शिक्षाशास्त्र

पर्यावरण शिक्षा की विधियाँ | पर्यावरण शिक्षा की संस्थायें | Methods of Environmental Education in Hindi | Institutions of Environmental Education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा की विधियाँ | पर्यावरण शिक्षा की संस्थायें | Methods of Environmental Education in Hindi | Institutions of Environmental Education in Hindi

पर्यावरण शिक्षा की विधियाँ

पर्यावरण शिक्षा वास्तव में सामान्य शिक्षा का एक अंग मात्र है जो छात्रों में पर्यावरण के प्रति सजगता उत्पन्न करके पर्यावरण को प्रदूषित न होने सदेने की अभिवृत्ति उत्पन्न करता है तथा पर्यावरण में सुधार करने की विधियों का ज्ञान कराता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पर्यावरण के अंतर्गत पर्यावरण से सम्बन्धित पाठ्य वस्तु की शिक्षा प्रदान की जाती है। क्योंकि पर्यावरण शिक्षा सामान्य शिक्षा की ही एक शाखा है इसलिए पर्यावरण शिक्षा की विधियां सामान्य शिक्षा विधियों से भिन्न नहीं हो सकती हैं। वस्तुत: पर्यावरण शिक्षा के लिए उन्हीं विधियों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें सामान्य शिक्षा के लिए प्रयुक्त किया जाता है परन्तु यहाँ इस बात पर ध्यान देना होगा कि पर्यावरण शिक्षा की विषयवस्तु को प्रकृति अपेक्षाकृत व्यापक होने के कारण पर्यावरण शिक्षा में व्याख्या विधि के स्थान पर अन्य अनुभवजनित वविधियों पर अधिक जोर दिय जाता है। व्याख्यान विधि का उपयोग छात्रों को पर्यावरण, पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण सम्बंधी ज्ञान प्रदान करने के लिए किया जाता है परन्तु छात्रों में समझ उत्पन्न करने, चिंतन को जागृत करने, उनमें सजगता उत्पन्न करने, आदत निर्माण करने, तथा कौशल विकसित करने जैसे उद्देश्यों के लिए वाद-विवाद, पर्यटन प्रोजेक्ट आदि विधियों का प्रयोग अधिक उपयुक्त माना जाता है। पर्यावरण शिक्षा की प्रमुख विधियों को आगे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है-

  1. व्याख्यान विधि

Lecture Method

इस विधि में पर्यावरण से सम्बन्धित किसी प्रकरण अथवा समस्या पर अध्यापक अथवा वक्ता व्याख्यान के रूप में विषयवस्तु प्रस्तुत करता है। छात्र अथवा श्रोतागण उस व्याख्यान को सुनकर संबंधित प्रकरण, समस्या के विभिन्न पक्षों के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं। उच्च स्तरीय छात्रों तथा प्रौढ़ व्यक्तियों को पर्यावरण शिक्षा प्रदान करने के लिए यह एक उपयोगी, प्रभावी तथा मितव्ययी विधि है।

  1. वाद-विवाद विधि

Discussion Method

वाद-विवाद विधि में किसी प्रसकरण अथवा समस्या पर विचार-विमर्श करके उसके विभिन्न पक्षों को स्पष्ट किया जाता है। वाद-विवाद में व्यक्तियों के कम से कम दो पक्ष होते हैं जो किसी प्रकरण आवा समस्या पर अपने-अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तथा प्रमाणों, तर्कों को प्रस्तुत करके अपनी बात को स्वीकृति करने का प्रयास करते हैं। प्रदूषण समस्या, पर्यावरण एवं विकास प्रक्रिया, जनसंख्या समस्या, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया जैसे प्रकरणों पर वाद-विवाद का आयोजन किया जा सकता है। जटिल बातों को स्पष्ट रूप से समझाने व उनका अवबोध कराने में यह विधि अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है। वाद-विवाद से अस्पष्टता समाप्त हो जाती है तथा प्रकरण के विभिन्न अंक स्पष्ट रूप से समझ में आ जाते हैं।

  1. प्रोजेक्ट विधि

Project Method

प्रोजेक्ट विधि करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित विधि है। जंब छात्रों को किसी प्रकरण का विस्तार से अध्ययन कराना होता है तब प्रोजेक्ट विधि का प्रयोग किया जा सकता है। इस विधि में व्यक्तियों/छात्रों को कुछ छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है तथा प्रत्येक समूह को एक प्रोजेक्ट पूरा करने का उत्तरदायित्व सौंप दिया जाता है। जैसे किसी समूह को पास में निर्माणाधीन कारखाने का प्रोजेक्ट देकर कहा जा सकता है कि वह कारखाने के फलस्वरूप होने वाले प्रभावों का अध्ययन करे। अध्ययन में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा सामाजिक प्रदूषण व इन्हें रोकने के उपायों पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है।

  1. पर्याटन विधि

Excursion Method

पर्यावरण शिक्षा जैसे विषय को पढ़ाने के लिए पर्याटन विधि एक प्रभावशाली शिक्षण विधि हैं। किसी स्थान विशेष के पर्यावरण तथा उसके प्रदूषण का अध्ययन करने के लिए शैक्षिक पर्यटन का आयोजन किया जा सकता है। पर्यटन के द्वारा स्वयं अपने अनुभव के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं। कल-कारखानों, नगरीकरण, बाँध निर्माण, सड़क निर्माण आदि के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से जानने के लिए पर्याटन का आयोजन किया जा सकता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं अथवा कल-कारखानों के द्वारा किये जा रहे उपायों के अध्ययन के लिए भी पर्यटन का आयोजन किया जा सकता है।

  1. वाह्य अध्ययन विधि

Out-door Study Method

वाह्य अध्ययन से तात्पर्य छात्रों को विद्यालयों को कृत्रिम परिस्थितियों से निकाल कर प्रकृति की गोद में ले जाकर अध्ययन कराना है। जैसे नदी, गुफा, पहाड़, जंगल रेगिस्तान, गाँव आदि पर्यावरण के अध्ययन के लिए ले जाया जा सकता है। वाह्य अध्ययन के निर्धारण के साथ-साथ वाह्य अध्ययन के पूर्ण कार्यक्रमों को सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है। जिससे छात्र वाह्य अध्ययन की अवधि में वांछित अवलोकन कर सकें।

  1. प्रर्दशनी विधि

Exhibition Method

जनसाधारण को पर्यावरण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदर्शनियों का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-वन्य जीवन से सम्बंधित प्रदर्शनी का आयोजन करके वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों के जीवन-चक्र तथा एक दूसरे पर निर्भरता को बताया जा सकता है। इसी प्रकार से नगरीकरण जनसंख्या वृद्धि आदि के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को चित्रों की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है। इलाहाबाद में प्रतिवर्ष लगने वाले माघ मेले में तथा कुंभ व अर्द्धकुम्भ के अवसर पर जल प्रदूषण के बारे में जनसाधारण को अवगत कराने के लिए प्रर्दशनियां एक सशक्त तथा महत्वपूर्ण माध्यम है जिसके द्वारा विभिन्न प्रकरणोसं का ज्ञान रोचक व सरल ढंग से शिक्षित तथा अशिक्षित सभी को कराया जा सकता है।

  1. खेल विधि

Play Method

छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में खेल महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। पर्यावरण शिक्षा हेतु भी इस विधि का उपयोग किया जा सकता है। खेलों के माध्यम से छात्रों में स्वयं निर्णय लेने की योग्यता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति सकारात्मक अभिवृत्तियों का निर्माण किया जा सकता है।

पर्यावरण शिक्षा की संस्थायें

पर्यावरण तथा उसके संरक्षण का सम्बन्ध सभी से है। यही कारण है कि पर्यावरण शिक्षा का उत्तरदायित्व किसी एक पर नहीं छोड़ा जा सकता। स्थानीय संस्थायें, राज्य संस्थायें, राष्ट्रीय संस्थायें तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें सभी को इस दिशा में मिल-जुल कर काम करना होगा। नगरपालिका में, नगर निगम, जिलापरिषद, कल-कारखाने, उद्योग विभाग, स्कूल कॉलेजों व विश्वविद्यालयों, जनसंचार साधनों-समाचार पत्र, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म आदि सभी के योगदान से पर्यावरण शिक्षा का प्रचार व प्रसार सम्भव है।

जनसंख्या विस्फोट तथा औद्योगीकरण के कारण माव ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंधाधुंध किया है। परिणामत: जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। प्राकृतिक संतुलन में व्यवधान आने लगा है। अगर प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया तब मानव जाति जीवित नहीं रह सकती है। प्राकृतिक संतुलन में हो रहे व्यवधान के फल स्वरुप मानव जीवन एक दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है। वस्तुतः प्रकृति का संरक्षण करना हम सभी का न केवल एक पुनीत कर्तव्य है वरन अस्तित्व हेतु एक आवश्यकता है। आज पर्यावरण की समस्या एक ज्वलंत समस्या बन गई है। इस समस्या का निराकरण करने के लिए गंभीर प्रयास की आवश्यकता है। पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार के लिए आवश्यक माहौल तैयार करने के लिए पर्यावरण शिक्षा पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

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Pankaja Singh

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