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विज्ञापन की परिभाषा | विज्ञापन का कार्य | समाचारपत्रों में विज्ञापन का बढ़ता महत्त्व | विज्ञापित वस्तुएँ एवं सेवाएँ

विज्ञापन की परिभाषा | विज्ञापन का कार्य | समाचारपत्रों में विज्ञापन का बढ़ता महत्त्व | विज्ञापित वस्तुएँ एवं सेवाएँ

विज्ञापन की परिभाषा और उसका कार्य

विज्ञापन का तात्पर्य विभिन्नों सन्दर्भो में अलग-अलग व्यक्त किया जाता है। इस सम्बन्ध में लोगों के अलग-अलग विचार भी हैं। कुछ इसे मात्र प्रचारका एक साधन मानते है, तो कुछ एक प्रकार का विनियोजन, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय का विकास होता हैं।

एक परिभाषा के अनुसार विज्ञापन शब्द के अन्तर्गत किसी प्रकार का वह कार्य शामिल हैं, जिसमें विक्रय योग्य वस्तुओं अथवा सेवाओं के विक्रय को प्रोत्साहन देने के लिए सूचना का प्रचार किया जाता हैं।

विज्ञापन वस्तुओं अथवा सेवाओं की बिक्री का महत्वपूर्ण साधन है। इसका प्रमुख कार्य यद्यपि सूचना देना है, पर सूचना देने में भी एक प्रकार की प्रेरणा होती है। अर्थात पाठक जो एक उपभोक्ता भी है, के मन में एक ऐसी भावना या विचार उत्पन्न किया जाये, जिससे वह विज्ञापित वस्तु या सेवा को खरीदने के लिए पारित हो। इसी उद्देश्य से प्रकाशित विज्ञापन में वस्तुओं या सेवाओं के विभिन्न गुणों का जिक्र किया जाता है।

ज्यों ज्यो उत्पादन बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों उसे शीघातिशीघ्र बेचने की जरूरत भी बढ़ती जाती है। विज्ञापन इस कार्य में बहुत सहायता करता है। जब उपभोक्ता के मन में किसी चीज को खरीदने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है, तब वह किसी न किसी तरह उसे खरीदने की कोशिश करता है। समाचार-पत्रों में दिये गये विज्ञापनों का कार्य इस मामले में और ज्यादा महत्त्वपूर्ण समझा जाता है, क्योंकि वे उपभोक्ता में एक संतत् प्रेरणा जाग्रत रखते हैं।

औद्योगिक विकास के साथ-साथ विज्ञापन का भी तेजी से विकास हुआ है। आज लोग विज्ञापन के महत्व को स्वीकार के साथ-साथ करने लगे हैं। उपभोक्ता का भी तेजी से विकास समाचार- पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों के अलावा अन्य साधनों द्वारा विज्ञापित वस्तुओं के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करता हैं। विज्ञापन का कर्य सूचना देना और ज्ञान वृद्धि करना भी माना जाता है।

समाचारपत्रों में विज्ञापन का बढ़ता महत्त्व-

अक्सर समाचार-पत्रों में इतने ज्यादा पृष्ठ होते हैं और तुलनात्मक रूप से उसका मूल्य इतना कम होता है कि लोग अक्सर पूछते हैं, “यह समाचार-पत्र इतने कम मूल्य में कैसे बिकता है “इस सवाल का एक ही जवाब होता है, “लागत का शेष भाग समाचार-पत्र की जगह बेच कर पूरा करता है और इसी कारण समाचार- पत्र सस्ता बिकता है।”

एक समाचार-पत्र में जितने ज्यादा विज्ञापन समाचार-पत्र होते हैं, समाचार के लिए उतनी ही अधिक जगह दी जा सकती है। इस कारण समाचार-पत्र कोई पृष्ठों का होने के बाद भी कम मूल्य पर बिकता है। व्यापारिक समाचार-पत्रों में वृद्धि के साथ-साथ समाचार-पत्रों के आर्थिक ढाँचे में एक मूलभूत परिवर्तन हुआ है। विक्रय सेवा में विस्तार के कारण समाचार-पत्र आज विज्ञापन का शक्तिशाली माध्यम बन गया है।

विज्ञापन का विकास-

1920 में जब हमारे देश में औद्योगिक युग की शुरूआत हुई, तो भारतीय विज्ञापनों में तेजी से वृद्धि हुई। उसके बाद सन् 1947 में जब देश स्वाधीन हुआ, विज्ञापनों को सबसे ज्यादा प्रोत्साहन मिला। आज विज्ञापन भारत के औद्योगिक और व्यापारिक जीवन की एक महत्त्वपूर्ण और सुसंठित शाखा के रूप में विकसित हो चुका है। इस प्रकार विज्ञापन द्वारा समाचार-पत्रों को काफी आय होती है, किन्तु विज्ञापन समाचार-पत्र की विक्रय-संख्या पर आधारित रहता है, जिस पत्र की बिक्री जितनी ज्यादा होगी, विज्ञापन भी उतने ही ज्यादा मिलेंगे, जब समाचार-पत्र की अंक प्रतियाँ बिकने लगती है, तो वह विज्ञापन की उतनी ही ज्यादा दर निर्धारित करता हैं।

1953 में प्रेस कमीशन ने अनुमान लगाया था कि विज्ञापन एजेंसियों द्वारा 7 करोड़ रुपया प्रेस में विज्ञापन पर खर्च किया गया था। 1958 में यह लगभग 15 करोड़ था और यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भारतीय उद्योग और व्यापार हर तरह के विज्ञापनों पर 50 से 60 करोड़ रुपये खर्च करता है। योजना काल में देश के उद्योगों ने बड़ी तेजी से प्रगति की है। कृषि से लेकर उद्योग की सभी इकाइयों में अनगिनत सामग्रियों का उत्पादन होने लगा और तीन योजनाकालॉ में उद्योगों की प्रगति के साथ-साथ विज्ञापन की मात्रा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

विज्ञापित वस्तुएँ एवं सेवाएँ-

समाचार-पत्रों में विज्ञापित वस्तुओं को कुछ विशेष वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. वस्त्र- वस्त्रों और तैयार कपड़ों का विज्ञापन बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसमें सूती और ऊनी वस्त्र, कृत्रिम वस, बुने हुए कपड़े, तैयार ड्रेसें, मोजे और टाइयाँ आदि शामिल हैं। जहाँ चार-पांच साल पहले बहुत थोड़े वस्त्र उत्पादक विज्ञापन देते थे, वहाँ अब इनकी संख्या निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। इस तरह के विज्ञापनदाता सुन्दर चित्रों के साथ प्रदर्शन विज्ञापन प्रकाशित करवाते हैं।
  2. सौन्दर्य प्रसाधन- यद्यपि इस वर्ग के अन्तर्गत सैकड़ों वस्तुओं का विज्ञापन किया जाता है, किन्तु कुछ विशेष वस्तुओं के विज्ञापन उल्लेखनीय हैं। उदाहरण के लिए मैक्लीन्स, कोलीनास, बिनाका टूथपेस्टों के विज्ञापनों अच्छे होते हैं।
  3. बैंकिंग और बीमा- जीवन बीमा निगम, स्टेट बैंक आफ इण्डिया जैसे सार्वजनिक संस्थानों के अलावा अन्य बैंक भी विज्ञापन देते हैं। राष्ट्रीयकृत या बड़े बैंकों को भी अपनी बहुत पुरानी विज्ञापन परम्परा हैं। जीवन बीमा निगम के कुछ विज्ञापन अत्यन्त प्रभावशाली और प्रेरक होते हैं। स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया छोटे व्यापारियों आदि की सहायता के विज्ञापन अच्छे ढंग से प्रकाशित करता है।
  4. मोटर गाड़ियाँ तथा उपयोगी सामग्री- यातायात के विकास के साथ-साथ इनके विज्ञापनों में भी वृद्धि होती जा रही है। इनमें अशोक लेलैण्ड, प्रीमिया ऑटोमोबाइल्स (डांज फार्गो ट्रक) आदि के विज्ञापन भी आते हैं। इस तरह के विज्ञापन विशेष वर्ग के पाठकों को ही आकर्षित कर पाते हैं।
  5. डिब्बों में बंद खाद्य और पेय- चाय और काफी के बहुत विज्ञापन देखे जा सकते है। विशेष रूप से ब्रुफ बाण्ड चाय, लिपटन चाय, नेस्केफे, बोन काफी आदि के विज्ञापनों को किसी न किसी समाचार-पत्र में देखा ही जा सकता है। ओवल्टीन, बोर्नवीटा जैसे पौष्टिक पेय भी विज्ञापित होते हैं। डिब्बों बन्द भोजन के भी विज्ञापन दिनों-दिन बढ़ते जा रहे हैं। इसी तरह अमूल मक्खन, गोल्ड स्पॉट, कोकाकोला, पार्ले बिस्कुट आदि इस तरह के कुछ अन्य पदार्थ है।

दवाइयाँ- बिना चिकित्सक की सलाह के तथा विशेष तरह की औषधियों का विज्ञापन भी अक्सर किया जाता है। ग्राइप वाटर, अमृतांजन, एस्प्रो, एनासिन, सेसाडिन, विमग्रान आदि कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। वजन घटाने-बढ़ाने, कद बड़ा करने की दवाइयाँ भी विज्ञापनों में दिखती हैं।

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Pankaja Singh

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