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हिन्दी में कम्प्यूटर का प्रयोग | कम्प्यूटर तकनीक एवं हिन्दी भाषा | शब्द-संसाधन

हिन्दी में कम्प्यूटर का प्रयोग | कम्प्यूटर तकनीक एवं हिन्दी भाषा | शब्द-संसाधन

हिन्दी में कम्प्यूटर का प्रयोग

सोलहवाँ शताब्दी में जब औद्योगिक क्रांति हुई थी, तब किसी को अंदाता नहीं था कि इससे भी बढ़कर कुछ और प्रगति हो सकती है। किन्तु आविष्कारो के सम्बद्ध में सदैव यही कहावत चरितार्थ होती है कि आसमां और भी हैं। औद्योगिक क्रांति को स्वीकार करने में मानव- समाज को चार शताब्दियाँ लग गयीं, किन्तु सूचना और तकनीकी क्रांति ने पिछले पचास वर्षों में विश्व का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया। आज के मानव के व्यक्तिगत, सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन में सूचना एवं तकनीक क्रांति ने एक आक्रान्ता के समान प्रभाव एवं दबाव बना रखा है। कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी, आज सूचना-संसाधन और संप्रेषण इंजीनियरों की सर्वाधिक उपयोगी एवं प्रिय तकनीक सिद्ध हो रही है। कम्प्यूटर हमारा श्रम और समय तो बचाता ही है, कार्य की भी सुविधाजनक बनाता है। विश्व में ‘हिन्दी’ आज द्वितीय भाषा के स्थान पर पहुँच चुकी है। कम्प्यूटर का प्रयोग भारत में तेजी से बढ़ा है। (हिन्दी में शब्द-संसाधन, आँकड़ा-संसाधन, वर्तनी-शोधक, मशीनी अनुवाद तथा भाषा-शिक्षण के अंगों तथा उसकी आधारभूत कार्य प्रणाली को जान लेना अति आवश्यक है। कम्प्यूटर एक मशीन अथना यंत्र है

जिससे निम्नलिखित आधारभूत तत्त्व है-

(1) इनपुट डिवाइस (Input Device) |

(2) सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)

(3) आउटपुट डिवाइस (Output Device)

(4) वृहद् भंडारण इकाई (स्मृति इकाई) (Memory Unit)

कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली को समझने के लिए कम्प्यूटर के अंगो की अन्योन्याश्रितता को जानना आवश्यक है। कम्प्यूटर के अंगो के परस्पर तालमेल को निम्न चित्र की सहायता से भली-भाँति समझा जा सकता है-

केन्द्रीय

  • संसाधक इकाई (CPU)
  • स्मृति इकाई (Memory Unit)
  • आउटपुर डिवाइस (OPD)
  • इनपुट डिवाइस (IPD)

कम्प्यूटर तकनीक एवं हिन्दी भाषा-

कम्प्यूटर एवं भाषा के मध्य द्विदिशात्मक एवं द्विपक्षीय सम्बन्ध भाषा अपने कुछ प्रयोजनों को सिद्ध करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग साधन  के रूप करती है तथा कम्प्यूटर कुछ प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भाषा का प्रयोग साधन के रूप में करता है, यथा-भाषा पर आधारित विभिन्न कार्य, जैसे- मुद्रण, टंकण, कोश-निर्माण, भाषा- शिक्षण, सूचना-संचयन तथा संपादन आदि के लिए कम्प्यूटर का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया जाता है। इसी प्रकार कम्प्यूटर भी भाषा के व्याकरण और शब्द-कोश का प्रयोग कर अपने अनेक ज्ञानात्मक एवं कृत्रिम बुद्धि आधारित कार्य, जैसे-मशीनी अनुवाद, पाठ-बोधन, पाठ-प्रजनन, Text generation प्रणाली, मानव-मशीन, इंटरफेस, स्पीच टु टेक्स्ट आदि सम्पन्न करता है। संक्षेप में कम्प्यूटर भाषा को उपकरण के रूप में प्रयोग करता है तथा भाषिक व्याकरण एकम् नियम आदि के लिए भाषा पर आधारित रहता है। कम्प्यूटर की सबसे बड़ी एवं पहली आवश्यकता है- भाषा में रूपों की विविधता को कम से कम करना। उदाहरण के लिए एक ही भाषा के एक अक्षर को दो रूपों में लिखना या संयुक्त अक्षर के दो-दो रूप व्यवहार में लाना भाषा की व्यावहारिकता में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। ऐसे में कुंजीपटल में प्रत्येक वर्ण के लिए. कुंजियों की संख्या दोगुनी करनी पड़गी। अर्थात् जैसे हिन्दी के अक्षर अ के लिए दो रूप और ‘अ’ रखे जाएँ या ‘झ’ के लिए ‘झ’ या ‘फ’ दोनों रूप माने जाएँ तो एक ही शब्द के लिए दो कुंजी बनानी होंगी। इसी प्रकार संयुक्ताक्षर की भी समस्या आती है, जैसे-‘क्त’ और ‘क्त’ अथवा ‘द्य’ और ‘द्य’ आदि यहाँ भी एकरूपता रखनी होगी। इसी प्रकार की अन्य भाषायी एकरूपता की आवश्यकता कम्प्यूटर की कार्यप्रणाली की सुगमता एवं सरलता के लिए आवश्यक है।

शब्द-संसाधन-

शब्द संसाधन (Word-processor) कुछ अवयवों से मिलकर बनता है। ये अवयव आपस में मिल-जुलकर एक व्यवस्था का निर्माण करते हैं। शब्द-संसाधनों को भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) बाह्य उपकरण तथा

(2) आंतरिक उपकरण।

(1) बाह्य उपकरण- बाह्य उपकरण से पाठ को स्मृति तक प्रेषित किया जाता है तथा वहाँ से पाठ को प्राप्त किया जा सकता है। इसे भी दो वर्गों में रखा जा सकता है- (i) इनपुट डिवाइस तथा (ii) आउटपपुट डिवाइस

(i) इनपुट डिवाइस (Input Device) – इसके अंतर्गत कुंजीपटल (Key-Board) फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive), स्कैनर तथा माउस (Mouse) आदि आते हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है-

(क) कुंजीपटल (Key-Board) –  यह वह उपकरण है जहाँ अथवा जिसके द्वारा पाठ को शब्द संसाधक में टंकित (Type) करके भेजा जाता है तथा स्क्रीन (Screen), मॉनीटर (Monitor) अथवा फलक या परदे पर दर्शाया जाता है। एक अच्छा टर्मिनल (Key-Board तथा Screen) लगभग 80 अक्षर प्रति पंक्ति वाली लगभग 24 पंक्तियाँ प्रदर्शित कर सकता है। आजकल हिन्दी में कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के कुंजी-पटल उपलब्ध हैं।

(ख) फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive)-  यह टेपरिकार्डर से मिलता- जुलता उपकरण है। इसमें फ्लॉपी डिस्क से सूचना प्राप्त करने का काम लिया जाता है। इस की एक विशेषता यह है कि यह इनपुट डिवाइस होने के साथ-साथ आउटपुट डिवाइस उपकरण भी है। इसकी सहायता से कम्प्यूटर में डाले गए पाठ को इसी के माध्यम से फ्लापी डिस्क में डालकर प्राप्त भी किया जा सकता है।

(ग) माउस (Mouse) अथवा प्वाइंटिंग डिवाइस (Pointing Device)-  आधुनिक कम्प्यूटरों में माउस द्वारा भी फ्लापी डिस्क या स्कैनर के पाठ प्राप्त कर स्मृति (Memory) में भेजने की सुविधा होती है। यद्यपि यह कार्यक्षमता में वृद्धि में सहायक है, फिर भी इसे इनपुट डिवाइस में रखा जाता हैं।

(घ) स्कैनर (Scanner)-  यह फोटोस्टेट करने वाली मशीन जैसा ही उपकरण है। इसमें एक काँच की सतह होती है। जिस पाठ अथवा पृष्ठ को कम्प्यूटर में स्मृति में ले जाना होता है, उसे कांच की सतह पर रखकर स्कैन किया जाता है।

(ii) आउटपुट डिवाइस (Output Device) – यह केन्द्रीय संसाधक इकाई (Central Processing Unit) (CPU) से पुनः सूचना प्राप्त करती है तथा उन्हें मानव द्वारा पढ़ने योग्य बनाती है। इसमें फ्लापी डिस्क ड्राइव तथा प्रिन्टर आदि आते हैं। कम्प्यूटर को ‘प्रिन्ट’ का आदेश देकर प्रिन्टर के माध्यम से पाठ को प्राप्त किया जा सकता है।

हिन्दी में शब्द-संसाधन-

कम्प्यूटर आधुनिक युग की तकनीकि क्रांति का चमत्कार है। और यह आया भी पश्चिम से है। हिन्दी भाषा को कम्प्यूटर पर अपनी सामर्थ्य का प्रर्दशन करने के लिए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए उपयुक्त कुंजीपटल का विकास हार्डवेयर सम्बन्धी सबसे बड़ी और पहली चुनौती थी। आरम्भ में यांत्रित टाइपराइटरों की प्रणाली पर ही देवनागरी लिपि के कुंजी-पटल का विकास किया गया, जो आज भी काम में आ रहा है। भारत बहुभाषी देश है, फिर भी अधिकांश भाषाओं का शब्द-संपदा का आधार संस्कृत होने तथा ध्वन्यात्मक लिपि होने से सभी भारतीय भाषाओं की लिपियों के लिए एक समन्वित कोड विकसित करने के लिए देश के विज्ञान-विशेषज्ञ प्रयासरत रहे, जिससे कि एक ही कुंजीपटल से अधिक से अधिक लिपियों का टंकण हो सके। इस प्रयास में भारत सरकार के तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिक विभाग, I.I.T. (India Institute of Technology), कानपुर तथा सी-डेक का महत्त्वपूर्ण योग रहा। संस्कृत का आधार तथा ब्राह्मी लिपि के वैज्ञानिक आधार पर हिन्दी तथा अन्य ग्यारह भाषाओं का एक समन्वित कोड विकसित होने में सफलता मिली। इस कुंजी-पटल को ध्वन्यात्मक कुंजी-पटल की संज्ञा दी जाती है।

हिन्दी में आँकड़ा-संसाधन-

हिन्दी में आँकड़ों के संसाधन के लिए द्विभाषित संकलन अथवा आँकड़ा संचय प्रबन्ध-तन्त्र उपलब्ध है। इनका भी केवल डॉट मैट्रिक्स (Dot matrix) अथवा लेजर प्रिन्टर (Laser priter) के साथ ही प्रयोग किया जाता है। हिन्दी के लिए कम्प्यूटर की विभिन्न भाषाओं, यथा-सी, (C), बेसिक कंपाइलर (Basic compiler), डी-बेस (De- Base) द्विभाषिक आँकड़ा-संचय प्रबन्ध-तन्त्र आदि तैयार किये जाते हैं। फ्लॉपी से ‘सुलिपि’ साफ्टवेयर कम्प्यूटर Personal computer (P.C.), को भी द्विभाषिक (हिन्दी तथा अंग्रेजी) रूप में चलाया जा सकता है। यहाँ तक कि डी-बेस (De-Base), फॉक्स-प्रो (Fox-Pro), कोबोल (Cobole), पास्कल, एक्सल (Excel), लोटस (Lotus), ऑरेकल (Oracle) इत्यादि मानक पैकेजों को भी ‘द्वारा मानकीकृत देवनागरी के कुंजी-पटल तथा हिन्दी के मैनुअल टाइपराइटर (Manual typewriter) के कुंजीपटल (Key-Board) दोनों के ही अनुरूप है।.

हिन्दी- वर्तनी-शोधक-

‘वर्तनी’ का अर्थ है ‘वर्ण-विन्यास’। किसी शब्द को लिखने में वर्णों का जो अनुक्रम होता है, उसे हिन्दी में उस शब्द की ‘वर्तनी’ कहते हैं। इसी को अंग्रेजी में ‘स्पेलिंग’ (Spelling) तथा उर्दू में ‘हिज्जे’ कहते हैं। भाषा की शुद्धता के लिए वर्तनी की शुद्धता में उच्चारण एवं लिपि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी के विरोध में उठने वाले स्वरों में प्रमुखतः कठिन व्याकरण अथवा व्याकरण सम्बन्धी अनिश्चित्ता एवं लिपि सम्बन्धी चिह्नों की अस्पष्टता, विशेष मुद्दे रहे हैं। कम्प्यूटर के प्रयोग से इन सस्याओं के समाधान में काफी हद तक सुविधा मिली है।

हिन्दी की लिपि देवनागरी लिपि है। इसमें कुछ ध्वनियों के लिपि-चिह्न मिलते-जुलते हैं, जैसे-व और ब, भ और म, घ और ध, र, व और ख। इसी प्रकार द्ध और ध, क्ष ओर छ तथा श, ष, स के उच्चारण-भेद पर गंभीरता न रखने से भी अशुद्धि हो जाती है। कम्प्यूटर के प्रयोग से अब हिन्दी की वर्तनी की शुद्धता को सुनिश्चित करने में सहायता प्राप्त हो रही है। हिन्दी में वर्तनी-शोधन के लिए ‘ओशो कम्यून इंटरनेशलन’ ने एक हिन्दी वर्तनी-जाँच-ओशो-स्पेल बाइंडर (Osho Spell Binder) तथा हिन्दी शब्द-कोश-‘हिन्दी शब्द-सागर’ का विकास किया है। इसका प्रयोग मैकेन्टॉश कम्प्यूटर पर किया जा सकता है। ओशो स्पेल-बाइडर एक हिन्दी प्रूफरीडर है जो 1000 शब्द प्रति मिनट की गति से जाँच कार्य कर सकता है और यह इस प्रकार तैयार किया गया है कि इसके द्वारा सामान्य प्रचलन में होने वाली गलतियाँ दूर की जा सकें तथा वर्तनी में भी सुधार किया जा सके।

मशीनी अनुवाद : कम्प्यूटर और हिन्दी

भारत बहुभाषा-भाषी देश है। राजभाषा हिन्दी स्वीकृत होने के पश्चात् विभिन्न प्रान्तों में जहाँ हिन्दी से भिन्न भाषाएँ राजभाषा हैं, वहाँ सरकारी काम-काज में सुविधा एवं एकरूपता की दृष्टि से संविधान के आरम्भ से ही हिन्दी के प्राधिकृत पाठ के रूप में अंग्रेजी में बने नियम आदि का अनुवाद आवश्यक बताया गया था। आरम्भ में यह कार्य भाषा-विशेषज्ञों की देखरेख में होता रहा है, किन्तु कम्प्यूटर पर पहला अनुवाद 7 जनवरी, 1974 में हुआ था, जिसमें गणित से सम्बन्धित कुल साठ वाक्यों का रूसी से अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। भारत में भी हिन्दी से अंग्रेजी तथा इतर भारतीय भाषाओं के अनुवाद के सा-साथ विविध भारतीय भाषाओं से हिन्दी एवं अंग्रेजो में अनुवाद की दशा में गम्भीर प्रयास किये गये हैं।

कम्प्यूटर तथा हिन्दी भाषा-शिक्षण-

केन्द्रीय राजभाषा विभाग के प्रयासों से कम्प्यूटर पर हिन्दी भाषा के शिक्षण का प्रयास किया जा रहा है। कम्प्यूटर पर टाइपराइटर की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से टंकण-कार्य किया जाना सम्भव है। अतः दृश्य-पटल के माध्यम से अशुद्धि- शोधन भी शीघ्रता से संभव है। कम्प्यूटर पर शब्द-कोश की सुविधा भी उपलब्ध है। एक्जीक्यूटिव विकल्प का चयन करने से हिन्दी शब्दों और वाक्यों को अंग्रेजी की रोमन लिपि में टंकित किया जा सकता है, जो दृश्य-पटल पर स्वयमेव देवनागरी वर्गों में परिणत हो जाता है। इस प्रकार हिन्दी की लिपि ध्वनि आधारित देवनागरी होने के कारण कोई भी व्यक्ति हिन्दी की वर्णमाला के अक्षरों का तथा भाषा का ज्ञान सरलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। हिन्दी सीखने वाला व्यक्ति भाषा के स्वभाव को जानकर हिन्दी सीखकर व्यावहारिक प्रवीणता प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार देवनागरी के अंकों को भी सहजता से सीखा जा सकता है। एच. टी. एल. मद्रास द्वारा विद्यार्थी निदेशित बहुमुखी क्षमता वाला ‘विद्या’ पैकेज बनाया गया है। इसका कार्य ही प्रमुख रूप से हिन्दी भाषा-शिक्षण का है। यह विदेशी पर्यटकों के लिए अति लाभकारी सिद्ध हुआ है।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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