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संक्षेपण के नियम | संक्षेपण के शैलीगत नियम | संक्षेपण की प्रक्रिया

संक्षेपण के नियम | संक्षेपण के शैलीगत नियम | संक्षेपण की प्रक्रिया

संक्षेपण के नियम-

यद्यपि संक्षेपण के निश्चित नियम नहीं बनाये जा सकते, तथापि अभ्यास के लिए कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया जा सकता है। वे इस प्रकार है:

संक्षेपण के विषयगत नियम

  • मूल सन्दर्भ को ध्यानपूर्वक पढ़ें। जब तक उसका सम्पूर्ण भावार्थ (Substance) स्पष्ट न हो जाये, तब तक संक्षेपण लिखना आरम्भ नहीं करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि मूल अवतरण कम-से-कम तीन बार पढ़ा जाय।
  • मूल के भावार्थ को समक्ष लेने के बाद आवश्यक शब्दों, वाक्यों अथवा वाक्य खण्डों को रेखांकित करें, जिनका मूल विषय से सीधा सम्बन्ध हो अथवा जिनका भावों अथवा विचारों की अन्विति में विशेष महत्व हो। इस प्रकार, कोई भी तथ्य छूटने न पायेगा।
  • संक्षेपण मूल सन्दर्भ का संक्षिप्त रूप है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी अथवा आलोचना-प्रत्यालोचना न हो। संक्षेपण के लेखक को न तो किसी मंतवाद के खण्डन का अधिकार है और न अपनी ओर से मौलिक या स्वतन्त्र विचारों को जोड़ने की छूट है। उसे तो मूल के भावों अथवा विचारों के अधीन रहता है और उन्हें ही संक्षेप में लिखना है।
  • संक्षेपण को अन्तिम रूप देने के पहले रेखांचित वाक्यों के आधार पर उसकी रूपरेखा तैयार करनी चाहिए, फिर उसमें उचित और आवश्यक संशोधन (जोड़-घटाव) करना चाहिए। यहाँ एक बात ध्यान रखने की यह है कि मूल सन्दर्भ के विचारों की क्रमव्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि जिस क्रम में मूल लिया गया है, उसी क्रम में संक्षेपण भी लिया जाय। लेकिन यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसमें विचारों का तारतम्य बना रहे। ऐसा मालूम हो कि एक वाक्य का दूसरे वाक्य से सीधा सम्बन्ध बना हुआ है।
  • उक्त रूपरेखा को अन्तिम रूप देने के पहले उसे एक-दो बार ध्यान से पढ़ना चाहिए, ताकि कोई भी आवश्यक विचार छूटने न पाय। जहाँ तक हो सके, वह अत्यन्त संक्षिप्त हो। यदि शब्द संख्या पहले से निर्धारित हो, तो यह प्रयत्न करना चाहिए कि संक्षेपण में उस निर्देश का पालन किया जाय। सामान्यतया उसे मूल सन्दर्भ का एक-तिहाई होना चाहिए।
  • अन्त में, संक्षेपण को व्याकरण के सामान्य नियमों के अनुसार एक क्रम में लिखना

संक्षेपण के शैलीगत नियम

संक्षेपण में विशेषणों और क्रिया विशेषणों के लिए स्थान नहीं है। इन्हें निकाल देना चाहिए। संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए, उसे हर हालत में आडम्बरहीन होना चाहिए।

संक्षेपण में मूल के उन्हीं शब्दों को रखना चाहिए, जो अर्थव्यंजना में सहायक हों। जहाँ तक सम्भव हो, मूल के शब्दों के बदले दूसरे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मूल के भावों और विचारों में अर्थ का उलट-फेर न होने पाए।

संक्षेपण में मूल अवतरण के वाक्य खण्डों के लिए एक एक शब्द का प्रयोग होना चाहिए, जो मूल के भावोत्कर्ष में अधिक से अधिक सहायक सिद्ध हो। कुछ उदाहरण इस प्रकार है।

वाक्यखण्ड एक शब्द
एक से अधिक पत्नी रखने की प्रथा बहुपत्नीत्व
जिसका मन अपने काम में नहीं लगता अन्यमनस्क
जहाँ नदियों का मिलन हो संगम
किसी विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला विशेषज्ञ
कष्ट से होने वाला काम कष्टसाध्य

जहाँ मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हुआ हो, वहाँ उनके अर्थ को कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। मुहावरे के लिए मुहावरा रखना ठीक न होगा।

संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिए, इसलिए उपमा (Simile), उत्प्रेक्षा (Meta- phor) या अन्य अलंकारों का प्रयोग नहीं होना चाहिए, अप्रासंगिक बातों, उद्धरणों और विचारों की पुनरावृत्ति भी हटा देनी चाहिए। संक्षेपण की भाषाशैली स्पष्ट और सरल होनी चाहिए, ताकि पढ़ते ही उसका मर्म समझ में आ जाय।

संक्षेपण की भाषाशैली व्याकरण के नियमों से नियंत्रित होनी चाहिए, वह टेलिग्राफिक न हो। संक्षेपण में परोक्ष कथन (Indirect Narration) सर्वत्र अन्यपुरुष में होना चाहिए। जिस तरह किसी समाचार-पत्र का संवाददाता अपने वाक्यों की रचना में परोक्ष कथन का प्रयोग करता है, उसी तरह संक्षेपण में उसका व्यवहार होना चाहिए। संवादों के संक्षेपण में इसका उपयोग सर्वथा अनिवार्य है। ऐसा करते समय एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हिन्दी में जब वाक्यों को परोक्ष ढंग से लिखना होता है, तब सर्वनाम क्रिया या काल को बदलने की जरूरत नहीं होती, केवल ‘कि’ जोड़ देने से काम चल जाता है। लेकिन अंग्रेजी में ऐसा नहीं होता। एक उदाहरण इस प्रकार है-

प्रत्यक्ष वाक्य (Direct Narration)-राम ने कहा-‘मैं जाता हूँ।’

परोक्ष वाक्य (Indirect Narration)-राम ने कहा कि मै जाता हूँ।

संक्षेपण की वाक्यरचना में लम्बे-लम्बे वाक्यों और वाक्यखण्डों का व्यवहार नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे हर हालत में सरल और स्पष्ट होना चाहिए, ताकि एक ही पाठ में मूल के सारे भाव समझ में आ जायें। अतः संक्षेपण में शब्द इकहरे, वाक्य छोटे, भाव सरल और शैली आडम्बरहीन होनी चाहिए।

संक्षेपण में शब्दों के प्रयोग में संयम से काम लेना चाहिए। कोई भी शब्द बेकार और बेजान न हो। उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिनका प्रासंगिक महत्व है। मूल के उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जो भावव्यंजना और प्रसंगों के अनुकूल सार्थक हैं, जिनके बिना काम नहीं चल सकता। शब्दों को दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। अप्रचलित शब्दों के स्थान पर प्रचलित और सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

संक्षेपण से समानार्थी शब्दों को हटा देना चाहिए। ये एक ही भाव या विचार को बार-बार दुहराते हैं। इसे पुनरुक्तिदोष कहते हैं। अंग्रेजी में इसे Verbosity कहते हैं। उदाहरणार्थ- ‘आजादी स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, स्वच्छन्दता और मुक्ति को कहते हैं।’ यहाँ आजादी के लिए अनेक समानार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषण में प्रभाव जताने के लिए ही वक्ता इस प्रकार की शैली का सहारा लेता है। संक्षेपण में ऐसे शब्दों को हटाकर इतना ही लिखना चाहिए कि ‘आजादी मुक्ति का दूसरा नाम है।’ संक्षेपण की कला कम-से-कम शब्दों में निखरती है।

पुनरुक्तिदोष शब्दों में ही नहीं, भावों अथवा विचारों में भी होता है। कभी-कभी एक ही वाक्य में एक ही बात को विभिन्न रूपों में रख दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एक वाक्य इस प्रकार है-‘रंगमंच पर कलाकार क्रमशः एक-एक कर आये।’ इस वाक्य में क्रमशः शब्द ‘एक-एक कर’ के भाव को दुहराता है। दोनों का एक ही अर्थ है, इसलिए ऐसे शब्दों को हटा देना चाहिए। अंग्रेजी में इस दोष को Tautology कहते हैं।

अन्त में, संक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या लिख देनी चाहिए।

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Pankaja Singh

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