कीन्स की आय बचत एवं निवेश सिद्धान्त | कीन्स का विश्लेषण बचत व विनियोग में समानता | बचत व विनियोग सिद्धान्त की मुद्रा के परिणाम सिद्धान्त से तुलना
कीन्स की आय बचत एवं निवेश सिद्धान्त
मुद्रा के मूल्य निर्धारण में आय, उपभोग, बचत एवं विनियोग महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जो मुद्रा के परिमाण व कीमत स्तर में प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करता है। अतः मुद्रा की पूर्ति का कोई प्रभाव उत्पादन पर नहीं पड़ता है।
इस प्रकार समाज में आय, बचत एवं विनियोग (निवेश) स्तर ही मुद्रा के मूल्य को प्रत्यक्ष प्रभावित करते हैं।
परिभाषा-
क्राउथर के अनुसार, “एक व्यक्ति की वचत, उसकी आय का वह भाग है, जो वस्तुओं के उपभोग पर व्यय नहीं की जाती है।”
लेकिन विनियोग के सम्बन्ध में उनका विचार है कि-
विनियोग (निवेश) आय का एक ऐसा भाग है, जिसे पूँजीगत वस्तुओं पर ही व्यय किया जाता है।
6.1 प्रो०. कीन्स के अनुसार, “मुद्रा का मूल्य-आय, उपभोग, बचत व विनियोग पर निर्भर होता है, इस सामान्य सन्दर्भ में एक समीकरण प्रस्तुत है-
Y=C+S अथवा Y-C=S
Y=Income (आय)
C=Consumption (उपभोग)
S= Saving (बचत)
या Y=C+1 अथवा Y-C=1
Y= Income (आय)
C= Consumption (उपभोग)
I= Investment (विनियोग)
उत्तर- S=1
कीन्स का विश्लेषण-
प्रो० कीन्स ने बताया है कि मौद्रिक आय एवं वास्तविक आय का अर्थ उपभोक्ता की आय से होता है, जो उत्पादन के साधनों (लगान, ब्याज, मजदूरी व लाभ) से समाज को प्राप्त होती है। इसे कीन्स ने Y कहा है। अतः प्रत्येक देशवासी मौद्रिक आय के दो भागों पर व्यय करते हैं, सर्वप्रथम आय का एक हिस्सा उपभोग C पर व्यय होता है, शेष आय का हिस्सा भविष्य के लिये बचत S के रूप में संग्रह किया जाता है। अतः मुद्रा की माँग उपभोग के लिए उद्धृत समाज द्वारा प्रभावी माँग (Effective Demand) के रूप में बढ़ती है। ज्यों-ज्यों आय का स्तर बढ़ता है उपभोग का स्तर भी ऊँचा हो जाता है, आय की मात्रा व बचत स्तर भी न्यून हो जाता है।
बचत- बचत के लिये कीन्स का मत है, कि बचत आय का वह भाग है जिसे उपभोग पर व्यय नहीं किया जाता है क्योंकि ऊँची बचत कंजूसी पर निर्भर करती है। यदि उपभोग पर ऊँचा व्यय किया जाता है तो बचत कम रह जाती है। जब किसी देश में ऊँची बचत होती है तो बाजार में वस्तुओं की माँग कम हो जाती है, जिससे वस्तुओं का मूल्य घटने लगता है, फलतः कीमत स्तर घटने पर मन्दी की दशाएँ उत्पन्न होती हैं।
विनियोग- कीन्स के अनुसार बचत या विनियोग में कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि देशवासी जब बचत को बैंकों में जमा करते हैं तो बैंक जमाराशि को विनियोग में लगाती है। अतः विनियोग का अर्थ पूंजीगत वस्तुओं के खरीदने पर व्यय करने से होता है। इस प्रकार किसी देश में विनियोग का स्तर ज्यों-ज्यों होता है त्यों-त्यों वस्तुओं की माँग बढ़ने पर मूल्य स्तर ऊपर उठता है। ध्यान रहे, विनियोग से तात्पर्य पूँजी-निर्माण के लिये पूंजीगत साधनों पर हुए मुद्रा के व्यय से होता है। क्योंकि पूँजीगत साधनों पर व्यय करने से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। यदि समाज ऐसे पूँजीगत साधनों पर व्यय कर रहा है, जिससे उत्पादन क्षमता में कोई वृद्धि न हो तो उसे विनियोग नहीं कहा जा सकता है। जैसे- एक व्यक्ति शेयर बेचकर दूसरे व्यक्ति से ऋण पत्र क्रय करता है तो यह विनियोग नहीं है।
प्रो० कीन्स ने बचत एवं विनियोग को निम्न प्रकार से व्यक्त किया है-
प्रो० कीन्स ने विनियोग को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या में कहा है, कि ब्याज की दर विनियोग को प्रभावित करती है, जबकि ब्याज की दर में परिवर्तन मुद्रा की मात्रा व तरलता अधिमान के अनुसार होता है। मुद्रा की मात्रा कितनी हो? इसको निश्चित करने के लिए सम्पूर्ण देशवासियों की तरलता पसन्दगी की प्रवृत्ति व्यवसायिक उद्देश्य, सुरक्षात्मक उद्देश्य व सट्टे के उद्देश्य के कारण ऊँची है, तो उसी प्रकार से ब्याज की दरें प्रभावित होती हैं, जो विनियोग की माँग में परिवर्तन कर देती हैं। कीन्स ने पूँजी की सीमान्त क्षमता (MEC) को लाभ की अनुमानित दर व पूँजीगत आदेशों के पूर्ति मूल्य के अनुसार प्रभावित होना माना है। क्योंकि किसी देश की कर नीति, मजदूरी दर, जनसंख्या व तकनीकी परिवर्तन आदि पूँजी की सीमान्त क्षमता को प्रभावित करता है जिससे विनियोग प्रभावित होना स्वाभाविक है।
कीन्स का मत है कि “किसी अर्थव्यवस्था में जब तक बेकारी रहती है तब तक मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन करने पर रोजगार की मात्रा में आनुपातिक परिवर्तन होगा, किन्तु पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त होने के बाद मुद्रा की मात्रा का परिवर्तन कीमतों में यथार्थ आनुपातिक परिवर्तन करता है। यही कीन्स का नया मुद्रा परिमाण सिद्धान्त है।”
बचत व विनियोग में समानता-
प्रो० कीन्स ने बचत एवं विनियोग को समान रूप में विश्लेषित करते हुए बताया कि मूलतः बचत आय का वह भाग है, जो उपभोग पर व्यय नहीं किया गया है। इसलिये आय से उपभोग व्यय घटा देने पर बचत शेष रह जाती है। कीन्स की प्रसिद्ध पुस्तक ‘General Theory’ में बचत व विनियोग को पूर्ण रोजगार की स्थिति के समान बताया है।
चूँकि Y = C+S
तो Y-C = S
इसी प्रकार Y = C+i
तो Y-C = i
इसीलिए S = i
इस समीकरण से ज्ञात होता है कि बचत व विनियोग में समानता स्वतः स्थापित होती है। यदि देशवासी बचत को अनुत्पादक कार्यों के लिए संग्रह करते हैं तो विनियोग स्वाभाविक है। लेकिन ऐसी स्थिति अर्द्धविकसित देशों में होती है- जहाँ बेरोजगारी पायी जाती है। इस परिप्रेक्ष्य में कीन्स का मत है कि जब किसी देश में बचत की अपेक्षा विनियोग कम है तो बचत में वृद्धि करने के लिए लोगों के उपभोग व्यय में कटौती करनी पड़ती है। फलतः प्रभावी मांग में कमी हो जायेगी, जिससे उत्पादक वर्ग हत्सोसाहित होकर उत्पादन कम कर देंगे, इसके परिणामस्वरूप देश में बेकारी फैल जायेगी। इससे समाज के वृत्तिहीन लोगों की आय कम या शून्य हो जायेगी। फलतः आय में कमी से बचत भी कम रह जायेगी। इसलिये बचत एवं विनियोग में सदैव समानता रहती है।
बचत व विनियोग सिद्धान्त की मुद्रा के परिणाम सिद्धान्त से तुलना
कीन्स के बचत व विनियोग सिद्धान्त की तुलना मुद्रा के परिमाण से निम्नवत् की जा सकती है-
(1) क्राउथर के मतानार यदि मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त समुद्र जल को मापता है तो बचत एवं विनियोग का सिद्धान्त उसके ज्वार-भाटे के वेग को मापता है। इस प्रकार बचत एवं विनियोग’ का सिद्धान्त अधिक श्रेष्ठ है।
(2) मुद्रा के बचत व विनियोग सिद्धान्त है मुद्रा की पूर्ति में कमी से कीमतें कम तो की जा सकती हैं, किन्तु मुद्रा के सृजन से अधिक विकास का उत्थान नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर परिमाण सिद्धान्त मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन को कीमत स्तर में परिवर्तन का समान अनुपात विश्लेषित करता है। अतः बचत एवं विनियोग का सिद्धान्त श्रेष्ठ है।
(3) बचत एवं विनियोग सिद्धान्त मुद्रा के चलन वेग (Velocityof Circulation) को परिमाण सिद्धान्त की तुलना में अधिक विश्लेषित करता है, क्योंकि पूँजी की सीमान्त क्षमता व तरलता अधिमान मुद्रा चलन-वेग का ही सूचक है।
(4) बचत एवं विनियोग सिद्धान्त में मुद्रा की मात्रा के परिवर्तन से ब्याज की दर प्रभावित होती है जबकि परिमाण सिद्धान्त कीमतों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करता है। अतः कीन्स का बचत- विनियोग सिद्धान्त एक उत्तम व्याख्या है।
(5) बचत एवं विनियोग सिद्धान्त में मुद्रा के मूल्य के लिये आय, बचत एवं विनियोग को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। जबकि परिमाण सिद्धान्त में, ऐसे तथ्य विश्लेषित नहीं किए गए हैं। अतः कीन्स का मौद्रिक विश्लेषण उत्तम है।
इस प्रकार मुद्रा के मूल्य निर्धारण में बचत एवं विनियोग सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस सिद्धान्त में मुद्रा के मूल्य को अर्थव्यवस्था के आय, बचत, विनियोग, उत्पादन, रोजगार स्तर से जोड़कर उचित मौद्रिक विश्लेषण से सिद्ध किया गया है कि मुद्रा का परिमाण अर्थव्यवस्था के लिये उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि अर्थव्यवस्था के समुत्थान के लिये अन्य तत्त्व बचत व विनियोग आदि होते हैं। इस प्रकार कीन्स का मौद्रिक विश्लेषण वैज्ञानिक है।
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