राजनीति विज्ञान

दण्ड पर ग्रीन के विचार | दण्ड पर ग्रीन के विचारों का मूल्यांकन

दण्ड पर ग्रीन के विचार | दण्ड पर ग्रीन के विचारों का मूल्यांकन

दण्ड पर ग्रीन के विचार

दण्ड पर ग्रीन के विचार निश्चय ही उसक राज्य कार्रवाई से सम्बन्धित हैं। परिस्थितियों को बनाए रखने तथा रुकावटों को दूर करने के लिए राज्य को निश्चय ही हर उस बात में हस्तक्षेप करना पड़ता है जो इन परिस्थितियों की अवज्ञा करता है या रुकावट पैदा करता है। इसे निरोधक के रूप में शक्ति का प्रयोग करना चाहिए शक्ति स्वतन्त्रता के विरुद्ध हैं। राज्य को बाहरी परिस्थितियों को बनाये रखने के लिए ही समंजित किया जाता है जो व्यक्तियों की इच्छा की स्वतन्त्र कार्रवाई के लिए आवश्यक है।

बारकर लिखते हैं कि दण्ड भूतकाल में अपराधी के नैतिक दोष का प्रत्यक्ष हवाला या भविष्य काल में नैतिक सुधार का हवाला देकर नहीं दिया जाता। यदि यह नैतिक दोष का हवाला देकर दिया जाता है तो इसे नैतिक दोष की डिग्री के मुताबिक दिया जाता। यहाँ हमारे सामने यह समस्या पेश आती है कि नैतिक दोष को डिग्रियों से नहीं मापा जाता क्योंकि हम इच्छा की सघनता तथा उत्तमता की जाँच करने के लिए इच्छा के उद्गम स्थान में प्रवेश नहीं कर सकते। यदि भविष्य में नैतिक सुधार के संदर्भ में दण्ड दिया जाये तो यह न केवल निवारक के रूप में अपनी शक्ति खो देगा बल्कि यह अपराधी को अपनी इच्छा को प्रतिपादित करने की सम्भावना से वंचित कर देगा।

ग्रीन के अनुसार दण्ड का प्राथमिक उद्देश्य अपराधी को मात्र पीड़ा पहुँचाने के लिये पीड़ा पहुँचाना आवश्यक नहीं तथा न ही दोबारा अपराध करने से रोकने के लिए। बल्कि उस तरह का अपराध करने वालों के मन में डर पैदा करने के लिए दिया जाता है। भविष्य में अपराध को रोकने के लिए ही दण्ड दिया जाता है। ग्रीन ने कहा था राज्य गुण-दोषों को नहीं बल्कि सही तथा गलत देखता है। यह दण्डित किये गये व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध की ओर ही देखता है तथापि इसका बदला लेने के लिए नहीं बल्कि इस तरह का गलत काम करने वाले के मन में एक प्रकार का डर पैदा करने के लिए दिया जाता है ताकि भविष्य में उचित तथा सही काम हो सके। वास्तव में दण्ड, इच्छी के स्वतन्त्र कार्य के लिए आवश्यक बाहरी परिस्थितियों को बनाए रखने के लिए दिया जाता है यह आन्तरिक इच्छा के लिए समंजित नहीं किया जाता। इसका मुख्य उद्देश्य “समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति लिए नैतिक इच्छा के कार्य करने की स्वतन्त्रता हासिल करना है।” इसका अर्थ हैं, सजा तोड़े जानेवाले अधिकार के महत्त्व को देखते हुए दी जानी चाहिए।

दण्ड के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार के प्रभाव परिलक्षित होते हैं। प्रो० बेकर ने इनको बड़ी सुन्दरता से संक्षिप्त किया है। प्रत्यक्ष रूप से यह एक शक्ति है जो अधिकारों के विरुद्ध शक्ति के निरोधक के रूप में कार्य करती है। एक ऐसी शक्ति जिसकी मात्रा उस दूसरी शक्ति की मात्रा से समंजित हो सके (अधिकारों की बरबादी की मात्रा को सामने रखकर नापी गयी) तथा जिसका उद्देश्य इसका सर्वनाश होना चाहिए तथा इसी सर्वनाश द्वारा सारी अधिकार विरोधी व्यवस्था की पुनः स्थापना। अप्रत्यक्ष रूप में, दण्ड को प्रभावशाली निरोधक बनाने के लिए इच्छा में सुधार होना चाहिए (क्योंकि इच्छा केवल अन्दर से ही सुधार सकती है)। एक ऐसा झटका होना चाहिए जिससे अपराधी स्वयं अपनी इच्छा से अपने में सुधार करे। इस अन्तिम पक्ष में भी दण्ड का उद्देश्य रुकावटों को दूर करना है, क्याक जिस रुकावट का अपराधी विरोध करते हैं, मात्र शक्ति नहीं बल्कि इच्छा है।

राजनीति विज्ञान महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!