विक्रय प्रबंधन

विक्रय प्रतिरोध का अर्थ | विक्रय बाधाओं के प्रकार

विक्रय प्रतिरोध का अर्थ | विक्रय बाधाओं के प्रकार | Meaning of Selling Resistance in Hindi | types of sales barriers in Hindi

विक्रय प्रतिरोध का अर्थ

विक्रय प्रतिरोध से आशय विक्रय में आने वाली रुकावटों से है। विक्रयकर्ता को अधिक से अधिक माल का विक्रय करने के लिए कुशलतापूर्वक इन विक्रय प्रतिरोधों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

आपत्ति का अर्थ एवं परिभाषा – सामान्य शब्दों में, आपत्ति से तात्पर्य किसी बात के सम्बन्ध में विमत प्रस्तुत करना या किसी बात का विरोध करना है। वेबस्टर शब्दकोश के अनुसार, “आपत्ति से तात्पर्य किसी विपरीत कारण या तर्क को प्रस्तुत करना है।” विक्रयक्षसाहित्य के सम्बन्ध में इस शब्द का जब अध्ययन करते हैं तो इसका अर्थ विक्रय प्रक्रिया मेंक्षग्राहकों की आपत्तियों से ही लगाया जाता है।

मार्श के अनुसार, “आपत्तियाँ क्रय न करने के बहाने, क्षमाएँ, बुद्धि संगत व्याख्याएं हैं। वे सामान्यतः यह कहने के विनम्र तरीके हैं कि ‘मेरी रुचि नहीं है’।

अर्नेस्ट तथा डेवाल के अनुसार, “आपत्ति विक्रय कार्य में वह निष्कपट बाधा है जो या तो सम्भाव्य ग्राहक द्वारा विक्रयकर्त्ता के प्रस्ताव को नहीं समझ पाने के कारण अथवा प्रस्ताव में पूर्ण रूप से सहमत नहीं होने के कारण उत्पन्न होती है।”

आपत्तियों या विक्रय बाधाओं के प्रकार

ग्राहक जब वस्तु क्रय करना नहीं चाहता है या वस्तु के क्रय से बचना चाहता है तो वह अनेक प्रकार की आपत्तियाँ प्रकट करता है। ऐसी आपत्तियों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. बहाने या टालू आपत्तियां
  2. वास्तविक आपत्तियाँ

1. बहाने या टालू आपत्तियाँ

ग्राहक वस्तु नहीं खरीदने के वास्तविक कारणों को छिपाते हैं और अन्य कारण या बहानों का सहारा लेते हैं। अतः वस्तु के क्रय न करने के सही कारणों के अतिरिक्त जो भी तर्क दिए जाते हैं वे सभी बहाने हैं या टालू आपत्तियाँ हैं।

किर्क पैट्रिक ने लिखा है कि “बहाना सम्भाव्य ग्राहक द्वारा प्रस्तुत एवं बनावटी बाधा है, यह क्रय करने में उसकी वास्तविक बाधा या कठिनाई नहीं है”।

व्यवहार में ऐसे अनेक बहाने हो सकते हैं, उनमें से कुछेक निम्न प्रकार हैं-

  1. ” मैं इस बात पर विचार करूंगा”- कई ग्राहक यह बात कहकर कि “मैं इस बात पर विचार करूंगा”। विक्रयकर्त्ता से अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी लोग इस बात को तो यो भी कह देते हैं कि “मैं अभी अन्य दुकानों या स्टोरों पर देखना चाहता हूँ”। इन सभी बातों को कहने का तात्पर्य एक ही है कि ग्राहक अभी क्रय के निर्णय से बचना चाहता है। ऐसे में विक्रयकर्ता को बड़ी सावधानी से कुछ प्रश्न करने चाहिए तथा वास्तविक कारणों की खोज करनी चाहिए। उदाहरण के लिए विक्रयकर्ता अपने ऐसे सम्भाव्य ग्राहक से ऐसे कुछ प्रश्न पूछ सकता है। “क्या बाद में क्रय करने के पीछे कोई और भी कारण है”। अथवा “क्या अभी क्रय नहीं करने का यही एक कारण है।”

यदि ग्राहक इन प्रश्नों का उत्तर ‘ना’ में देता है तो विक्रयकर्ता को अपनी वस्तु को ठीक से दिखाना चाहिए। अर्थात् हाँ कहता है तो विक्रयकर्त्ता को उन कारणों की जाँच करनी चाहिए तथा क्रय न करने वास्तविक कारणों को ज्ञात करना चाहिए। कई बार विक्रयकर्ता ग्राहक के ऐसे बहानों की ओर ध्यान नहीं देते और वस्तु के बारे में बताना जारी रखते हैं।

  1. “मैं विचार-विमर्श करना चाहूंगा”- कई ग्राहक ऐसे भी होते हैं जो यह कहकर माल क्रय करने से बचने का प्रयास करते हैं कि “मुझे अभी विचार-विमर्श करना है”। अथवा “मुझे अपने साथी साझेदारों से राय करनी है।” ऐसे बहाने प्रायः बनाये जाते रहते हैं। जहाँ कहीं भी कोई वस्तु, परिवार या संस्था के लिए हुई या दीर्घकालीन उपयोग की वस्तु हुई, ऐसे बहाने पैदा हो जाते हैं। कई ग्राहक तो विक्रयकर्ता को प्रारम्भिक स्तर पर ही यही बात कहकर उन्हें वस्तु न दिखाने के लिए भी कह देते हैं।

परन्तु ऐसे बहाने के बावजूद भी विक्रयकर्ता को वस्तु दिखाते रहना चाहिए। जिसे वस्तु दिखा रहे हैं उसे आश्वस्त कर देना चाहिए कि अन्य साझेदारों, अधिकारियों या परिवार के सदस्यों को भी वस्तु दिखा दी जायेगी। ऐसा विक्रयकर्ता यह भी कह सकता है कि “जिनसे आपको विचार-विमर्श करना है वे भी तो आपकी राय लेंगे। अतः आप वस्तु को ठीक से देख लें। इस प्रकार की बात से ग्राहक बहाने बनाकर बच नहीं सकेगा और विक्रयकर्त्ता अपने उद्देश्य की ओर बढ़ता रहेगा।

  1. “अभी मैं बहुत व्यस्त हूं”- जब विक्रयकर्ता किसी भी सम्भाव्य ग्राहक के घर, कार्यालय या कारखाने पर पहुंचता है तो उसे प्रायः ग्राहक से यह सुनने को मिल सकता है कि “मैं अभी बहुत व्यस्त हूं।” यह बहाना भी हो सकता है और वास्तविक बात भी। यदि वह वास्तविक बात है और ग्राहक व्यस्त है तो विक्रयकर्त्ता को ग्राहक से अन्य कोई समय माँग लेना चाहिए। किन्तु अच्छे विक्रयकर्त्ता कभी भी बिना समय लिये ग्राहकों के पास नहीं पहुँचते हैं और ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ही नहीं होने देते हैं।

किन्तु जब ग्राहक व्यस्त होने का बहाना बनाकर विक्रयकर्त्ता को टालना चाहता है तो विक्रयकर्त्ता को इस बहाने को बेकार करने की कोशिश करनी चाहिए। इस हेतु विक्रयकर्त्ता को यहतत्काल ग्राहक को वस्तु से प्राप्त होने वाले लाभों की राशि प्रकट करनी चाहिए।

उसे किसी भी तरह व्यस्त ग्राहक को कुछ क्षण बात करने के लिए तैयार कर लेना चाहिए। उन क्षणों में उसे अपनी बात संक्षेप में बता देनी चाहिए। यदि इन क्षणों की बातचीत से ग्राहक को आकर्षित कर लिया जाता है तो ग्राहक उसे तत्काल और समय देगा। किन्तु यदि विक्रयकर्ता ग्राहक को इन क्षणों से प्रभावित नहीं कर पाया तो उसे तत्काल आगे समय मिलना कठिन होगा।

  1. “मैं अभी यह खरीद नहीं सकता”- कभी-कभी कुछ ग्राहक यह कहकर भी विक्रयकर्ताओं से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं कि “मैं अभी नहीं खरीद सकता,” “मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं” आदि-आदि। अतः ऐसे बहानों को समाप्त करने के लिए विक्रयकर्ता को ग्राहकों से यह प्रश्न कर लेना चाहिए कि “क्या आप इस वस्तु के बिना काम चला सकेंगे।”

किन्तु कभी-कभी कुछ ग्राहकों के पास वास्तव में धन नहीं होता है। अतः यह उनका बहाना नहीं होता बल्कि उनकी वास्तविक बाधा होती है। ऐसे ग्राहकों को वस्तु क्रय करने के लिए बहुत अधिक प्रेरित नहीं करना चाहिए। हाँ, कभी-कभी किश्तों में मूल्य भुगतान करने का प्रस्ताव करके ग्राहक को वस्तु क्रय के लिए अवश्य प्रेरित किया जा सकता है।

  1. वास्तविक आपत्तियाँ या बाधाएँ

ग्राहक कुछ ऐसी आपत्तियाँ प्रस्तुत करते हैं जो वास्तविक होती हैं तथा जिनमें सच्चाई होती है। ऐसी आपत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. मूल्य सम्बन्धी आपत्तियाँ- एक विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “निन्दक वह होता है तो प्रत्येक वस्तु का मूल्य जानता है किन्तु किसी की भी उपयोगिता नहीं जानता है।” सामान्यतः ग्राहक किसी वस्तु के मूल्य की तुलना उसकी प्रतिस्पर्धी वस्तु के मूल्य से करते हैं। इसी आधार पर कई सम्भाव्य ग्राहक विक्रयकर्ता को यह आपत्ति व्यक्त करते हैं कि उसकी वस्तु का मूल्य अन्य ब्रान्ड या दुकानदार की वस्तु के मूल्य की तुलना में अधिक है। कभी-कभी ग्राहक वस्तु के सामान्य मूल्य को भी ऊँचा महसूस करते हैं तथा क्रय करने में कठिनाई महसूस करते हैं।

कभी-कभी विक्रयकर्ता को कुछ ऐसे ग्राहक भी मिलते हैं जो मोल-भाव में विश्वास करते हैं। ऐसे ग्राहकों को प्रारम्भ से ही यह आभास करा देना चाहिए कि ‘एक दाम होंगे’ तथा मूल्य में कमी नहीं की जाएगी।

इस प्रकार मूल्य सम्बन्धी आपत्तियों को अनेक तरीकों से दूर किया जा सकता है जो निम्नलिखित हैं-

(i) अधिक मूल्य के औचित्य को वस्तु की किस्म, टिकाऊपन, रंग-रूप, आकार आदि के द्वारा सिद्ध करना चाहिए।

(ii) कभी-कभी वस्तु के स्वामित्व का गर्व स्पष्ट करके भी मूल्य सम्बन्धी आपत्ति को समाप्त किया जा सकता है।

(iii) कभी-कभी वस्तु के विशिष्ट लक्षणों का प्रदर्शन करके भी मूल्य सम्बन्धी आपत्ति को दूर किया जा सकता है।

(iv) वस्तु के वर्तमान मूल्य की पहले वाले मूल्य से तुलना करके यह दर्शाया जा सकता है कि अब मूल्य कम है।

(v) नये ग्राहक को विशेष छूट देकर मूल्य सम्बन्धी आपत्ति को दूर किया जा सकता है।

  1. वस्तु की आवश्यकता सम्बन्धी आपत्तियाँ- वस्त की आवश्यकता सम्बन्धी अनेक आपत्तियां हो सकती ह इन आपत्तियों को प्रकट करने के लिए ग्राहक प्रायः यह कह देते हैं कि “मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है” अथवा “मेरे पास पर्याप्त स्टॉक है” आदि-आदि। ऐसे ग्राहक यह अनुभव करते हैं कि उन्हें वस्तु की आवश्यकता नहीं है।

इस हेतु विक्रयकर्त्ता को निम्नलिखित प्रयास करके उसकी आवश्यकता सम्बन्धी आपत्ति को दूर करना चाहिए।

(i) ग्राहक की आवश्यकता का सर्वेक्षण करना चाहिए। व्यापारी तथा औद्योगिक ग्राहकों की आवश्यकता का सर्वेक्षण करने के लिए विशेषज्ञों की सेवाओं का उपयोग करना चाहिए। सामान्यतः उपभोक्ता ग्राहकों की परिस्थितियों का अध्ययन करके उसकी आवश्यकता का निर्धारण किया जा सकता है।

(ii) वस्तु के क्रय करने से प्राप्त होने वाले लाभों यथा आराम, सुरक्षा मितव्ययिता, सुन्दरता आदि को स्पष्ट करना चाहिए।

(iii) बाजार में वस्तु की माँग को स्पष्ट करना चाहिए। इससे व्यापारी ग्राहक आसानी से आकर्षित हो सकेंगे।

  1. वस्तु सम्बन्धी आपत्तियाँ- ग्राहक जो आपत्तियाँ प्रकट करते हैं, उनमें वस्तु की किस्म, डिजाइन, संरचना, आकार, प्रयुक्त कच्चा माल आदि से सम्बन्धित आपत्तियाँ हो सकती हैं। सामान्यतः वस्तु सम्बन्धी आपत्तियों को दूर करने के लिए निम्न प्रयास किये जा सकते हैं-

(i) वस्तु के गुणों को परखने का अवसर देना चाहिए। वस्तु के चखने, सूंघने, छूने, उपयोग करने आदि जैसा भी सम्भव हो अवसर देना चाहिए।

(ii) वस्तु का क्रियात्मक प्रदर्शन करना चाहिए।

(iii) वस्तु के सम्बन्ध में जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।

(iv) वस्तु के सम्बन्ध में गारन्टी देना चाहिए।

  1. सेवा सम्बन्धी आपत्तियाँ- कभी-कभी ग्राहक संस्था द्वारा प्रदत्त सेवाओं से असंतुष्ट होता है और माल क्रय करने में आपत्ति प्रकट करता है। उसकी यह आपत्तियाँ माल की सुपुर्दगी, माल लौटाने, माल की मरम्मत, माल के अनुरक्षण विज्ञापन आदि से सम्बन्धित हो सकती है। सामान्यतः एक विक्रयकर्त्ता सेवा सम्बन्धी आपत्तियों को निम्न प्रकार दूर कर सकता है-

(i) संस्था द्वारा ग्राहकों को प्रदत्त की जाने वाली सेवाओं का उल्लेख करना चाहिए।

(ii) अन्य ग्राहकों के सेवा सम्बन्धी अनुभवों का उल्लेख करना चाहिए।

(iii) संस्था की सेवा की तत्परता को प्रदर्शित करना चाहिए।

(iv) सेवा सुविधाओं के बारे में ग्राहकों को पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करनी चाहिए।

(v) सेवा के सम्बन्ध में ग्राहकों को विश्वसनीयता, तत्परता, नम्रता आदि का प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिए।

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Pankaja Singh

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