जान स्टुअर्ट मिल के प्रतिनिधि सरकार सम्बन्धी विचार | प्रतिनिधि शासन पर जान स्टुअर्ट मिल के विचार
जान स्टुअर्ट मिल के प्रतिनिधि सरकार सम्बन्धी विचार
(Mill’s Views on Representative Government)
मिल के राजनीतिक विचार
(Mill’s Political Thought)
(1) मिल के शासन सम्बन्धी विचार-
मिल के अनुसार ही शासन-प्रणाली अच्छी है जिसमें नागरिकों को उचित राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है। अच्छा शासन वही है जो नागरिकों की बुद्धि तथा उसके गुणों का विकास करें। केवल प्रशासन की सफलता से कोई भी शासन उत्तम कोटि का नहीं माना जा सकता जब तक कि वह शासितों के व्यक्तिगत तथा सामूहिक गुणों को उन्नत न करें।
मिल का विश्वास था कि राज्य का स्वाभाविक विकास हुआ है परन्तु उसका विकास वृक्षों के समान नहीं हुआ । उसी के शब्दों में, “इसके विपरीत हमें याद रखना चाहिए कि राजनीतिक यंत्र स्वयं कार्य नहीं करता। इसके पहले निर्माण किया जाता है। इसे मनुष्यों द्वारा चलाया भी जाता है। उसके लिये उनके सक्रिय भाग लेने की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिये राज्य को उन व्यक्तियों के गुणों तथा शक्तियों के अनुकूल ढाला जाना चाहिये जो कि उसे चलाने के लिए प्राप्त हो।”
(2) मिल द्वारा प्रतिपादित संविधान-
मिल व्यक्ति के कार्यों में राज्य का कम से हस्तक्षेप चाहता था। इसलिए नागरिकों के नैतिक एवं बौद्धिक गुणों को विकसित करने के लिये संविधान की योजना होनी चाहिए। उसकी संविधान की परिभाषा उसके नि धात्मक शासन का स्वरूप प्रस्तुत करती है संविधान एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा समाज को बुद्धि तथा ईमानदारी के सामान्य स्तर और सबसे अधिक बुद्धिमान घटकों के व्यक्तिगत सदाचार तथा बुद्धि को शासन के कार्य में प्रभावक बनाया जाता है। और साथ ही साथ उन्हें उससे कहीं अधिक प्रभाव भी प्रदान किया जाता है जो कि किसी अन्य संगठन में हो सकता है।
(3) प्रतिनिधि सरकार-
मिल ने अपने ग्रन्थ, प्रतिनिधि सरकार में संवैधानिक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की है। सरकार ही संविधान का पालन कर सकती है। मिल अपने संविधान को पालन करने वाली सरकार का गुण बताता है क्योंकि किसी भी सरकार का सर्वोत्तम गुण यह है कि वह अपने नागरिकों को बौद्धिक तथा नैतिक विकास करने में सहायता प्रदान करे। इसलिए एक अच्छी और बुद्धिमान सरकार को इस बात का पूर्ण प्रयास करना चाहिये कि सामाजिक जीवन के संचालन पर बुद्धिमान सदस्यों का सबसे अधिक प्रभाव पड़े। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह प्रतिनिधि सरकार का समर्थन करता है।
(4) प्रतिनिधि शासन में निर्वाचन व्यवस्था-
मिल निर्वाचन को बहुत महत्वपूर्ण स्थान देता है। वह चुनाव का अधिकार अयोग्य तथा मूर्ख व्यक्तियों को नहीं देना चाहता था। उसका विश्वास था कि एक विश्वास वाला व्यक्ति एक ऐसा सामाजिक व्यक्ति है जो 99 कोरे स्वार्थी व्यक्तियों के बराबर है।
(i) अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व- मिल ने इंगलैण्ड की बहुमत निर्वाचन पद्धति (Majornty Vote System) की निन्दा की। उसका कहना था कि इस व्यवस्था में जनता का एक बड़ा भाग प्रतिनिधित्व से वंचित हो जाता है। इस दोष को दूर करने के लिए वह ‘आनुपातिक निर्वाचन पद्धति’ (Proportional Representation) का समर्थन किया। उसके अनुसार वास्तविक जनतन्त्र में प्रत्येक वर्ग का उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व होना चाहिए। बहुमत में निर्वाचकों के अधिक प्रतिनिधि होंगे परन्तु अल्पसंख्यकों के अल्पसंख्या में प्रतिनिधि भी अवश्य होने चाहिये। इस व्यवस्था के अभाव में असमानता तथा विशेष अधिकारों वाली सरकार ही स्थापित होगी जो किसी भी दृष्टि से उत्तम सरकार नहीं कही जा सकती।
(ii) मतदाताओं की योग्यताएँ- मिल का विश्वास था निर्वाचन का सबको समान अधिकार मिल जाने से अयोग्य व्यक्ति शासन में पहुँच जाता है। जो अपने स्वार्थों के आगे सार्वजनिक हित का ध्यान नहीं रखते । मिल ने निर्वाचकों की निम्न योग्यताएँ निश्चित की :-
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(अ) शिक्षा की योग्यताएँ- मिल का विचार था कि मत देने का अधिकार केवल शिक्षित व्यक्तियों को ही दिया जाना चाहिये। अशिक्षित व्यक्ति इसका उचित प्रयोग नहीं कर सकता, अत: इस परिस्थिति में अयोग्य व्यक्ति निर्वाचित हो जाएँगे। इस कारण मिल अशिक्षित व्यक्तियों को मत देने का अधिकार नहीं देता। इस विचार के पीछे यह धारणा है कि मत देने का अधिकार उसी व्यक्ति को मिलना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग कर सकता है। अशिक्षित व्यक्ति इसका उचित प्रयोग नहीं कर सकता, इस कारण उसे यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए।
(ब) सम्पत्ति की योग्यताएँ- मिल का विश्वास था कि सम्पत्ति रखने वाला व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग सम्पत्ति विहीन व्यक्ति की तुलना में अधिक बुद्धिमत्तापूर्वक कर सकता है। उसी के शब्दों में-“यह आवश्यक है कि जो सभा ‘कर’ स्वीकृत करती है, चाहे वह सामान्य कर हो अथवा स्थानीय, ऐसी सभा केवल उन व्यक्तियों द्वारा निर्वाचित होनी चाहिए, जो उन करों का कोई भाग राज्य को देते हों। जो व्यक्ति कर नहीं देते, वे दूसरों के धन को व्यर्थ खर्च करेंगे तथा बचत और देख-भाल के साथ खर्च करने की मनोवृत्ति ऐसे व्यक्तियों में नहीं होगी; अत: संपत्तिहीन व्यक्तियों को धन खर्च करने का अधिकार देना मौलिक सिद्धान्तों के विरुद्ध है।’ इस प्रकार मिल उन लोगों को मताधिकार से वंचित रखना चाहता है जिनके पास कोई संपत्ति नहीं है।
(iii) सार्वजनिक मतदान- मिल गुप्त मतदान (Secret Ballot) के विरुद्ध था। वह खुले मतदान का समर्थक था क्योंकि इससे सार्वजनिक मतदान में लोगों को भ्रष्ट साधन अपनाने का अक्सर न मिल सकेगा। वास्तव में वह यह चाहता था कि मतदान में किसी प्रकार की गड़बड़ी या बेईमानी न हो। इस कारण उसने गुण मतदान प्रणाली का विरोध किया और उसके स्थान पर खुली मतदान प्रणाली का समर्थन किया।
(iv) बहुमतदान- मिल विद्वान तथा मूर्ख में भेद करता है और सबके वोट को सामान महत्त्व नहीं देता। किसको कितने मत देने का अधिकार हो, यह निर्णय समाज योग्यता आधार पर करे। इस प्रकार मिल मानसिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक गुणों के आधार पर विभिन्न वर्ग बनाकर उन्हें कम या अधिक मत देने का अधिकारी बनाना चाहता था।
(v) स्त्रियों को मतदान का अधिकार- मिल स्त्रियों को पुरुषों के समान राजनैतिक अधिकार देने के पक्ष में था। वह कहता था कि पुरुषों ने युगों से स्त्रियों पर नियन्त्रण स्थापित कर रखा है और उन्हें अनेक अधिकारों से वंचित कर रखा है। यह अन्याय है। न्याय के नियमानुसार स्त्रियों को सामाजिक और राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिये। इस आधार पर वह स्त्रियों को भी पुरुषों के समान मत देने का अधिकार देता है।
(5) प्रतिनिधियों की स्थिति-
मिल पार्टी की अपेक्षा देश को अधिक महत्त्व देता था। संसद् के सदस्य जनता के प्रतिनिधि हैं इसलिए उन्हें स्वतन्त्र विचारों के अनुसार बोलने तथा कार्य करने वाला समझा जाना चाहिये। यदि जनता के प्रतिनिधि जनता के मत को परिवर्तित करके संसद में रखें तो वे जनता को इसका कारण बतायें। मिल चाहता था कि निर्वाचन के पश्चात् प्रतिनिधियों पर जनता का नियंत्रण रहे और वे जनता की इच्छानुसार कार्य करें।
(6) संसद् के कार्य-
मिल संसद् को प्रशासन के लिए उपयोगी नहीं मानता। उसके विचा से संसद् का कार्य शासन पर नियन्त्रण रखना है। सरकार के दोषों की आलोचना, शिकायतों का स्पष्टीकरण आदि कार्य संसद् को करने चाहिए।
मिल चाहता था कि प्रशासन के लिए अनुभवी तथा योग्य अधिकारी हों और शासन का कार्य सिविल कर्मचारियों के निर्देशन पर छोड़ दिया जाये। विभिन्न विभागों का संचालन मन्त्रियों द्वारा हो जो विविध कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे। मिल यह भी चाहता था कि व्यवस्थापिका का एक आयोग (Commission of Legislation) होना चाहिए, और कानून के विशेषज्ञ इसके सदस्य हों। कानून बनाना संसद् का कार्य है। योग्य व्यक्तियों का चुनाव प्रतियोगात्मक परीक्षा (Competitive Examination) द्वारा होना चाहिए। वह संसद् के सदस्यों को वेतन देने का भी विरोधी था। वह लार्ड सभा को एक वैधानिक आयोग समझता था और चाहता था कि विधेयकों का कार्य उसे सौंप दिया जाय।
(7) आर्थिक क्षेत्र में राज्य का कार्य-
मिल का झुकाव समाजवाद की ओर था। वह कच्ची वस्तुओं पर सामूहिक स्वामित्व चाहता था। मिश्रित श्रम में सबका समान लाभ होने की माँग करता था। वह उत्पादन के साधनों पर मुट्ठी भर व्यक्तियों के अधिकार का विरोधी था क्योंकि इससे आर्थिक विषमता उत्पन्न होती है। उसने कहा कि राज्य को चाहिए कि वह मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कानून बनाए । मजदूरों के कार्य के घण्टे निश्चित करे तथा मजदूरी आदि निर्धारित करे। परन्तु वह आर्थिक जीवन में राज्य का हस्तक्षेप उचित मात्रा में ही आवश्यक समझता था।
(8) लोकतन्त्र का समर्थक-
वेपर का मत है कि मिल एक लोकतन्त्रवादी विचारक था। उसका विश्वास था कि व्यक्ति स्वयं अपने अधिकारों तथा हितों की रक्षा सर्वोत्तम ढंग से कर सकता है। वह जनता का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से नियन्त्रण सरकार पर रखना चाहता था। वह लोकतन्त्र शासन प्रणाली को मानव के लिए अच्छा समझता था क्योंकि मानव उससे न केवल अधिक सुख ही प्राप्त करता है बल्कि अधिक योग्य भी बनता है। परन्तु आधुनिक युग में लोकतन्त्र के पक्षपाती मिल के विचारों से सहमत नहीं हैं। वे मिल के सार्वजनिक मतदान का विरोध करते हैं। क्योंकि व्यक्ति खुले मतदान में व्यक्तिगत प्रभाव में आकर स्वतन्त्रतापूर्वक मतदान नहीं कर सकता है। वे मिल के सीमित मताधिकार की भी आलोचना करते हैं।
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