देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता | देवनागरी लिपि की विशेषताएँ | देवनागरी लिपि के गुण | देवनागरी लिपि के दोष | देवनागरी लिपि में सुधार के प्रयास (सुझाव)
देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता
संसार में अनेक भाषाएँ और अनेक लिपियां प्रचलित हैं। लिपि भाषा को अंकित करने वाला संकेत समूह है।
संसार की कुछ प्रसिद्ध लिपियाँ हैं-अंग्रेजी की रोमन लिपि, उर्दू की फारसी लिपि, संस्कृत- हिन्दी की देवनागरी लिपि, बंगला भाषा की बंगला लिपि, आदि।
कोई भी लिपि समग्र ध्वनियों को अंकित करने में सक्षम नहीं होती है। हर लिपि में जहाँ कुछ विशेषताएँ (गुण) हैं, वहीं कुछ दोष हैं अतः तुलनात्मक दृष्टि से हम उसी लिपि को वैज्ञानिक लिपि कह सकते हैं जिसमें गुण अधिक हों और दोष कम।
देवनागरी लिपि इसी अर्थ में वैज्ञानिक है क्योंकि उसमें गुण अधिक हैं, दोष कम। यहाँ हम देवनागरी के गुणों पर प्रकाश डालेंगे। साथ ही यह भी देखेंगे कि वह रोमन लिपि और फारसी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक लिपि कैसे बने।
देवनागरी लिपि की विशेषताएँ (गुण)
देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं-
(1) वर्ण विभाजन में वैज्ञानिकता- देवनागरी लिपि में स्वरों एवं व्यंजनों का वर्गीकरण वैज्ञानिक पद्धति पर किया गया है। साथ ही स्वर और व्यंजन वैज्ञानिक ढंग से क्रमबद्ध किये गये हैं। इस लिपि में मूलतः 14 स्वर, 35 व्यंजन और तीन संयुक्ताक्षर हैं। व्यंजनों का वर्गीकरण उच्चारण स्थान एवं प्रयत्न के आधार पर किया गया है।
(2) प्रत्येक ध्वनि लिए एक चिन्ह- देवनागरी लिपि की यह अन्यतम विशेषता है कि इसमें प्रत्येक ध्वनि के लिए एक चिन्ह है, जबकि रोमन लिपि और फारसी लिपि में एक ध्वनि के लिए कई-कई विकल्प हैं, अतः वहाँ लिखने में भिन्नता आ सकती है, पर देवनागरी में प्रत्येक शब्द की केवल एक ही वर्तनी हो सकती है। उदाहरण के लिए, देवनागरी की ‘क’ ध्वनि रोमन लिपि में कई तरह लिखी जा सकती है, यथा-
कैट-Cat क के लिए C
किंग-King क के लिए K
क्वीन-Queen क के लिए Q
कैमिस्ट्री-Chemistry क के लिए Ch
इसी प्रकार फारसी लिपि में देवनागरी को ‘ज’ ध्वनि को व्यक्त करने के लिए चार विकल्प – हैं-जे, ज्वाद, जोय, जाल।
स्पष्ट है कि देवनागरी लिपि रोमन और फारसी लिपियों की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है।
(3) वर्णात्मक लिपि- देवनागरी लिपि वर्णात्मक लिपि है, क्योंकि इसके सभी वर्ण उच्चारण के अनुरूप हैं। रोमन लिपि और फारसी लिपि में यह गुण नहीं है। देवनागरी लिपि ध्वनि को अंकित करने के लिए ‘ज’ वर्ण का प्रयोग होगा, किन्तु रोमन लिपि में ‘ज’ वर्ण को अंकित करने के लिए J (जे) या Z (जेड) लिखा जायेगा। इसी प्रकार फारसी में इसे ‘जीम’ से लिखा जायेगा।
(4) गत्यात्मक लिपि- देवनागरी लिपि की एक विशेषता यह भी है कि यह अत्यन्त व्यावहारिक एवं गत्यात्मक है। आवश्यकतानुसार इसने अनेक, नये लिपि चिन्हों को भी अंगीकार कर लिया है। उदाहरण के लिए फारसी लिपि की जो ध्वनियाँ हिन्दी में व्यवहृत होती हैं, उन्हें व्यक्त करने के लिए देवनागरी के कई वर्षों के नीचे बिन्दी लगाकर उच्चारणगत विशिष्टता को व्यक्त किया जाता है। यथा-क,ख, ज़, फ। इसी प्रकार अंग्रेजी शब्दों में व्यवहृत होने वाली ध्वनि ओ’ को भी देवनागरी ने ग्रहण कर लिया है।
(5) अपरिवर्तनीय उच्चारण-देवनागरी लिपि के वर्ण चाहे जहाँ प्रयुक्त हों, उनका उच्चारण अपरिवर्तित रहता है, जबकि रोमन लिपि में एक वर्ण एक शब्द में जिस रूप में उच्चारित होता है, दूसरे शब्द में उस रूप में उच्चारित नहीं होता और उसका उच्चारण परिवर्तित हो जाता है।
यथा-
But -बट में U का उच्चारण अ है
Put-पुट में U का उच्चारण उ है।
इसी प्रकार,
City-सिटी में C का उच्चारण ‘स’ है
Camel-कैमल में C का उच्चारण ‘क’ है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि देवनागरी लिपि में वे सभी विशेषताएँ उपलब्ध हैं जो एक वैज्ञानिक लिपि में होनी चाहिए। उसी लिपि को वैज्ञानिक लिपि कहा जा सकता है, जिसमें गुण अधिक हों और दोष न्यूनतम हों। यद्यपि दुनियाँ की कोई भी लिपि ऐसी नहीं होगी, जिसमें कई दोष न हो, तथापि वैज्ञानिक लिपि के लिए कम से कम दोषों वाली लिपि को ही मान्यता मिलेगी। देवनागरी लिपि की विशेषताएँ अधिक हैं, दोष कम हैं, अतः इसे वैज्ञानिक लिपि कहा जा सकता है।
देवनागरी लिपि के गुण-दोष
देवनागरी लिपि के गुण-
देवनागरी में अनेक गुण हैं। इसके कारण भारत की अधिकांश भाषाएं देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके गुण निम्नांकित हैं-
(i) यह लचीली प्रकृति की है, इसलिए इसने फारसी की क, ख, ग, ज, फ को अपना लिया है। अंग्रेजी की ‘ओ’ ध्वनि के लिए अर्ध चन्द्र का प्रयोग भी स्वीकार कर लिया है।
(ii) यह लिपि वर्णोच्चारणात्मक है, अर्थात जिस वर्ण या अक्षर का जैसा उच्चारण होता है, वैसा ही लेखन होता है।
(iii) देवनागरी में स्वरों की मात्राएं भी हैं। इससे उच्चारण और लेखनगत एकता बनी रहती है।
(iv) देवनागरी लिपि में जितना लिखा जायेगा, उतना ही बोला जायेगा।
(v) इसका प्रत्येक वर्ण, उच्चारण, प्रयोग और लेखन में एक ही सा रहता है, जबकि अंग्रेजी में ऐसा नहीं है। अंग्रेजी में ‘G’ में ‘ज’ तथा ‘ग’ दोनों बनते हैं।
(vi) देवनागरी लिपि में शब्द को भी लिखें तो वह उच्चारण के अनुरूप ही लिया जायेगा, पर यदि रोमन लिपि में हिन्दी शब्द को लिखें तो उसके अनेक उच्चारण होंगे।
(vii) इस लिपि में प्रायः सभी ध्वनियां हैं, पर रोमन लिपि में दो-दो या अधिक ध्वनियों से भी अनेक ध्वनियां हैं, यथा-हिन्दी ‘छ’ के लिये ‘Chh’ तीन ध्वनियां हैं।
देवनागरी लिपि के दोष
देवनागरी लिपि में जहाँ अनेक विशेषताएँ हैं, वहीं कुछ अभाव भी हैं। इनका विवरण निम्नवत् हैं। इन दोषों को ही देवनागरी लिपि की सीमाएं माना जा सकता है।
(i) देवनागरी लिपि में कुछ चिह्नों में एकरूपता नहीं है, यथा-‘र’ का संयोग चार रूपों में होता है-धर्म, क्रम, पृथ्वी, ट्रेन।
(ii) कुछ अक्षर अभी भी दो प्रकार के लिखे जाते हैं-अ, अण, सा, ल ळ, झ, भ, आदि।
(iii) मात्राओं का कोई व्यवस्थित नियम नहीं है। कोई मात्रा ऊपर लगती है और कोई नीचे कोई आगे लगती है तो कोई पीछे। यथा ‘ए’, ‘ओ’ की मात्रा ऊपर लगती है ऊ की मात्रा नीचे लगती है, कोई आ की मात्रा शब्द के आगे और इ की मात्रा वर्ण के पीछे लगती है।
(iv) साम्य-मूलक वर्गों के कारण इसे पढ़ने-लिखने में कभी-कभी परेशानी हो जाती है। इस प्रकार के साम्य-मूलक वर्ण हैं-व, ब, म, भ, घ, ध। इनमें भ्रम होने की पर्याप्त संभावना है।
(v) देवनागरी लिपि अक्षरात्मक है, ध्वन्यात्मक नहीं, अतः रोमन लिपि में जहां शब्द में प्रयुक्त प्रत्येक ध्वनि को अंकित किया जा सकता है, वहाँ देवनागरी में नहीं।
(vi) ऋ को संस्कृत के अनुकरण के आधार पर कुछ लोगों ने स्वरों में स्थान दिया है किन्तु यथार्थ में इसका उच्चारण ‘रि’ के रूप में होता है यथा-
ऋषि का उच्चारण रिसि के रूप में होता है।
पृथ्वी का उच्चारण :Prathvi’ के रूप में होता है।
(vii) उच्चारण की एक रूपता को भले ही हम देवनागरी की विशेषता कहें पर यथार्थ में ऐसा नहीं है यथा-
कृष्ण का उच्चारण कुछ लोग तो KRISHNA करते हैं तो कुछ लोग इसका उच्चारण KRUSHNA करते हैं।
उक्त विवेचन के आधार पर यह कह सकते है कि देवनागरी लिपि की अपनी सीमाएं हैं और वैज्ञानिक लिपि होते हुए भी इस लिपि में अनेक कमियाँ है। उसके इन अभावों को दूर करके ही उसकी उपयोगिता बढ़ाई जा सकती है। अतः देवनागरी लिपि में निरंतर सुधार और संशोधन होते रहने चाहिए।
देवनागरी लिपि में सुधार के प्रयास (सुझाव)
देवनागरी लिपि का वर्तमान स्वरूप बहुत बाद में स्थिर हुआ। अनेक कारणों से इस लिपि में समय-समय पर सुधार और संशोधन होते रहे हैं जिन्हें देवनागरी लिपि का विकासात्मक इतिहास कहा जा सकता है। ये सुधार इसके दोषों का निराकरण करने तथा इसे अधिकाधिक सक्षम बनाने के लिए समय-समय पर होते रहे। इन सुधारों एवं संशोधनों का क्रमबद्ध विवेचन अग्र प्रस्तुत किया जा रहा है-
(i) सर्वप्रथम बम्बई के महादेव गोविन्द रानाडे ने एक लिपि-सुधार समिति का गठन किया। तदन्तर महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे ने लिपि सुधार योजना तैयार की।
(ii) सन 1904 में ‘तिलक’ ने केसरी पत्र में देवनागरी लिपि के सुधार की चर्चा की, परिणामतः देवनागरी के टाइपों की संख्या 190 निर्धारित की गई और जिन्हें ‘तिलक टाइप’ कहा गया।
(iii) तत्पश्चात वीर सावरकर, महात्मा गांधी, विनोबा भावे और काका कालेलकर ने इस लिपि में ‘सुधार’ का प्रयास करते हुए इसे सरल एवं सुगम बनाने का प्रयास किया। ‘हरिजन’ पत्र में ‘काका कालेलकर’ ने देवनागरी की स्वर ध्वनियों के स्थान पर ‘अ’ पर मात्राएं लगाने का सुझाव दिया, जिससे देवनागरी में वर्गों की संख्या कम की जा सके। काका कालेलकर की बहुत-सी पुस्तकों में इस लिपि का प्रयोग किया गया है। इस लिपि का प्रयोग किया गया है। इस लिपि का एक उदाहरण प्रस्तुत है-
प्रचलित देवनागरी
काका कालेलकर की लिपि
उसके खेत में ईख अच्छी है।
उसके खेत में आख अच्छी है।
(iv) डा0 गोरखप्रसाद का सुझाव था कि मात्राएं व्यंजनों के दाहिनी ओर ही लगाई जायें। अर्थात जो मात्राएं प्रचलित देवनागरी में दायें, बायें, ऊपर, नीचे लगती हैं, वे सब व्यंजन के दाहिनी ओर लगनी चाहिए।
(v) काशी के विद्वान श्रीनिवासजी का सुझाव था कि देवनागरी लिपि के वर्षों की संख्या कम करने हेतु उसमें से सभी महाप्राण ध्वनियां निकाल दी जायें तथा अल्प प्राण ध्वनियों के नीचे कोई चिन्ह लगाकर उन्हें महाप्राण बना लिया जाए। जैसे क को ख बनाने के लिए क् (यहां क के नीचे रेखा खींच कर उसे महाप्राण ख बना लिया गया है।)
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