प्रशिक्षण योजना के सिद्धांत | अच्छी पारिश्रमिक योजना के गुण

प्रशिक्षण योजना के सिद्धांत | अच्छी पारिश्रमिक योजना के गुण | Principles of Training Planning in Hindi | Qualities of a good remuneration plan in Hindi

प्रशिक्षण योजना के सिद्धांत

प्रत्येक संस्था को अपने विक्रयकर्त्ताओं के प्रशिक्षण के लिए एक योजना बना लेनी चाहिए। निश्चित योजना के अनुरूप प्रशिक्षण देने से कर्मचारियों को शीघ्र एवं क्रमबद्ध रूप से प्रशिक्षित किया जा सकता है। सामान्यतः विक्रयकर्ताओं के प्रशिक्षण की योजना बनाते समय निम्न बातों या सिद्धांतों का ध्यान रखा जाना चाहिए-

  1. उद्देश्य का सिद्धांत- प्रशिक्षण की योजना बनाते समय सर्वप्रथम यह निर्धारित कर लेना चाहिए कि विक्रयकर्त्ताओं को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य क्या हैं? क्या विक्रयकर्ताओं को केवल विक्रयकला के सामान्य सिद्धांतों से अवगत करवाना है या वस्तु के तकनीकी गुणों से अवगत कराना है? इसी प्रकार के अन्य प्रश्नों को ध्यान में रखकर प्रशिक्षण के उद्देश्यों को निर्धारित करना चाहिए। प्रशिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण करने के उपरांत ही प्रशिक्षण विधियों तथा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की विषयवस्तु को तय किया जा सकता है। इसी प्रकार प्रशिक्षण की व्यवस्था करते समय भी इन उद्देश्यों को ध्यान में रखा जा सकता है।

हेगार्टी के अनुसार प्रशिक्षण के उद्देश्य निर्धारित करते समय उन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है-(i) प्रबंधकों के उद्देश्य (ii) प्रशिक्षणार्थियों के उद्देश्य तथा (iii) प्रशिक्षण विभाग के उद्देश्य प्रशिक्षण के उद्देश्य को तीन भागों में बांट देने से तीनों पक्षकारों को प्रशिक्षण के उद्देश्यों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।

  1. विषय सामग्री या विषयवस्तु का सिद्धांत- प्रशिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही प्रशिक्षण की विषयवस्तु को निर्धारित किया जाता है। प्रशिक्षण में किन-किन बातों के सम्बन्ध में जानकारी दी जाए, यह बात कार्य की प्रकृति पर निर्भर करती है। अतएव प्रशिक्षण की विषयवस्तु निर्धारित करते समय कार्य विवरण को भी ध्यान में रखना परमावश्यक है। सामान्यतः प्रशिक्षण में विक्रयकर्त्ता के चातुर्य, ज्ञान, आचरण पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
  2. प्रशिक्षण स्थान का सिद्धांत- प्रशिक्षण की योजना का निर्माण करते समय प्रशिक्षण के स्थान का भी अवश्य निर्धारण कर लेना चाहिए। क्या प्रशिक्षण संस्था के मुख्यालय पर दिया जायेगा या क्षेत्रीय कार्यालयों पर? इसके अतिरिक्त क्या वैयक्तिक रूप से प्रशिक्षण दिया जायेगा या सामूहिक रूप से, इन सब प्रश्नों को हल किया जाना आवश्यक है। इन सब प्रश्नों को हल करने के बाद ही प्रशिक्षण की पद्धतियों एवं अन्य बातों को तय किया जा सकता है।
  3. प्रशिक्षण क्षेत्र का सिद्धांत- प्रशिक्षण का यह सिद्धांत यह कहता है कि प्रशिक्षण का क्षेत्र विस्तृत होना चाहिए। ऐसा करने से सभी विक्रयकर्ताओं को समुचित प्रशिक्षण दिया जा सकेगा। उसमें सभी बातों का भी समावेश किया जा सकेगा।
  4. विविधता का सिद्धांत- प्रशिक्षण योजना ऐसी बनानी चाहिए जिससे विविध प्रकार की बातों की जानकारी प्रदान की जा सके।
  5. व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत- यह सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति व्यक्ति से भिन्न होता है। अतः प्रशिक्षण की व्यवस्था करते समय व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिए तथा उनका समायोजन करना चाहिए।
  6. अभ्यास का सिद्धांत- यह सिद्धांत यह कहता है कि प्रभावशाली ढंग से प्रशिक्षण देने के लिए अभ्यास भी परमावश्यक है। अतः प्रशिक्षण के दौरान सिखाई गई बातों का निरंतर अभ्यास करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

अच्छी पारिश्रमिक योजना के गुण

सामान्यतः एक अच्छी पारिश्रमिक योजना में निम्न तत्वों या गुणों का समावेश करना चाहिए-

  1. आकर्षक- एक अच्छी पारिश्रमिक योजना में आकर्षण का गुण पाया जाना चाहिए। एक विद्वान ने ठीक ही लिखा है कि “पारिश्रमिक योजना ऐसी होनी चाहिए जो विक्रयकर्ताओं को आकर्षित कर सके तथा उन्हें संस्था में रोक सके”। वास्तव में पारिश्रमिक योजना ऐसी होनी चाहिए जो संस्था के लिए उपयुक्त प्रकार के विक्रयकर्ताओं को आकर्षित कर सके तथा उन्हें संस्था से जुड़े रहने के लिए प्रेरित कर सके।
  2. परामर्श- अच्छी पारिश्रमिक योजना परामर्श से ही तैयार हो सकती है। अतः पारिश्रमिक योजना बनाने से पूर्व विक्रयकर्ताओं, उनके पर्यवेक्षकों, उच्च प्रबंधकों आदि से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। आपसी परामर्श से तैयार की गई पारिश्रमिक विधि को सभी स्वेच्छा से स्वीकार कर सकेंगे तथा विक्रयकर्ताओं की कुशलता में अपेक्षित वृद्धि की जा सकेगी।
  3. न्यायपूर्ण– अच्छी पारिश्रमिक योजना न्याय के सिद्धांत पर आधारित होती है। सभी समान प्रकार का विक्रय कार्य करने वालों को समान पारिश्रमिक देने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, संस्था के विक्रय तथा गैर विक्रय कार्यों को करने वाले कर्मचारियों के बीच भी समानता स्थापित करनी चाहिए। यदि विक्रय तथा गैर विक्रय विभाग के कर्मचारियों के पारिश्रमिक में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है तो इसका कर्मचारियों के मनोबल पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इससे सम्पूर्ण संस्था की सफलता भी प्रभावित होगी।
  4. प्रयास एवं प्रतिफल में प्रत्यक्ष संबंध प्रो. रॉबर्ट पेट्टी ने लिखा है कि, “पारिश्रमिक किये गये प्रयासों एवं प्राप्त परिणामों दोनों के ही अनुरूप होना चाहिए। प्रयास परिणाम तथा पारिश्रमिक में प्रत्यक्ष संबंध नहीं होगा तो कोई भी विक्रयकर्त्ता भविष्य में अधिक प्रयास एवं परिश्रम से कार्य करने के लिए प्रेरित ही नहीं होगा।
  5. प्रेरणादायी- स्टेन्टन तथा बुसकिर्क ने लिखा है कि “एक अच्छी पारिश्रमिक योजना न्यूनतम से अधिक परिश्रम करने की प्रेरणा देती है”। अतः पारिश्रमिक योजना तभी अच्छी कही जायेगी जबकि उसमें अधिकाधिक कार्य की प्रेरणा देने की क्षमता हो।
  6. पर्याप्त राशि- पारिश्रमिक की राशि साखान या महत्त्वपूर्ण होनी चाहिए। कई बार गिनने में राशि बहुत बड़ी दिखायी देती है किन्तु उस राशि से क्रय शक्ति बहुत ही कम होती हैहै। अतः पारिश्रमिक की राशि केवल गिनती में बड़ी नहीं होनी चाहिए बल्कि उसकी वास्तविक साखान क्रय शक्ति भी होनी चाहिए।
  7. नियंत्रण- प्रो. फिलिप कोटलर ने लिखा है कि “प्रबंधक उस योजना को पसंद करते हैं जिससे उन्हें विक्रयकर्ताओं द्वारा व्यय किये जाने वाले समय पर नियंत्रण करने में सुविधा होती है”। अतः पारिश्रमिक योजना ऐसी होनी चाहिए ताकि प्रबंधक विक्रयकर्त्ताओं के समय पर पूर्ण नियंत्रण रख सके। समय पर नियंत्रण करके ही उनकी सभी क्रियाओं पर नियंत्रण जा सकता है।
  8. लोचशीलता– पारिश्रमिक योजना लोचशील भी होनी परमावश्यक है। इसमें भीसमय एवं परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन एवं संशोधन करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। संस्था के लाभों एवं उत्पादन के बढ़ने एवं घटने के अनुसार पारिश्रमिक विधि में समायोजन की गुंजाइश होनी चाहिए।
  9. लागत नियंत्रण में सुविधा— पारिश्रमिक योजना ऐसी होनी चाहिए जो लागत के नियंत्रण में सुविधा प्रदान करे। इस हेतु पारिश्रमिक विधि ऐसी होनी चाहिए जिसके अन्तर्गत पारिश्रमिक की राशि का पूर्वानुमान लगाया जा सके तथा उसके लिए आवश्यक बजट बनाया जा सके। पारिश्रमिक के पूर्वानुमान एवं बजट से लागत नियंत्रण में पर्याप्त सुविधा होती है।
  10. भुगतान की निश्चित अवधि— अच्छी पारिश्रमिक विधि में पारिश्रमिक भुगतान की अवधि निश्चित होती है। प्रबंधकों को पारिश्रमिक योजना में इस बात की व्यवस्था करकरनी चाहिए कि पारिश्रमिक का भुगतान कितनी अवधि के अन्तराल से किया जायेगा। पारिश्रमिक योजना में उल्लिखित समय अन्तराल के अनुसार ही पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना आवश्यक है।
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