राजनीति विज्ञान

लोकमत का अर्थ और परिभाषा | लोकमत की विशेषताएँ | लोकमत तथा बहुमत में अन्तर | जनमत या लोकमत की परिभाषा | जनमत की प्रमुख विशेषताएँ | प्रजातन्त्र में जनमत का महत्त्व

लोकमत का अर्थ और परिभाषा | लोकमत की विशेषताएँ | लोकमत तथा बहुमत में अन्तर | जनमत या लोकमत की परिभाषा | जनमत की प्रमुख विशेषताएँ | प्रजातन्त्र में जनमत का महत्त्व

लोकमत का अर्थ और परिभाषा

(Meaning and Definition of Public Opinion)

सामान्य बोलचाल की भाषा में लोकमत से अभिप्राय जनता के मत या राय से है। लोकमत के विषय में विभिन्न विद्वानों ने दिवार प्रकट किये हैं। लार्ड ब्राइस ने लोकमत की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार की है- “समाज पर प्रभाव डालने वाले अथवा उसके हितों से सम्बन्धित प्रश्नों के बारे में, लोगों की जो धारणाएँ होती हैं, इन्हीं के योग के अर्थ में सामान्यतया इस शब्द ‘लोकमत’ को प्रयुक्त किया जाता है। इस दृष्टि से यह सब प्रकार की भ्रान्त धारणाओं, कल्पनाओं, विचारों एवं आकांक्षाओं का सम्मिश्रण है।” इसी प्रकार ट्यूटर ने कहा है- “लोकमत एक प्रकार का मतैक्य अथवा निर्णय है, जिसे तथ्यों पर आधारित संघर्ष तथा विवेचन के द्वारा प्राप्त किया जाता है।” लावेल के मतानुसार, “जनमत विवेक और निःस्वार्थ भावना पर आधारित वह विचार है, जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण समाज का हित है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में कहा जा सकता है कि “लोकमत उसे कहा जाता है, जो जन-कल्याण की भावना से प्रेरित होती है, इसमें जनता का सामान्य हित होता है तथा सामान्य स्वीकृति प्राप्त होती है।”

लोकमत की विशेषताएँ-

(1) लोकमत जन साधारण का मत होता है।

(2) यह सार्वजनिक हित की भावना से प्रेरित होता है।

(3) यह जनता का स्थायी मत होता है। यह एक निश्चित धारणा है तथा अनिश्चित विचार लोकमत नहीं कहा जा सकता।

(4) लोकमत बहुमत द्वारा अभिव्यक्त होने पर भी उसके अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का तत्त्व भी अपना पूरा महत्त्व रखता है।

(5) लोकमत में एकता होती है तथा इसे सभी व्यक्ति सामान्य रूप से स्वीकार करते हैं।

(6) लोकमत की श्रेष्ठता के लिए इसका नैतिकता तथा न्याय के आदर्शों पर आधारित होना आवश्यक है।

लोकमत तथा बहुमत में अन्तर-

लोकमत तथा बहुमत में निम्नलिखित प्रकार का अन्तर पाया जाता है; बहुमत के लिए उनमें लोक कल्याण की भावना का निहित होना आवश्यक नहीं है, जबकि लोकमत के लिए लोक कल्याण की भावना होना आवश्यक है। यही लोकमत तथा बहुमत का सबसे बड़ा अन्तर है।

जनमत या लोकमत की परिभाषा

(1) लाई बाइस के अनुसार- “जनमत साधारणतया मनुष्यों के उन विभिन्न दृष्टिकोणों का योग मात्र है जो वे सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित विषयों के बारे में रखते हैं। इस अर्थ में जनमत सर्व प्रकार की परस्पर विरोधी धारणाओं, विश्वासों तथा आकांक्षाओं का सम्मिश्रण हैं।”

(2) डूब के शब्दों में- “लोकमत का अर्थ एक सामाजिक समूह के रूप में जनता का किसी प्रश्न या समस्या के प्रति रुख या विचार है।”

(3) कैथोल के अनुसार- “लोकमत सामान्य जनता की मिश्रित प्रतिक्रिया है।”

(4) गिन्सबर्ग के अनुसार- “लोकमत का तात्पर्य समाज में प्रचलित उन विचारों एवं निर्णयों के समूह से होता है जो न्यूनाधिक निश्चित रूप से अभिव्यक्त किये जाते हैं और जिनका कुछ स्थायित्व होता है।

जनमत की प्रमुख विशेषताएँ

(1) जनसाधारण का मत- जनमत किसी विशेष वर्ग या व्यक्ति का नहीं होता अपितु वह जनसाधारण का मत होता है।

(2) सार्वजनिक हित से सम्बद्ध- जनमत का सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष या वर्ग विशेष से न होकर सार्वजनिक हितों से होता है। लोकमत की यह मौलिक विशेषता है कि वह सार्वजनिक हितों के अनुकूल हो ।

(3) समाज-कल्याण की भावना से प्रेरित- जनमरा की तीसरी मौलिक विशेषता है कि यह समाज कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होता है। वह कुछ लोगों हित में या कुछ लोगों के अहित में नहीं हो सकता। डॉ० बेनी प्रसाद के शब्दों में-“वही मत वास्तविक लोकमत है जो जनकल्याण की भावना से प्रेरित होता है।”

(4) तर्क एवं तथ्यों पर आधारित- भावावेश में व्यक्त किया गया मत लोकमत नहीं कहा जा सकता । अधिकांश जनता के तर्कपूर्ण एवं तथ्यों पर आधारित विचारों को ही जनमत कहा जा सकता है।

(5) एक विराट सम्मिश्रण- जनमत भले और बुरे मतो का एक विराट् मिश्रण होता है। सर राबर्ट पील के शब्दों में-“जनमत गलतियों, दुर्बलताओं, अन्धविश्वासों, गलत एवं सही विचारों, हठ एवं समाचारपत्रों के समाचारों का एक मिश्रण होता है।”

(6) बहुमत या सर्वसम्मति होना आवश्यक नहीं- लोकमत की वास्तविक कसौटी समाजकल्याण है; अतः लोकमत के लिए बहुनत या सर्वसम्मति आवश्यक नहीं है। यह आवश्यक नहीं कि बहुमत द्वारा व्यक्त किया गया मत लोककल्याण की भावना से प्रेरित हो। बहुमत अल्पमतों के प्रति अत्याचारपूर्ण भी हो सकता है। साथ ही बहुमत भावनाप्रधान भी होता है, जबकि लोकमत विवेक तथा जनता की स्थायी विचारधारा पर आधारित होता है। इसी प्रकार सर्वसम्मति से व्यक्त किया गया मत भी गनमत नहीं है। उदाहरण के लिए रूस में साम्यवाद सर्वसम्मति पर आधारित है, परन्तु उसे जनमत नहीं कह सकते, क्योंकि उसका कोई विरोधी ही नहीं है।

(7) ‘सामान्य इच्छा’ पर आधारित- जनमत को पूर्णरूप से समझने के लिए रूसो के ‘सामान्य इच्छा’ के सिद्धान्त को जानना होगा । इच्छायें दो प्रकार की होती हैं-‘वास्तविक इच्छा, (Actual will) तथा ‘यथार्थ इच्छा’ (Real will) । मानव अपनी भावनाओं के आवेश में आकर कार्य करता है, तो वह अपनी ‘वास्तविक इच्छा’ को व्यक्त करता है जो स्वार्थपूर्ण होता है। यह अस्थिर, अनित्य, परिवर्तनशील और क्षुद्र होती है। इसके विपरीत जब ममुष्य अपने विवेक से कार्य करता है तो ‘यथार्थ इच्छा’ को व्यक्त करता है, जो समाज कल्याण से युक्त, स्थिर तथा निःस्वार्थ होती है। यह तार्किक होने के कारण व्यक्ति और समाज के बीच अनोखा सामंजस्य दिखाती है। यही ‘यथार्थ इच्छा’ (Real Will) ‘सामान्य इच्छा’ (General Will) है। यह सार्वभौम, सर्वकल्याण की भावना से प्रेरित न्यायपूर्ण, नैतिक तथा मनुष्य की चेतना का प्रतिबिम्ब है; अत: ‘जनमत’ का वास्तविक रूप से प्रतिनिधित्व करती है।

प्रजातन्त्र में जनमत का महत्त्व

(1) जनमत प्रजातन्त्र की आधारशिला है। वास्तव में प्रजातन्त्र शासन जनमत का ही शासन होता है। क्योंकि जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि उन्हीं नीतियों एवं योजनाओं के अनुसार शासन करते हैं जो जनमत के द्वारा समर्थित होती हैं। इसमें सरकार आन्तम रूप से जनमत के प्रति उत्तरदायी होती है। प्रजातन्त्र शासन में सरकार का निर्माण और पतन जनमत पर ही निर्भर करता है। जनमत की अवहेलना करके कोई भी सरकार अधिक समय शासन नहीं कर सकती। जो दल जनमत का आदर करता है, वह पुनः शासन प्राप्त कर सकता। ई. बी० शुल्जे ने कहा है कि “जनमत एक प्रबल सामाजिक शक्ति है, जिसकी अवहेलना करने वाला राजनीतिक दल स्वयं अपने लिए संकट आमन्त्रित करता है।”

(2) प्रजातन्त्र में जनमत का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वैधानिक सम्प्रभुता और राजनीतिक सम्प्रभुता के बीच समन्वय स्थापित करना है। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में इस प्रकार की कोई भी समस्या नहीं होती, परन्तु अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में इन दोनों में संघर्ष उत्पन्न हो सकता है। इस संघर्ष में कुछ समय के लिए. वैधानिक सम्प्रभुता श्रेठ मान ली जाती है, लेकिन अन्तिम सत्ता राजनीतिक सम्प्रभुता अथवा जनमत है। यदि वैधानिक सत्ता कुछ समय के लिए अपनी इच्छा मनवाने को तैयार भी झे जाये तो अगले चुनाव में यह निश्चित है कि उस दल को मत नहीं मिलेंगे। इस कारण सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता जनमत के अनुकूल ही आचरण करती है।

(3) जनमत शासन को निरंकुश होने से रोकता है। वह सभा, जुलूस, हड़ताल, उपचुनाव, विरोध- प्रदर्शन आदि साधनों द्वारा शासन को सही दिशा में कार्य करने के लिए बाध्य करता है। डॉ० पुन्ताम्बेकर ने कहा है कि “जनमत वह शक्ति है जो राज्य के संगठन में पथ-प्रदर्शक और शासन का काम करती है। सरकार लोकमत के प्रति ही अन्तिम रूप से उत्तरदायी है।”

(4) जनमत में प्रशासनिक प्राचार आवश्यक रूप से उत्पन होता है। प्रबलं, प्रबुद्ध  जनमत के द्वारा ही प्रशासकीय अधिकारियों की मनमानी एवं भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियन्त्रण लगाया जा सकता है।

(5) जनमत को जनता के मूल अधिकारों का सबसे उत्तम रक्षक माना जाता है। यदि संरकार नागरिक अधिकारों के विरुद्ध कोई नियम पारित करती है तो लोकमत उसके विरुद्ध हो जाता है और उसे शीघ्र ही नष्ट कर डालता है; अतः सच्चे जनतन्त्र के लिए सचेत जनमत पहली आवश्यकता है।

(6) जनमत नागरिकों में राजनीतिक चेतना जागृत करता है। जनमत से प्रभावित होकर नागरिक राजनीतिक मामलों में रुचि लेने लगते हैं।

(7) सामाजिक क्षेत्र में भी लोकमत का बहुत महत्त्व होता है। लोकमत नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था के मूल्यों की रक्षा करता है और राजनीतिज्ञों का ध्यान महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्नों एवं समस्याओं की ओर आकृष्ट करता है।

(8) प्रजातन्त्र शासन में जनमत का महत्त्व अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी है। कोई भी जनतन्त्रीय देश वैदेशिक सम्बन्धों एवं अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं में जनमत की उपेक्षा नहीं कर सकता। सभी जनतन्त्रीय देश अपने कार्यों एवं गतिविधियों के सम्बन्ध में चिन्तित रहते हैं कि कहीं जनमत उनके विरुद्ध न हो जाये।

राजनीति विज्ञान महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!