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ग्रीन के युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी विचार | ग्रीन के युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीयता सम्बन्धी विचारों की समीक्षा

ग्रीन के युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी विचार | ग्रीन के युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीयता सम्बन्धी विचारों की समीक्षा

ग्रीन के युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी विचार

ग्रीन युद्धों को आवश्यक नहीं मानता था। उसने युद्ध की कटु-निन्दा की है। उसने कहा कि युद्ध को किसी परिस्थिति में भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इस दृष्टि से वह हीगल से सर्वथा भिन्न है जो युद्ध को अनिवार्य मानता है।

(1) युद्ध की आवश्यकता-

यह भी स्वीकार करता है कि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं जब कि शान्ति युद्ध से भी भयानक हो जाती है। मानव के नैतिक उत्थान के लिए जब शान्तिमय तथा संवैधानिक उपाय सफल नहीं होते हैं और जब युद्ध के अतिरिक्त कोई और उपाय नहीं रह जाता तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है। परन्तु वह यह नहीं मानता है कि ऐसी परिस्थितियाँ बहुत कम होती हैं जब युद्ध करना आवश्यक हो जाय । ग्रीन चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अधिकार मिलना चाहिये । जब जीने के इस अधिकार में भयानक बाधा उपस्थित होती है तभी राज्य नागरिकों के अधिकार की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लेता है। यदि एक राज्य किसी दूसरे राज्य को हड़पना चाहे तो अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये युद्ध करना बुरा नहीं है। इस प्रकार युद्ध बुरा तो है परन्तु कभी-कभी यह अनिवार्य हो जाता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में ही।

(2) राज्य की अपूर्णता का लक्ष्य-

प्रो० बार्कर युद्ध को राज्य की अपूर्णता का लक्ष्य बताता है। ग्रीन वास्तव में युद्ध को नैतिक त्रुटि की संज्ञा देता है। उसका विश्वास है कि जैसे- जैसे राज्य पूर्णता को प्राप्त हो जायेंगे, युद्ध की आवश्यकता भी वैसे-वैसे कम होती जायगी। जितना राज्य संगठित होगा. उतना ही अन्य राज्यों से उसका सम्बन्ध भी अधिक स्वतंत्रतापूर्वक होगा।

(3) युद्ध में नागरिकों के अधिकारों का अपहरण होता है-

ग्रीन का कहना था कि युद्ध करने वाले राज्य राष्ट्रीयता का बहाना करके अपने नागरिकों के अधिकारों का अपहरण करते हैं। युद्ध को नैतिक विकास के लिए आवश्यक नहीं ठहराया जा सकता। ग्रीन जीवन को नष्ट करना किसी भी दशा में उचित नहीं मानता। युद्ध को नैतिकता का प्रतीक या मानवता का अन्तिम कल्याण समझना बर्बरता या असभ्यता का चिह्न मानना चाहिये। ग्रीन का यह कहना था कि देशभक्ति युद्ध के अतिरिक्त अन्य कार्यों से भी प्रकट हो सकती है। यदि विकास कार्यों के लिये देशभक्ति का प्रयोग किया जाये तो अति उत्तम होगा। मानव हित के लिए प्रकृति का प्रयोग करना तथा मनुष्य की क्षमताओं को स्वतंत्र करने का अधिक से अधिक प्रयास करना, देश-भक्ति का परिचायक है।

(4) युद्ध एक विभीषिका है-

ग्रीन युद्ध को मनुष्य की प्रकृति के विरुद्ध मानता था। वह उसे स्वार्थी लोगों द्वारा दिया गया एक अभिशाप समझता था। सैनिकों की युद्ध में बलि चढ़ाना भी वह उचित नहीं मानता था। युद्ध करना तथा जनता के जनधन को नष्ट करना किसी हालत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। वास्तव में ग्रीन युद्ध का घोर विरोधी है वह युद्ध को मानव के लिये अहितकर मानता है।

(5) ग्रीन के विचारों का महत्त्व-

आलोचकों का मत है कि ग्रीन के अन्तर्राष्ट्रीयता सम्बन्धी विचार देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता के विरोधी हैं। ग्रीन इसका यह उत्तर देता है कि अन्य राज्यों को भयभीत करने तथा हानि पहुँचाने को देशभक्ति नहीं कहते । राष्ट्रभक्ति का यह अर्थ कभी नहीं होता कि हम दूसरे राष्ट्रों के लिए घृणा तथा द्वेष को अपने हृदय में स्थान दें। ग्रीन का अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे का भाव आज संसार में अत्यधिक महत्व प्राप्त कर रहा है। संयुक्त राज्य संघ ग्रीन के विचारों को मूर्त रूप देने के लिये प्रयत्नशील है। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा सद्भावना का महत्व आज संसार का प्रत्येक राष्ट्र अनुभव कर रहा है।

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Pankaja Singh

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