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प्रूफ-पठन | प्रूफ संशोधन संकेत

प्रूफ-पठन | प्रूफ संशोधन संकेत

प्रूफ-पठन

संपादकीय विभाग से जो सामग्री कंपोज करने के लिए कंपोजिंग विभाग को भेजी जाती है वह ठीक-ठीक कंपोज हुई या नहीं, उसमें कोई गलती तो नहीं रह गयी, यह देखना प्रूफ बीडर का काम है। कभी-कभी तो प्रूफ रीडर एडिटोरियल की गलतियाँ भी सुधार देता है। यदि संपादकीय विभाग अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेता है और झूठ-मूट का अहं नहीं पालता तब तो प्रूफ रीडर का महत्व बढ़ जाता है, लेकिन यदि ऐसा नहीं करता तो कभी-कभी समस्याएँ। भी खड़ी हो जाती हैं। वैसे प्रूफ रीडर से यह उम्मीद की जाती है कि कंपोज मैटर को वह मूल प्रति से मिलाये और उसमें कोई त्रुटि पाये, चाहे वह तथ्य संबंधी हो, भाषा संबंधी हो या व्याकरण संबंधी, सबको इंगित ही न करे बल्कि उसे संशोधित भी कर दे। यों तो मक्षिका स्थाने मक्षिका रखने तक ही उसकी भूमिका मानी जाती है लेकिन यदि वह पढ़ा-लिखा हो, विद्या व्यसनी हो तो और भी अच्छा माना जाता है।

जब से कंपोजिंग कम्प्यूटर पर होने लगी है तब से संवाददाता/उपसंपादक ही स्टोरी कंपोज करता है। वह प्रूफ भी पढ़ देता है और होने वाली गलतियों को सुधार भी देता है। ऐसे में प्रूफ रीडर की भूमिका प्रायः समाप्त हो गयी है या नहीं के बराबर कह गयी है लेकिन पारंपरिक रूप से जहाँ यह पद जीवित है वहाँ कापी होल्डर भी है और प्रूफ रीडर भी। मैटर के कंपोज होने से प्रिंट आर्डर तक प्रूफ़ रीडिंग के भी कई स्तर हैं-

  1. गेली प्रूफ़ (Galley Proof)
  2. मेकअप प्रूफ़ (Make-up Proof)
  3. प्रथम प्रूफ़ या पेज प्रूफ़ (First Proof or page Proof)
  4. दूसरा प्रूफ़ (Second Proof)
  5. तीसरा प्रूफ़ (Third proof)
  6. प्रिंट आर्डर प्रूफ़ या अंतिम प्रूफ़ (P.O. Proof or Final Proof)

आमतौर पर छोटे प्रतिष्ठानों में प्रूफ पढ़ने की व्यवस्था कंपोजिंग विभाग में ही होती है लेकिन बड़े मुद्रणालयों या प्रकाशन प्रतिष्ठानों में प्रूफ रीडिंग विभाग अलग से होते हैं जिनमें एक से अधिक प्रूफ रीडर नियुक्त किये जाते हैं। उनमें एक प्रोडक्शन मैनेजर तथा एक संपादक के अलावा निम्नलिखित नियुक्तियाँ की जाती हैं-

  1. मुख्य या प्रधान प्रूफ रीडर
  2. प्रथम ग्रेड प्रूफ रीडर
  3. द्वितीय ग्रेड प्रूफ रीडर
  4. कापी होल्डर

कापी में आयी गलतियों को सही करने की जितनी जिम्मेदारी संपादकीय विभाग की होती है, उतनी ही प्रूफ रीडर्स की। इसी जिम्मेदारी को मद्देनज़र रखते हुए प्रेस आयोग ने अपने प्रतिवेदन में समाचार पत्र में काम करने वाले प्रूफ रीडरों को पत्रकार की कोटि में रखने का सुझाव दिया था। लेकिन प्रेस के मालिक इस बात के लिए तैयार नहीं थे, बावजूद इसके अखिल भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ और उसकी अमेक शाखाओं ने सर्वोच्च न्यायालय से यह निर्णय प्राप्त कर लिया कि समाचार-पत्र के प्रूफ़ रीडर श्रमजीवी पत्रकार की कोटि में हैं। बहुत से मालिकों की नजर में तो आजकल पत्रकारों की ही कोई कीमत नहीं, फिर प्रूफ रीडर किस खेत की मूली हैं। प्रेमनाथ चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘समाचार संपादन’ में कुछेक बड़े मजेदार उदाहरण जुटाये हैं, जो प्रूफ़ रीडर की अनदेखी के कारण होते हैं, जैसे-

  1. ‘नंगा’ की जगह ‘गंगा’ “आखिर क्या कारण है कि देश जितना ज्यादा कपड़ा पैदा करता है, आदमी उतना ही ज्यादा गंगा होता जाता है।”
  2. “हत्या के आरोप में नर्स बंदी’ के स्थान पर हो गया ‘हत्या के आरोप में नसबंदी।
  3. “वेद्य ने नाड़ी पकड़ते ही बता दिया की तरुणी गर्भवती है।” के स्थान पर- “वैद्य,ने नाड़ी पकड़ते ही बता दिया था कि तरुणी गर्भवती है”
  4. “छापाखाने में जाते-जाते हमें घटना का समाचार मिला” की जगह हो गया- “पाखाने में जाते-जाते हमें घटना का समाचार मिला।
  5. ‘अ’ के गलत स्थान पर चले जाने से कितना अनर्थ हो सकता है, इसकी कल्पना पाठक निम्नलिखित उदाहरण से कर सकते हैं-“रामलीला सत्य पर असत्य की विजय का नाम है।”

प्रूफ-संशोधन संकेत (Proof Marks)

आम आदमी कंपोज्ड मैटर को जब पढ़ता है तो वह बाडी के अंदर जहाँ त्रुटि देखता है, वहीं शुद्ध करने लग जाता है, लेकिन प्रूफ रीडर ऐसा नहीं करता क्योंकि वह जानता है किस प्रकार की गलती के लिए कौन सा निशान लगाना है। उसका वह निशान ही कंपोजीटर समझता है। इसलिए प्रूफ रीडिंग के कुछ निशान तय किये गये हैं जिन्हें हर नये व्यक्ति को जो इस पेशे में दाखिल हो रहा है, जानना बहुत जरूरी है। यदि आप किसी प्रकाशन प्रतिष्ठान में खासकर प्रूफ पढ़ने पर लगा दिये जायँ और निशान न जानें तो आप अच्छा-खासा बेवकूफ बन सकते हैं। और लोग आपका मजाक भी उड़ा सकते हैं। इसलिए प्रूफ के निम्न चिह्न दिये जा रहे हैं :

स्पेस नीचे दबाओ

अक्षरों को आपस में मिलाओं जैसे क म ल

स्पेस कम करें, जैसे गुप्त जी

प्रूफ शोधक (प्रूफ रीडर) प्रूफ एक निश्चित संकेतों के आधार पर पढ़ता है। वैज्ञानिक व तकनीकि शब्दावली के स्थायी आयोग द्वारा यह निर्धारित शब्दावली निश्चित की गई है, किन्तु व्यवहार में कुछ संकेत ही काम में आते हैं।

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Pankaja Singh

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