विक्रय प्रबंधन

विक्रय प्रक्रिया का अर्थ | विक्रय प्रक्रिया की परिभाषा | विक्रय-प्रक्रिया की विशेषताएँ | विक्रय प्रक्रिया के पद या चरण

विक्रय प्रक्रिया का अर्थ | विक्रय प्रक्रिया की परिभाषा | विक्रय-प्रक्रिया की विशेषताएँ | विक्रय प्रक्रिया के पद या चरण | Meaning of sales process in Hindi | Definition of Sales Process in Hindi | Features of Selling Process in Hindi | Stages or stages of the sales process in Hindi

विक्रय प्रक्रिया का अर्थ एवं परिभाषा

विक्रय प्रक्रिया वह क्रमबद्ध प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत विक्रयकर्त्ता अपने सम्भावित ग्राहकों की खोज करता है तथा उनसे सम्पर्क कर अपने माल अथवा सेवा के लिए रुचि, इच्छा तथा आवश्यकता उत्पन्न करने का प्रयास करता है तथा पारस्परिक संतुष्टि के लिए माल अथवा सेवा के क्रय के लिए ग्राहक को प्रेरित करता है।

वक्रय प्रक्रिया की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-

प्रो. ग्रीफ के अनुसार, “विक्रय प्रक्रिया एक क्रमबद्ध अनुक्रम है जो सम्भावित ग्राहकों को कुछ निर्णयन करने में मार्गदर्शन करती है। यह वह ढांचा है जिस पर विक्रय प्रस्तुतीकरण का निर्माण किया जाता है।”

अर्नेस्ट तथा डेवाल के अनुसार, “विक्रय प्रक्रिया किसी जंजीर की कड़ियों की श्रृंखला के समान है जिसमें प्रत्येक कड़ी विक्रय प्रस्ताव है। उन कड़ियों को इस प्रकार खूबसूरती से रखना चाहिए कि न तो विक्रयकर्त्ता और न ग्राहक ही यह अनुभव कर सकें कि इस प्रक्रिया के वे अलग-अलग हिस्से हैं”।

निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि नियोजित विक्रय प्रक्रिया वह क्रमबद्ध चरणों की श्रृंखला है जिसके अन्तर्गत एक विक्रयकर्त्ता ग्राहकों को खोजने, उनसे सम्पर्क करने, उनकी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए अपनी वस्तु या सेवा के क्रय के लिए प्रेरित करने का कार्य सम्पन्न करता है।

विशेषताएँ-

विक्रय-प्रक्रिया की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. विक्रय प्रक्रिया वस्तुओं या सेवाओं के विक्रय की प्रक्रिया है।
  2. यह माल या सेवा के विक्रय करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया है।
  3. यह सम्भाव्य ग्राहकों के विचारों को मार्गदर्शन देने की प्रक्रिया है।
  4. विक्रय प्रक्रिया के द्वारा सम्भाव्य ग्राहकों को माल या सेवा क्रय करने हेतु प्रेरित किया जाता है।
  5. इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्भाव्य ग्राहक वस्तु या सेवा को क्रय करने या न करने का निर्णय करता है।
  6. इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्भाव्य ग्राहक की इच्छाओं को आवश्यकताओं में परिणित करने का प्रयास किया जाता है।
  7. इस प्रक्रिया में सामान्य ग्राहक को यह अनुभव करवाने का प्रयास किया जाता i है कि विक्रयकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत वस्तु ही उसकी आवश्यकता की संतुष्टि के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

विक्रय प्रक्रिया के पद या चरण

विभिन्न विक्रय विशेषज्ञों ने विक्रय प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का उल्लेख किया है। इन विशेषज्ञों ने इन चरणों की संख्या तीन से सात तक बतलायी है। किन्तु इन सब का अध्ययन  करने के बाद यह निष्कर्ष आया कि एक आदर्श विक्रय प्रक्रिया में निम्न चरणों या पदों का होना परमावश्यक है ताकि एक नया विक्रयकर्ता अपने कार्य में सफल हो सके।

  1. ग्राहकों को खोजना- विक्रय प्रक्रिया का प्रथम चरण सम्भाव्य ग्राहकों की खोज के साथ प्रारम्भ होता है। “सम्भाव्य ग्राहक वह व्यक्ति या संस्था है जिसे वस्तु की आवश्यकता है तथा जो उसे खरीदने की क्षमता रखता है।” भावी ग्राहकों की खोज करना विक्रय प्रक्रिया का जीवनरक्त माना जाता है। इसके विपरीत यदि आप नये ग्राहकों को जोड़ना बन्द कर देंगे तो वह मृत्यु कारक रक्तपात के समान हो जाता है।

काउण्टर पर बैठे विक्रयकर्ता के लिए भावी ग्राहकों को खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। केवल भ्रमणकारी विक्रयकर्त्ताओं को ही सम्भाव्य ग्राहकों की खोज करनी पड़ती है। ऐसे विक्रयकर्त्ता ग्राहकों की खोज प्रायः निम्न स्रोतों से कहते हैं-

(i) परिवार एंव मित्रों से

(ii) जातीय संगठनों से

(iii) वर्तमान ग्राहकों से

(iv) व्यापारियों से

(v) टेलीफोन निर्देशिका से

(vi) व्यापार एवं पेशेवर निर्देशिकाओं से

(vii) सेवा संगठनों से

(viii) भवन सूची से

(ix) समाचार पत्रों से

(x) विज्ञापनों से

(xi) आयकर विभाग से

(xii) जन प्रतियोगिताओं से

  1. प्रारम्भिक तैयारियाँ करना- जब विक्रयकर्त्ता को भावी ग्राहकों के नाम व पते ज्ञात हो जाते हैं तो उसे कुछ प्रारम्भिक तैयारियाँ कर लेनी चाहिए। इसमें उसे सर्वप्रथम अपने सम्भाव्य ग्राहकों के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। उसे ग्राहकों से सम्पर्क करने से पूर्व ही उनके बारे में जितनी भी सूचनाएँ प्राप्त हो सके, प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। वह अपने भावी ग्राहकों के बारे में जितनी सूचनाएँ प्राप्त कर लेगा वह उतना ही अधिक सफल हो सकेगा। बुसकिर्क ने शायद इसलिए लिखा है, “विक्रयकर्त्ता जितना अधिक अपने भावी ग्राहक के बारे में जानता है वह उस व्यक्ति की आवश्यकता के अनुरूप उतना ही अच्छा प्रस्तुतीकरण कर सकेगा।”

विक्रयकर्त्ता को केवल ग्राहकों के बारे में ही नहीं, उसे अपने द्वारा बेची जाने वाली वस्तुओं की भी पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक होती है। इसके अतिरिक्त सम्भाव्य ग्राहकों से मिलने से पूर्व उसे अपने भौतिक शरीर पर भी ध्यान देना चाहिए। साफ एवं उचित कपड़े, बाल आदि बातें विशेष रूप से ध्यान में रखकर अपने आपको एक भले विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में तैयार कर लेना चाहिए।

  1. सम्पर्क स्थापित करना- जब विक्रयकर्त्ता प्रारम्भिक तैयारी पूरी कर लेता है तब वह अपने ग्राहक अथवा सम्भावित ग्राहक से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास करता है। सम्पर्क स्थापित करने के लिए विक्रयकर्ता को प्रायः तीन कार्य करने होते हैं-

(अ) भेंट का समय निर्धारित करना

(ब) निर्धारित समय पर भेंट करने के लिए पहुँचना

(स) सम्भाव्य ग्राहक या ग्राहक से भेंट करना।

(अ) समय निर्धारित करना- कई विक्रयकर्ता अपने ग्राहकों से बिना समय निर्धारित किये ही उनसे मिलने पहुँच जाते हैं। ऐसे विक्रयकर्त्ता “बिन बुलाये मेहमानों” की भाँति होते हैं। अतः प्रत्येक विक्रयकर्ता को अपने सम्भाव्य तथा विद्यमान दोनों ही ग्राहकों से भेंट के लिए पहले से समय निर्धारित कर लेना चाहिए।

(ब) भेंट के लिए पहुँचना- एक विद्वान ने ठीक ही लिखा है कि “किसी कार्यालय के प्रवेश द्वार से ग्राहक के सामने रखी हुई कुर्सी तक पहुँचने का मार्ग दुनिया के सबसे लम्बे मार्गों में से एक है।” फिर भी विक्रयकर्त्ता को भेंट के लिए इस मार्ग को पार करना ही पड़ता है। भेंट के लिए पहुँचने के लिए उसे निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

(i) निर्धारित समय के कुछ समय पूर्व ही पहुँचने का प्रयास करना चाहिए।

(ii) उसे अपने बाह्य स्वरूप कपड़े, बाल, दाढ़ी, जूते आदि को व्यवस्थित करके ही घर से रवाना होना चाहिए।

(iii) सम्भाव्य ग्राहक के आग्रह पर एक उचित समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिए।

(स) भेंट करना- विक्रयकर्ता प्रायः सम्भाव्य ग्राहक से पूर्व निर्धारित समय पर भेंट करते हैं। भेंट करने का विक्रयकर्त्ता का मूल उद्देश्य ग्राहक का ध्यान आकर्षित करना तथा उसकी वस्तु में रुचि उत्पन्न करता है। अतः प्रत्येक विक्रयकर्ता को भेंट के दौरान ये दोनों ही कार्य करने चाहिए।

  1. प्रस्तुतीकरण- विक्रय प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है प्रस्तुतीकरण । प्रस्तुतीकरण वह चरण है जिसमें विक्रयकर्ता अपने माल या सेवा को सम्भाव्य ग्राहक के समक्ष प्रस्तुत करता है। प्रस्तुतीकरण के समय विक्रयकर्ता को अपने माल के बारे में सभी बातें बतानी चाहिए। उसे वस्तु के गुण-लाभ के बारे में ही नहीं बताना चाहिए बल्कि उसे यह भी बताना चाहिए कि उसका माल किस प्रकार उसकी आवश्यकता को संतुष्ट कर सकता है।

सामान्यतः एक विक्रयकर्ता को प्रस्तुतीकरण के समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

(i) प्रस्तुतीकरण पूर्ण होना चाहिए। दूसरे शब्दों में प्रस्तुतीकरण में वे सभी बातें आ जानी चाहिए जिससे सम्भाव्य ग्राहक की विद्यमान कठिनाइयाँ या असंतोष दूर हो सके।

(ii) प्रस्तुतीकरण से ग्राहक के मन से प्रतिस्पर्द्धात्मक वस्तु की तस्वीर मिट जानी चाहिए। विक्रयकर्ता की वस्तु ही उसे सर्वोत्तम एवं संतुष्टि प्रदान प्रतीत हो ।

(iii) प्रस्तुतीकरण स्पष्ट होना चाहिए ताकि ग्राहक के मन में वस्तु के सम्बन्ध में कोई संदेह ही न रहे।

  1. ध्यान आकर्षित करना- भावी ग्राहक का ध्यान आकर्षित करना कभी-कभी बहुत कठिन हो जाता है। किन्तु व्यस्ततम अधिकारियों को माल बेचने के लिए उनसे समय प्राप्त करना पड़ता है। अतः विक्रयकर्त्ताओं को ऐसी बातें ही करनी चाहिए जिनमें सम्भाव्य ग्राहकों का हित निहित होता है। विक्रयकर्ता अपने सम्भाव्य ग्राहकों का ध्यान निम्न तरीकों से आकर्षित कर सकता है-

(i) ईमानदारी के साथ अभिवादन एवं प्रशंसा करके

(ii) महत्त्वपूर्ण नाम का सन्दर्भ देकर

(iii) विशिष्ट समस्या का सन्दर्भ देकर

(iv) अनुसंधानों एवं रुचिप्रद आंकड़ों का सन्दर्भ देकर

(v) रुचिप्रद चित्र दिखाकर

(vi) सहायता अथवा सेवा का प्रस्ताव करके

(vii) मुफ्त भेट का प्रस्ताव करके

(viii) कौतूहल पैदा करके

(ix) घटना का वर्णन करके

(x) वस्तु के लाभ बताकर

फुटकर विक्रेता ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए वातायन सजावट, काउण्टर सजावट, दीवार सजावट आदि का प्रयोग कर सकता है।

  1. रुचि उत्पन्न करना- जब सम्भाव्य ग्राहक का ध्यान विक्रयकर्ता अपनी ओर आकर्षित कर लेता है तो उसे रुचि उत्पन्न करने में आसानी होती है। मनोवैज्ञानिकों ने ग्राहकों की निम्न तीन प्रकार की रुचियाँ बताई हैं-

(i) मानवीय रुचि

(ii) सूचना रुचि

(iii) नवीनता रुचि

विक्रयकर्त्ता को ग्राहकों में वस्तु के अनुसार रुचि उत्पन्न करने का प्रयास करना चाहिए। इस हेतु उनसे प्रश्न पूछना चाहिए तथा उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं पर विचार करना चाहिए। इससे वस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न की जा सकती है।

विक्रयकर्त्ता जब ग्राहक में रुचि उत्पन्न कर देता है तो सम्भाव्य ग्राहक विक्रयकर्ता की बातें और अधिक ध्यान से सुनना पसंद करता है। अतः विक्रयकर्त्ता को यह सिद्ध करना चाहिए। कि उसे अभी तक वस्तुओं के क्रय करने से वे लाभ नहीं हुए हैं जो होने चाहिए थे। तत्पश्चात् उन्हें यह बताना चाहिए कि उसके (विक्रयकर्त्ता) द्वारा प्रस्तावित वस्तु किस प्रकार उसके लिए अधिकाधिक लाभदायक हो सकती है।

  1. इच्छा उत्पन्न करना- जब भावी ग्राहक की वस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है तो उसकी उस वस्तु के प्रति इच्छा भी उत्पन्न करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करनी चाहिए कि ग्राहक उस वस्तु को चाहने लगे।

अल्फ्रेड ग्रोस के अनुसार इच्छा उत्पन्न करने के तीन स्तर हैं-

(i) आवश्यकताओं का पता लगाना एवं असंतुष्टि का स्पष्टीकरण करना।

(ii) यह बताना कि अपनी वस्तु किस प्रकार क्रेता की आवश्यकता की पूर्ति करेगी।

(ii) उन लाभों को बताना चाहिए, जो वस्तु के क्रय से हो सकते हैं।

इन विभिन्न स्तरों में से क्रमशः गुजरने पर ग्राहक में प्रभावशाली इच्छा उत्पन्न हो सकेगी।

  1. आपत्तियों का निवारण कर विश्वास उत्पन्न करना- विश्वास तब उत्पन्न किया जा सकता है जबकि ग्राहक यह अनुभव करता है कि वस्तु के बारे में विक्रयकर्त्ता द्वारा कही गई बातें सही है तथा वह वस्तु उसकी आवश्यकता की पूर्ति तथा संतुष्टि के लिए उपयुक्त है।

विश्वास उत्पन्न करने के लिए विक्रयकर्ता को ग्राहकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों तथा आपत्तियों एवं शंकाओं का संतोषजनक समाधान करना चाहिए।

  1. उपसंहार तथा आदेश प्राप्त करना- जब सम्भाव्य ग्राहक के मन की अनेक शंकाओं तथा आपत्तियों का निवारण कर दिया जाता है तो उसके मन में माल या सेवा के प्रति विश्वास भाव जाग्रत होता है। तब विक्रयकर्त्ता को विक्रय प्रक्रिया का अन्य या उपसंहार करना चाहिए। विक्रय प्रक्रिया के इस चरण में सम्भाव्य ग्राहक वस्तु क्रय करने या न करने का निर्णय लेता है। अतः विक्रयकर्ता को इस समय विशेष सावधानी एवं चतुराई से काम लेना चाहिए। उसे सम्भाव्य ग्राहक को ग्राहक में परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए। इस हेतु विक्रयकर्ता को निम्न में से कुछ कार्य या बातें पूछनी चाहिए-

(i) क्रयादेश के लिए पूछताछ करना

(ii) जाँच का अन्त करके

(iii) गर्भित स्वीकृति स्पष्ट करके

(iv) विशिष्ट प्रेरणा देकर

(v) दो या तीन विकल्पों में से चयन करने की सलाह देकर

(vi) छोटी-छोटी बातों में निर्णय में सहयोग देकर

(vii) आश्वासन देकर

(viii) अधिकार पूर्वक कहकर

यदि सम्भाव्य ग्राहक पूर्ण संतुष्ट हो जाता है तो वह माल क्रय का निर्णय कर लेता है और तत्काल आदेश दे देता है। किन्तु कभी-कभी सम्भाव्य ग्राहक स्वयं आदेश देने की स्थिति में नहीं होता बल्कि उसे औरों से परामर्श लेना होता है। कम्पनी की दशा में तो औपचारिक प्रस्ताव भी पास करवाने होते हैं। ऐसी स्थिति में माल का आदेश बाद में दिया जाता है।

  1. विदाई तथा अनुवर्तन- सम्भाव्य ग्राहक से माल का आदेश प्राप्त हो या न हो, विक्रयकर्त्ता को ग्राहक से विदाई तो लेनी ही पड़ती है। किन्तु वह विदाई के बाद उस सम्भाव्य ग्राहक से सम्पर्क अवश्य बनाये रखता है। वह उसका अनुवर्तन करता रहता है। यदि माल का विक्रय हुआ है तो उसे माल के सम्बन्ध में विक्रय उपरांत सेवा करनी चाहिए। किन्तु माल का आदेश प्राप्त नहीं हुआ है तो उसे उस सम्भाव्य ग्राहक से निरंतर सम्पर्क बनाये रखकर उससे माल का आदेश प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए। इस हेतु उस सम्भाव्य ग्राहक की शंकाओं का निवारण करना चाहिए एवं संस्था के प्रति विश्वास एवं आस्था उत्पन्न करना चाहिए।
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Pankaja Singh

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