विक्रय प्रबंधन

विक्रयकर्त्ताओं के चयन से आशय | विक्रयकर्त्ताओं के उचित चयन के लाभ या महत्त्व | विक्रयकर्त्ताओं के अनुचित चयन के दुष्परिणाम

विक्रयकर्त्ताओं के चयन से आशय | विक्रयकर्त्ताओं के उचित चयन के लाभ या महत्त्व | विक्रयकर्त्ताओं के अनुचित चयन के दुष्परिणाम | Meaning of selection of sellers in Hindi | Advantages or importance of proper selection of salespeople in Hindi | Consequences of improper selection of sellers in Hindi

‘विक्रयकर्त्ताओं के चयन’ से आशय

‘चयन’ एक प्रक्रिया होती है जिसमें कार्य करने के इच्छुक व्यक्तियों में से योग्यतम व्यक्तियों का अपेक्षित संस्था में चुनाव किया जाता है और अयोग्य अथवा शेष व्यक्तियों को अस्वीकृत कर दिया जाता है। डेल योडर के अनुसार चयन वह प्रक्रिया है जो नियोजन के लिए आवेदन करने वाले प्रार्थियों को दो श्रेणियों में विभक्त करती है-

(1) जिन्हें रोजगार प्रस्तावित किया जाना है और

(2) जिन्हें रोजगार प्रस्तावित नहीं किया जाना है।

वस्तुतः ‘चयन’ कार्यों पर व्यक्तियों के समायोजन की व्यापक समस्या का एक भाग है। अन्य शब्दों में, ‘चयन’ सही कार्य पर सही व्यक्ति की नियुक्ति से सम्बन्ध रखने वाला महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक प्रश्न होता है। अतएव इस सन्दर्भ में, विक्रयकर्ताओं के चयन से आशय “विक्रय कार्यों के लिए पर्याप्त संख्या में योग्य व्यक्तियों का चुनाव करने से लिया जा सकता है।” संक्षेप में, विक्रयकर्ताओं का चयन विक्रय-कृत्यों पर व्यक्तियों के समायोजन की व्यापक समस्या का प्रारम्भिक हिस्सा है जो अपेक्षित विक्रय-शक्ति के चयन से सम्बन्ध रखता है।

विक्रयकर्त्ताओं के उचित चयन के लाभ या महत्त्व

सामान्यतः उचित चयन से निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  1. विक्रय प्रबंधक की सफलता का आधार- अच्छे विक्रयकर्त्ता, विक्रय प्रबंधक तथा विक्रय संगठन की सफलता के आधार पर होते हैं। यदि विक्रयकर्ता सफल होते हैं। तो विक्रय प्रबंध ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संगठन भी सफल हो पाता है। अतः विक्रयकर्त्ता विक्रय प्रबंधक की सफलता का महत्त्वपूर्ण आधार है।
  2. सीमित आवर्तन– उचित एवं सही चयन के द्वारा विक्रयकर्ताओं के आवर्तन को कम किया जा सकता है। इससे संस्था को एक लम्बी अवधि तक टिक कर कार्य करने वाले विक्रयकर्ता तो उपलब्ध होंगे ही, साथ ही संस्था को मितव्ययिता भी प्राप्त होगी।
  3. विक्रयकर्त्ताओं पर कम व्यय- उचित प्रकार से चयन करने का एक लाभ ही होता है कि विक्रयकर्ताओं पर कम खर्च आता है। विक्रयकर्ताओं का आवागमन कम हो जाने पर स्वतः ही विक्रयकर्त्ताओं पर किया जाने वाला व्यय कम हो जाता है।
  4. प्रशिक्षण की कम आवश्यकता- उचित प्रकार से चुने गये विक्रयकर्त्ताओं को प्रशिक्षण भी देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपेक्षाकृत कम समय में ही प्रशिक्षण दिया जा सकता है, क्योंकि उचित प्रकार से चुने गये विक्रयकर्ता सामान्यतः चतुर एवं पर्याप्त बौद्धिक योग्यता वाले ही होते हैं।
  5. अधिक विक्रय- अच्छे विक्रयकर्त्ता तभी प्राप्त किये जा सकते हैं, जबकि उचित प्रकार से चयन किया गया हो। जब संस्था में अच्छे या कुशल विक्रयकर्ता उपलब्ध होते हैं तो सामान्यतः विक्रय तुलनात्मक रूप से अधिक होता है।
  6. संस्था की ख्याति में वृद्धि- अच्छे विक्रयकर्ता सदैव संस्था की ख्याति में वृद्धि करते है। नाइस्ट्रोम ने उचित लिखा है कि “ग्राहक की दृष्टि में विक्रयकर्ता ही संस्था है। यदि वह अच्छा प्रभाव नहीं डालता है तो ग्राहकों में संस्था की ख्याति भी अच्छी नहीं बन सकती है।”
  7. अच्छे अधिकारियों की प्राप्ति- अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि अधिकांश उच्च अधिकारी पहले विक्रय विभाग में ही नियुक्त थे। अतः विक्रय विभाग उच्च अधिकारी पैदा करने में सक्षम है किन्तु यह तभी सम्भव है जबकि विक्रयकर्ताओं का चयन उचित प्रकार से हो।
  8. मनोबल– उचित प्रकार से चयन करने, पक्षपात न करने तथा योग्यता, कुशलता एवं अनुभव को पर्याप्त स्थान मिलने से संस्था के विक्रयकर्ताओं का ही नहीं बल्कि सभी कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है।
  9. अधिक उत्पादन- उचित चयन व्यवस्था के द्वारा अधिक उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है। फीनिक्स म्युचुअल लाइफ इन्शयोरेन्स कं. ने चयन प्रक्रिया को व्यवस्थित करके विक्रय को तिगुना बढ़ा लिया था।

विक्रयकर्त्ताओं के अनुचित चयन के दुष्परिणाम

अनुचित चयन के प्रमुख सम्भावित दुष्परिणाम इस प्रकार हैं-

(1) विक्रयकर्ताओं का आवर्तन बढ़ जता है।

(2) नये विक्रयकर्ताओं की भर्ती और चयन में बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है।

(3) सामान्य या कमजोर विक्रयकर्ताओं के प्रशिक्षण में भारी खर्च उठाना पड़ता है।

(4) इसका ग्राहकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। नये-नये विक्रयकर्त्ताओं के आते जाते रहने से सम्भवतः प्रत्येक ग्राहक के पास प्रत्येक अगली बार नया विक्रयकर्त्ता पहुँचेगा। प्रत्येक नया विक्रयकर्ता ग्राहकों की रुचि, आदतों एवं व्यवहार के बारे में जान नहीं पाता है। अतः संस्था के व्यवसाय की प्रगति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

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Pankaja Singh

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