विक्रय प्रबंधन

विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले तत्त्व | विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले घटक

विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले तत्त्व | विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले घटक | Factors affecting the remuneration of salespeople in Hindi | Factors affecting salespeople’s remuneration in Hindi

विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करने वाले तत्त्व/ घटक

विक्रयकर्ताओं के पारिश्रमिक को कई घटक प्रभावित करते हैं। विक्रयकर्ता की योग्यता, संस्था की स्थिति, अन्य संस्थाओं के विक्रयकर्ताओं का पारिश्रमिक इत्यादि कई तत्त्व हैं जो किसी संस्था के विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करते हैं। यहाँ संक्षेप में उन सभी तत्त्वों का उल्लेख निम्नलिखित हैं।

  1. प्रचलित पारिश्रमिक दर- बाजार में प्रचलित पारिश्रमिक की दरें विक्रयकर्ताओं के पारिश्रमिक को सर्वाधिक रूप से प्रभावित करती है। अतः अन्य संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले पारिश्रमिक को ध्यान में रखकर ही अपने विक्रयकर्ताओं का पारिश्रमिक तय करना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर संस्था को योग्य एवं कुशल विक्रयकर्त्ता स्थायी रूप से प्राप्त नहीं हो सकेंगे। अतः पारिश्रमिक निर्धारित करते समय प्रचलित पारिश्रमिक दर को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।
  2. विक्रयकर्त्ताओं की माँग और पूर्ति- विक्रयकर्त्ताओं की माँग और पूर्ति भी उनकी पारिश्रमिक दरों को प्रभावित करती है। यदि विक्रयकर्त्ता पर्याप्त मात्रा में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं तो पारिश्रमिक की दर सामान्य स्तर पर ही रहती है। किन्तु यदि विक्रयकर्ता की कमी हो तो इस कार्य के लिए आकर्षित करने हेतु ऊँची दर से पारिश्रमिक देना पड़ता है।
  3. विक्रयकर्त्ता की योग्यता एवं उत्पादकता- विक्रयकर्ताओं की योग्यता या उत्पादकता भी पारिश्रमिक की दर को प्रभावित करती है। जो विक्रयकर्ता अधिक योग्य एवं कुशल होते हैं वे औसत से अधिक विक्रय करते हैं तथा विक्रय व्ययों में कमी लाते हैं। परिणामस्वरूप, उनका पारिश्रमिक भी अधिक ही होता है। कम उत्पादकता वाले विक्रयकर्ताओं केका पारिश्रमिक भी कम ही होता है।
  4. जीवन निर्वाह व्यय– पारिश्रमिक दर पर जीवन निर्वाह व्यय का भी प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक विक्रयकर्त्ता को कम से कम उतना पारिश्रमिक तो मिलना ही चाहिए जिससे वह अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोषण आसानी से कर सके। यदि विक्रयकर्ता को इतना भी पारिश्रमिक नहीं मिलता है तो उससे कार्यकुशलता की आशा करना भी व्यर्थ ही होगा।
  5. रहन-सहन का स्तर- देश में प्रचलित रहन-सहन का स्तर भी विक्रयकर्ताओं के पारिश्रमिक को प्रभावित करता है। देश के अन्य लोगों के खान-पान, रीति-रिवाज, सुविधाएं आदि को भी विक्रयकर्त्ताओं के पारिश्रमिक के निर्धारण में ध्यान में रखना पड़ता है।
  6. श्रम संघों की शक्ति- कई बार श्रम संघ भी पारिश्रमिक को प्रभावित करते हैं। कई बार श्रम संघों के प्रभाव के कारण पारिश्रमिक में वृद्धि करनी पड़ती है।
  7. कार्य की प्रकृति- यदि विक्रय कार्य बहुत ही प्रतिस्पर्धी है और माल का विक्रय करना अत्यन्त कठिन है तो पारिश्रमिक की दरें प्रायः अधिक होती हैं। विपरीत स्थिति में पारिश्रमिक दरें कम तो नहीं होती किन्तु सामान्य स्तर पर ही रहती है।
  8. वस्तु की प्रकृति– वस्तु की प्रकृति भी पारिश्रमिक को प्रभावित करती है। विलासिता की वस्तुएँ बेचना कठिन होता है। अतः उसमें पारिश्रमिक दर प्रायः अधिक होती है। इसके विपरीत आवश्यकता की वस्तुएँ स्वतः बिकती हैं। अतः पारिश्रमिक की दर भी कम ही होती है।
  9. वस्तु का मूल्य- वस्तु का मूल्य पारिश्रमिक की दर को प्रभावित करता है। अधिक मूल्य वाली वस्तुओं पर पारिश्रमिक की दर प्रायः कम तथा कम मूल्य वाली वस्तुओं पर पारिश्रमिक की दर प्रायः अधिक होती है।
  10. बाजार क्षेत्र- जिन विक्रयकर्ताओं का बाजार क्षेत्र विस्तृत होता है, उन्हें घर से दूर रहकर, भ्रमण की तकलीफें उठाकर विक्रय कार्य करना पड़ता है। अतः उनका कुल पारिश्रमिक प्रायः अधिक होता है। सीमित बाजार क्षेत्र वाले या काउन्टर विक्रयकर्त्ता का पारिश्रमिक तुलनात्मक रूप से कम ही होता है।
  11. भुगतान क्षमता- संस्था की भुगतान क्षमता भी पारिश्रमिक को प्रभावित करती है। अधिक लाभ कमाने वाली संस्थाओं के विक्रयकर्ता अधिक पारिश्रमिक की माँग इसलिए करते हैं क्योंकि वे स्वयं उस अधिक लाभ को कमाने वाले भागीदार हैं। अतः अधिक लाभों से संस्था की भुगतान क्षमता बढ़ती है। अतः पारिश्रमिक भी अधिक होता है। न्यूनतम लाभ या हानि की स्थिति में संस्था न्यूनतम पारिश्रमिक का ही भुगतान करने की स्थिति में होती है।
  12. राजकीय नियम एवं नीतियाँ- प्रत्येक देश की सरकार व्यवसाय का नियमन एवं नियंत्रण करती है। ऐसे नियमों के अन्तर्गत सरकार न्यूनतम पारिश्रमिक, भत्ते, बोनस, भविष्यनिधि, पेंशन आदि को निर्धारित कर सकती है। ऐसी स्थिति में विक्रयकर्ताओं के पारिश्रमिक को निर्धारित करते समय इन सब बातों को भी ध्यान में रखना पड़ता है।
  13. स्थायी या मौसमी कार्य- यदि विक्रयकर्ता का कार्य स्थायी प्रकृति का है तो पारिश्रमिक दर कम हो सकती है। जबकि मौसमी कार्य की दशा में पारिश्रमिक की दर प्रायःक्षअधिक हो सकती है।
  14. प्रशिक्षण एवं पदोन्नति के अवसर- जब संस्था में प्रशिक्षण एवं पदोन्नति के अवसर दिखायी देते हैं तो लोग उस संस्था में कम पारिश्रमिक पर ही कार्य करना स्वीकार कर लेते हैं। दूसरी ओर जब इसकी सम्भावनाएँ कम होती हैं तो संस्था को अच्छे विक्रयकर्ता को आकर्षित करने के लिए ऊंची पारिश्रमिक दर रखनी पड़ती है।
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Pankaja Singh

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