विक्रय प्रबंधन

विक्रेता के कार्य मूल्यांकन की आवश्यकता | विक्रेता के कार्य मूल्यांकन के लाभ

विक्रेता के कार्य मूल्यांकन की आवश्यकता | विक्रेता के कार्य मूल्यांकन के लाभ | Requirement of vendor’s work appraisal in Hindi | Benefits of Seller’s Job Appraisal in Hindi

विक्रेता के कार्य मूल्यांकन की आवश्यकता

विक्रेता केवल अपनी ही गति से करता रहे एवं विक्रय प्रबंधक केवल विक्रेता पर निरीक्षण व नियंत्रण रखे, इतने में ही व्यावसायिक संस्था के कार्य की इतिश्री नहीं हो जाती। वस्तुतः समय-समय पर विक्रेता के कार्य का मूल्यांकन भी करना चाहिए। यदि विक्रेता ने कोई अच्छा कार्य किया है तो उसे पुरस्कृत करना चाहिए। इससे उसका उत्साह बढ़ता है तथा वह यह समझने लगता है कि वास्तव में संस्था उसके कार्य की कद्र करती है। सामान्यतः विक्रेता के मूल्यांकन की समस्या उसे अतिरिक्त पारिश्रमिक देने, पदोन्नति करने, पदावनत करने या स्थानान्तरण के समय उत्पन्न होती है क्योंकि ये सभी बातें विक्रेता द्वारा किये गये कार्यों पर आधारित होती हैं। अतिरिक्त पारिश्रमिक देने, पदोन्नत करने, पदावनत करने या स्थानान्तरण करने के पूर्व विक्रेता का मूल्यांकन अवश्य कर लेना चाहिए तथा यह देख लेना चाहिए कि क्या वह इस योग्य है? यदि विक्रेता मूल्यांकन में खरा नहीं उतरता तो उसे पुनः प्रशिक्षण के लिए, भेजा जा सकता है।

विक्रेता के कार्य मूल्यांकन के लाभ

(1) विक्रेता के मूल्यांकन से विक्रय प्रबंधक को यह ज्ञात करने का भी अवसर प्राप्त हो जाता है कि नियुक्तिकर्ताओं एवं प्रशिक्षणकर्त्ताओं ने अपना कार्य किस प्रकार किया है। यदि विक्रेता प्रभावपूर्ण एवं क्षमतापूर्ण ढंग से विक्रय का कार्य करने में सफल हो जाता है तो निश्चित रूप से नियुक्तिकर्ताओं ने एक सही व्यक्ति का चुनाव किया है एवं प्रशिक्षणकर्त्ताओं ने उस विक्रेता को अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया है।

(2) मूल्यांकन करने से विक्रेता में निहित सभी अच्छी एवं बुरी बातों की जानकारी हो जाती है। इस प्रकार विक्रेता में निहित अच्छी बातों को प्रोत्साहित करके उसे और अधिक योग्य बनाये जाने का अवसर प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर उसमें से बुरी बातों को निकाल कर उसे योग्य विक्रेता बनाया जाता है।

(3) मूल्यांकन से विक्रेता को यह आभास होता है कि वह कहाँ खड़ा है तथा उसे उन्नति के लिए अब और कितना प्रयत्न करना है। ऐसी स्थिति में विक्रेता मन लगाकर कार्य करता है।

(4) विक्रेता का मूल्यांकन करके उसे पदोन्नत किया जाता है या पदावनत । यदि उसने अपना कार्य दक्षता एवं ईमानदारी से किया है तथा उसकी पदोन्नति कर दी गई है तो यह बात दूसरे विक्रेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। इसके विपरीत यदि किसी विक्रेता का कार्य संतोषजनक नहीं रहा है तो उसे पदावनत किया जायेगा जो कि अन्य विक्रेताओं के लिए चेतावनी होगी।

मूल्यांकन में कठिनाइयाँ

जब विक्रेता का मूल्यांकन करने का कार्य किया जाता है तब अनेक कठिनाइयाँ मार्ग में उपस्थित होती हैं, इनमें से कुछ निम्न हैं—

(1) विक्रेता द्वारा किये गये कार्य को मापने के लिए कोई ऐसी निश्चित मापन विधि नहीं जिसके आधार पर विक्रेता का एकदम ठीक-ठीक मूल्यांकन किया जा सके।

(2) सामान्यतः विक्रेता का मूल्यांकन विक्रय मात्रा के आधार पर किया जाता है किन्तु केवल विक्रय मात्रा ही मूल्यांकन का आधार नहीं है। यदि आज कोई विक्रेता क्षेत्र में उत्तर रहा है तथा ग्राहकों से अच्छे सम्बन्ध बनाना कर रहा है तो कोई आवश्यक नहीं कि आज ही विक्रय बढ़ जाय। ग्राहक से सम्बन्ध तो बढ़ते-बढ़ते ही बढ़ते हैं तथा ये सम्बन्ध विक्रय वृद्धि के रूप में तो कुछ समय बाद ही प्रकट होते हैं।

(3) विक्रेता द्वारा किये जाने वाले क्रिया-कलाप विक्रेता की योग्यता के अतिरिक्त अन्य बातों पर भी आधारित होते हैं। कई बातें ऐसी होती हैं जो विक्रेता के नियंत्रण से परे होती हैं एवं विक्रेता का उन पर वश नहीं चलता। विशेष विक्रय क्षेत्र की जलवायु, संस्था की विक्रय एवं वितरण नीति आदि अनेक बाते हैं जो विक्रेता के वश के बाहर हैं।

(4) विक्रेता की कुछ विशेष क्रियाएँ जैसे ग्राहकों से मधुर सम्बन्ध रखना, उत्तम व कुशल व्यवहार, उसकी ईमानदारी तथा संस्था की ख्याति बढ़ाने के लिए किये गये प्रयत्न आदि कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण पहलू हैं जिनके परिणाम का मूल्यांकन करना कठिन होता है।

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Pankaja Singh

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