शिक्षाशास्त्र

ध्वनि प्रदूषण | ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण

ध्वनि प्रदूषण | ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण | Noise pollution in Hindi | Control of noise pollution in Hindi

ध्वनि प्रदूषण

आज हम पर्यावरण प्रदूषण के बारे में काफी जागरूक हैं, किन्तु अभी तक पर्यावरण को जल एवं वायु प्रदूषण के ही संदर्भ में लिया जाता है, जो कि मुख्य रूप से इस पृथ्वी पर जीवन से सम्बन्धित है। इससे भिन्न एक और प्रकार का प्रदूषण है जो कि मनुष्य के भौतिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और शान्त वातावरण में अशान्ति, बाधा, क्षुब्धता, व्याकुलता एवं घबराहट उत्पन्न करते हैं। इसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आज यह एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी है।

वास्तविक अर्थों में शोरगुल एक अवांछनीय एवं कष्टप्रद ध्वनि है। अन्य प्रदूषकों के ही समान यह भी किसी विपदाग्रस्त व्यक्ति अथवा समुदाय को बिना किसी ज्ञान के प्रभावित करते हैं यदि कोई किसी शोरगुल में अधिक समय तक विपदाग्रस्त रहे तो उसकी श्रवण को ह्रास होना, पोड़ा उत्पन्न होना, कार्य क्षमता में कमी आना, बोलना अथवा बातचीत में लड़खड़ाहट, उदासीनता, उत्तेजना, जो मिचलाना, रक्तचाप बढ़ना आदि लक्षण देखे जा सकते हैं। लगातार नींद न आने से पेट में गड़बड़ी, तंत्रिका सम्बन्धी अक्रियाशीलता आदि विशेष लक्षणों का भी प्रकट होना सम्भव है।

ध्वनि प्रदूषण जिसे सामान्य भाषा में शोरगुल कहते हैं, के मुख्य स्रोत निम्न हैं-

(1) उद्योग,

(2) समुदाय,

(3) यातायात

मुख्य रूप से उद्योग इस बात पर निर्भर करते हैं कि वहां किस प्रकार से मशीनीकरण किया गया है। जैसे अत्यधिक बड़ी मशीनें एक अविरल क्षेत्र में है अथवा अनेक उत्पादक प्रक्रियाएं किसी सीमित क्षेत्र में हैं यहां कर्मचारी कई वर्षों तक लगातार अत्याधिक शोरगुल में विपदाग्रस्त  होते हैं। सामुदायिक शोरगुल प्रायः मनुष्य के भिन्न-भिन्न क्रियाकलापा जैसे धार्मिक पर्व, विवाह, लोक कार्यों आदि से उत्पन्न होते हैं। आज के वैज्ञानिक अन्वेषणों ने इसे चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया है। व्यापारी अपने विज्ञापनों के लिए लाट्री के टिकिट बेचने वाले प्रायः लाउडस्पीकर का उपयोग करते हुए सामान्य रूप से देखे जा सकते हैं। रेस्तरां, व्यापारिक संस्थान, विवाह, क्लब, त्यौहार एवं धार्मिक पर्वो पर बेशुमार शोर उत्पन्न कर रहे हैं। केसेट टेप्स आदि घरों में बजना आम हो गया है, जो कि पाठशालाओं, अध्ययन क्षेत्रों, लोक-पुस्तकालयों, चिकित्सालयों आदि के लिए भी समस्या बन गए हैं।

विज्ञान की प्रगति ने ध्वनि तरंगों के उत्पादन, स्थानान्तरण, ग्रहण करने की विधि को भली भांति समझ लिया है। ध्वनि तीन रूपों में होती हैं या हैं-

(1) स्पीच या भाषण,

(2) संगीत एवं

(3) शोरगुल

ध्वनि के गृहण करने का प्राकृतिक उदाहरण है उसे कानों द्वारा स्वीकार करना। शहरों का यातायात मुख्य रूप से भारी ट्रक, टेम्पों, बसों आदि की लम्बी कतार ध्वनि उत्पन्न करने के मुख्य स्रोत हैं।

वास्तव में ध्वनि अथवा शोरगुल एक अवांछनीय, आनन्दरहित और कष्टप्रद ध्वनि प्रदूषण है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव है। परीक्षा में व्यस्त विद्यार्थी, थके हुए रोगी में शोरगुल अबांछनीय प्रभाव उत्पन्न करता है। आज यह चुनौतीपूर्ण समस्या है।

ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण

आज यह एक राष्ट्रीय समस्या है। अब मनुष्य समूहों में रहता है। आवासों का निर्माण पंक्तिबद्ध होता है। नियन्त्रण हेतु सर्वप्रथम उपाय ध्वनि उत्पादक मशीनों में परिवर्तन है ताकि शोर नहीं के बराबर हो। यह गियस बदलकर बी-वेल्ट-ड्राइव, अनुसार पर कम्पन साउण्ड आदि के द्वारा किया जा रहा है। पुरानी मशीनों के स्थान पर नयी मशीनें लगाई जा रही है। अन्य प्रयास में चिकित्सालय, विद्यालय आदि को रेलवे लाइनों, हवाई अड्डों तथा मुख्य कार्यों से दूर रखना आदि तथा वृक्षारोपण, प्रेशर हार्न का प्रयोग वर्जित करना, टो० वी०, टेप, आदि का प्रयोग घर तक ही सीमित करना आते हैं।

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Pankaja Singh

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