ग्रीन का आदर्शवाद और उदारवाद | ग्रीन के व्यक्तिवाद की विशेषताएं
ग्रीन का आदर्शवाद और उदारवाद
मिला सदी के जनम वर्षों में यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति हुई थी और उसके बाद 10वीं सदी के प्रारम्भ में इस विचारधारा का प्रतिपादन हुआ कि यदि राज्य हस्तक्षेप न करे तो व्यक्ति आर्थिक क्षेत्र में बहुत विकास कर सकतआ उन दिनों आर्थिक जीवन को नियन्त्रित करने के लिए सम्पूर्ण यूरोप में बहुत-से नियम पाए जाते थे, जिनके कारण आर्थिक विकास सम्भव नहीं था। अतः इसकी प्रतिक्रियास्वरूप ‘व्यक्ति को अकेला छोड़ दो’ (लेसेफेयर) का सिद्धान्त प्रचलित हुआ। इंग्लैण्ड में ‘कार्न लाज’ (Corn Laws) को समाप्त करने के लिए आन्दोलन चले। आर्थिक व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए मिल ने नैतिक तथा स्पेन्सर ने वैधानिक तर्क उपस्थित किए। इन सबका केन्द्रीय विचार यह था कि व्यक्ति अपना हित सबसे अधिक भली प्रकार जानता है, अपने कार्यों से अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है, इसलिए व्यक्ति को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए और राज्य को व्यक्ति के कार्य में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए।
इंग्लैण्ड और यूरोप के अन्य देशों द्वारा इस व्यक्तिवादी विचारधारा को अपना लिया गया, लेकिन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक इस विचारधारा को अपनाने के दुष्परिणाम स्पष्ट होने लगे। उद्योगपतियों ने श्रमिकों की स्वतन्त्रता का अन्त कर दिया और उनकी स्थिति तेजी से खराब होने लगी। ऐसी स्थिति में एक ऐसे दर्शन की आवश्यकता थी, जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सामाजिक नियमन और राजकीय कानूनों द्वारा सुधार की आवश्यकता का प्रतिपादन करता। जर्मन आदर्शवादी हीगल के दर्शन में इसी बात का प्रतिपादन किया गया था। लेकिन हीगल का दर्शन सर्वाधिकारवाद का समर्थन होने और राज्य को अपने आप में ही एक साध्य समझने के कारण उदारवादी वातावरण में पले लोगों के लिये यह स्वीकार्य नहीं हो सकता था। आवश्यकता इस बात की थी कि ब्रिटिश दृष्टिकोण के अनुसार जर्मन आदर्शवाद में ब्रिटिश उदारवाद का पुट दिया जाता और यह कारय ब्रिटिश विचारक ग्रीन ने किया। जर्मन आदर्शवाद को अंग्रेजों के लिए स्वीकार्य बनाने हेतु उसने उसमें चार परिवर्तन किए। प्रथमतः, हीगल की तुलना में राज्य की निरंकुशता में कमी की। द्वितीयतः, व्यक्ति को स्वयं एक साध्य माना। तृतीयतः, व्यक्ति के अधिकारों को अधिक सुरक्षित रूप प्रदान किया। चतुर्थतः, इस बात का प्रतिपादन किया कि कुछ परिस्थितियों में राज्य का विरोध न्यायोचित हो सकता है। इस प्रकार जर्मन आदर्शवाद का ब्रिटिश उदारवाद के साथ समन्वय करने का श्रेय थॉमस हिल ग्रीन को प्राप्त है।
ग्रीन के व्यक्तिवाद की विशेषताएं-
ग्रीन के व्यक्तिवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं-
- ग्रीन ने अपने व्यक्तिवाद में राज्य को एक ध्येय नहीं माना वरन् राज्य के ध्येय को पूर्ण करने का एक माध्यम माना था।
- व्यक्ति का पूर्ण विकास राज्य में ही हो सकता है। उसने लिखा है, “राष्ट्र का जीवन उन व्यक्तियों के जीवन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जो उसका निर्माण करते हैं।”
- राज्य का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के विकसित करना तथा मनुष्य में नैतिकता को विकसित करना है। बिना नैतिकता के मनुष्य अपूर्ण रहता है। किसी समाज या राष्ट्र की उत्पत्ति राज्य के बिना निरर्थक ही होगी।
- राज्य उन सभी कार्यों को करने का अधिकारी है जिससे मनुष्य का अधिक से अधिक हित होता है।
- संस्थाओं का निर्माण मनुष्यों के हितों की पूर्ति के लिए किया जाता है। मनुष्य संस्थाओं के लिए नहीं होते बल्कि संस्थाएं मनुष्यों के लिए होते हैं।
- व्यक्ति को केवल उसी समय राज्य का विरोध करना चाहिए जबकि राज्य के कार्यों से उसकी चेतना को कोई खतरा हो।
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