वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद | वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद के क्षेत्र | आशु अनुवाद

वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद | वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद के क्षेत्र | आशु अनुवाद

वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद

विज्ञान का अध्ययन-अध्यापन प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर तक हिन्दी में होने लगा है फिर भी हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी में पढ़ना-पढ़ाना लोगों को ज्यादा सहज लगता है। इसकी खास वजह शायद यह है कि विज्ञान का अधिकांश साहित्य अंग्रेजी में है। भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद एवं प्रचार-प्रसार दोनों चुनौती भरा काम है क्योंकि वैज्ञानिक साहित्य में सामान्य अर्थवाची शब्द कम ही होते हैं, तकनीकी शब्दावली ही की अधिकता होती है। तकनीकी शब्दावली के साथ बड़ी समस्या यह है कि उनका अनुवाद इच्छानुसार नहीं किया जा सकता। उनके लिए तकनीकी शब्द कोशों की ही मदद ली जा सकती है, लेकिन आम लोग तकनीकी शब्दावली से वाकिफ नहीं होते इसलिए जब वे शब्द यकायक उनके सामने आते हैं तो उन्हें कठिनाई का अनुभव होता है। लेकिन बार-बार उनके प्रयोग में आते रहने से शब्द जन- जीवन में रच-बस जाते हैं जैसे ‘टेम्परेचर’ के लिए ‘तापमान’, ‘इलैक्ट्रानिक इनर्जी के लिए परमाणु ऊर्जा तथा ‘सैटेलाइट’ के लिए ‘उपग्रह‘ ऐसे ही शब्द हैं जो पहली सुनने में अटपटे लगे होंगे, लेकिन अब आम आदमी भी इनका इस्तेमाल करता है और इनका अर्थ समझता है। लेकिन विदेशों से आ रही नित्य नूतन वैज्ञानिक शब्दावली के लिए भारतीय भाषाओं में शब्द गढ़ना मुश्किल काम तो है ही भी वह निरंतर हो रहा है। कुछ वैज्ञानिक शब्दावलियों तो थोड़े मोड़े तब्दीली के साथ भारतीय भाषाओं में वैसे ही इस्तेमाल कर ली जाती है। बाद में उनके लिए नयी शब्दावलियों की ईजाद की जाती है। शैक्षणिक दुनिया के अलावा व्यापार, सुरक्षा और चिकित्सा आदि अन्य क्षेत्रों से भी नित्य आ रही नूतन शब्दावलियों का भारतीय भाषाओं में तर्जुमा हो रहा है। जैसे अमेरिका और रूस नाभिकीय शस्त्रास्त्रों के आविष्कार के मामले में अग्रणी हैं और जापान इलैक्ट्रॉनिक्स के मामले में ला मोहाला ये देश अपनी-अपनी भाषाओं में वैज्ञानिक शोध एवं प्रयोग का कार्य करते हैं और जब वह शब्दावली भारत में आती है, तब उसका अनुवाद भारतीय भाषाओं में होता है। लेकिन वैज्ञानिक लेखों का अनुवाद बड़ी समस्या तो है ही। दरअस्ल आधुनिक पश्चिमी भाषाओं में जो आधुनिक विज्ञान विकसित हुआ है, उसने प्रारम्भ में ग्रीस एवं लैटिन के तकनीकी शब्दों को स्वीकार किया और उन्हीं शब्दों में नये शब्द बनाये गये। हाँ, ऐसे शब्दों का गठन कभी यौगिक प्रवृत्ति के आधार पर हुआ, तो कभी किसी व्यक्ति, स्थान आदि का स्मरण कराने के लिए तो कभी इचछानुसार जैसे न्यूक्लियर एनर्जी, पोलोनियम, रमन इफेक्ट और बी.सी.जी. आदि।

वैसे वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद के दो पक्ष हैं- (1) शुद्ध तकनीकी अनुवाद, (2) लोकप्रिय अर्द्धतकनीकी अनुवाद। दरअसल विज्ञान की दृष्टि से विकसित भाषाओं में तकनीकी शब्दावली प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जबकि विकासशील भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित नहीं है। इसलिए वहाँ अनुवाद को तकनीकी शब्दों का अनुवाद स्वयं करना पड़ता है। लेकिन अनुवादक की इच्छानुसार तकनीकी शब्दों का इस्तेमाल कभी-कभी भ्रामक हो जाता है। बहरहाल, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दों के अनुवाद के स्वीकृत सिद्धान्तों का डॉ. एन.ई. विश्वनाथ अय्यर ने ‘अनुवाद कला’ में कुछ यों जिक्र किया है-

  1. जो अन्तर्राष्ट्रीय संज्ञाएं है, उन्हें केवल लिप्यंतरित किया जाये।
  2. वैज्ञानिक व तकनीकी लेखन में जो अन्तर्राष्ट्रीय चिन्ह स्वीकृत है, उन्हें ज्यों का त्यों स्वीकार किया जाय।
  3. अन्य भाषाओं के स्वीकृत शब्दों का प्रयोग वाक्यों में करते समय लक्ष्य भाषा की प्रकृति के अनुसार उनका अनुकूल करना चाहिए।
  4. तकनीकी भाषा की संकररूपता या विलक्षणता से घबराना नहीं चाहिए।
  5. जहाँ वैज्ञानिक सामग्री का लोकप्रिय प्रस्तुतीकरण हो, वहाँ लक्ष्य-भाषा में प्रचलित अर्द्ध-तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।
  6. आधुनिक विज्ञान के अनुवाद के दौरान विदेशी और भारतीय शब्दों के मेल से बने शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

वैसे लोकप्रिय अनुवाद तथा तकनीकी अनुवाद के बीच में स्वतन्त्र अनुवाद या रूपांतरण भी एक रास्ता है। दरअसल कठिन वैज्ञानिक ग्रंथों के सफल व अच्छे अनुपादों के अभाव में विद्वानों के बीच रास्ता निकाला कि मूल भाषा के दुर्लभ ग्रंथों को पढ़ाने के बाद अपनी तरफ से उन ग्रंथों को नये सिरे से लक्ष्य भाषा में रखना चाहिए।

अंग्रेजी के वैज्ञानिक एवं तकनीकी ग्रंथों के सटीक अनुवाद में सबसे बड़ी समस्या अंग्रेजी विशिष्ट शैली है। डॉ. एन. ई. विश्वनाथ अय्यर ने केरल के एक विज्ञान लेखक का हवाला देते हुए कहा है कि वैज्ञानिक अंग्रेजी भाषा तथ्य प्रधान होती है। अंग्रेजी शब्दों की दो विशेषताएँ होती हैं, सूक्ष्मर्थिता एवं किफायत। किसी-किसी वैज्ञानिक ग्रंथ की वाक्य-संरचना बड़ी जटिल होती है। लेकिन विज्ञान में सामान्यतः बड़े वाक्यों को तोड़कर छोटे वाक्यों शैली स्वीकार की जा सकती है किन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि वाक्यों का सम्बन्ध दृढ़ बना रहे और अर्थ की भ्रांति न हो। इसके अलावा अनुवाद में मुख्य समस्या वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली के अनुवाद की भी आती है। इसमें क्रिया रूप एवं छोटे-छोटे पदबन्ध भी शामिल हैं। आमतौर पर लोग केवल इतना ही सोच पाते हैं कि अनुवाद करते समय सरल शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन वैज्ञानिक शब्दों की बारीकी जाने बिना सरल से सरल अनुवाद की कोई उपयोगिता नहीं।

आशु अनुवाद

दो मित्र भाषाओं के भावों और विचारों का तात्कालिक अनुवाद ‘आशु अनुवाद’ या ‘वातानुवाद कहलाता है। जो व्यक्ति ऐसा अनुवाद करता है, उसे ‘दुशभाषिया’ कहा जाता है। इस प्रकार के अनुवाद के लिए अनुवादक का स्त्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। यानी अनुवाद जितना ही प्रतिभाशाली होगा, उसका उतना ही महत्व भी होगा। वैसे आशु अनुवाद का कार्य बहुत जोखिम भरा होता है क्योंकि उसकी जरा-सी गलाती से दो देशों या राष्ट्राध्यक्षों के बीच तनाव मनमुटाव भी हो सकता है। आज तो दुनिया भर में इस प्रकार के अनुवाद का महत्व और बढ़ गया है क्योंकि युद्ध हो या कोई सन्धि, व्यापार हो या सांस्कृति आदान-प्रदान, किसी देश के प्रधानमंत्री हो या विदेश मंत्री, किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष हों या अन्य महत्वपूर्ण नेता, उनकी बातों को एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए आशु अनुवादक की हमेशा जरूरत पड़ती ही है।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- [email protected]

Leave a Comment