शिक्षाशास्त्र

सतत् शिक्षा से तात्पर्य | सतत् शिक्षा की परिभाषाएँ | सतत् शिक्षा का आधुनिक सम्प्रत्यय | सतत् शिक्षा के उद्देश्य | सतत् शिक्षा का क्षेत्र

सतत् शिक्षा से तात्पर्य | सतत् शिक्षा की परिभाषाएँ | सतत् शिक्षा का आधुनिक सम्प्रत्यय | सतत् शिक्षा के उद्देश्य | सतत् शिक्षा का क्षेत्र | Meaning of continuing education in Hindi | Definitions of Continuing Education in Hindi | Modern concept of continuing education in Hindi | Objectives of Continuing Education in Hindi | area of ​​continuing education in Hindi

सतत् शिक्षा से तात्पर्य

(Meaning of Continuing Education)

सतत् शिक्षा का सम्प्रत्यय इस अवधारणा पर आधारित है कि संरचित अधिगम अथवा नियमित अध्ययन का कार्य जीवन के प्रारम्भिक वर्षों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए किन्तु इसे एक व्यापक स्तर पर सम्पूर्ण जीवन के साथ संश्लिष्ट किया जाना आवश्यक है। इसलिये अनेक विद्वानों ने देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप अनेकानेक नामों, पदावलियों तथा विशेषणों से व्यक्त किया है। इसके अय समकक्ष शब्द निम्नलिखित हैं

प्रौढ़ शिक्षा (Adult Education)

खुला स्कूल शिक्षा (Open School Education)

अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)

अग्रिम शिक्षा (Further Education)

आजीवन शिक्षा (Life-Long Education)

सतत् शिक्षा (Continuing Education)

ये सभी शब्द समकक्ष हैं, किन्तु प्रत्येक राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप उनको विवेचना, अर्थ, सीमाएँ आदि अलग-अलग हैं। शिक्षाशास्त्र के छात्र इस शब्द-जाल से काफी भ्रमित हो जाते है। अत: यहा इस शब्दावला का तो विस्तार से विभादत अध्ययन इस प्रश्न का सामा से बाहर है  किन्तु सतत् के विशिष्ट अर्थ के साथ हो ये अर्थ स्वतः ही स्पष्ट होते चले जायेंगे, ऐसी आशा की जाती है।

‘सतत् शिक्षा’ का फ्रांसीसी प्रतिरूप है- ‘ऐडूकेशन परमानेण्ट’ (Education Permanent) अथवा ‘चिर शिक्षा’ जो इस शब्द को व्यापकता को उजागर करता है। सतत् शिक्षा इस बुनियादी सिद्धान्त पर आधारित है कि व्यक्ति की शिक्षा उसी दिन ही समाप्त नहीं हो जाती, जिस दिन वह विद्दालय छोड़ देता है बल्कि वह सतत् रूप से चालू रहनी चाहिए क्योंकि शिक्षा स्वयं गतिशील है तथा जीवन के गत्यात्मक पक्ष को सबल बनाने का ठोस यन्त्र है। अतः यह तो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त स्वरूप में अपनी भूमिका रखती है।

सतत् शिक्षा की परिभाषाएँ

(Definitions of Continuing Education)

विभिन्न विद्वानों, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विद्वानों ने सतत् शिक्षा के प्रत्यय को विभिन्न प्रकार श्रीसे परिभाषित किया है, जिनमें से चुनी हुई परिभाषाएँ ही यहाँ पर प्रस्तुत की जा रही हैं, जो इसके सम्प्रत्यय को सुस्पष्ट कर सकेंगी-

  1. यूनेस्को (1971 ) द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – सतत् अथवा आजीवन शिक्षा मानव व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के लिये सतत् रूप से चलने वाली सृजनात्मक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य हर प्रकार के अधिगम को अनुभवों के साथ समन्वित किया जाना है।
  2. टी०के० औम्मान के अनुसार- सतत् शिक्षा निरन्तर रूप से चलने वाली एक ऐसो प्रक्रिया है जो जीवन पथ पर अग्रसर होने वाले व्यक्ति को अपनी व्यावहारिक समस्याओं को अपना लक्ष्य बनाती है।… आजीवन अधिगम एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है, यह शैक्षिक प्रयासों को व्यक्ति के जीवन के अनुभवों के प्रकाश में उसके जीवन से सन्दर्भित करने का अथक प्रयास कहा जा रहा है।
  3. सतत् शिक्षा मूल रूप से शिक्षा को ही जीवन तथा जीवन को ही शिक्षा मानने वाला व्यापक सम्प्रत्यय है। व्यापक अर्थों में शिक्षा तथा आजीवन शिक्षा-दोनों ही पर्यायवाची शब्द हैं तथा इसे जन्म से लेकर मृत्यु तक अनवरत रूप से चलने वाली शैक्षिक प्रवाह प्रक्रिया के रूप में माना जाता है।
  4. डॉ० जयगोपाल के अनुसार- सतत् शिक्षा आनुवंशिक विज्ञान के क्रांस ऑवर (Cross Over) से मिलता है जो कि औपचारिकेतर शिक्षा से औपचारिक शिक्षा के मध्य लम्बवत् तथा क्षतिज रूप से पारगमन करता है।

सतत् शिक्षा का आधुनिक सम्प्रत्यय

आधुनिक सतत् शिक्षा का सम्प्रत्यय निम्नलिखित दो सन्दर्भों में विवेचित किया जा सकता हैं-

  1. व्यक्तिगत सन्दर्भ (Personal Context),
  2. संस्थागत सन्दर्भ (Institutional Context)

व्यक्तिगत सन्दर्भ में सतत् शिक्षा की व्याख्या- व्यक्तिगत सन्दर्भ में सतत् शिक्षा अधिगम की एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। यह कुछ व्यक्तियों के लिए एक अवसर  हो सकती है कुछ के लिए कौशल सीखने का मौका तथा अन्य व्यक्ति के लिए व्यक्तित्व विकास का एक साधन सतत् शिक्षा इस सन्दर्भ में एक ऐसा प्रयास है जो जीवन को विभिन्न अवस्थाओं से  उत्पन्न विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यक्ति को जीवन पर्यन्त ज्ञान, कौशल, अभिवृत्तियो से परिपूर्ण परिपक्व बनाती है। यह ज्ञानात्मक सुधार का आन्दोलन है। इस रूप में सतत् शिक्षा  आजीवन अधिगम को एक प्रक्रिया के रूप में शिक्षा की संज्ञा प्राप्त कर लेती है। यह दोनों को एक ही स्वरूप प्रदान करती है।

संस्थागत सन्दर्भों में सतत् शिक्षा के स्वरूप की विवेचना- संस्थागत सन्दर्भों में सतत् शिक्षा एक बहुमुखी अनुदेशात्मक प्रक्रिया है जो माध्यमिक स्तर के बाद प्रारम्भ होती है। यह एक व्यक्ति अथवा संस्था की आवश्यकताओं के विभिन्न स्तरों पर चलने वाली शैक्षिक सेवा है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के लिए सतत् शिक्षा के अन्तंगत वे सभी उत्तरदायित्व सम्मिलित कर लिऐ जाते हैं जिनमें व्यक्तियों एवं समूहों की आवश्यकताओं की पहचान, उनका पूर्वानुमान तथा पूर्ति के लिए योजना बनाना सम्मिलित रहता है। व्यक्तियों एवं समूहों की आवश्यकताओं का आकलन और उनकी पूर्ति करने के लिए महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को अपने औपचारिक शैक्षिक कार्यक्रमों को समालोचनात्मक ढंग से मूल्यांकित करना आवश्यक है जिससे कि उसे समाज एवं शिक्षा के उपभोक्ताओं की आवश्यकतानुसार सार्थक बनाया जा सके।

अतः स्पष्ट है कि सतत् शिक्षा सामान्य शिक्षा एवं शैक्षिक प्रमाणपत्रों को प्राप्त करने के चलने वाली वह शिक्षा है जो कि जीवन के व्यावसायिक एवं सामाजिक अनुभवां एवं आवश्यकताओं पर आधारित है। जीवन में कोई कार्य अथवा व्यवसाय में संलग्न रहते हुए भी जब व्यक्ति ऐसा अनुभव करने लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों हेतु और अधिक अनुभवों, कौशलों ज्ञान की आवश्यकता है, इसी स्थिति को हम सतत् शिक्षा के नाम से पुकारते हैं। यही शिक्षा व्यक्ति के कौशलों, ज्ञान, व्यावहारिकता में मनोनुकल अभिवृद्धि करके व्यक्ति को समसामयिक परिस्थितियों के साथ श्रेष्ठ सामंजस्यता हेतु तत्पर करती है, उत्पादकता में वृद्धि करती है तथा व्यक्ति को समाजिक, वित्तीय तथा व्यावसायिक उन्नति में साधक होती है। अतः यह एक अनवरत, जीवनोनुकूल प्रयास है, जो किसी भी सीमा से प्रभावित नहीं होता।

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सतत् शिक्षा की संकल्पना को बिन्दु रूप में समझन हेतु निम्नलिखित बिन्दुओं को विशिष्ट गुणों के रूप में निर्दिष्ट कर रहे हैं-

सतत् शिक्षा एक ऐसी अनोखी शैक्षिक प्रणाली है जो कि एक सामाजिक इकाई के समस्त सदस्यों को अपने में निहित करती है अर्थात् सम्पूर्ण सामाजिक घटकों हेतु यह आवश्यक अवसर प्रदान करती हैं।

सतत् शिक्षा विशिष्ट परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बहुमुखी तथा बहुउद्देशीय प्रयास करती है।

सतत् शिक्षा का मूलमन्त्र प्रजातान्त्रिक संस्कृति का परिपोषण है क्योंकि यह सभी सामाजिक व्यक्तियों हेतु समान अवसरों का निर्माण करती हैं।

सतत् शिक्षा समय, पाठ्यक्रम, आयु लिग, क्षेत्र आदि की सीमाओं से परे है तथा पर्याप्त लचीली व्यवस्था का निर्माण करती है जिससे व्यक्ति आवश्यकतानुसार अतिरिक्त प्रशिक्षण तथा पुनर्शिक्षण के लिए तैयार रहे।

सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए प्रभावकारी भूमिका का भी निर्वाह सतत् शिक्षा भली प्रकार करती है। यह विकास की कार्यप्रणाली तथा आविष्कारता एवं आलोचनात्मक विश्लेषण की क्षमता में वृद्धि करती है।

कॉप्ले एवं दवे (1978) ने इन सभी विशेषताओं को सतत् शिक्षा के निम्नलिखित पाँच आयामों के रूप में प्रस्तुत किया है-

  1. सतत् शिक्षा अपने में सम्पूर्ण शिक्षा है।
  2. सतत् शिक्षा एक प्रकार की समन्वित शिक्षा है।
  3. सतत् शिक्षा नंम्य एवं अनुकूलित शिक्षा प्रक्रिया है।
  4. सतत् शिक्षा अपने में प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना करती है।
  5. सतत् शिक्षा ‘स्व’ की पूर्ति करने वाली होती है।

अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि सतत् शिक्षा एक ऐसी व्यापक शिक्षा प्रणाली है जो व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को, शिक्षा के सम्पूर्ण स्तरों को, शिक्षा के समस्त स्वरूपों द्वारा (औपचारिक, अनौपचारिकेतर, प्रौढ़ समाज) सभी परिस्थितियों में अपने को समाविष्ट करती है।

सतत् शिक्षा के उद्देश्य

(Objectives of Continuing Education)

सतत् शिक्षा के क्षेत्र विस्तार की चर्चा को समझने से पूर्व इसके उद्देश्यों पर दृष्टिपात करना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। क्योंकि सतत् शिक्षा के इन्ही उद्देश्यों के आधार पर उसके विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन किया जा सकता है। एशियाई देशों के दक्षिणी प्रशान्त क्षेत्र में सतत् शिक्षा सम्बन्धी सम्मेलन, 1971 में सतत् शिक्षा के जिन उद्देश्यों की स्थापना की गयी, वे निम्न प्रकार से है –

  1. व्यक्तियों की कार्यकुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि हेतु सतत् शिक्षा का आयोजन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि वे समाज को अपना प्रभावशाली योगदान दे सके।
  2. समस्योन्मुख अभिवृत्ति तथा निर्णयात्मक क्षमता तथा नेतृत्व कौशलों को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान करना।
  3. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संस्थाओं की कार्यक्षमता एवं कुशलता को विकसि करना ताकि एक प्रजातांत्रिक समाज के सन्दर्भ में वे व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास में अपनी पर्याप्त योगदान दे सकें।
  4. व्यक्तियों को ऐसो सहायता प्रदान करना कि वे जटिलता एवं त्वरित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं से युक्त समाज में प्रभावशाली सहभागिता प्रदान कर सकें।
  5. सतत् शिक्षा जीवन से समन्वित ऐसी शिक्षा होनी चाहिए जिसके द्वारा व्यक्ति में ज्ञान, विवेक तथा जीवन मूल्यों की ऐसी प्रणाली विकसित हो, जो उसे जीवन की प्रत्येक अवस्था पर समुचित चुनाव अथवा चयन करने में सहायता प्रदान करे, परिवर्तनशील समाज सम्बन्धी, अर्थ सम्बन्धी, राजनैतिक, साँस्कृतिक वातावरण में उसे सृजनात्मक रीति से समायोजित कर सके, उसकी सभी क्षमताओं पर पूर्ण विकास कर उसे प्रोत्साहन एवं पर्याप्त सहायता प्रदान कर सके तथा उसमें सामाजिक सतर्कता, उत्तरदायित्वपूर्ण भावना, क्षमता का विकास कर सके ताकि समाज में वह दूसरे को पर्याप्त सेवा करने में सक्षम हो सके।

सतत् शिक्षा का क्षेत्र (Scope of Continuing Education)

सतत् शिक्षा की व्यापकता के कारण इसके क्षेत्र विस्तार को व्यापकता का वर्णन अत्यधिक दुष्कर कार्य हैं। फिर भी इसके क्षेत्र विस्तार को समझने के लिए यहाँ पर इसके विभिन्न अवयवों को बिन्दुओं के रूप में प्रकट कर रहे हैं। फिर भी यह प्रदत्त सूची अपने में सम्पूर्ण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली है, यह कहा जाना सम्भव नहीं है। इस प्रकार सतत् शिक्षा का क्षेत्र निम्नलिखित बिन्दु घटकों के सम्मिश्रण से बना होता है-

  1. सतत् शिक्षा क्रियात्मक साक्षरता का वृहद स्वरूप है।
  2. सतत् शिक्षा अपूर्ण शिक्षित लोगों के लिए सुधारात्मक शिक्षा है।
  3. सतत् शिक्षा व्यावसायिक एवं कार्यरत लोगों के लिए रिफ्रैसर पाठ्यक्रम की तरह से है।
  4. सतत् शिक्षा सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का अनुशासित विश्लेषण करने में सहभागिता के अवसर और समस्याओं के समाधान का क्रियान्वयन है।
  5. सतत् शिक्षा परिवर्तन पाठ्य चर्चा का ऐसे व्यक्तियों के लिए संचालन है जिसको उन व्यक्तियों को आवश्यकता होती है।
  6. सतत् शिक्षा बहुसामुदायिक सामाजिक ढाँचे में जीवन मापन के लिए नागरिकता के कौशलों को विकसित करने की प्रक्रिया है।
  7. सतत् शिक्षा मानव अधिकारों के प्रति पर्याप्त जानकारी तथा सजगता उत्पन्न करने की एक प्रक्रिया है।
  8. सांस्कृतिक समृद्धि के लिए अवसर और अवकाश के समय को सृजनात्मक तरीके से उपयोगी बनाने की प्रक्रिया है।
  9. सतत् शिक्षा के कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता सम्मिलित किये जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(a) अकुशल मजदूर तथा खेतिहर किसान।

(b) किशोर एवं नवयुवक जिन्होंने अपूर्व स्कूली शिक्षा प्राप्त की है।

(c) न्यूनतम विद्यालय को शिक्षा लिये कुशल श्रमिक

(d) तकनीशियन, वैज्ञानिक (शिल्पी) तथा अन्य व्यवसायों में रत व्यक्ति।

(e) वैचारिक एवं व्यावहारिक नेतृत्व करने वाली संस्थाएँ एवं व्यक्ति ।

(f) वयोवृद्ध नागरिक।

इस प्रकार अन्त में हम कह सकते हैं कि सततृ शिक्षा समाज की सम्पूर्णता, अखण्डता को अपने में संजोकर राष्ट्र कल्याणको सामुदायिक भावना से कार्य करती है जो केवल मानवशास्त्र के कल्याण के साथ-साथ किसी राष्ट्र के मूल्यों, चरित्र, नागरिकता के गुणों की अक्षुण्ण कुंजी है।

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Pankaja Singh

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