राजनीति विज्ञान

मतदान व्यवहार से क्या है | मतदान व्यवहार का अर्थ | मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व

मतदान व्यवहार से क्या है | मतदान व्यवहार का अर्थ | मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व

मतदान व्यवहार से क्या है

प्रत्येक लोकतांत्रिक और यहाँ तक कि अलोकतांत्रिक देशों में भी नागरिकों को मतदान का अधिकार दिया गया है। इसके लिए प्रायः एक निश्चित आयु का होना जरूरी होता है, जैसे भारत में मतदान का अधिकार उस व्यक्ति को दिया जाता है जो अठारह वर्ष अथवा इससे अधिक आयु प्राप्त कर चुका हो। नागरिक मतदान करते समय जिन-जिन तत्वों के वशीभूत होते हैं अथवा प्रभावित होते हैं, उसे मतदान व्यवहार कहा जाता है। मतदान व्यवहार एक रोचक संकल्पना है। इसके माध्यम से हम किसी राजनीतिक व्यवस्था के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मतदान व्यवहार विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार का हो सकता है। मतदान व्यवहार के अध्ययन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक और महत्त्वपूर्ण है। मतदान व्यवहार अनेक तत्त्वों से प्रभावित होता है। यह न केवल लौकिक अपितु अलौकिक तत्त्वों से ही प्रभावित होता है। एक क्षेत्र का मतदान व्यवहार दूसरे क्षेत्र के मतदान व्यवहार से भिन्न होता है। मतदान व्यवहार में न केवल मतदान करने वाले नागरिकों का, अपितु मतदान न करने वाले नागरिकों का भी अध्ययन किया जाता है।

मतदान व्यवहार का अर्थ

(Meaning of Voting Behaviour)- 

मतदान व्यवहार से हमारा अभिप्राय है कि मतदाता अपना मत देते समय कौन-से कारणों अथवा स्थितियों से प्रभावित होता है। मतदाता की निर्णयकारी क्षमता को परिवर्तित अथवा प्रभावित करने वाले तत्त्व ही मतदान व्यवहार कहलाते हैं। साधारण शब्दों में मतदान व्यवहार का अर्थ है मतदाता अपने मत का प्रयोग क्यों करते हैं और किस प्रकार करते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ निर्वाचन सम्बन्धी समस्याएँ हैं, वहाँ मतदाताओं के व्यवहार को समझना अति आवश्यक है। निष्पक्ष चुनाव के लिए यह जरूरी है कि मतदाता अपने इस अधिकार का प्रयोग ईमानदारी और सूझ-बूझ के साथ करें। प्रसिद्ध विचारक काका कालेलकर का कहना है कि मतदाताओं को चाहिए कि, “प्रतिनिधि को उसी दृष्ट से चुनें जिस दृष्टि से हम मरीज के लिए डॉक्टर को चुनते है। देश का मामला बिगड़ गया है, उसी दल को वोट दें जो इसको सुलझा सकें और उस दल का बहुमत बनाने के लिए उसके छाँटे हुए उम्मीदवारों को वोट दें। मतदाता को दो बातों का ध्यान रखना चाहिए-एक यह कि किन नेताओं के द्वारा देशहित हो सकता है, दूसरा यह कि ऐसे नेताओं के पृष्ठ-पोषण करने वाले प्रतिनिधि सार्वजनिक चरित्र के बारे में शुद्ध हैं अथवा नहीं। जो नेता स्वयं उच्च चरित्र के हों, वे अपने पक्ष में हीन चरित्र के लोगों को लेकर बहलानां चाहें तो उन्हें नापसन्द करना जनता का कर्त्तव्य हो जाता है। “लेकिन यह खेद का विषय है कि भारतीय मतदाता ईमानदारी और समझदारी से अपना मतदान नहीं करता। वह धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय इत्यादि तत्त्वों से प्रेरित होकर मतदान करता है।

जे० सी० प्लेनो और रिग्स (J. C. Plano and Riggs)-  ने मतदान व्यवहार की परिभाषा इस प्रकार दी है, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित हैं जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेषरूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।” (Voting behaviour is a field of study concerned with the ways in which people tend to vote in public elections and the reasons why they vote or they do.)

इस प्रकार मतदान व्यवहार मतदाताओं की निर्णयकारी क्षमता को प्रभावित करने वाले वातावरण का अध्ययन है। यही वातावरण मतदाताओं को इस बात के लिए बाध्य, प्रेरित, उत्साहित अथवा निरुत्साहित करता है कि किस दल के लिए किस उम्मीदवार को मत दिया जाए।

मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व

(Factors Determining the Voting Behavior)

  1. दलीय निष्ठा (Party Loyality)- मतदान व्यवहार पर दलीय निष्ठा का बहुत प्रभाव पड़ता है। दलीय निष्ठा से अभिप्राय किसी व्यक्ति की किसी दल विशेष की विचारधारा कार्यक्रम आदि के प्रति निष्ठा का होना। दलीय निष्ठा कैसे रखी जाती है इसका प्रथम ज्ञान हमें अपने माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्यों व स्कूल तथा कॉलेजों आदि में अध्यापकों द्वारा मिलता है। ऐसा देखा जाता है कि जिस व्यक्ति के माता-पिता अपने राजनीतिक विचारों में एवं दलीय निष्ठा में जितने अधिक सुदृढ़ होते हैं, वह व्यक्ति उतना ही अधिक राजनीतिक दलों के प्रति आकर्षित होता है। उदाहरणतया भारतीय मतदाताओं में दलीय निष्ठा पाई जाती है। आज भी भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठा रखता है। इसके अलावा ब्रिटेन, नार्वे, स्विट्जरलैण्ड, कनाडा आदि देशों में मतदाता दलीय निष्ठा रखते हैं और उनका मतदान व्यवहार इसी निष्ठा के परिणामस्वरूप प्रभावित होता है।
  2. राजनीतिक मुद्दों का चुनाव (Impact of Political Issues)- विभिन्न चुनावों में उभारे गए राजनीतिक मुद्दे भी मतदाता के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक मुद्दों से अभिप्राय उन प्रश्नों से है जिनका सम्बन्ध सरकार के लिए किए जाने वाले या न किए जाने वाले कार्यों से है। इन राजनीतिक मुद्दों के विषय में जनता अपनी सहमति अथवा असहमति प्रकट कर सकती है। केम्बेल तथा उसके सहयोगियों ने राजनीतिक मुद्दों के प्रभाव को निर्धारित करने वाले तीन तत्त्वों पर बल दिया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि मतदाता राजनीतिक मुद्दों से तभी प्रभावित होते हैं यदि ये शर्ते हों-

(i) इस विषय में मतदाता सचेत और आकर्षित हों।

(ii) मतदाताओं को यह अनुभव होना चाहिए कि सम्बन्धित मुद्दों को उठाने वाले राजनीतिक दलों की मान्यताएँ उनकी मान्यताओं के अनुरूप हैं।

(iii) वे मुद्दे जो मतदाताओं में भावना की तीव्रता पैदा कर सकें, जिसके कारण वे मतदान करने में विशेष रूप से प्रभावित हो सकें।

केम्बेल ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि किसी राजनीतिक मुद्दे में इन तीनों शर्तों के पालन की क्षमता हो तो उस मुद्दे को उठाने वाले राजनीतिक दल मतदाताओं के व्यवहार को अवश्य प्रभावित कर पाएंगे। उदाहरणतया भारत में कांग्रेस पार्टी द्वारा समय-समय पर ऐसे मुद्दे उठाए गए जिन्होंने भारतीय मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित किया।

  1. मतदाताओं की आर्थिक स्थिति (Economic Condition of the Voters)- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाला एक प्रभावकारी तत्त्व मतदाताओं की अपनी आर्थिक स्थिति भी है। प्रायः वे मतदाता राजनीति में अधिक रुचि लेते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है। जबकि निर्धन मतदाताओं का व्यवहार इससे एकदम भिन्न होता है। निर्धन मतदाता प्रायः उस राजनीतिक दल को वोट डालना पसंद करते हैं, जो उनकी आर्थिक दशा को सुदृढ़ कर सके।
  2. सामाजिक स्थिति (Social Condition)- मतदाताओं की सामाजिक स्थिति भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है। लगभग सभी राजनीतिक प्रणालियों में उच्च वर्ग के लोग दक्षिण पंथी दलों का समर्थन करते हैं जबकि निम्न वर्ग के लोग वाम पंथी दलों का समर्थन करते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक पद्धतियों में प्रत्येक अपने सभी मतों को एक दल को देता है। भारत के सन्दर्भ में दक्षिण पंथी तथा वाम पंथी दलों का नेतृत्व समान रूप से उच्च वर्ग के हाथ में रहा है। इसका अभिप्राय यह है कि भारत में उच्च वर्ग के लोगों में वाम पंथ के समर्थक तथा निम्न वर्ग के लोगों में दक्षिण पंथ के समर्थकों की संख्या कम मिलती है। फिर भी भारत में उच्च वर्ग दक्षिण पंथ का समर्थन करता है जबकि निम्न वर्ग वाम पंथ का समर्थन करता है। यही बात अमरीका और इंग्लैंड के विषय में भी कही जा सकती है। अमरीका में अपेक्षाकृत कम समृद्ध वर्ग डेमोक्रेटिक पार्टी को तथा सम्पन्न वर्ग रिपब्लिकन पार्टी को मतदान करता है। इंग्लैंड में भी यही बात क्रमशः श्रमिक दल (लेबर पार्टी) और अनुदार दल (कन्जर्वेटिव पार्टी) के साथ लागू होती है।
  3. धार्मिक भावनाएँ- मार्क्सवादियों ने धर्म को नशा कहा है जिसका उन्माद व्यक्ति को अविश्वसनीय कृत्य करने पर भी विवश कर देता है। धार्मिक भावनाएँ मतदान व्यवहार को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। विश्व के विभिन्न देशों में राजनीतिक दल धर्मों पर आधारित है। उदाहरणतया पश्चिमी जर्मनी तथा इटली में क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स दल, रोमन कैथोलिक धर्म से सम्बद्ध हैं। ‘नीदरलैंड’ में काल्विनिस्ट दल (Calvinist Party) एवं क्रिश्चियन हिस्टोरिकल यूनियन (Christian Historical Union) जैसे दल प्रोटेस्टेंट धर्म से सम्बद्ध हैं। भारत में भारतीय जनता पार्टी (पूर्व में जनसंघ) को हिन्दुओं का व्यापक समर्थन प्राप्त है। भारत और पाकिस्तान की मुस्लिम लीग पार्टियाँ इस्लाम धर्म पर आधारित हैं। ये राजनीतिक दल मतदाताओं में धर्म के नाम पर जोश भर देते हैं। मतदाता राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक प्रचार से भ्रमित हो जाते हैं और उनका मतदान व्यवहार प्रभावित हो जाता है। उदाहरणतया भारत में मई-जून, 1991 के लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा हिन्दू धर्म का व्यापक प्रचार किया गया और निःसन्देह इस प्रचार के परिणामस्वरूप भारतीय मतदाताओं का व्यवहार प्रभावित हुआ था।
  4. लिंग (Sex)- लिंग भेद भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है। प्रायः सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं के विश्लेषण से यह पता चलता है कि पुरुषों की अपेक्षा औरतें मतदान करने में कम क्रियाशील होती हैं। लेकिन कॉलेज शिक्षित पुरुषों एवं स्त्रियों में लिंग के आधार पर यह भिन्नता न के बराबर है, जबकि कम पढ़े-लिखे अथवा निम्न स्तरीय लोगों में पुरुषों तथा स्त्रियों में यह मित्रता ज्यादा है। भारत में तो विवाहित स्त्रियाँ प्रायः अपने पति की इच्छा से और अविवाहित स्त्रियाँ अपने पिता अथवा भाई की इच्छा से मतदान करती हैं। राबर्ट लेन ने महिला मतदाताओं से साक्षात्कार के दौरान पाया कि एक महिला के अनुसार, “महिला पुरुषों के लिए पुष्प के समान हैं, जिसे देखकर वह आनंदित होता है। राजनीति में महिलाओं को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं।”
  5. आयु (Age)- मतदान व्यवहार पर आयु के तत्त्व (Age factor) का भी प्रभाव पड़ता है। प्रायः नवयुवक राजनीतिक दलों व नेताओं के जोशीले भाषणों से अधिक प्रभावित होते हैं। इसी कारण मतदान करने वालों में नवयुवकों की संख्या अधिक होती है, जबकि प्रौढ़ मतदाता नेताओं के भाषणों से इतना ज्यादा प्रभावित नहीं होते। वे सोच-समझकर अपने मत का प्रयोग करते हैं। इसके साथ-साथ मत का अधिकार प्राप्त करने के बाद लगभग 50 वर्ष तक राजनीतिक क्रियाशीलता बनी रहती है। लेकिन ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती चली जाती है राजनीतिक क्रियाशीलता का भी पतन होता चला जाता है। वृद्धावस्था तक व्यक्ति आत्म परक हो जाता है और वह राजनीतिक गतिविधियों से दूर जाना चाहता है और उसका मतदान आचरण भी निष्क्रिय हो जाता है।
  6. शिक्षा (Education)- मतदान व्यवहार का अत्यन्त प्रभावकारी तत्त्व शिक्षा भी है। शिक्षा व्यक्ति का मानसिक विकास करती है और उसके दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है। एक शिक्षित मतदाता अपने मत का अशिक्षित व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सूझबूझ से प्रयोग करता है। प्रायः अशिक्षित मतदाता राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वायदों एवं लालचों में जल्दी फंस जाता है जबकि शिक्षित मतदाता अपने विवेक से काम लेता है और अपने मनपसंद के उम्मीदवार को ही विवेकपूर्ण ढंग से मत देता है। अशिक्षित व्यक्ति के पास अपने मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले साधनों का क्षेत्र कम होता है। वह केवल रेडियो, टेलीविजन तथा आपसी बातचीत द्वारा ही किसी उम्मीदवार के विषय में अपना मत बनाता है जबकि एक शिक्षित व्यक्ति का क्षेत्र अधिक व्यापक होता है। क्योंक वह न केवल उपर्युक्त साधनों द्वारा बल्कि पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों को भी पढ़ता है। साथ ही एक शिक्षित व्यक्ति प्रत्येक दल का चुनाव घोषणा पत्र पढ़कर भी अपने मतदान व्यवहार को निश्चित करता है। अतः कहा जा सकता है, कि व्यापक क्षेत्र के आधार पर तैयार तर्क अधिक ठीक होता है, जोकि एक शिक्षित व्यक्ति ही तैयार कर सकता है। अतः शिक्षा निःसन्देह मतदान-व्यवहार को प्रभावित करती है।
  7. क्षेत्र (Region)- जहाँ एक ओर सामाजिक स्थिति मतदाताओं को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है, वहीं क्षेत्रीयता की भावना उस एकता पर आघात करती है। अर्थात् एक ही देश में अवस्थित विभिन्न क्षेत्रों की आबादी का राजनीतिक व्यवहार समान न होकर असमान होता है। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों के ऐतिहासिक विकास, परम्पराओं तथा भौगोलिक सीमाओं के प्रभाव मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं। उदाहरणतया अमरीका में डेमोक्रेटिक दल दक्षिणी प्रान्तों के तथा उत्तरी प्रान्तों के बड़े-बड़े शहरों पर हावी हैं जबकि रिपब्लिकन दल उत्तर के छोटे प्रान्तों व छोटे- छोटे शहरों में प्रभावशाली हैं। मतदाता प्रायः राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीयता की भावना से ऊपर उठकर वोट देते हैं जबकि दलों को क्षेत्रीयता की भावना के वशीभूत होकर वोट देते हैं। भारत इसका प्रत्यक्षतः उदाहरण है।
  8. नेतृत्व की भूमिका (Role of Leadership)- एक अच्छा नेतृत्व मतदान व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालता है। चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का व्यक्तित्व निष्क्रिय मतदाताओं में भी चेतना भर देता है। यदि सुयोग्य नेतृत्व है और मतदाताओं को उससे भविष्य में अच्छे परिणाम मिलने की आशा है तो निःसन्देह वह मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करता है। इतिहास में ऐसे असंख्य नेता हुए हैं जिनके नेतृत्व ने मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित किया है। भारत में जवाहरलाल नेहरू, इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी ऐसे ही नेता थे। राजनीतिक नेतृत्व अपनी चाकपटुता, स्पष्टवादिता तथा नेतृत्व क्षमता से मतदाताओं के मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है न कि उनकी भावना पर।
  9. प्रत्याशियों के प्रति मतदाताओं का रुझान (Candidate Orientation)- मतदाताओं का प्रत्याशियों के प्रति रुझान भी उनके व्यवहार को प्रभावित करता है। प्रत्याशियों के प्रति रुझान का अभिप्राय यह है कि मतदाता प्रत्याशियों की दलीय प्रतिबद्धता की अपेक्षा उनके व्यक्तिगत गुणों के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं। प्रत्यासियों के प्रति रुझान उस समय अधिक स्पष्ट होता है जब मतदाताओं के सामने दो समान व्यक्तित्व वाले.प्रत्याशी उपस्थित होते हैं। वहाँ मतदाता प्रत्याशियों के व्यक्तिगत गुणों से अधिक प्रभावित होते है। विश्व के जिन देशों में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है वहाँ राष्ट्रपति का व्यक्तित्व मतदाताओं को बहुत प्रभावित करता है। उदाहरणतया 1952 तथा 1956 के चुनावों में रिपब्लिकन दल का प्रत्याशी आइजनहावर अपने व्यक्तित्व के कारण, भारी बहुमत से जीतता रहा। यही बात फ्रांस के जनरल द गॉल, चिली के एडवार्डो फ्री, वेनेजुएला के रोमुला बेटान कोर्ट (Romulan Betan Court) तथा ब्राजील के जेनिया क्वाडरोस जैसे राष्ट्रपतियों के साथ लागू होती है। इसके साथ-साथ जहाँ संसदात्मक शासन प्रणाली है वहाँ भी संसदीय प्रत्याशी मतदाताओं को काफी प्रभावित करते हैं। उदाहरणतया भारत में पं० नेहरू और इन्दिरा गाँधी एक लम्बे समय तक प्रधानमंत्री रहे। इंग्लैंड के युवा प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के व्यक्तित्व को विजय का एक महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है।
  10. भाषायी तत्त्व (Language Factor)- कम से कम भारतीय सन्दर्भ में तो मतदान व्यवहार पर भाषा का अद्वितीय प्रभाव रहा है। भारत में तो राज्यों का पुनर्गठन भी भाषा के आधार पर ही हुआ था और भाषा के आधार पर ही विगत में अनेक राजनीतिक विवाद हुए हैं। आज भी भाषा मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। विश्व के अन्य देशों में भी मतदान व्यवहार पर भाषा का प्रभाव पड़ता है। उदाहरणस्वरूप इंग्लैण्ड में बसने वाले आप्रवासी भारतीय उसी मतदाता को मत देते हैं जो उनकी भाषा में बात कर सकता है।
  11. युद्ध अथवा राष्ट्रीय संकट- युद्ध अथवा राष्ट्रीय संकट एक अप्रत्याशित घटना है जिसका मतदाताओं के व्यवहार पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। राष्ट्रीय संकट के समय सभी मतदाता अपनी संकुचित भावना से बाहर निकलकर एक सक्षम राजनीतिक दल व एक योग्य नेतृत्व की प्राप्ति के लिए मतदान करते हैं। राष्ट्रीय संकट के समय मतदाता प्रायः उस नेतृत्व के पक्ष में वोट डालते हैं, जो प्रत्येक परिस्थिति में राष्ट्रीय मनोबल को ऊंचा बनाए रखे। श्रीमती इन्दिरा गाँधी को 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय मतदाताओं ने ऐसा ही समर्थन दिया था।
  12. राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा (Hope of Political Stability)- मतदान व्यवहार पर राजनीतिक स्थिरता की इच्छा का भी प्रभाव पड़ता है। यदि देश राजनीतिक अस्थायित्व के दौर से गुजर रहा हो तो मतदाता उस राजनीतिक दल को वोट देना पसन्द करते हैं जो स्थायित्व का वायदा करे।
  13. राजनीतिक दलों की विचारधारा, नीतियाँ एवं कार्यक्रम (Ideologies, Policies and Programme of Political Parties)- कई मतदाता राजनीतिक दलों की विचारधाराओं से प्रभावित होते हैं जबकि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी होता है, जो राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों को देखकर वोट देता है। नीतियों और कार्यक्रमों के द्वारा मतदाताओं को उन बातों की जानकारी मिलती है, जो राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के बाद करना चाहते हैं। यद्यपि भारतीय मतदाता राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्र को प्रायः पढ़ते नहीं हैं, जिनमें राजनीतिक दलों की नीतियों और कार्यक्रमों का वर्णन किया गया होता है, फिर अनेक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओं में राजनीतिक दलों द्वारा जारी चुनाव घोषणा पत्र मतदाताओं को प्रभावित करते हैं।
  14. चुनाव प्रचार (Election Campaign)- एक व्यवस्थित और प्रभावशाली चुनाव प्रचार भी मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करता है। प्रभावशाली चुनाव प्रचार मतदाताओं का पार्टी के प्रति रुझान बढ़ाता है। विभिन्न राजनीतिक दल अपने श्रेष्ठ राजनीतिक वक्ताओं द्वारा चुनाव प्रचार में पूरा जोर लगा देते हैं ताकि मतदाताओं के व्यवहार को किसी भी तरह से अपने पक्ष में किया जा सके।
  15. धन की भूमिका (Role of Money)- चुनावों में खर्च किया जाने वाला धन मतदान व्यवहार पर अवश्य प्रभाव डालता है। विशेष रूप से उन देशों में जहाँ की अधिकांश जनता गरीब है, मतदाताओं को धन के लालच द्वारा प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। यहाँ तक कि मतदाताओं के वोट भी खरीदने के प्रयास किए जाते हैं। ऐसे असंख्य उदाहरण मिलते हैं जब चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा बड़ी-बड़ी धन राशियाँ खर्च की गई और जिनके परिणामस्वरूप मतदान व्यवहार पर प्रभाव पड़ा है।
  16. तत्कालीन मामलें (Immediate Issues)- तत्कालीन मामले भी मतदान व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरणतया भारत में 1977 के चुनाव में कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा करना एक महत्त्वपूर्ण मामला था जिसका मतदान व्यवहार पर काफी प्रभाव पड़ा और मतदाताओं ने कांग्रेस की अपेक्षा जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया। इसी तरह नवम्बर, 1998 के चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले अचानक कई वस्तुओं के मूल्य बढ़ गये, जिससे प्रभावित लोगों ने भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस को मत दिये।
  17. लोकवादी नारे (Pepullical Slogans)- मतदाताओं का व्यवहार लोकवादी नारों से भी प्रभावित होता है। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को ऐसे सब्जबाग दिखाए जाते हैं जिनसे मतदाता प्रभावित हो जाते हैं। विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहाँ की अधिकांश जनता अशिक्षित हैं, लोकवादी नारों से जनता जल्दी प्रभावित होती है। शिक्षित मतदाताओं पर भी लोकवादी नारों का काफी प्रभाव पड़ता है।
  18. सत्तारूढ़ दल का आचरण (Behavior of the Ruling Party)- मतदान व्यवहार पर सत्ताधारी दल के आचरण का अवश्य प्रभाव पड़ता है। यदि सत्ताधारी दल पूरे कार्यकाल तक निष्क्रियता, उदासीनता एवं कर्तव्यविमुखता की स्थिति में रहे तो मतदाता चुनाव के समय उसके विरोध में मत डालते हैं। जैसे इंग्लैण्ड में हाल ही के वर्गों में एक लम्बे समय तक रूढ़िवादी दल (Conservative Party) सत्ता में रहा, लेकिन मई, 1997 के चुनाव में मतदाताओं ने उसके विरुद्ध मतदान किया और लेबर पार्टी (Labour Party) को सत्ता सौंपी।
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Pankaja Singh

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