं को विशेष रूप से सजाकर प्रदर्शित किया जाता है। प्रदर्शनियों में एक भाग में एक ही प्रकार की अनेक विक्रयशालाएं होती हैं, अतः ग्राहक वस्तुओं की विभिन्न किस्मों का तुलनात्मक अध्ययन आसानी से कर लेता है। मेले व प्रदर्शनियाँ स्थानीय, राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की भी होती हैं। व्यापार के विकास के लिए इन प्रदर्शिनियों का अपूर्व महत्व है। भारत ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शिनियों में भाग लेकर अपने विदेशी व्यापार में वृद्धि की है।

(4) नमूनों का मुफ्त वितरण- प्रायः व्यापारी अपनी वस्तुओं के नमूने का मुफ्त वितरण करके भी जनता में वस्तु का प्रचार करते हैं। इस प्रकार का वितरण प्रायः उपभोक्ता वस्तुओं को होता है। नमूना कम मूल्य का पर्याप्त मात्रा में उचित पैकिंग में तथा विक्रय साहित्य संलग्न कर दिया जाता है। इसके प्रयोग से संतुष्ट हो जाने पर ग्राहक आदेश देकर माल खरीद लेता है।

(5) प्रीमियम– “प्रीमियम किसी वस्तु या सेवा को क्रय करने को प्रोत्साहित करने हेतु प्रदान की जाने वाली कोई व्यापारिक वस्तु अथवा किसी मूल्य की वस्तु है।” प्रीमियम प्रायः निःशुल्क ही दिया जाता है। परन्तु रियायती दर पर भी दिया जाता है। उदाहरण के लिए, डेट के दो पैकिट एक साथ क्रय करने पर 6 रुपये की प्लास्टिक की टोकरी केवल 3रु. 75 पैसे में ही नाम मात्र के मूल्य पर दी जाती है।

  1. व्यापारी अथवा व्यापार संवर्द्धन विधियाँ

व्यापार संवर्द्धन की विधियों का अर्थ

जब उत्पाद का विक्रय फुटकर व्यापारी तथा थोक व्यापारी के माध्यम से किया जाता है, तब विक्रय संवर्द्धन की किसी भी योजना को तब तक सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं किया जा सकता जब तक कि इन लोगों का पूर्ण सहयोग प्राप्त न हो। अतएव व्यापारी संवर्द्धन की विधि से आशय विक्रय वृद्धि की किसी भी ऐसी योजना से है जो मध्यस्थों (फुटकर व्यापारी तथा थोक व्यापारी आदि) को अधिकाधिक माल का क्रय करने एवं उसे विक्रय करने के लिए प्रेरित करती है। स्पष्ट है जब तक मध्यस्थों को विक्रय संवर्द्धन हेतु किसी प्रकार का प्रलोभन अथवा प्रोत्साहन नहीं दिया जाता, तब तक उनका सहयोग प्राप्त करना असम्भव नहीं तो कठिन तो अवश्य ही होगा। व्यापारी-संवर्द्धन की विधियों द्वारा मध्यस्थों को विक्रय की जाने वाली वस्तुओं का अपने यहाँ अधिकतम भण्डार रखने तथा उनका विक्रय करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

व्यापार अथवा व्यापार संवर्द्धन की विधियाँ

निर्माता अथवा उत्पादक अपने माल का विक्रय करने के लिए विभिन्न व्यापारी संवर्द्धन विधियों का उपयोग करते हैं। इनमें से प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) प्रदर्शन तथा विज्ञापन भत्ता- थोक व्यापारी तथा फुटकर व्यापारी दोनों की हार्दिक इच्छा माल का अधिकाधिक विक्रय करने की होती है क्योंकि जितनी अधिक बिक्री होगी, उन्हें उतना ही अधिक लाभ होगा। इसके लिए वे विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन अथवा विज्ञापन आदि की योजनाएँ क्रियान्वित करने के लिए तत्पर रहते हैं किन्तु उन पर होने वाले अत्यधिक व्यय के भय से वे ऐसा नहीं कर पाते किन्तु यदि उन्हें प्रदर्शन तथा विज्ञापन करने के लिए कुछ भत्ता दिया जाय तो वे प्रदर्शन तथा विज्ञापन के कार्य में निश्चित रूप से रुचि लेंगे। इसमें विक्रय वृद्धि होती है। विक्रय वृद्धि होने से मध्यस्थों को भी लाभ होता है। इसी प्रकार से विक्रय-संवर्द्धन की किसी भी योजना का निर्माण करते समय थोक व्यापारियों एवं फुटकर व्यापारियों को प्रदर्शन तथा विज्ञापन भत्ता देने का पहले ही प्रावधान कर लिया जाता है।

(2) प्रशिक्षण- प्रशिक्षण का व्यापार-संवर्द्धन विधियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। मध्यस्थों एवं विक्रेताओं की वस्तु विशेष के विक्रय के सम्बन्ध में सामान्य तथा विशिष्ट प्रशिक्षण निर्माता द्वारा दिया जाता है। सामान्य प्रशिक्षण के अन्तर्गत उसे उस वस्तु विशेष के विषय में विशिष्ट एवं तकनीकी जानकारी दी जानी चाहिए। अप्रशिक्षित विक्रेता चाहे वह विक्रय-कला या विक्रेता हो अथवा प्रवासी विक्रेता, अपने ग्राहकों की जिज्ञासा कभी शांत नहीं कर सकता।

(3) मध्यस्थों एवं विक्रेताओं के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा- अनुभवी निर्माता मध्यस्थों तथा विक्रेताओं के मध्य प्रायः विक्रय वृद्धि के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास करते हैं। उनके लिए विक्रय अभ्यंश आवण्टित कर दिया जाता है। इससे अधिक राशि का विक्रय करने पर सर्वाधिक विक्रय करने वाले विक्रेता को पुरस्कृत किया जाता है। इस प्रतियोगिता के फलस्वरूप विक्रय वृद्धि होती है, अतः इसके उपलक्ष में विक्रेता के पारिश्रमिक में स्थायी वृद्धि नहीं की जा सकती है। उसे बोनस अथवा अन्य किसी प्रकार पुरस्कृत किया जाता है।

(4) सम्मेलन– निर्माता कभी-कभी अपने व्यापारियों के क्षेत्रीय सम्मेलन भी आयोजित करते हैं जिनमें विक्रय व वितरण सम्बन्धी समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता है। वितरक अपनी समस्याएँ निर्माता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं और आपसी विचार-विमर्श द्वारा इनका समाधान खोजा जाता है। इन सम्मेलनों में विक्रय-नीति का स्पष्टीकरण भी कर दिया जाता है। यदि किसी प्रकार का कोई परिवर्तन किया जाता है तो सभी व्यापारियों को इससे अवगत करा दिया जाता है। ऐसे सम्मेलनों के आयोजन में आपसी सहयोग की भावना को बल मिलता है जो विक्रय-संवर्द्धन के लिए सहायक सिद्ध होता है।

  1. उपभोक्ता-व्यापारी संयुक्त संवर्द्धन विधियाँ

आधुनिक निर्माता अथवा उत्पादक केवल किसी एक विक्रय-संवर्द्धन विधि पर आश्रित न रहकर विक्रय-संवर्द्धन की दोनों ही विधियों का संयुक्त रूप में उपयोग करते हैं। इसे उपभोक्ता-व्यापारी संयुक्त संवर्द्धन विधि कहते हैं। वास्तव में यदि देखा जाय तो उपभोक्ता संवर्द्धन विधियाँ तथा व्यापार संवर्द्धन विधियाँ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तथा एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि उपभोक्ता को उपभोक्ता-संवर्द्धन विधियों का उपयोग करके किसी वस्तु को क्रय करने के लिए प्रोत्साहित कर लिया जाय तो भी यह आवश्यक नहीं है कि व्यापारी उसे अपने यहाँ स्टॉक में रखने के लिए तत्पर हो। दूसरी ओर, यदि व्यापारी-संवर्द्धन विधियों द्वारा थोक एवं फुटकर व्यापारियों को किसी वस्तु को क्रय करके स्टॉक में रखने के लिए प्रोत्साहित कर लिया जाय तो यह भी आवश्यक नहीं कि उपभोक्ता उसे क्रय करने के लिए तैयार हो। अतएव स्पष्ट है कि वांछित परिणामों को प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता-संवर्द्धन तथा व्यापारी-संवर्द्धन विधियों के सम्बन्ध से ही विक्रय-संवर्द्धन का कार्य संतोषजनक ढंग से सम्पन्न किया जा सकता है।

विक्रय प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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