राजनीति विज्ञान

जान स्टुअर्ट मिल उपयोगितावाद का महत्त्व | Importance of John Stuart Mill Utilitarianism in Hindi

जान स्टुअर्ट मिल उपयोगितावाद का महत्त्व | Importance of John Stuart Mill Utilitarianism in Hindi

जान स्टुअर्ट मिल उपयोगितावाद का महत्त्व- मिल की सम्पूर्ण विचारधारा संगत और सम्बद्ध नहीं है और उसमें अनेक तार्किक अन्तर्विरोध निहित हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उसने प्रारम्भ में बेन्थम के उपयोगितावादी दर्शन को अपनाया। उसने अपने व्यापक अनुभव और तीक्ष्ण बुद्धि से उपयोगितावादी दर्शन की कमियाँ देख लीं तथा इन्हें दूर कर उपयोगितावाद को अधिक मानवीय रूप प्रदान किया। उपयोगितावाद के उसके द्वारा किये गये ये संशोधन इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि वास्तव में वह उपयोगिता से हट गया, लेकिन फिर भी मेन्थम और जेम्स मिल के प्रति निष्ठा के कारण अपने आपको उपयोगितावादी ही समझता रहा। उसने उपयोगितावाद की स्पष्टता और संगतता का तो अन्त कर ही दिया, अपनी ओर से किसी नवीन दर्शन को भी जन्म नहीं दिया।

किन्तु “उपयोगितावादियों से वह सर्वाधिक सन्तोषजनक है। वह उस गहराई तक पहुंचता है जिसे उसके पिता और बेन्थम ने कभी नहीं जाना। उसके पास अपनी निजी वास्तविकता है और वह उनकी अपेक्षा जीवन के अधिक सन्निकट है। वह उपयोगितावाद की अपूर्णता, अपर्याप्तता तथा भावनाओं के प्रति अन्धेपन को नष्ट करता है।”

राजनीतिक दर्शन को मिल की जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन है, वह है व्यक्ति की स्वतन्त्रता और उसकी महत्ता का प्रतिपादन। मिल ने विचार तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह न केवल आंग्ल भाषा वरन् सम्पूर्ण राजनीतिक साहित्य में इस विषय पर सर्वश्रेष्ठ रचना है। बेपर ने उचित कहा है कि “विचार स्वातन्त्रता के प्रतिरक्षण के सम्बन्ध में इससे उत्तमतर अन्य कोई रचना नहीं है।”

मिल अपने समय का सर्वप्रसिद्ध उदारवादी था और वह मानवीय व्यक्तित्व का विकास तथा मानवीय विविधताओं की रक्षा को प्रगति की कुंजी समझता था। कुछ थोड़े-से रचनाशील तथा मौलिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों के कार्य को वह कितना महत्त्व देता था, वह उसके निम्नलिखित वाक्य से देखा जा सकता है- “ये थोड़े-से लोग ही पृथ्वी का लवण हैं, इनके बिना मानव जीवन प्रगतिहीन हो जायेगा।”

मिल का महत्त्व इस बात में है कि वह व्यक्ति को सरकार की निरंकुशता की अपेक्षा बहुमत की निरंकुशता तथा समाज के रीति-रिवाजों की निरंकुशता से मुक्ति दिलाने की ही अधिक चिन्ता करता है और सत्य रूप में इस बात का प्रतिपादन करता है कि प्रजातान्त्रिक सरकार केवल प्रजातान्त्रिक समाज में ही सम्भव है।

सेबाइन के मतानुसार उदारवादी दर्शन में मिल का योगदान चार बातों में है-

(1) उपयोगितावादी सिद्धान्त में नैतिक भावना का मिश्रण कर उसने काण्ट के समान ही मानव व्यक्तित्व को मान्यता दी और नैतिक उत्तरदायित्व से उसका सम्बन्ध स्पष्ट किया।

(2) उसने सामाजिक तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता को स्वयं में अच्छा बताया।

(3) स्वतन्त्रता केवल व्यक्तिगत नहीं, वरन् सामाजिक अच्छाई है। किसी विचार के दमन से व्यक्ति को नहीं, वरन् समाज को हानि पहुँचती है।

(4) स्वतन्त्र समाज में उदारवादी राज्य का कार्य नकारात्मक नहीं वरन् सकारात्मक है।

एक पीढ़ी से भी अधिक तक दार्शनिक तथा राजनीतिक विचार के समस्त क्षेत्र में उसके प्रभाव की प्रधानता रही। उसके ग्रन्थ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का भाग बन गये और वह अपने विरोधियों तथा अनुयायियों दोनों पर ही छाया रहा। राजनीतिक विचारधारा पर उसके प्रभाव के सम्बन्ध में बॉवल (Bowle) ने लिखा है, “और यदि लेखकों की योग्यता का निर्णय इस बात से होता है कि उनका नीति पर क्या प्रभाव पड़ता है तो मिल का स्थान निश्चित रूप से ही ऊँचा है। एक न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिक दार्शनिक के रूप में उसे अपने युग में एक अवतार समझा जाता था।”

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Pankaja Singh

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