राजनीति विज्ञान

लेनिन के राजनीतिक विचार | Lenin’s Political Thoughts in Hindi

लेनिन के राजनीतिक विचार | Lenin’s Political Thoughts in Hindi

लेनिन (1870-1924) ने मार्क्स के सिद्धान्तों की विस्तृत व्याख्या करके उन सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप दिया तथा रूस में क्रान्ति के द्वारा साम्यवादी समाज की स्थापना की। प्रथम, सैद्धान्तिक आधार पर मार्क्स ने जिन विचारों का सूत्र रूप में निरूपण किया था, लेनिन ने उनको किस प्रकार विकसित किया, द्वितीय, मार्क्स के सिद्धान्तों के आधार पर रूस में क्रान्तिकारी आन्दोलन का संगठन एवं विन्यास करते हुए उसने मार्क्सवाद में किस व्यावहारिक नवीनताओं को जोड़ा।

लेनिन के राजनीतिक विचार

लेनिनवाद के लिये जोसेफ स्टालिन की प्रसिद्ध उक्ति है कि “लेनिनवाद, साम्राज्यवादी एवं सर्वहारावर्गीय क्रान्ति के युग का मार्क्सवाद है।” इसका सीधा आशय यह है कि लेनिन को साम्राज्यवादी युग की व्याख्या करने का वही श्रेय दिया जाना चाहिए जो श्रेय मार्क्स को पूँजीवाद की व्याख्या करने के लिए दिया जाता है। लेनिन ने मार्क्सवादी सिद्धान्त एवं व्यवहार को आगे बढ़ाया। उसने मार्क्स द्वारा प्रस्तुत पूँजीवाद की व्याख्या की एवं उसके विकास का विशद विश्लेषण किया। मार्क्स ने पूँजीवाद की जिन प्रवृत्तियों का श्रीगणेश मात्र देखा था, लेनिन ने उसकी सविस्तार व्याख्या की। इस दृष्टि से देखने पर लेनिनवाद का द्रोहरा महत्व है। लेनिनवाद का एक ओर इसका महत्त्व इसमें है कि यह मार्क्सवाद पर आधारित है, दूसरी ओर, रूसी राजनीतिक आवश्यकताओं एवं व्यावहारिक अनिवार्यताओं के परिणामस्वरूप उसके द्वारा मार्क्सवाद की मौलिक मान्यताओं में परिवर्तन कर दिया जाता है। सेबाइन का ठीक ही कथन है कि “घोषणा की दृष्टि से लेनिन का मार्क्सवाद पूर्णतः रूढ़िवादी एवं कट्टर था। वह मार्क्स के सभी शब्दों को वेद वाक्य मानता था और उनकी उसी प्रकार व्याख्या करता था। लेकिन इसके साथ ही लेनिन सिद्धान्त को सदैव कार्य का पथ-प्रदर्शक मानता था। मार्क्सवाद के मूल सिद्धान्त को लेकर लेनिन का अपने अनुयायियों से अनेक बार तीव्र मतभेद हुआ और वह उन्हें ऐसे रास्तों पर ले गया जो मार्क्सवादी सिद्धान्तों की दृष्टि से संगत नहीं थे। फिर भी लेनिन का सदैव यही कथन रहा कि वह मार्क्सवाद का ही अनुसरण कर रहा है।

लेनिन के विचारों का हम निम्नलिखित आधारों पर अध्ययन कर सकते हैं-

  1. क्रान्ति की व्यूहकला एवं रणनीति का सिद्धान्त,
  2. सर्वहारावर्ग की तानाशाही का सिद्धान्त,
  3. दल सम्बन्धी सिद्धान्त,
  4. विश्व क्रान्ति लाने के लिए साम्यवादी दल की रणनीति एवं व्यूहकला सम्बन्धी सिद्धान्त
  5. पूँजीवादी साम्राज्यवाद का सिद्धान्त, तथा
  6. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त

लेनिन के विचार

लेनिन के विचार निम्न प्रकार हैं-

  1. क्रांति की व्यूहकला एवं रणनीति का सिद्धान्त

रूस में 1905 और 1917 में जो राज्य क्रान्तियाँ हुई थीं उनके सिद्धान्तों का प्रतिपादन लेनिन के द्वारा किया गया था। 1905 की क्रान्ति का मार्गदर्शन करने का लेनिन को यद्यपि अवसर नहीं मिल सका, क्योंकि उस समय वह रूस से दूर था, लेनिन बोलशेविक गुट का मार्गदर्शन करते हुए उसने 1905 के बाद की परिस्थितियों एवं घटनाओं को अपने सिद्धान्तों के आधार पर समझाने का प्रयास किया। हम पहले यह बता चुके हैं कि 1903 के बाद बोलसेविकों और मेनशेविकों के बीच विचार-द्वन्द्व चल रहा था। 

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  1. सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवादी शासन

लेनिनवाद की मूल धारणा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही की धारणा है। लेनिन ने अपने पेम्पलेट द स्टेट एण्ड रेवोलूशन में सर्वहारा वर्ग की क्रान्ति के बाद की व्यवस्था का प्रारूप विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया है। इसी सन्दर्भ में उसने अपने राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना की है। स्टेट एण्ड रेवोलुशन में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है कि क्रान्ति के द्वारा बुर्जुआवादी राज्य को नष्ट कर उसके स्थान पर सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवादी शासन का वैसा ही स्वरूप होगा जैसा कि ‘पेरिस कम्यून’ का था। दूसरे शब्दों में, सर्वहारा वर्ग की अधिनायकवादी व्यवस्था ‘पेरिस कम्यून’ की प्रतिलिपि होगी। लेनिन की मान्यता है कि 

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  1. दल सम्बन्धी सिद्धान्त

हम इस अध्याय के आरम्भ में ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि जिन विचारों को मार्क्स ने सूत्र रूप में व्यक्त किया था, लेनिन ने उनको विकसित किया है या उनमें नवीनताओं को जोड़ा है। दल का प्रश्न भी उन्हीं विचारों में से एक है। लेनिन क्रमिकवाद में विश्वास करने वाला नेता नहीं था। लेनिन मानता है कि क्रान्ति क्रमिक विकास से नहीं होगा। किन्तु उसे लाने के लिए केन्द्रीकृत एवं अनुशासित दल की आवश्यकता होगी। लेनिन के अनुसार दल सर्वहारा का नेतृत्व करने वाला ‘अग्रिम वाहक’ (vanguard) अथवा ‘सेनामुखा’ है।

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  1. साम्यवादी दलों की व्यूहकला तथा रणनीति

लेनिन के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि वह एक क्रान्तिकारी विचारक भी था और एक संगठनकर्ता भी। संगठनकर्ता के नाते उसने इस प्रश्न की व्याख्या की है कि साम्यवादी दल की कार्य करने की रणनीति क्या होनी चाहिए।.लेनिन का उद्देश्य साम्यवादी आन्दोलन का संगठन केवल रूस में ही करने का नहीं था। एक क्रान्तिकारी नेता के नाते उसका दृष्टिकोण व्यापक था। अतः उसने दुनिया के दूसरे देशों में साम्यवादी दलों की स्थापना की योजना बनाई तथा वहाँ क्रान्ति में सफलता प्राप्त करने के लिए दलीय व्यूहकला तथा रणनीति के निर्देश देना आवश्यक समझा। दॉ स्टेट एण्ड रेवोलुशन में प्रस्तुत

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  1. पूँजीवादी साम्राज्यवाद का सिद्धान्त

लेनिन ने साम्राज्यवाद की विशद व्याख्या की है। उसने साम्राज्यवाद से सम्बन्धित सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने ग्रन्थ इम्पीरियलिज्म : दा हाइएस्ट स्टेज ऑव कैपिटलिज्म (1916) में किया गया है। अपने इस ग्रंथ में लेनिन यह बताता है कि पूँजीवादी विकास राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साम्राज्यवाद का रूप धारण कर लेता है। इसी दृष्टि से वह कहता है कि साम्राज्यवाद पूँजीवाद की सर्वोच्च अवस्था है। वह यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि जिस प्रकार पूँजीवाद अपने अन्तर्विरोधों के कारण नष्ट होता है उसी प्रकार साम्राज्यवाद भी अपने अन्तर्विरोधों के कारण नष्ट होगा और इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साम्यवाद की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा।

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  1. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त

लेनिन ने जहाँ एक व्यवहारकुशल नेता के रूप में संगठन इत्यादि के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है वहीं उन्होंने दार्शनिक प्रश्नों की भी व्याख्या की है। मेटीरियलिज्म एण्ड एम्पीरिओ-क्रिटिसिज्म (1909) में उन्होंने इस प्रकार का कार्य किया है। मार्क्स ने जिस द्वन्द्वात्मक प्रणाली का प्रतिपादन किया था, लेनिन ने भी मार्क्स के विचारों के अनुरूप द्वन्द्वात्मक प्रणाली की विवेचना की है। द्वन्द्वात्मक प्रणाली क्या है,

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Pankaja Singh

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